Saturday, 7 April 2018

हरि के बांसुरी धुन में मगन हुए हनुमत भक्त



हरि के बांसुरी धुन में मगन हुए हनुमत भक्त
मौका था संकट मोचन मंदिर में चल रहे संगीत महोत्सव का। मंच पर विराजे प्रख्यात बांसुरी गायक हरि प्रसाद चैरसिया ने जब मुरली की तान पर राग वादन सुनाई तो श्रोता नाद ब्रह्म के सागर में गोता लगाने लगे। उनका बांसुरी वादन श्रोताओ को बांसुरी के सुरों में खो जाने पर विवश किया। एकबारगी ऐसा लगा मानों स्वयं श्री कृष्ण बांसुरी पर धुन बजा कर नाद देव की स्तुति कर रहे हैं। और जब बारी हुई देश के मशहूर कौव्वाली गायक निजामी बंधुओं की तो उनके स्वर कुछ इस तरह फूटे कि धर्म-मजहब की तहस-नहस हो गयी। इसके बाद सिलसिला शुरु हुआ अन्य कलाकारों का तो पूरी रात हनुमत दरबार में गायन, वादन और नृत्य की त्रिवेणी का प्रवाह बनकर बहती रही
                       सुरेश गांधी 
फिरहाल, इसमें कोई दो मत नहीं कि पंडित हरिप्रसाद जी बांसुरी पर सुंदर आलाप के साथ वादन भी करते हैं। जोड़, झाला, मध्यलय, द्रुत गत यह सब कुछ उनके वादन में निहित होता हैं। कहा जा सकता है उनकी वादन शैली में सुमधुर, तन्त्रकारी के साथ साथ लयकारी का भी समावेश होता है। इसकी बानगी उस वक्त देखने को मिली जब वह शास्त्रीय संगीत की सुप्रसिद्ध मंच संकट मोचन मंदिर परिसर में आयाजित संगीत समारोक की तीसरी संध्या में बांसुरी पर श्रोताओं के बीच धुन बजा रहे थे। उनकी बांसुरी की तान में मगन श्रोता कभी हर हर महादेव तो कभी वाह वाह करते रहे। उन्होंने राग मारू विहाग से वंशी में तान दी। रूपक ताल में बंदिश बजाई। मध्य लय में चैताल द्रुत में तीन ताल बजाकर अभिभूत किया। श्रोताओं की फरमाइश पर भी बंदिशों से विभोर किया। पंचम से सप्तक तक की आरोही यात्रा के दौरान लगा कि बांसुरी की फूंक कलेजे से नहीं, नाभि से रही है। अवरोही क्रम के स्वरों को जिस तरह उन्होंने सुरों में सजीव किया, वैसा विरला कलाकार ही कर सकता है। बांसुरी वादन के दौरान दर्शक दीर्घा सजग थी, आलस दूर तक नहीं नजर रहा था। राग मारू बिहाग में रूपक ताल में उन्होंने अलापचारी से वादन शुरू किया। इसके बाद कई भजनों की धुनें बजाईं। उन्होंने ओम जय जगदीश हरे से कार्यक्रम को विराम दिया। उनके साथ तबले पर विनोद लेले की संगत सदाबहार थी।
                इससे पहले लखनऊ घराने की सुरभि सिंह ने कथक कृष्ण वंदनानमामि कृष्ण..’ के भाव सजाए। इस दौरान उन्होंने लखनऊ घराने की कथक उपज अंग की जब प्रस्तुति की तो तबला और घुंघरू के बीच ऐसा लयकारी सामंजस्य बनाया कि पूरा हनुमत दरबार हर हर महादेव के नारे से गूंज उठा। जयंती मंगल काली..’ पर शिव-शक्ति को आकार दिया। दादरा में कुछ छंद और भाव नृत्य से मन मगन किया। कृष्ण की माखन चोरी लीला भी प्रस्तुत की। कार्यक्रम की शुरुआत में उन्होंने कहा था कि मैं यहां परीक्षा देने आई हूं। इस दरबार में दर्शकों पर निर्भर है कि परीक्षा परिणाम क्या होगा। कार्यक्रम आगे बढ़ने के साथ ही दर्शक उन्हें प्रशंसा के रूप में अंक देते गये। और जब बारी आई निजामी ब्रदर्स गुलाम साबिर निजामी गुलाम वारिस निजामी की तो उन्होंने कव्वाली की धुन पर एक-दो नहीं कई भजन प्रस्तुति कर श्रोताओं का दिल जीत लिया। कबीर के भजनमन लागो मेरो यार फकीरी में.., ‘तोरे बिना मोहे चैन नहीं बृज के नंदलाला ..’ और फिरछापा तिलक सब छीनी रे मोसे नैना मिलाइके..’ से श्रोताओं को निहाल कर डाला। मसूद नियाज, फैजाम निजामी, यूसुफ निजामी ने सुर मिलाए और गजब ढाए। 
इससे पूर्व कार्यक्रम की शुरूआत पंडित बिरजू महाराज की सुयोग्य शिष्य महुआ शंकर के कथक से हुई। महुआ ने ताल धमार में चतुरंग से प्रस्तुति का आगाज किया। राग मारवा में निबद्ध रचना को आधार बनाकर चतुरंग की प्रस्तुति ने दर्शकों पर विशेष छाप छोड़ी। महुआ शंकर ने तीन ताल में पारंपरिक बंदिशें, धमार चैताल के साथ ही भोलेनाथ के तपस्वी क्रोधी रूप को तिहाइयों के माध्यम से भावों में उतारने के बाद दादरा पर भाव नृत्य किया। गिनती की तिहाइयों, चैताल के साथ ही तीन ताल में कथक की बारीकियों के साथ 16 चक्करदार परन गिरिजा देवी को समर्पित ठुमरी प्रस्तुत की। विदुषी गिरिजा देवी उर्फ अप्पाजी की रचना-दीवाना किए श्याम क्या जादू डाला पर उनके भाव नृत्य को दर्शक अपलक निहारते रहे। नृत्य का समापन उन्होंने तत्कार से किया। तत्कार कथक की वह खूबी है जिसके अंतर्गत पैरों की चपलता से नृत्य की खूबियां प्रकट होती हैं। तबले पर उस्ताद अकरम खान, सारंगी पर उस्ताद मुराद अली ने संगत की। हारमोनियम और गायन में शोहेब हसन और बोल पढ़ंत में नूपुर शंकर ने साथ दिया। पद्मश्री तृप्ति मुखर्जी समारोह में पहली बार उपस्थित हुईं। पंडित जसराज की शिष्य तृप्ति मुखर्जी ने भजनों और गुरु के प्रिय पदों का गायन किया। वहीं सेनिया मैहर घराने के कलाकार सिराज अली और दीप्तोनील भट्टाचार्य के युगल सरोद वादन ने श्रोताओं के बीच विशेष प्रभाव छोड़ा। राग अहीर भैरव में आलाप, जोड़ और झाला के वादन में कई खूबियां निखरीं। सरोद वादन के दौरान गमक का प्रयोग प्रभावी रहा। दूसरी निशा की अंतिम प्रस्तुति कोलकाता के सितार वादक सुगतो नाग का सितार वादन रही। उन्होंने राग चारुकेशी में आलापचारी के बाद जोड़, झाला की आनंदकारी प्रस्तुति की। उनके वादन का स्वागत श्रोताओं ने तालियों से किया। संचालन पंडित हरिराम द्विवेदी, प्रतिमा सिन्हा एवं सौरभ चक्रवर्ती ने किया।
संकटमोचन संगीत समारोह के दौरान परिसर में लगाई गई कला दीर्घा में एक से एक चित्र ध्यान खींच रहे हैं। इन्हीं में एक बेहद खास कृति है जो व्यक्त कर रही है गंगा की वेदना। गंगा में निरंतर हो रही जल की कमी को इस चित्र के माध्यम से चित्रकार ने बड़ी ही खूबी से दर्शाया गया है। दूर से देखने पर लगता है मानों सामान्य तरीके से जैसे तमाम चित्र बनते हैं वैसे ही इस पेंटिंग को ही बनाया गया है। मगर करीब से देखने पर कई राज खुलते हैं। पहला यह कि पेंटिंग 50,000 से अधिक राम नाम लिखकर बनाई गई है। चित्रकार ने रंग और तूलिका की जगह लिखो फेको डाट पेन का इस्तेमाल किया जो अलग-अलग रंगों की स्याही वाली थी। चित्र को आकार देने वाले पं.वेदप्रकाश मिश्र ने गंगा कम होते जल, रेत के विस्तार और रेत पर उगे कैक्टस के माध्यम से गंगा की दुर्दशा का चित्रण किया है। उन्होंने बताया कि इसे बनाने में उन्हें 2 महीने से अधिक लग गये। उन्होंने कहा कि जो कुछ भी मुङो गंगा की स्थिति को देखकर महसूस हो रहा है मैंने उसी के आधार पर चित्र को अभिव्यक्त किया है। पं.वेद प्रकाश मिश्र बीएचयू के दृश्य कला संकाय से अवकाश प्राप्त शिक्षक हैं।


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