Friday, 14 January 2022

काशी से देश, अयोध्या से पूरी यूपी

काशी से देश, अयोध्या से पूरी यूपी

यूपी विधानसभा चुनाव मैदान मारने के लिए सियासी पार्टियां अपने-अपने तरीके से हर हथकंडे अपना रही है। एक तरफ अपना हित सधने से आहत बीजेपी के मंत्री विधायक सपा का हिस्सा बन रहे है तो दूसरी तरफ पूरा विपक्ष बनाम भाजपा की लड़ाई में बीजेपी दुबारा सत्ता हासिल करने की राह में कोई चूक होने देना नहीं चाहती। शायद यही वजह है कि भाजपा योगी आदित्नाथ को राम की नगरी अयोध्या से चुनाव मैदान में उतारा है। मतलब साफ है जिस तरह से बीजेपी पूरे पूर्वांचल की केन्द्र तीनों लोकों में न्यारी भोलेनाथ की नगरी काशी से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के जरिए देश की सत्ता हासिल की, ठीक उसी तर्ज पर हर हिन्ुस्तानी की रग-रग में रचे-बसे मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की जन्मभूमि अयोध्या से पूरा यूपी जीतना चाहती है। बीजेपी का यह दांव कितना कारगर होगा यह तो 10 मार्च को पता चलेगा, लेकिन बडा सवाल तो यह है कि क्या उसके हिन्दुत्व, राष्ट्रवाद, विकास सबका साथ-सबका विकास के एजेंडों को मिलेगी धार? और दुसरा बड़ा सवाल है क्यामोदी की काशीजैसा करिश्मा कर पाएगी अयोध्या? 

सुरेश गांधी

फिरहाल, सीएम योगी आदित्यनाथ अयोध्या सीट से विधानसभा चुनाव में लड़ेंगे, यह तय हो गया है। या यूं कहे सीएम योगी आदित्यनाथ को अयोध्या से उतारकर बीजेपी पूरे प्रदेश में हिंदुत्व की अलख जगाएं रखना चाहती है। गोरखपुर से 5 बार सांसद रहे सीएम योगी आदित्यनाथ हिंदुत्व के बड़े चेहरे माने जाते रहे हैं। मठ के बाद अब अयोध्या में उनके आने से भाजपा को एक नया बूस्ट मिल सकता है। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता कि ऐलान होते ही काशी, मथुरा और अयोध्या की सड़कों पर पार्टी कार्यकर्ताओं में जश्न का माहौल दिखा, बल्कि आम नागरिक भी काफी उत्साहित है। अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण हो रहा है, जबकि काशी में विश्वनाथ धाम कॉरिडोर का निर्माण किया गया है। मथुरा में भी यूपी सरकार ने कई प्रोजेक्ट्स शुरू किए हैं। बता दें, ’गोरखपुर की सीट को सीएम योगी आदित्यनाथ से जोड़कर देखा ही जाता रहा है। लेकिन अयोध्या का धार्मिक नजरिए से कहीं ज्यादा महत्व है। शायद यही वजह है कि भाजपा ने इस बार उनके लिए अयोध्या चुना। इससे यह मेसेज जाएगा कि भाजपा ने राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए अपने मूलभूत सिद्धांतों से समझौता नहीं किया है।

वैसे भी अयोध्या स्थानीय समीकरणों, धार्मिक पक्षों और राजनीतिक निहितार्थों तीनों के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण है। योगी आदित्यनाथ के अयोध्या से चुनाव लड़ने पर अवध क्षेत्र की तमाम विधान सभा सीटों पर भी बड़ा प्रभाव पड़ेगा और यह बीजेपी के लिए फायदेमंद होगा। अयोध्या में 93 फीसदी हिंदू मतदाता हैं और मात्र 6 प्रतिशत मुसलमान। अयोध्या यूपी के अवध क्षेत्र में पड़ता है और यहां से विधानसभा की 82 सीटें निकलती हैं। ऐसे में सीएम योगी का अयोध्या से चुनाव लड़ना अवध क्षेत्र ही नहीं बल्कि पूर्वांचल के सियासी समीकरण पर असर पड़ सकता है। अवध क्षेत्र में गोंडा, बलरामपुर, बहराइच, बाराबंकी, अयोध्या, संत कबीर नगर, कुशीनगर शामिल हैं। सीएम योगी के अयोध्या से चुनाव लड़ने से इसका प्रभाव इन सभी जिलों में भी होगा। मतलब साफ है पीएम मोदी ने जिस तरह से काशी संसदीय सीट से चुनाव लड़कर विपक्ष का सफाया कर दिया था, क्या बीजेपी के लिए वैसा ही सियासी करिश्मा योगी आदित्यनाथ राम नगरी अयोध्या सीट से चुनाव लड़कर करने वाले है, इसकी चर्चा तेज हो गयी है। या यूं कहे सूबे में ओबीसी के दिग्गज नेताओं के पार्टी छोड़ने के बाद बीजेपी अब हिंदुत्व के मुद्दे को धार देने की रणनीति बनाई है।

बीजेपी ने 2014 में जिस तरह से पीएम मोदी को वाराणसी संसदीय क्षेत्र से उतारकर यूपी में क्लीन स्वीप किया था। अब उसी तर्ज पर सीएम योगी आदित्यनाथ को अयोध्या सीट के चुनाव मैदान में उतारा है। बीजेपी और संघ के एजेंडे के लिहाज से भी अयोध्या काफी अहम हैं और यहां से सीएम के चुनाव लड़ने से पार्टी को बड़ा सियासी फायदा हो सकता है। बता दें कि पीएम मोदी ने 2014 में काशी से चुनाव मैदान में उतरते तो इसका फायदा बीजेपी के सिर्फ पूर्वांचल में नहीं बल्कि पूरे यूपी में हुआ था। वह, सीएम योगी अयोध्या से उतरते हैं तो अवध और पूर्वांचल के तमाम सीटों पर खास असर हो सकता है। 2019 के चुनाव में भी पीएम मोदी ने काशी से लड़ा और सपा-बसपा गठबंधन के सारे समीकरण को ध्वस्त कर दिया। दरअसल, पूर्वांचल की जंग फतह करने के बाद ही यूपी की सत्ता पर कोई पार्टी काबिज हो सकती है, क्योंकि सूबे की 33 फीसदी सीटें इसी इलाके की हैं। हालांकि, पिछले तीन दशक में पूर्वांचल का मतदाता कभी किसी एक पार्टी के साथ नहीं रहा। वह एक चुनाव के बाद दूसरे चुनाव में एक का साथ छोड़कर दूसरे का साथ पकड़ता रहा है।

सपा 2012 और बसपा 2007 में पूर्वांचल में बढ़िया प्रदर्शन करने के बाद भी इस इलाके पर अपनी पकड़ मजबूत बनाए नहीं रख सकी थी। 2017 में बीजेपी ने इस इलाके में क्लीन स्वीप किया था, लेकिन 2019 में चार लोकसभा सीटें गवां दी है और 2022 के लिए जिस तरह से विपक्ष पूर्वांचल में सक्रिय हैसे लेकर बीजेपी भी अपने गढ़ को मजबूत करने में जुट गई है। विधानसभा चुनाव में भाजपा 80 बनाम 20 के नारे के साथ  में अयोध्या में राम मंदिर निर्माण, काशी विश्वनाथ धाम कॉरिडोर निर्माण और भविष्य में मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण को मुद्दा बना रही है। वहीं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी सत्ता संभालते ही अयोध्या को अपनी सर्वोच्च र्प्राथमिकता में रखा। योगी ने दीपावली पर हर वर्ष अयोध्या में दीपोत्सव के आयोजन के साथ अयोध्या के घाटों, मंदिरों के साथ समूची अयोध्या के विकास पर जोर दिया है। चुनाव में अयोध्या और राष्ट्रवाद के नाम पर ध्रुवीकरण के लिए भाजपा ने योगी को अयोध्या से चुनाव लड़ाने की तैयारी की है। पार्टी के रणनीतिकारों का मानना है कि सीएम योगी के अयोध्या से चुनाव लड़ने से ना केवल देश में अच्छा संदेश जाएगा बल्कि अवध और पूर्वांचल की सीटों पर भी भाजपा को बढ़त मिलेगी।

सिर्फ एक बार हार मिली

अयोध्या सीट के चुनावी नतीजे को देखें तो 1991 से लेकर साल 2007 तक लगातार बीजेपी ने जीत करती रही  है। लल्लू सिंह बीजेपी के टिकट पर लगातार पांच बार जीत दर्ज की है और अभी अयोध्या सीट से सांसद हैं। राम मंदिर आंदोलन के बाद बीजेपी को पहली बार अयोध्या सीट पर साल 2012 में हार का मूंह देखना पड़ा था, लेकिन 2017 में बीजेपी ने वेद प्रकाश गुप्ता को उतारकर यह सीट फिर से अपने कब्जे में ले ली है।

पूर्वांचल के 28 जिले मं 164 सीटें हैं

पूर्वांचल में 28 जिले आते हैं, जो सूबे की राजनीतिक दशा और दिशा तय करते हैं। इनमें वाराणसी, जौनपुर, भदोही, मिर्जापुर, सोनभद्र, प्रयागराज, गोरखपुर, कुशीनगर, देवरिया, महाराजगंज, संतकबीरनगर, बस्ती, आजमगढ़, मऊ, गाजीपुर, बलिया, सिद्धार्थनगर, चंदौली, अयोध्या, गोंडा, बलरामपुर, श्रावस्ती, बहराइच, सुल्तानपुर, अमेठी, प्रतापगढ़, कौशांबी और अंबेडकरनगर जिले शामिल हैं। इन 28 जिलों में कुल 162 विधानसभा सीट शामिल हैं।

पूर्वांचल में हर चुनाव में बदलता मिजाज

बीजेपी ने 2017 के चुनाव में पूर्वांचल की 164 में से 115सीट पर कब्जा जमाया था जबकि सपा ने 17, बसपा ने 14, कांग्रेस को 2 और अन्य को 16 सीटें मिली थी। ऐसे ही 2012 के चुनाव में सपा ने 102 सीटें जीती थीं जबकि बीजेपी को 17, बसपा को 22, कांग्रेस को 15 और अन्य को 8 सीटें मिली थीं। वहीं, 2007 में मायावती पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आई थी तो पूर्वांचल की अहम भूमिका रही थी। बसपा 85 सीटें जीतने में कामयाब रही थी जबकि सपा 48, बीजेपी 13, कांग्रेस 9 और अन्य को 4 सीटें मिली थी।

...तो गीत सटीक बैठ जाएगा

योगी के अयोध्या से चुनाव लड़ने पर भजन गायक कन्हैया मित्तल की ओर से गाया गया भजनजो राम को लाए हैं हम उनको लाएंगे’... भजन सटीक बैठेगा। चुनाव में भाजपा इसी भजन के जरिये प्रचार प्रसार कर रही है।

पूर्वांचल पर पड़ेगा खासा प्रभाव

राम की नगरी अयोध्या में राममंदिर निर्माण का कार्य तेजी से चल रहा है। सीएम बनने के बाद से योगी आदित्यनात लगातार अयोध्या का दौरा करते रहे हैं। पिछले पांच सालों में 42 बार योगी ने अयोध्या का दौरा किया है। इस दौरान उन्होंने अयोध्या को विकास की सौगात से भी नवाजा है। अयोध्या सीट पर भी बीजेपी का दबदबा रहा है। यहां हर गली में धर्म पर सियासत है, हर गली में धर्म के नाम पर वोट है। राम मंदिर के निर्माण ने तो इसधर्म वाली राजनीतिको और धार दे दी है। बीजेपी ने इस माहौल को अच्छे से परख लिया है और सीएम योगी को चुनाव मैदान में उतारकर उसे कैश कराने की रणनीति मानी जा रही है। अयोध्या सीट से योगी सियासी रण से उतरते हैं तो हिंदुत्व के एजेंडे को भी धार मिलेगी। अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण बीजेपी के लिए बड़ा मुद्दा रहा है। बीजेपी राम मंदिर निर्माण का श्रेय मोदी सरकार को देती है और अपनी चुनावी सभाओं में बी नेता अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के मुद्दे को जोर शोर से उठाते रहे हैं। योगी आदित्यनाथ के अयोध्या से चुनाव लड़ने पर बीजेपी को ऐसी उम्मीद है कि वह हिंदू मतों का कुछ और हिस्सा अपने पाले में खींच सकती है। दरअसल, अयोध्या के पड़ोसी जिले अंबेडकरनगर, आजमगढ़, जौनपुर और रायबरेली में बीजेपी 2017 के चुनाव में मोदी लहर के बाद भी विपक्षी दलों की तुलना में बेहतर सफलता नहीं हासिल कर सकी थी। वहीं, जिस तरह से सपा ने ओबीसी नेताओं को भी साथ लिया है, उनमें ज्यादातर का सियासी असर इसी इलाके में है। रामअचल राजभर, स्वामी प्रसाद मौर्य, लालजी वर्मा, दारा सिंह चौहान इसी इलाके से आते है। बीजेपी का साथ छोड़कर सपा के साथ गठबंधन करने वाले ओम प्रकाश राजभर की पार्टी का सियासी आधार भी पूर्वांचल इलाके में है। पूर्वांचल और अवध में ही सबसे ज्यादा जातिगत राजनीति भी है, जो बीजेपी के लिए चुनौती पूर्ण बनी है। ऐसे में योगी अयोध्या से लड़ते हैं तो धर्म की राजनीत के आगे जाति की राजनीति कुंद हो सकती है। ऐसे में योगी अयोध्या के आसपास के जिलों के सियासी प्रभाव डालने के साथ-साथ यूपी के सियासी समीकरण को भी दुरुस्त दुरुस्त कर सकते हैं। इसकी वजह यह भी है कि दो दशक से पूर्वांचल में अपना पिछला नतीजा नहीं दोहरा पाता है। राजनीति के लिहाज से भी अयोध्या सीएम योगी की छवि को एकदम सूट करती है। सूबे के मुख्यमंत्री बनने के बाद से उनके 42 दौरे अयोध्या के रहे हैं। जबकि इतनी ही काशी का भी दौरा कर चुके है और मोदी की ड्रीम प्रोजेक्ट काशी विश्वनाथ धाम यदि समय पर पूरा हो सका तो इसका पूरा श्रेय उन्हें हीदिया जाता है। दीपावली पर तो उन्होंने अयोध्या में दीपोत्सव और काशी में देव दीपावली को और भव्य वाला जो कार्यक्रम शुरू करवरवाया है, उसने पूरे देश में सुर्खियां बटोरी हैं। हर साल दीप प्रज्वलित करने का नया रिकॉर्ड बनाया जा रहा है।

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