गुरु पूर्णिमा : व्यक्तित्व विकास और मोक्ष की ओर एक पवित्र यात्रा
गुरु पूर्णिमा केवल एक पर्व नहीं है, यह आत्मविकास, मोक्ष और मुक्ति की संभावनाओं का उत्सव है। गुरु होना कोई सत्ता या ऊँचे पद का परिचायक नहीं, बल्कि यह त्याग, समर्पण और अनुशासन का प्रतीक है। गुरु अपने आनंद, स्वतंत्रता और परमानंद का त्याग कर, हमें जीवन के अंधकार से निकालने के लिए स्वयं को समर्पित कर देते हैं। भारतीय संस्कृति का मूल संदेश है हर व्यक्ति को गुरु और ईश्वर के साथ अपना संबंध स्थापित करना चाहिए। गुरु ही वह शक्ति हैं, जो भगवान के ह््रदय से निकलने वाली प्रकाश की किरण के समान होते हैं। वह हमारे जीवन के अंधकार, मोह और बंधनों को समाप्त कर हमें पुरुषार्थ में स्थापित करते हैं। गुरु पूर्णिमा के दिन घर में सत्य नारायण भगवान की कथा करवाने से सुख-समृद्धि आती है और नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है। इस दिन को महर्षि वेद व्यास जी के जन्मदिवस के रूप में भी मनाया जाता है, जिन्हें भागवत पुराण के रचयिता और वेदों के विभाजक के रूप में सम्मानित किया जाता है। इसलिए इसे व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है। गुरु पूर्णिमा 10 जुलाई (गुरुवार) को है। पूर्णिमा तिथि प्रारंभ : 10 जुलाई को रात 1ः36 बजे व समाप्ति : 11 जुलाई को रात 2ः06 बजे है। गुरु पूर्णिमा के दिन गुरुओं का सम्मान करना, उन्हें गुरु दक्षिणा अर्पित करना और उनके मार्गदर्शन के प्रति आभार व्यक्त करना अत्यंत पुण्यदायी माना गया है। इस दिन व्रत, दान और पूजा करने से ज्ञान की प्राप्ति होती है और मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है
सुरेश गांधी
गुरु पूर्णिमा केवल
परंपरा नहीं है, यह
एक प्रतिबद्धता है कि हम
स्वयं को बेहतर बनाएंगे।
यह दिन हमें याद
दिलाता है कि जीवन
में एक सच्चे गुरु
का होना कितना आवश्यक
है। गुरु वह दीपक
हैं, जो हमारे अंतर्मन
के अंधकार को मिटाकर हमें
सच्चे मार्ग पर ले जाते
हैं। भारतीय संस्कृति में गुरु का
स्थान सर्वोपरि है। माता-पिता
के बाद यदि किसी
का नाम श्रद्धा से
लिया जाता है तो
वह ’गुरु’ है। यह केवल
एक सामाजिक भूमिका नहीं है, यह
जीवनदायिनी भूमिका है। गुरु वह
दीपक हैं, जो स्वयं
जलकर शिष्य के अंधकार को
मिटाते हैं। गुरु पूर्णिमा
इस जीवनदायिनी परंपरा का पर्व है,
जो हमें स्मरण कराता
है कि जीवन में
आगे बढ़ने के लिए
केवल प्रयास नहीं, बल्कि सही दिशा और
सच्चा मार्गदर्शक भी आवश्यक है।
गुरु पूर्णिमा केवल एक तिथि
नहीं, यह भारतीय आध्यात्मिक
चेतना का मूल स्रोत
है। यह दिन बताता
है कि केवल भौतिक
उन्नति ही जीवन का
लक्ष्य नहीं है, आत्मिक
विकास भी आवश्यक है।
व्यक्ति जब गुरु की
शरण में जाता है,
तभी वह अपने भीतर
छिपे अंधकार, मोह, अहंकार और
भ्रम को पहचानता है
और उसका त्याग करता
है। गुरु का अर्थ
है ’गु’ अर्थात अंधकार
और ’रु’ अर्थात प्रकाश।
अर्थात जो अंधकार को
हरकर जीवन में प्रकाश
लाए, वही गुरु है।
जीवन में कई बार
हम मार्ग भटक जाते हैं।
हमें समझ नहीं आता
कि सही क्या है,
गलत क्या है। ऐसे
में गुरु ही वह
प्रकाश पुंज हैं, जो
हमें जीवन के वास्तविक
उद्देश्य की ओर ले
जाते हैं। गुरु सत्ता
का कोई उच्च पद
नहीं है। वह कोई
शक्ति या अधिकार नहीं
है। वह तो त्याग
और करुणा का सर्वोच्च रूप
है। वह स्वयं अपनी
स्वतंत्रता, आनंद और परमानंद
का त्याग कर, हमें प्रकाश
देने के लिए अपने
जीवन को समर्पित करते
हैं।
गुरु पूर्णिमा का
दिन केवल उत्सव नहीं
है। यह आत्मनिरीक्षण का
दिन है। यह दिन
हमें याद दिलाता है
कि हम जीवन में
कितने आगे बढ़े हैं?
क्या हम सही दिशा
में हैं? क्या हमने
अपने भीतर का अज्ञान,
अहंकार और मोह त्याग
दिया है? या हम
केवल बाह्य आडंबरों में उलझे हुए
हैं? गुरु पूर्णिमा यह
स्पष्ट संदेश देता है कि
केवल भौतिक उपलब्धियाँ ही जीवन का
लक्ष्य नहीं हैं, आत्मिक
शांति, संतोष और मोक्ष प्राप्ति
ही जीवन की सबसे
बड़ी विजय है। भारतीय
संस्कृति का मूल संदेश
है कि हर व्यक्ति
को अपने जीवन में
गुरु और ईश्वर के
साथ संबंध स्थापित करना चाहिए। गुरु,
भगवान के हृदय से
निकलने वाली वह दिव्य
किरण हैं, जो हमारे
जीवन के तमस और
कलुषता को समाप्त करते
हैं। गुरु के बिना
ईश्वर की प्राप्ति असंभव
मानी जाती है। कबीरदास
ने भी कहा हैः
“गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागू पाय।
बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताय।।“
गुरु दक्षिणाः कृतज्ञता की सच्ची अभिव्यक्ति
गुरु पूर्णिमा के
दिन शिष्यों द्वारा अपने गुरु को
गुरु दक्षिणा देने की परंपरा
है। यह दक्षिणा केवल
भौतिक वस्तु नहीं होती, बल्कि
शिष्य के जीवन में
लाया गया सकारात्मक परिवर्तन,
उसके आचरण में आई
शुद्धता और उसके ज्ञान
के प्रति श्रद्धा ही गुरु दक्षिणा
का सर्वोच्च रूप होती है।
इस दिन यह संकल्प
लिया जाता है कि
हम गुरु के दिखाए
मार्ग पर ईमानदारी से
चलेंगे और अपने जीवन
को सार्थक बनाएंगे।
सामाजिक संदर्भ में गुरु पूर्णिमा
आज के समय
में जब जीवन तेज़
रफ्तार में भाग रहा
है, गुरु पूर्णिमा का
महत्व और भी बढ़
जाता है। आज के
युवाओं के पास सूचनाओं
की भरमार है, लेकिन जीवन
की दिशा का स्पष्ट
मार्गदर्शन नहीं है। इंटरनेट,
सोशल मीडिया और प्रतिस्पर्धा के
इस युग में गुरु
की भूमिका पहले से कहीं
अधिक महत्वपूर्ण हो गई है।
आज भी एक सच्चे
गुरु की आवश्यकता है,
जो युवाओं को भ्रम, अहंकार
और स्वार्थ से निकालकर सत्य,
सेवा और सद्गुण की
ओर ले जाए।
धार्मिक नहीं, सामाजिकता का पर्व भी है
गुरु पूर्णिमा केवल
धार्मिक पर्व नहीं है,
यह सामाजिक चेतना का भी संदेश
देता है। यह हमें
सिखाता है कि समाज
में अनुभव, वरिष्ठता और मार्गदर्शन का
सम्मान होना चाहिए। आज
हम जिस समाज में
रहते हैं वहाँ अक्सर
वृद्धों, शिक्षकों और मार्गदर्शकों की
उपेक्षा होती है। गुरु
पूर्णिमा के दिन हमें
यह याद करना चाहिए
कि जीवन में आगे
बढ़ने के लिए केवल
टेक्नोलॉजी नहीं, बल्कि अनुभव और नैतिकता का
भी स्थान है।
गुरु और आज का बदलता परिवेश
आज जब दुनिया
ग्लोबल हो चुकी है,
जीवन की रफ्तार तेज
हो चुकी है, ऐसे
में गुरु की भूमिका
और भी चुनौतीपूर्ण हो
गई है। आज के
गुरु केवल धार्मिक नहीं,
बल्कि जीवन, करियर, मानसिक स्वास्थ्य, और सामाजिक जिम्मेदारियों
में भी मार्गदर्शक बन
रहे हैं। आज माता-पिता, शिक्षक, समाज के वरिष्ठ
व्यक्ति भी हमारे गुरु
हो सकते हैं। गुरु
का अर्थ केवल मठों
और आश्रमों तक सीमित नहीं
रह गया है। आज
यदि कोई व्यक्ति हमें
गलत रास्ते से बचाकर सही
दिशा दिखा दे, वह
भी हमारे जीवन में गुरु
के समान ही होता
है।
आध्यात्मिक महत्व
गुरु पूर्णिमा के
दिन व्रत रखने का
महत्व आत्मसंयम और आंतरिक शुद्धि
से जुड़ा हुआ है।
व्रत का तात्पर्य केवल
भोजन न करना नहीं
है, बल्कि अपनी वासनाओं, क्रोध,
मोह और लोभ का
त्याग करना है। इस
दिन दान करना भी
अत्यंत पुण्यदायी माना गया है।
यह दान किसी जरूरतमंद
की सहायता, अन्नदान, वस्त्रदान या शिक्षा के
रूप में किया जा
सकता है।
गुरु की शिक्षा : जीवन का अनमोल धरोहर
गुरु हमें केवल
शास्त्रों का पाठ नहीं
पढ़ाते, बल्कि जीवन जीने की
कला सिखाते हैं। गुरु हमें
बताते हैं कि विपरीत
परिस्थितियों में कैसे धैर्य
रखें, सफलता मिलने पर कैसे विनम्र
बने रहें, और जीवन के
हर उतार-चढ़ाव में
कैसे संतुलन बनाए रखें। एक
सच्चा गुरु हमें सिखाता
है कि जीवन केवल
स्वयं के लिए नहीं,
समाज और मानवता के
लिए भी जिया जाना
चाहिए। गुरु की शिक्षा
जीवन की सबसे अमूल्य
धरोहर है, जिसे कोई
चुरा नहीं सकता, जो
कभी नष्ट नहीं होती।
जीवन जीने का संकल्प है गुरु
गुरु पूर्णिमा केवल
एक दिन का उत्सव
नहीं है। यह जीवन
में सच्चे गुरु की खोज,
उनके प्रति कृतज्ञता और अपने आत्मविकास
के संकल्प का पर्व है।
यह दिन हमें स्मरण
कराता है कि हम
केवल भौतिक उपलब्धियों के पीछे न
भागें, बल्कि अपने भीतर के
अज्ञान, मोह और अहंकार
को भी त्यागें। गुरु
पूर्णिमा हमें सिखाता है
कि जीवन में चाहे
कितनी भी उन्नति कर
लें, अगर दिशा सही
नहीं है तो मंज़िल
कभी नहीं मिलती। गुरु
ही वह हैं जो
हमें सही दिशा दिखाते
हैं। इस गुरु पूर्णिमा
पर आइए, हम सब
मिलकर यह संकल्प लें
कि हम अपने जीवन
में गुरु के महत्व
को समझेंगे, उनके दिखाए मार्ग
पर चलेंगे, और समाज, परिवार
तथा देश के प्रति
अपने कर्तव्यों का ईमानदारी से
पालन करेंगे। गुरु पूर्णिमाः व्यक्तित्व
विकास, आस्था और मोक्ष की
ओर एक उजास गुरु
कोई पद नहीं, वह
त्याग, समर्पण और जीवन का
सर्वोच्च दीप है.
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