Thursday, 4 September 2025

डिजिटल युग में सतर्कता ही सबसे बड़ा सुरक्षा कवच : पुलिस आयुक्त

डिजिटल युग में सतर्कता ही सबसे बड़ा सुरक्षा कवच : पुलिस आयुक्त 

व्यापारियों संग साइबर अपराध पर जागरूकता गोष्ठी, हेल्पलाइन 1930 पर सूचना देने की अपील

सुरेश गांधी

वाराणसी। पुलिस आयुक्त कमिश्नरेट वाराणसी मोहित अग्रवाल ने गुरुवार को यातायात लाइन सभागार में व्यापारी बन्धुओं संग साइबर अपराध से बचाव हेतु जागरूकता गोष्ठी की। उन्होंने कहा कि डिजिटल युग में सतर्कता ही सबसे बड़ा बचाव है। अज्ञात कॉल, लिंक या मैसेज से दूरी बनाएं और अपने बैंकिंग/वित्तीय विवरण किसी भी हाल में साझा करें। किसी भी प्रकार की धोखाधड़ी होने पर तुरंत हेल्पलाइन नंबर 1930 या साइबर पोर्टल पर सूचना दें।

उन्होंने व्यापारियों कोडिजिटल अरेस्टजैसे नए साइबर ठगी के तरीकों से सतर्क रहने को कहा। ठग पुलिस या सीबीआई अधिकारी बनकर झूठे केस/वारंट दिखाते हैं और पैसों की मांग करते हैं। ऐसे कॉल पूरी तरह फर्जी होते हैं। व्यापारियों को निवेश स्कीम धोखाधड़ी, आसान लोन फर्जी केवाईसी अपडेट, म्यूल अकाउंट का उपयोग, ऑनलाइन नौकरी ठगी, नकली बैंकिंग ऐप और फोन सेटिंग बदलवाकर डाटा चोरी जैसे मामलों से बचने की सलाह दी गई।

उन्होंने जोर देकर कहा कि ओटीपी, एटीएम पिन, सीवीवी नंबर और बैंक खाता संबंधी विवरण कभी साझा करें। पासवर्ड हमेशा मजबूत और समय-समय पर बदला जाना चाहिए। किसी भी संदिग्ध गतिविधि पर तुरंत पुलिस को सूचित करें और दूसरों को भी जागरूक करें। इस अवसर पर पुलिस उपायुक्त काशी गौरव बंशवाल, पुलिस उपायुक्त अपराध सरवणन टी, अपर पुलिस उपायुक्त (साइबर अपराध) श्रीमती नीतू, अपर पुलिस उपायुक्त यातायात अंशुमान मिश्र, सहायक पुलिस आयुक्त कोतवाली ईशान सोनी, महानगर व्यापार उद्योग समिति अध्यक्ष प्रेमनाथ मिश्रा, मुख्य संरक्षक आर.के. चौधरी, संरक्षक नारायण खेमका, कोषाध्यक्ष पंकज अग्रवाल सहित व्यापारीगण उपस्थित रहे।

अनंत चतुर्दशी : विष्णु और गणेश की संयुक्त आराधना का महापर्व

अनंत चतुर्दशी : विष्णु और गणेश की संयुक्त आराधना का महापर्व 

6 सितंबर, शनिवार को अनंत चतुर्दशी का पावन पर्व मनाया जाएगा। भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को पड़ने वाला यह दिन भगवान विष्णु की पूजा और गणपति विसर्जन दोनों का विशेष संयोग है। अनंत चतुर्दशी को अनंत चौदस के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन भक्त भगवान विष्णु, देवी यमुना और शेषनाग की पूजा करते हैं और पवित्र अनंत सूत्र बांधते हैं. शास्त्र मानते हैं कि इस दिन व्रत रखकर अनंत सूत्र धारण करने से सभी कष्ट दूर होते हैं और जीवन में सुख-समृद्धि आती है। इस वर्ष शनिवार का अद्भुत योग बन रहा है, जिससे इस पर्व का महत्व कई गुना बढ़ गया है। खास यह है कि इस बार अनंत चतुर्दशी को सुकर्मा, रवि योग के साथ धनिष्ठा शतभिषा नक्षत्र का शुभ संयोग बन रहा है। मंगलकारी योग में भगवान गणेश और विष्णु की पूजा करने से सकल मनोरथ सिद्ध होते हैं, साथ ही सभी प्रकार के संकटों से मुक्ति मिलेगी। मान्यता है कि गणपति गणेश चतुर्थी पर विराजमान हुए थे और अनंत चर्तुदशी को मंगलकामना के साथ भक्तों से विदा लेते हैं। अनंत चतुर्दशी का पर्व विष्णु पूजा और गणपति विसर्जन का अद्वितीय संगम है। श्रद्धालु व्रत, पूजन, दीपदान और दान-पुण्य कर सुख-समृद्धि की कामना करते हैं और भगवान गणेश को भावभीनी विदाई देते हैं 

सुरेश गांधी

भाद्रपद शुक्ल चतुर्दशी को मनाया जाने वाला अनंत चतुर्दशी का पर्व इस वर्ष 6 सितंबर, शनिवार को है। इस दिन भगवान विष्णु के अनंत स्वरूप की पूजा-अर्चना होती है और गणेश उत्सव का समापन प्रतिमाओं के विसर्जन के साथ होता है। इस दिन हल्दी से रंगा हुआ धागा, जिसमें 14 गांठें होती हैं, धारण किया जाता है। यह 14 लोकों और भगवान विष्णु के 14 स्वरूपों का प्रतीक है। इसे पहनने से सुख-समृद्धि और विष्णु-लक्ष्मी की कृपा मिलती है। श्रद्धालु इस दिन 14 दीपक जलाकर घर के विभिन्न स्थानों पर रखते हैं। इस बार अनंत चतुर्दशी शनिवार को पड़ रही है। शास्त्र मान्यता है कि शनिवार को किए गए दान-पुण्य और व्रत से शनि दोष का नाश होता है और पुण्य कई गुना बढ़ जाता है। इस दिन दान करने से शनि दोष शांत होता है और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा आती है। अनंत चतुर्दशी केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह जीवन दर्शन का भी प्रतीक है।अनंतशब्द हमें याद दिलाता है कि ईश्वर असीम है। अनंत सूत्र की गांठें सिखाती हैं कि श्रद्धा और विश्वास से जीवन की हर कठिनाई को बांधा जा सकता है। गणेश विसर्जन हमें यह शिक्षा देता है कि हर आरंभ का एक अंत होता है और हर अंत एक नई शुरुआत का संकेत है।

कहते है कौंडिल्य ऋषि ने इस धागे को अपनी पत्नी के बाजू में बंधा देखा तो इसे जादू टोना मानकर उनके बाजू से निकालकर इसे जला दिया था। इससे ऋषि को भारी दुःखों का सामना करना पड़ा था। भूल का पता चलने पर उन्होंने भगवान अनंत की 14 वर्षों तक तपस्या की, जिससे प्रसन्न होकर भगवान ने फिर से उन्हें सुखी और धनपति बना दिया था। सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र के दिन भी इस व्रत के पश्चात फिरे थे। भगवान श्रीकृष्ण से पांडवों ने जुए में अपना राजपाट हार जाने के बाद पूछा था कि दोबारा राजपाट प्राप्त हो और इस कष्ट से छुटकारा मिले, इसका उपाय बताएं तो श्रीकृष्ण ने उन्हें परिवार सहित अनंत चतुर्दशी का व्रत बताया था। कहते हैं कि इस दिन व्रत रखने के साथ-साथ यदि कोई व्यक्ति श्री विष्णु सहस्त्रनाम स्तोत्र का पाठ करता है, तो उसकी समस्त मनोकामना पूर्ण होती है। धन-धान्य, सुख-संपदा और संतान आदि की कामना से यह व्रत किया जाता है।

पूजा का शुभ मुहूर्त

तिथि आरंभ : 6 सितंबर प्रातः 312 बजे

समापन : 7 सितंबर रात्रि 141 बजे

पूजन काल : 6 सितंबर प्रातः 602 बजे से रात्रि 141 बजे तक 

गणपति विसर्जन का समय

गणेशोत्सव का समापन इसी दिन होता है। भक्तगणपति बप्पा मोरयाके जयघोष के साथ प्रतिमाओं का विसर्जन करेंगे। प्रातः 736 से 910, अपराह्न 1219 से 502, सायं 637 से 802 रात्रि 928 से 145 (7 सितंबर तक).

पौराणिक कथा : युधिष्ठिर और अनंत भगवान

महाभारत में वर्णन है कि जुए में सब कुछ हारने के बाद पांडव वनवास में थे। तब भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को अनंत चतुर्दशी का व्रत करने का उपदेश दिया। युधिष्ठिर ने परिवार सहित यह व्रत किया और अनंत भगवान की पूजा की। इसके परिणामस्वरूप उन्हें पुनः हस्तिनापुर का राजपाट प्राप्त हुआ। एक अन्य कथनुसार, सुमंत नामक ऋषि की पत्नी दीक्षा ने एक पुत्री को जन्म दिया। उस पुत्री का का सुशीला रखा गया। लेकिन कुछ समय बात ही सुशीला की मां दीक्षा का देहांत हो गया और बच्ची के पालन पोषण के लिए ऋषि ने तय किया कि वे दूसरी शादी करेंगे। ऋषि ने दूसरा विवाह कर लिया। लेकिन वह महिला स्वभाव से कर्कश थी। सुशीला बड़ी हो गई और उसके पिता ने कौण्डनिय नामक ऋषि के साथ उसका विवाह कर दिया। ससुराल में भी सुशीला को सुख नहीं था। कौण्डन्यि के घर में बहुत गरीबी थी। एक दिन सुशीला और उसके पति ने देखा कि लोग अनंत भगवान की पूजा कर रहे हैं। पूजन के बाद वे अपने हाथ पर अनंत रक्षासूत्र बांध रहे हैं। सुशीला ने यह देखकर व्रत के महत्व, पूजन के बारे में पूछा। इसके बाद सुशीला ने भी व्रत करना शुरू कर दिया। सुशीला के दिन फिरने लगे और उनकी आर्थकि स्थिति में सुधार होने लगा। लेकिन सुशीला के पति कौण्डन्यि को लगा कि सब कुछ उनकी मेहनत से हो रहा है। एक बार अनंत चतुर्दशी के दिन, जब सुशीला अनंत पूजा कर घर लौटी तक उसके हाथ में रक्षा सूत्र बंधा देखकर उसके पति ने इस बारे में पूछा। सुशीला ने विस्तारपूर्वक व्रत के बारे में बताया और कहा कि हमारे जीवन में जो कुछ भी सुधार हो रहा है, वह अनंत चतुर्दशी व्रत का ही नतीजा है। कौण्डन्यि ऋषि ने कहा कि यह सब मेरी मेहनत से हुआ है और तुम इसका पूरा श्रेय भगवान विष्णु को देना चाहती हो। ऐसा कहकर उसने सुशीला के हाथ से धागा उतरवा दिया। भगवान इससे नाराज हो गए और कौण्डन्यि पुनः दरिद्र हो गया। फिर एक दिन एक ऋषि ने कौण्डन्यि को बताया कि उसने कितनी बड़ी गलती की है। कौण्डन्यि से उसने उपाय पूछा। ऋषि ने बताया कि लगातार 14 वर्षों तक यह व्रत करने के बाद ही भगवान विष्णु तुम पर प्रसन्न होंगे। कौण्डन्यि ने ऋषिवर के बताए मार्ग का अनुसरण किया और सुशीला पूरे परिवार की आर्थकि स्थति सुधर गई।

अनंत सूत्र का रहस्य और शक्ति

अनंत चतुर्दशी की पूजा में सूत से बना विशेष धागा अनंत सूत्र धारण किया जाता है। यह धागा हल्दी से रंगकर तैयार किया जाता है और इसमें 14 गांठें लगाई जाती हैं। प्रत्येक गांठ भगवान विष्णु के स्वरूप का प्रतीक है, अनंत, ऋषिकेश, पद्मनाभ, माधव, वैकुण्ठ, श्रीधर, त्रिविक्रम, मधुसूदन, वामन, केशव, नारायण, दामोदर, गोविन्द और विष्णु। पुरुष इसे दाहिने हाथ में महिलाएं इसे बाएं हाथ में बांधती हैं। मान्यता है कि इसे धारण करने से जीवन में अनंत सुख और समृद्धि आती है। अनंत चतुर्दशी आध्यात्मिक साधना के लिए एक महत्वपूर्ण दिन है. शास्त्रों के अनुसार, इस दिन अपनी पढ़ाई शुरू करने वाले छात्रों को अपने विषयों का गहन ज्ञान प्राप्त होता है. धन की चाह रखने वालों को समृद्धि प्राप्त होगी और ईश्वरीय निकटता की इच्छा रखने वाले भक्तों को अनंत ईश्वरीय उपस्थिति का आशीर्वाद मिलेगा। माना जाता है कि इस व्रत का पालन करने से व्यक्ति की इच्छाओं के अनुसार स्थायी फल मिलता है.

पूजा विधि

स्नान करके घर और पूजा स्थल को स्वच्छ करें। कलश स्थापना कर उस पर कुश से भरा लोटा रखें। भगवान विष्णु की प्रतिमा या चित्र के समक्ष दीपक, धूप, पुष्प और नैवेद्य अर्पित करें। अनंत सूत्र को पूजन में रखकर भगवान विष्णु को अर्पित करें। विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ और सत्यनारायण कथा का विशेष महत्व है। पूजा के बाद अनंत सूत्र को धारण करें। अगर अनंत बनाना मुश्किल है, तो भगवान विष्णु की तस्वीर भी रख सकते हैं। इसके बाद अनंत सूत्र तैयार करने के लिए एक धागे में कुमकुम, केसर और हल्दी से रंगकर इसमें 14 गांठ बांध लें। उसके बाद भगवान विष्णु की तस्वीर के सामने चढ़ा दें। इस दिन सुबह उठकर स्नान करने के बाद व्रत का संकल्प लेना चाहिए. व्रत के संकल्प के दौरान क्षीर सागर में विराजे भगवान विष्णु के रूप को ध्यान करना चाहिए. इस दिन व्रत के दौरान नमक रहित फलहार का सेवन करने का विधान है. सभी व्रत रखने वाले श्रद्धालु को इस बात का जरूर ख्याल रखना चाहिए.

14 दीपकों की परंपरा

अनंत चतुर्दशी पर प्रदोष काल में 14 दीपक जलाने का विशेष महत्व है। इन्हें घर के अलग-अलग स्थानों पर रखा जाता है, पूजा घर, रसोई, तुलसी के पास, मुख्य द्वार, तिजोरी धन स्थान, पानी के नल के पास, घर के चारों कोनों में, छत पर, पितरों के लिए बाहर, सीढ़ियों और आंगन में, इस परंपरा से माना जाता है कि घर में शांति, लक्ष्मी कृपा और समृद्धि बनी रहती है।

गणेश उत्सव का समापन या विसर्जन

अनंत चतुर्दशी का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि इसी दिन दस दिवसीय गणेश उत्सव का समापन होता है। भक्त बड़ी धूमधाम और उत्साह के साथगणपति बप्पा मोरयाके जयघोष के बीच गणेश प्रतिमा का विसर्जन करते हैं। यह केवल विदाई का क्षण नहीं, बल्कि यह संदेश भी देता है कि भगवान गणेश साकार रूप से विदा होकर निराकार रूप में भक्तों के साथ सदा रहते हैं। इसकी महत्ता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है महाराष्ट्र में मनाए जाने वाला यह पर्व अब पूरे देश में मनाया जाने लगा है। गणेश चतुर्थी के दिन लोग भगवान गणेश की मूर्ति को अपने घर मे लेकर आते हैं और 10 दिनों तक पूरी श्रद्धा से विधिवत गणपति की पूजा करने के बाद अनंत चतुर्दशी के दिन उनका विसर्जन करके बप्पा को विदा करते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार मान्यता है कि वेदव्यास जी ने भगवान गणेश से महाभारत ग्रंथ लिखने की प्रार्थना की थी। वेदव्यास जी के आग्रह पर भगवान गणेश ने बिना रुके लगातार 10 दिनों तक महाभारत ग्रंथ लिखा। 10वें दिन अनंत चतुर्दशी तिथि पर गणेश जी ने महाभारत को लिकर पूरा किया। इन 10 दिनों में एक ही स्थान पर बैठकर निरंतर लेखन करने के दौरान गणेश जी ने तो कुछ खाया-पिया और ही उस जगह से हिले। ऐसे में उनके शरीर पर धूल-मिट्टी जमा हो गई, उनके कपड़े गंदे हो गए। 10वें दिन जब वेदव्यास जी ने देखा तो उन्होंने पाया कि गगणेश जी के शरीर का तापमान भी बहुत बढ़ा हुआ था। उसके बाद उन्होंने गणेश जी को सरस्वती नदी में स्नान करवाया और इस तरह पूरी महाभारत लिखने के बाद भगवान गणेश ने 10वें दिन नदी में स्नान किया था। उसी के बाद से गणेश उत्सव का पर्व गणेश चतुर्थी से शुरू होने के बाद लगातार 10 दिनों तक मनाया जाता है और 10वें दिन अनंत चतुर्दशी के अवसर पर गणपति बप्पा की मूर्ति के विसर्जन के साथ ही गणेशोत्सव का समापन होता है। माना जाता है कि गणेश उत्सव के 10 दिनों के दौरान भगवान गणेश हर साल स्वयं पृथ्वी पर भ्रमण करने के लिए आते...हैं। इसी कारण गणेश उत्सव के दौरान अपने घर में भगवान गणेश की मूर्ति को लाना और उसकी विधिपूर्वक पूजा करना बेहद शुभ माना जाता है।

लोक परंपराएँ और सांस्कृतिक रंग

भारत के विभिन्न हिस्सों में अनंत चतुर्दशी अलग-अलग परंपराओं से जुड़ी है, उत्तर भारत में व्रत और अनंत सूत्र बांधने की परंपरा प्रमुख है। महाराष्ट्र और गुजरात में इसे गणपति विसर्जन के भव्य उत्सव के रूप में मनाया जाता है। दक्षिण भारत में इसे अनंतपद्मनाभ व्रत के नाम से जाना जाता है। ग्रामीण अंचलों में महिलाएँ घर सजाती हैं, विशेष पकवान बनाती हैं और पड़ोसियों के साथ मिलकर सामूहिक पूजा करती हैं।

धार्मिक महत्व

अनंत चतुर्दशी, हिंदू धर्म का ऐसा पर्व है जिसमें भक्ति, श्रद्धा और अनुशासन तीनों का सुंदर संगम होता है। यह दिन भगवान विष्णु को समर्पित है, जिनका स्वरूपअनंतयानी असीम और अखंड है। अनंत चतुर्दशी का व्रत केवल सांसारिक बंधनों से मुक्ति का मार्ग नहीं दिखाता, बल्कि जीवन के संघर्षों को पार करने की शक्ति भी प्रदान करता है। यही कारण है कि इसे मोक्ष की प्राप्ति का द्वार भी कहा गया है। शास्त्रों के अनुसार, इस दिन व्रत और पूजा करने से सभी दुख-दर्द समाप्त होते हैं। परिवार में सुख-समृद्धि आती है। विष्णु और लक्ष्मी दोनों की कृपा प्राप्त होती है। व्यक्ति के जीवन में स्थिरता और सफलता आती है।