संगम की रेती पर अजब-गजब बाबा बने आकर्षण के केन्द्र
13 जनवरी को
प्रयागराज
के
संगम
क्षेत्र
में
मकर
संक्रांति
के
स्नान
के
साथ
ही
महाकुंभ
की
शुरुआत
हो
जाएगी.
महाकुंभ
के
अविस्मरणीय
पल
का
साक्षी
बनने
को
दुनियाभर
के
लोग
लालायित
हैं।
लगभग
45 दिनों
तक
चलने
वाले
इस
मेले
में
लाखों
श्रद्धालु
गंगा,
यमुना
और
रहस्यमयी
सरस्वती
के
पवित्र
संगम
पर
स्नान
करने
के
लिए
आते
हैं।
जन्म-जन्मांतर
के
पापों
से
मुक्ति
और
मोक्ष
प्राप्ति
की
संकल्पना
साकार
करने
को
संत
व
श्रद्धालु
डेरा
जमाने
लगे
हैं।
साधु
संतों
के
अखाड़े
पूरे
लाव
लश्कर
के
साथ
कुंभनगरी
पहुंच
रहे
हैं.
मतलब
साफ
है
इस
बार
तंबुओं
की
अलौकिक
नगरी
का
अद्भुत
स्वरूप
मंत्रमुग्ध
करने
वाला
है।
इस
बीच
संगम
की
रेती
पर
एक
से
बढ़कर
एक
हठयोगी
देखने
को
मिल
रहे
हैं,
तो
दुसरी
तरफ
महाकुंभ
में
अजब-गजब
नाम
वाले
बाबा
भी
आस्थावानों
के
आकर्षण
के
केन्द्र
बने
है।
इन
बाबाओं
में
किसी
के
गले
में
मुंड,
कहीं
नागाओं
का
झुंड,
हाथों
में
त्रिशूल
और
गले
में
रुद्राक्ष
तो
कहीं
सिर
पर
जौ
उगाएं
बाबाओं
की
टोली
घूम
रही
है।
इनवायरमेंट
बाबा
और
सिलेंडर
बाबा
के
बीच
’लिलिपुट
बाबा’,
बवंडर
बाबा,
चाबी
वाले
बाबा,
हिटलर
बाबा,
बुलट
वाले
बाबा,
कंप्यूटर
बाबा,
ट्रंप
बाबा
के
दर्शन
करने
के
लिए
श्रद्धालुओं
में
होड़
लगी
है।
खास
बात
यह
है
कि
’लिलिपुट
बाबा’
32 साल
से
स्नान
ही
नहीं
किए
है.
श्री
पंचायती
महानिर्वाणी
अखाड़ा
के
एक
साधु
तो
महाकुंभ
में
महाकाल
के
वेश
में
पहुंचे.
पूरे
महाकुंभ
में
आध्यात्मिक
उत्साह
और
भक्ति
का
माहौल
छाया
है।
अखाड़ों
की
पेशवाई
भक्ति
का
जीवंत
प्रदर्शन
के
रुप
में
देखा
जा
रहा
है।
इसमें
साधु
पवित्र
भस्म
में
लिपटे
हुए,
मालाओं
से
सजे
हुए
और
घोड़ों
पर
सवार
हैं
सुरेश गांधी
प्रयागराज में महाकुंभ का
भव्य, दिव्य एवं अनोखा आयोजन
हो रहा है. मुख्यमंत्री
योगी आदित्यनाथ के अथक प्रयासों
का परिणाम है कि महाकुंभ
में पहुंचे हर अखाड़े के
साधु-संत के मुख
से बरबस ही निकल
रहा है... एको अहं, द्वितीयो
नास्ति, न भूतो न
भविष्यति! अर्थात अब तक के
इतिहास में न ऐसा
कभी आयोजन हुआ था और
ना ही भविष्य में
होने की उम्मींद है।
हर बाबा महाकुंभ की
तैयारियों एवं व्यवस्था से
गदगद नजर आ रहा
है। तो इन्हीं बाबाओं
की टोली में अजब-गजब बाबा भी
दिखाई दे रहे है।
इनमें कुछ ऐसे संत
भी मौजूद हैं जो अपनी
असाधारण और विशेष साधनाओं
के कारण विशेष रूप
से चर्चा में हैं। इन
संतों की साधनाएं न
केवल श्रद्धालुओं को आश्चर्यचकित करती
हैं बल्कि उन्हें भक्ति समर्पण और साधना के
महत्व को भी समझाती
हैं। इन्हीं में से एक
बाबा अमरजीत मिले, जिन्हें लोग “अनाज बाबा“
भी कहते हैं. उनका
हठयोगा ऐसा वैसा नहीं
है बल्कि हठयोगा का एक विशिष्ट
उदाहरण है. सिर पर
उगाई गई फसल उन्हें
अद्वितीय हठयोगी बनाता है. सोनभद्र के
मारकुंडी के रहने वाले
बाबा अमरजीत अपने सिर पर
चना, गेहूं, बाजरा जैसे कई अनाज
पिछले 14 वर्षों से उगाए जा
रहे हैं. इसके पीछे
उनका लक्ष्य हठयोग दिखाना नहीं है बल्कि
पर्यावरण संरक्षण के महत्व को
लेकर जन जन को
जागरूक करा है. बाबा
अमरजीत अपने हठयोग के
बारे में कहते हैं
कि वो विश्व शांति
और कल्याण के लिए यह
हठयोग कर रहे हैं.
पेड़ों की लगातार हो
रही कटाई से प्रकृति
को खतरे में है.
जिसे लेकर फसल को
मैंने अपने सिर पर
उगाकर हरियाली का महत्व लोगों
को समझाने की कोशिश की
है. उनके सिर पर
उगी जौ करीब एक
फीट लंबी हो गई
है जिससे उनके सिर में
दर्द भी होता जिसे
वो अपने संकल्प का
हिस्सा मानते हैं. बाबा की
योजना है कि इस
जौ को मौनी अमावस्या
पर भक्तों के बीच प्रसाद
के रूप में बांटेंगे.
बाबा मानते हैं कि इस
प्रसाद को ग्रहण करने
वाला धन्य हो जाएगा.
बाबा इस तरह लोगों
तक संदेश पहुंचाते हैं कि अपनी
पृथ्वी को बचाने के
लिए हमें हर तरह
के संभव प्रयास करने
चाहिए. बाबा के मुताबिक
“हरियाली जीवन है, इसे
बचाने के लिए हमें
हर तरह के प्रयास
करने चाहिए. बाबा कहते हैं
कि पेड़-पौधे न
सिर्फ हमारे जीवन के लिए
आवश्यक हैं बल्कि पूरी
पृथ्वी के लिए महत्वपूर्ण
हैं. हाल यह है
कि पूरे महाकुंभ में
बाबा की तपस्या के
बारे में चर्चा हो
रही हैं और महाकुंभ
में आने वाले श्रद्धालु
बाबा के पास आकर
सेल्फी ले रहे हैं.
तो इन्हीं चर्चाओं
के बीच सिलेंडर वाले
बाबा इंद्र गिरी जी महाराज
से मुलाकात हुई। उनका 97 फीसदी
से ज्यादा फेफड़े खराब है। वह
ऑक्सीजन सिलेंडर के सहारे कुंभ
में शामिल होने पहुंचे है।
इंदौर से आए बवंडर
बाबा अपने नाम के
अनुरूप काम भी कुछ
ऐसा ही कर रहे
है। इन्होंने देवी-देवताओं के
चित्रों के अपमान के
खिलाफ अभियान चला रखा हैं।
उनका कहना है ि
कवे नहीं चाहते कोई
उनके आराध्य के चित्रों को
नाली, सड़क में फेंके।
वे एक हजार से
अधिक गांवों व 500 शहरों में अभियान चलाने
के बाद प्रयागराज में
जनजागरण कर रहे हैं।
दिगंबर अनी अखाड़ा के
महामंडलेश्वर माधव दास की
ख्याति हिटलर बाबा के रूप
में है। उन्होंने 1992 में
प्रयागराज में संन्यास लिया।
गुरु रघुवर दास ने नाम
दिया माधवदास। सौंपे गए दायित्वों को
वह मनमर्जी से करते थे।
उनके मुताबिक एक दिन सुबह
गुरु के मुख से
निकला, ’’ये तो हिटलर
हो गया है किसी
की सुनता ही नहीं है...। बस तब
से माधवदास’’ हिटलर बाबा हो गए।
कहते हैं कि ’’हिटलर
नाम से कुछ लोग
भय खाते हैं, लेकिन
मैं सिर्फ अपनी साधना में
लीन रहता हूं। भोर
तीन बजे गंगा स्नान,
एक समय अन्न ग्रहण
और अधिकतर समय श्रीराम नाम
जप में व्यतीत होता
है। जगद्गुरु बिनैका बाबा के शिविर
साकेत धाम आश्रम की
व्यवस्था ट्रंप उपनामी संत संभाल रहे
हैं। उनका असल नाम
कंचनदास जी महाराज है।
एम. काम उपाधि धारक
कंचन दास ने वर्ष
2004 में संन्यास लिया था। वो
हिन्दी कम अग्रेजी ज्यादा
बालते है। डोनाल्ड ट्रंप
पहली बार 2017 में अमेरिका के
राष्ट्रपति बने तो उनकी
हर गतिविधि में रुचि रखने
लगे। कंचनदास की कद-काठी
व चेहरा भी कुछ वैसा
ही था सो गुरु
ने उपनाम रख दिया ट्रंप।
कंचन दास उर्फ ट्रंप
ही यह तय करते
हैं कि भंडारा में
कब, क्या बनेगा? कितनी
सामग्री प्रयुक्त होगी? कुछ ऐसा ही
भैरव दास उर्फ बुलेट
बाबा की रामकहानी है।
हाथ में फरसा और
बुलेट उनकी पहचान है।
पूजापाठ पूरा करके बुलेट
से भ्रमण करते हैं। इनका
सारा सामान उसी में रहता
है। श्रीराम मारुति धाम काशी के
पीठाधीश्वर जगदीश दास उर्फ मारुति
बाबा दिगंबर अनी अखाड़ा के
महंत हैं। वह बताते
हैं ’’करीब 20 साल पहले लंदन
से गुरुभाई आए थे। मैं
हनुमान जी का भक्त
हूं, सो उन्होंने मुझे
मारुति बाबा कह कर
पुकारा, बस तबसे यही
नाम लिए हूं।
इन्हीं अजब-गजब नाम
वाले बाबाओं की कड़ी में
चाभी वाले बाबा की
खूब चर्चा हो रही है।
उनका संदेश है अच्छा कर्म
करो बदलाव आएगा। कर्म से भाग्य
खुल जाएगा। 17 वर्ष की आयु
से घर छोड़ दिया
है। स्वामी विजय गिरि की
पहचान घोड़े वाले बाबा
की है। आनंद अखाड़ा
के संत विजय गिरि
वाहनों के बजाय घोड़े
की सवारी करते हैं। इसके
चलते इनका नाम घोड़े
वाले बाबा पड़ गया
है। आवाहन अखाड़ा के आचार्य महामंडलेश्वर
स्वामी अरुण गिरि की
ख्याति एनवायरनमेंट बाबा के रूप
में है। 15 अगस्त 2016 को मां वैष्णो
देवी मंदिर से कन्याकुमारी तक
पदयात्रा निकालकर 27 लाख पौधों का
वितरण करने के साथ
उसे लगवाया भी था। अब
तक एक करोड़ के
लगभग पौधों का वितरण कर
चुके हैं। महाकुंभ में
51 हजार पौधा वितरित करने
का लक्ष्य है। कहते हैं
पर्यावरण बचेगा तभी धरती पर
जीवन रहेगा। इसलिए उसकी मुहिम में
जुटा हूं। इनका स्वर्ण
प्रेम भी खास पहचान
है। अपने शरीर पर
सोने से जड़े हुए
आभूषण पहनते हैं। इनमें सोने
की माला, अंगूठी और हीरे से
जड़ी घड़ी उनकी शोभा
बढ़ाती है। चांदी का
एक धर्म दंड हर
समय हाथ में रखते
हैं। कलाई में सोने
के कई कड़े और
बाजूबंद पहनते हैं। स्फटिक और
क्रिस्टल की कीमती मलाई
धारण करने से उनकी
अद्भुत छवि बनती है।
दिगंबर अनी अखाड़ा के
महामंडलेश्वर नामदेव दास उर्फ कंप्यूटर
बाबा की अलग धाक
है। कंप्यूटर की अच्छी जानकारी
रखने के कारण उनका
नाम कंप्यूटर बाबा पड़ गया।
ये अपने दमदार बयानों
के लिए जाने जाते
हैं। हर मुद्दे पर
बेबाकी से राय रखते
हैं। डॉ. लक्ष्मी नारायण
त्रिपाठी किन्नर अखाड़े की प्रमुख हैं।
गले में सोने के
मोटे-मोटे हार, कलाई
पर रुद्राक्ष, सोने और हीरे
से बने ब्रेसलेट, कानों
में कई तोले की
ईयर-रिंग, नाक में कंटेंपरेरी
नथ, माथे पर त्रिपुंड
और लाल बिंदी... उनकी
पहचान है। मात्र ढाई
फीट लंबाई वाले 75 वर्षीय अवधूत बौना बाबा महाराष्ट्र
के पंढरपुर से महाकुंभ में
आए हैं। दत्त महाराज
की साधना में लीन यह
संत किसी भी संकल्प
या मांग से परे
केवल ईश्वर की आराधना में
तल्लीन रहते हैं। उनका
कहना है कि उन्होंने
जीवन को पूरी तरह
से भक्ति के लिए समर्पित
कर दिया है।
कड़े बाबा के
नाम से प्रसिद्ध हठ
योग साधक मध्यप्रदेश के
महाकाल गिरि ने साढ़े
आठ वर्ष से हाथ
नीचे नहीं किया। इन्हें
कड़े बाबा के नाम
से भी जाना जाता
है। उनका यह कठोर
तप गौमाता की रक्षा के
लिए कानून बनाए जाने के
संकल्प के साथ जारी
है। वह न केवल
अपने हाथ को स्थिर
रखते हैं, बल्कि वस्त्रों
का त्याग कर, केवल आकाश
के नीचे अपनी साधना
करते हैं। उनके नाखून
सात-आठ सेंटीमीटर तक
बढ़ चुके हैं, जो
उनकी तपस्या के प्रतीक हैं।
तो कोट का पुरा
पंजाब से आये “सवा
लाख रुद्राक्ष वाले“ बाबा के नाम
से चर्चित श्रीमहंत गीतानंद गिरि ने अपने
सिर पर रुद्राक्ष की
मालाओं को धारण कर
रखा है। 2019 के अर्धकुंभ में
उन्होंने 12 साल तक सिर
पर रुद्राक्ष धारण का संकल्प
ले लिया था। जैसे-जैसे भक्तों से
रुद्राक्ष की माला मिलती
गई, गीतानंद उसे सिर पर
धारण करने लगे। लक्ष्य
था कि सवा लाख
रुद्राक्ष पहन लेंगे, वर्तमान
में संख्या सवा दो लाख
पहुंच चुकी है, जिनका
वजन करीब 45 किलो हो गया
है। बताया कि प्रत्येक दिन
12 घंटे तक इसे सिर
पर पहने ही रहते
हैं, उद्देश्य सनातन धर्म की मजबूती
से रक्षा और जनकल्याण का
है। वहीं 3 फीट 8 इंच के एक
अनोखे संत ने सबका
ध्यान खींच लिया है।
इन्हें लोग ’लिलिपुट बाबा’
कहते हैं। लेकिन हैरानी
की बात ये है
कि ये बाबा 32 साल
से स्नान भी नहीं किया
है।
आस्था ही नहीं, दिखेगा टेक्नोलॉजी का भी संगम
भारत में महाकुंभ
का महत्व बहुत ही ज्यादा
है. इस बात की
गवाही आप महाकुंभ में
आने वाले भीड़ को
देख कर लगा सकते
है. ऐसे में इसकी
तैयारियों में कोई कोर
कसर नहीं छोड़ी जा
रही है. बदलते दौर
और डिजिटल युग ने महाकुंभ
को और विशाल और
भव्य बना दिया है.
इसके लिए सरकार ने
करोड़ों का बजट तैयार
किया है. इस बार
का महाकुंभ लेटेस्ट टेक्नॉलजी और आस्था का
संगम माना जा रहा
है. श्रद्धालुओं के रहने से
लेकर उनके सुरक्षा तक
के लिए तकनीक का
इस्तेमाल किया गया है.
क्यूआर कोड का इस्तेमाल
महाकुंभ में इस साल
जगह-जगह क्यूआर कोड
लगाया गया है. इस
कोड के जरिए किसी
भी सर्विस के बारे में
जानकारी ले सकते है.
उदाहरण के तौर पर
देखे तो प्रशासन, इमरजेंसी
हेल्प, होटल और खाना
के बारे में जानकारी
प्राप्त की जा सकती
है. लोग इन क्यूआर
कोड को स्कैन करके
सही अपना काम और
भी आसान बना सकते
हैं. इसके अलावा हर
कोड के साथ एक
व्हाट्सएप नंबर भी है.
यहां आपको रियल टाइम
हेल्प मिलेगी. इसके अलावा सरकार
ने गूगल मैप्स के
साथ समझौता भी किया है.
इससे महाकुंभ के सभी रास्ते
और जगह ऑनलाइन देखे
जा सकते हैं. इससे
श्रद्धालुओं को रास्ते ढूंढने
में कोई कठिनाई का
सामना नहीं करना पड़ेगा.
हाईटेक कमांड सेंटर
महाकुंभ की निगरानी के
लिए एक हाइ टेक
कमांड सेंटर तैयार किया गया है.
इसमें बड़ी-बड़ी स्क्रीन
इंस्टॉल की गई हैं.
यह पूरे एरिया से
लाइव वीडियो और डेटा को
दिखाती हैं. यहां से
ऑफिसर्स भीड़, ट्रैफिक, पार्किंग
पर नजर रख सकते
है. इन सब के
अलाव एआई तकनीक की
भी मदद ली जा
रही है. महाकुंभ में
सुरक्षा के लिए स्मार्ट
कैमरे और ड्रोन का
इस्तेमाल किया जा रहा
है. इससे हर मूवमेंट
पर नजर रखी जा
सकती है. साथ ही
कोई भी समस् होने
पर उसे तुरंत हल
किया जा सकता है.
इस बार महाकुंभ में
सरकार ने ‘भाषिनी’ नामक
एप भी लॉन्च किया
है. इसकी मदद से
मौके पर तैनात पुलिस
अधिकारी अलग-अलग भाषाओं
में श्रद्धालुओं से बात कर
सकते हैं. इसकी मदद
से किसी भी फॉरेन
टूरिस्ट से उनके भाषा
में बात की जा
सकती है. कुंभ में
‘लॉस्ट एंड फाउंड’ एरिया
भी बनाया गया है. यहां
खोए हुए लोगों की
जानकारी डिजिटल तरीके से ली जा
सकती है. रेलवे भी
इस पहल में महाकुंभ
अथॉरिटी का साथ दे
रहा है.यात्रियों के
लिए रंगीन टिकट दिए जाएंगे.
यह उनके आने के
इससे यात्रियों को सही ट्रेन
और प्लेटफार्म तक पहुंचने में
मदद मिलेगी.
आपात स्थिति से निपटने के पुख्ता इंतजाम
पूरे महाकुंभ स्थल
यानी दुनिया के सबसे बड़े
अस्थाई नगर को सात
जिलों में बांटा गया
है. ये जिले हैं
शंकराचार्य नगर, महामंडलेश्वर नगर,
आचार्यबाड़ा नगर, दंडीबाड़ा नगर,
कल्पवासी नगर, खाक चौक
नगर और रामानंद नगर.
कुल चार हजार हेक्टेयर
जमीन पर देश-दुनिया
से आने वाले श्रद्धालु
जुटेंगे. पूरे क्षेत्र को
10 जोन, 25 सेक्टरों, 56 थानों और 155 चौकियों में बांटा गया
है. कुल मिला कर
महाकुंभ 2025 को पहला डिजिटल
महाकुंभ भी कहा जा
रहा है. प्रयागराज महाकुंभ
में आतंकी ज्यादा नुकसान पहुंचाने के लिए केमिकल,
बायोलॉजिकल, रेडियोलॉजिकल और न्यूक्लियर वेपन
का इस्तेमाल कर सकते हैं.
ऐसे हमलों के बाद किस
तरह से रेस्क्यू वर्क
किया जाएगा. रेडियो एक्टिव पदार्थों से प्रभावित व्यक्ति
को रेडियो एक्टिव मुक्त करने के लिए
आवश्यक मशीनों और ट्रीटमेंट सेंटर
को एआई हॉस्पिटल में
तब्दील किया गया है।
इसके लिए अलग से
वार्ड बनाया जा रहा है.
केमिकल अटैक जैसी आपात
स्थिति के लिए स्वरूप
रानी नेहरू अस्पताल में तीन बड़े
वार्ड को सभी जरूरी
मेडिकल मशीनों और बेड आदि
सुविधाओं से लैस किया
जा रहा है. इस
बार महाकुंभ में सुरक्षा के
अभूतपूर्व इंतजाम किए जा रहे
हैं. हजारों जवान और अधिकारियों
के साथ ही दो
हजार 750 से ज्यादा एआई
सीसीटीवी कैमरों की मदद से
चप्पे-चप्पे पर 24 घंटे निगरानी रखी
जाएगी. साथ ही चप्पे-चप्पे पर कड़ी निगरानी
रखने के लिए हवा
में पहली बार टीथर्ड
ड्रोन तैनात किया गया है.
हाई रिजॉल्यूशन इमेज, वीडियो और सेंसर डेटा
जुटाने की क्षमता वाले
इस हाई सिक्योरिटी ड्रोन
की पैनी नजर से
कोई संदिग्ध बच नहीं पाएगा.
ड्रोन के डेटा की
समीक्षा के लिए एक
खास टीम तैनात की
गई है.
कर्मकांड की ट्रेनिंग
कुम्भ में संगम पर
पूजा, ध्यान और पिंडदान जैसे
धार्मिक कर्मकांड किए जाते हैं
ऐसे में इसकी बाकायदा
ट्रेनिंग पुरोहितों को दी जा
रही है ताकि वो
अपने जजमान को इन पूजा
का लाभ दिलवा सके.
कुंभ में आने वाले
तमाम श्रद्धालुओं को अच्छे तरीके
से कर्मकांड की पूजा पाठ
हो सके इसके लिए
बाकायदा बाल पुरोहितों को
ट्रेनिंग जा रही है
ताकि वह तमाम श्रद्धालुओं
को अच्छे तरीके से कर्मकांड करा
सकें।