खादी परिधान में भक्तों संग होली खेलेंगे ‘काशी विश्वनाथ
26 को भोले बाबा कराएंगें
मां
गौरा
की
विदाई,
खाटी
बनारसी
साड़ी
में
दिखेंगी
मां
पार्वती
गौना की
तैयारियां
भी
अंतिम
चरण
में
सुरेश गांधी
वाराणसी। काशीपुराधिपति देवाधिदेव महादेव रंगभरी
एकादशी पर अपनी
गौना बरात में
इस बार खादी
से बना परिधान
धारण करेंगे। जबकि
रुपहली जरी से
दमदमाती किनारे से सुसज्जित
खादी के कुर्ते
संग गौने के
दिन माता गौरा
जरी किनारा वाली
खांटी बनारसी साड़ी
में सजी नजर
आएंगी। श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर
परिसर स्थित महंत
आवास से जब
बरात चलेगी तो
बाबा के सिर
पर राजशाही पगड़ी
के साथ रजत
प्रतिमा पर खालिस
स्वदेशी धोती-कुर्ता
व दुपट्टा उपयोग
किया जायगा। इस
अनूठी वेशभूषा में
भोले बाबा, गौरा
की विदाई कराने
जाएंगे। रंगभरी एकादशी पर
औघड़दानी कुछ बदले
परिधान से भक्तों
को रिझाएंगे। मंदिर
के महंत डॉ.
कुलपति तिवारी कहते हैं
कि बाबा औघड़दानी
हैं और सबकी
इच्छा पूरी करते
हैं। ऐसे में
बात जब राष्ट्रप्रेम
की हो तो
भला उसे कैसे
अधूरा छोड़ा जा
सकता है। महाशिवरात्रि
पर बाबा के
विवाह के बाद
गौना की तैयारियां
भी जोरों पर
शुरू कर दी
गई हैं।
बता
दें, मोक्ष की
नगरी काशी की
होली अन्य जगहों
से इतर बिलकुल
अद्भूत, अकल्पनीय व बेमिसाल
है। यहां श्मशान
में होली खेलने
की खास परंपरा
सालो साल से
चली आ रही
है। जहां रंग-गुलाल लगाकर मणिकर्णिका
घाट पर लोग
चिताओं की भस्म
से होली खेलते
हैं। होली फाल्गुन
शुक्ल-एकादशी के
दिन काशी में
भगवान विश्वनाथ का
विशेष श्रृंगार किया
जाता है। मान्यता
है कि इस
दिन भगवान शिव
माता पार्वती से
विवाह के बाद
पहली बार काशी
आये थे। इस
एकादशी का नाम
आमलकी (आंवला) एकादशी भी
है। इस दिन
से वाराणसी में
रंग खेलने का
सिलसिला आरंभ हो
जाता है जो
लगातार 6 दिन तक
चलता है। होली
से एक दिन
पहले शाम को
होलिका दहन किया
जाता है। इस
साल 2 मार्च को
होली मनाया जाएगा।
जबकि होलिका दहन
1 मार्च को किया
जाएगा। इस बार
होलिका दहन का
मुहूर्त शाम 6.26 मिनट से
लेकर 8.55 मिनट तक
है।
इस
दिन बाबा विश्वनाथ
की पालकी निकलती
है। लोग उनके
साथ रंगों का
त्योहर मनाते है। ऐसी
मान्यता है कि
बाबा उस दिन
पार्वती का गौना
कराकर दरबार लौटते
है। दुसरे दिन
शंकर अपने औघड़
रुप में श्मशान
घाट पर जलती
चिताओं के बीच
चिता-भस्म की
होली खेलते है।
डमरुओं की गूंज
और हर-हर
महादेव के जयकारे
व अक्खड़, अल्हड़भांग,
पान और ठंडाई
की जुगलबंदी के
साथ अल्हड़ मस्ती
और हुल्लड़बाजी के
बीच एक-दुसरे
को मणिकर्णिका घाट
का भस्म लगाते
है, तो यह
दृश्य देखने लायक
होता है। धारणा
यह है कि
भगवान भोलेनाथ तारक
का मंत्र देकर
सबकों को तारते
है। लोगों की
आस्था है कि
मशाननाथ रंगभरी एकादशी के
एक दिन बाद
खुद भक्तों के
साथ होली खेलते
है। तभी तो
यहां की चिताएं
कभी नहीं बुझतीं।
मृत्यु के बाद
जो भी मणिकर्णिका
घाट पर दाह
संस्कार के लिए
आते हैं, बाबा
उन्हें मुक्ति देते हैं।
यही नहीं, इस
दिन बाबा उनके
साथ होली भी
खेलते हैं। कहा
यहां तक जाता
है कि काशी
का कंकड़-कंकड़
शिव है। काशी
के हर व्यक्ति
से शिव का
सीधा संबंध है।
कुछ लोग शिव
को मित्र मानते
है, कुछ जगदंबा
भाव से पूजते
है। नारिया वत्सलता
उड़ेलती है। कुछ
शिव को मालिक
तो अपने को
दास मानते हैं।
इसके पीछे यह
भाव निहित है
कि यहां प्राण
छोड़ने वाला हर
व्यक्ति शिवत्व को प्राप्त
होता है। हर
व्यक्ति सुंदर की खोज
और आनंनद में
लीन रहता है।
तभी तो बड़े-बुढ़े आर्शीवाद
देते है तो
कहते है, मस्त
रह और मस्त
कर। लोग यहां
जितना लूटकर प्रसंन
होते है, उतना
काशी का व्यक्ति
लुटाकर प्रसंन होता है।
श्रृष्टि के तीनों
गुण सत, रज
और तम इसी
नगरी में समाहित
हैं। बाबा विश्वनाथ
की नगरी में
यह फाल्गुनी बयार
भारतीय संस्कृति का दीदार
कराती है।
दुल्हा बनते
है
भोलेनाथ
रंगभरी
एकादशी के दिन
बाबा विश्वनाथ के
दरबार से शुरु
होने वाली होली
का यह सिलसिला
बुढ़वा मंगल तक
चलता है। जिस
वक्त काशी के
मुकीमगंज से बैंड-बाजे के
साथ औघड़दानी बाबा
की बारात निकलती
है, नियत स्थान
पर पहुंचकर महिलाएं
परंपरागत ढंग से
दूल्हे का परछन
करती हैं। मंडप
सजता है, जिसमें
दुल्हन आती है,
फिर शुरू होती
है वर-वधू
के बीच बहस
और दुल्हन के
शादी से इंकार
करने पर बारात
रात में लौट
जाती है। जोगीरा
सारा .. रा .. रा .. रा
.. रा ... की हुंकार
बनारस की होली
का अलग अंदाज
दरसाता है।
पर्यटको को
भाती
है
अड़भंगी
रुप
भावों
से ही प्रसन्न
हो जाने वाले
औघड़दानी की इस
लीला को हर
साल पूरी की
जाती है। इस
रस्म की उमंग
घंटों देसी-विदेशी
पर्यटकों को लुभाती
है। अबीर गुलाल
से भी चटख
चिता भस्म की
फाग के बीच
वाद्य यंत्रों व
ध्वनि विस्तारकों पर
गूंजते भजन माहौल
में एक अलग
ही छटा बिखेरती
है। जिससे इस
घड़ी मौजूद हर
प्राणी भगवान शिव के
रंग में रंग
जाता है। इस
अलौकिक बृहंगम दृष्य को
अपनी नजरों में
कैद करने के
लिए गंगा घाटों
पर देश-विदेश
के हजारों-लाखों
सैलानी जुटते हैं।
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