Saturday, 3 March 2018

पूर्वोत्तर में भी मोदी युग, लेफ्ट का खात्मा










पूर्वोत्तर में भी मोदी युग, लेफ्ट का खात्मा
वास्तव में 2014 के लोकसभा चुनावों के बाद से जारीमोदी लहरका जादू अभी भी थमा नहीं है। त्रिपुरा की जीत वैसे भी बीजेपी के लिए खासी अहमियत रखती है क्योंकि वहां पर पार्टी शून्य से सीधे शिखर पर पहुंची है। पिछले विधानसभा चुनाव में वहां बीजेपी को महज 1.5 प्रतिशत वोट मिले थे लेकिन इस बार रिकॉर्ड बनाते हुए 40 प्रतिशत से भी अधिक वोट हासिल करते हुए बीजेपी ने सत्ता हासिल की है। यह भी अपने आप में एक रिकॉर्ड ही है। संभवतया भारतीय चुनावी इतिहास में यह पहला ऐसा वाकया होगा जब वोट प्रतिशत के लिहाज से पार्टी को इतनी बड़ी कामयाबी मिली है। कहा जा सकता है तीनों राज्य के चुनाव नतीजे आने वाले कर्नाटक और 2019 के लोकसभा चुनावों की दिशा पटकथा लिखेगी। एक जमाना था कि बीजेपी को सिर्फ हिंदी बेल्ट की पार्टी कहा जाता था। मतलब साफ है बीजेपी की ये जीत 2019 का ट्रेलर है
सुरेश गांधी
पिछले 25 साल से पूर्वोत्तर के राज्यों पर लेफ्ट का कब्जा था। 48 फीसदी तक उसे वोट मिलते थे। मणिक सरकार पिछले 19 सालों से सीएम रहे हैं। त्रिपुरा में लेफ्ट की ताकत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता था कि 2013 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को सिर्फ 1.5 फीसदी वोट मिले थे। 2014 के लोकसभा चुनाव में भी लेफ्ट का असर इतना था कि बीजेपी को सिर्फ 5.7 फीसदी वोट मिले थे। लेकिन इस बार मोदी के विजयरथ के आगे लेफ्ट का सुपड़ा साफ हो गया। मतलब साफ है नॉर्थ ईस्ट में बीजेपी के लिए नई उम्मीद जगी है। पूर्वोत्तर के तीन राज्यों मेघालय, नागालैंड और त्रिपुरा में जहां लंबे वक्त से सत्ता में रही लेफ्ट को उखाड़ कर बीजेपी बड़ी जीत हासिल की है। जीत से गदगद अमित शाह ने तो यहां तक कह डाला, लोकतंत्र से सरकार कैसे चलती है ये मोदी जी से कोई पूछे। तीनों राज्यों ने सिर्फ कांग्रेस को नकारा है, बल्कि संकेत दिया है कि लेफ्ट देश के किसी भी हिस्से के लिए राइट नहीं है।
चुनाव दर चुनाव, देश को लोग एनडीए के सकरात्मक और विकास के एजेंडा में अपना यकीन दिखा रहे हैं। लोगों के पास नकरात्मकता की राजनीति के लिए वक्त और सम्मान नहीं है। त्रिपुरा में बीजेपी की ऐतिहासिक जीत का बड़ा कारण है, आदिवासी वोटर हैं। माना जाता था कि 20 आदिवासी सीटें लेफ्ट की ही हैं। लेकिन बीजेपी ने आदिवासियों को विकास और रोजगार के मुद्दे पर उन्हें कुछ इस तरह रिझाया कि अब वहां लेफ्ट इतिहास बनकर रह गया है। बीजेपी की इस बड़ी जीत केवल राज्यों की राजनीति पर असर डालेंगे बल्कि राष्ट्रीय पार्टियों के भाग्य और राजनीतिक मजबूती पर भी असर डालेंगे। बीजेपी ने कांग्रेस से पहले ही तीन उत्तर पूर्वी राज्यों असम, अरुणाचल प्रदेश और मणिपुर से सत्ता छीन ली है। कहा जा सकता है मोदी काकांग्रेस मुक्त भारतका नारा लगाातार सफल होता दिखाई दे रहा है। कांग्रेस पूरे देश में अब सिर्फ 3 राज्यों में सत्ता में रह जाएगी। या यूं कहे दिल्ली से लेकर देश के पूर्वी बॉर्डर के राज्यों में से केवल मिजोरम एक राज्य बचेगा जहां कांग्रेस सत्ता में होगी। जबकि बीजेपी का 20 राज्यों में सत्ता होने के साथ ही ही बवह करिश्मा करने वाली पहली पार्टी बन गयी है।
बता दें, 2014 लोकसभा चुनावों से पहले बीजेपी के नेतृत्व में एनडीए का शासन केवल गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और नागालैंड में था। बीजेपी के 2014 में सत्ता में आने के बाद से पार्टी एक के बाद एक करके राज्य दर राज्य जीतती जा रही है। त्रिपुरा की ऐतिहासिक जीत के साथ ही बीजेपी की अब 20 राज्यों में सरकारें हैं। इससे पहले दिसंबर में हुए गुजरात और हिमाचल चुनावों में भी पार्टी ने जीत हासिल की थी। वास्तव में 2014 के लोकसभा चुनावों के बाद से जारीमोदी लहरका जादू अभी भी थमा नहीं है। त्रिपुरा की जीत वैसे भी बीजेपी के लिए खासी अहमियत रखती है क्योंकि वहां पर पार्टी शून्य से सीधे शिखर पर पहुंची है। पिछले विधानसभा चुनाव में वहां बीजेपी को महज 1.5 प्रतिशत वोट मिले थे लेकिन इस बार रिकॉर्ड बनाते हुए 40 प्रतिशत से भी अधिक वोट हासिल करते हुए बीजेपी ने सत्ता हासिल की है। यह भी अपने आप में एक रिकॉर्ड ही है। संभवतया भारतीय चुनावी इतिहास में यह पहला ऐसा वाकया होगा जब वोट प्रतिशत के लिहाज से पार्टी को इतनी बड़ी कामयाबी मिली है। वह भारतीय चुनावी इतिहास में केंद्र के साथ इतने अधिक राज्यों में शासन करने वाली पहली पार्टी हो गई है। इससे पहले यह रुतबा कांग्रेस ने 24 साल पहले हासिल किया था जब उसके और गठबंधन साथियों के साथ उसके पास 18 राज्यों में सत्ता थी। उस वक्त कांग्रेस के पास 15 राज्य थे और एक राज्य में गठबंधन बनाकर उसने सत्ता हासिल की थी। इसके अलावा दो अन्य राज्यों में माकपा की सरकारें थीं। माकपा उस वक्त बाहर से कांग्रेस को समर्थ दे रही थी। इस प्रकार कांग्रेस और उसके सहयोगियों की कुल 18 राज्यों में सत्ता थी। उसकी तुलना में अब बीजेपी और उसके सहयोगियों की मिलाकर 20 राज्यों में सत्ता है। कहा जा सकता है बीजेपी के 2014 में सत्ता में आने के बाद से पार्टी एक के बाद एक करके राज्य दर राज्य जीतती जा रही है।
देश में पहली बार भारतीय जनता पार्टी ने किसी राज्य में सत्तारूढ़ वामपंथी सरकार को सिर्फ चुनौती दी बल्कि उसे करारी शिकस्त देकर सत्ता से बाहर भी कर दिया। त्रिपुरा में बीजेपी को मिली यह जीत उसके लिए कई मायने रखती है। महज दो साल की मेहनत के साथ बीजेपी ने वह कर दिखाया जो कांग्रेस 2 दशकों से अधिक समय से करने की कोशिश में थी। बीजेपी की त्रिपुरा में यह जीत इसलिए भी अहम हैं क्योंकि लेफ्ट पार्टी को शिकस्त देने के साथ ही उसने राज्य में कांग्रेस को अपना खाता खोलने का मौका भी नहीं दिया। बीजेपी के इस प्रदर्शन के बाद अब महज केरल में लेफ्ट पार्टी की सरकार बची है। यहां भी लेफ्ट को सत्ता से बाहर करने में कांग्रेस लगातार कोशिश में रहती है लेकिन अब त्रिपुरा के नतीजों के बाद इस राज्य में वामपंथ राजनीति से मुक्त करने में क्या बीजेपी को अधिक प्रभावी माना जा सकता है? इससे पहले लेफ्ट के किले को भेदने का काम पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की त्रिणमूल कांग्रेस ने किया था। 2009 के लोकसभा चुनावों में टीएमसी और कांग्रेस के गठबंधन वाली यूपीए ने पहली बार पांच दशकों से सबसे अधिक सीटें जीतने वाली वामदलों को शिकस्त दी। हालांकि 2014 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को भी पीछे छोड़ टीएमसी सबसे आगे खड़ी हो गई। लेकिन वाम किले को ध्वस्त करने का असली काम 2011 के विधानसभा चुनावों में हुआ जब राज्य में 1977 से लगातार चली रही वामपंथी सरकार को ममता बनर्जी की त्रिनमूल कांग्रेस ने उखाड़ फेंका। इसके बाद एक बार फिर 2016 में ममता ने राज्य में वामपंथी दलों के साथ-साथ कांग्रेस और बीजेपी को शिकस्त देकर इस वाम किले को अपने नाम कर लिया।
उल्लेखनीय है कि 2014 लोकसभा चुनावों में फतह के साथ ही हुए सिक्किम चुनावों में बीजेपी की सहयोगी सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट (एसडीएफ) ने सत्ता हासिल की। उसी साल आंध्र प्रदेश के विभाजन के बाद हुए चुनावों में सहयोगी तेलुगु देसम ने जीत हासिल की। उसी साल के अंत में महाराष्ट्र की 288 सदस्यीय विधानसभा में बीजेपी ने 122 सीटें जीतीं। हरियाणा में भी पार्टी ने कामयाबी हासिल की। उसी साल झारखंड के बाद जम्मू-कश्मीर में पीडीपी के साथ बीजेपी ने सरकार बनाई। 2015 में बीजेपी, दिल्ली और बिहार चुनावों में हार गई लेकिन बाद में नीतीश कुमार ने महागठबंधन का साथ छोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया। 2016 में असम में पहली बार बीजेपी की सरकार बनी। अरुणाचल प्रदेश में बीजेपी के 47 सदस्यों ने कांग्रेस छोड़कर बीजेपी की सदस्यता ग्रहण कर ली। 2017 में यूपी और उत्तराखंड में बीजेपी को बड़ी कामयाबी मिली। गोवा और मणिपुर में कांग्रेस से कम सीटें होने के बावजूद बीजेपी सरकार बनाने में कामयाब हुई। दिसंबर 2017 में गुजरात और हिमाचल प्रदेश में भी बीजेपी ने जीत हासिल की।
अब केरल में बीजेपी बनाम लेफ्ट?
बहरहाल त्रिपुरा के नतीजों से राज्य में वामदल को जवाब मिल चुका है। यदि उन्होंने येचुरी की बात को मानते हुए कांग्रेस के साथ गठबंधन का प्रयास किया होता तो संभवतः राज्य में नतीजे कुछ और होते। अब देखना है कि क्या केरल में मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन त्रिपुरा में पार्टी को मिली हार से कोई सबक लेते हैं? या फिर वह भी केरल में बीजेपी का अकेले मुकाबला करने की जिद पर बीजेपी से लेफ्ट बनाम राइट का आखिरी स्क्रिप्ट लिखेंगे।
त्रिपुरा जीत से बढ़ा योगी का कद
त्रिपुरा में वामपंथी सरकार को सत्ता से बाहर करने की बीजेपी की कोशिश आखिरकार कामयाब रही। जबकि कहा जा रहा था कि 25 साल की वामपंथी सरकार को सत्ता से हटाना बीजेपी के लिए आसान नहीं होगा। क्योंकि 2013 के चुनाव में बीजेपी एक भी सीट नहीं जीत पाई थी। यही वजह थी कि बीजेपी ने यहां अपना ट्रंप कार्ड खेला। राजनीतिक सूत्रों की माने तो चुनाव के शुरूआती दिनों में त्रिपुरा बीजेपी के हाथ से फिसल रहा था। यह देख बीजेपी आलाकमान ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को त्रिपुरा भेजने का फैसला किया। माना जा रहा है कि योगी यहां ट्रम्प कार्ड साबित हुए। दरअसल, योगी त्रिपुरा में स्टार प्रचारक थे। इसका एक बड़ा कारण यह था कि त्रिपुरा में नाथ संप्रदाय के मंदिर और अनुयायियों की संख्या काफी अधिक है। आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो त्रिपुरा में पिछड़े वर्ग की आबादी करीब 30 प्रतिशत है। इसके अलावा भाजपा की रणनीति अन्य हिंदू समुदायों को अपनी तरफ खींचने की थी। इसमें बीजेपी कामयाब भी हुई। गौरतलब है कि त्रिपुरा में पिछड़ी जातियों के लिए कोटा नहीं है, इसलिए अनुयायी चाहते थे कि उन्हें पिछड़ी जाति का कोटा दिया जाए। नाथ संप्रदाय के इसी मुद्दे को लेकर बीजेपी ने त्रिपुरा में योगी को उतारने का बड़ा दांव खेला और सफल भी हुए।
देश के 29 में से 20 राज्य हुए भगवा
2014 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने शानदार प्रदर्शन किया था। लोकसभा में बीजेपी ने 282 सीटों पर कब्जा किया था, जबकि छक्। ने 332 सीटों पर जीत दर्ज की थी। ये पहली बार था जब किसी गैर-कांग्रेसी पार्टी को लोकसभा में बहुमत मिला था। मई 2014 में जब नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बने थे, तब बीजेपी सिर्फ 5 राज्य (मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, गुजरात और नागालैंड) में ही थी, लेकिन 4 साल के अंदर ही बीजेपी 20 राज्यों में अपनी पकड़ बना चुकी है। 2017 में ही 7 राज्यों में चुनाव हुए थे, जिसमें से बीजेपी ने 6 राज्यों में अपनी सरकार बनाई थी, जबकि पंजाब में कांग्रेस अपनी सरकार बनाने में कामयाब हुई थी। लेकिन अब मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, हरियाणा, महाराष्ट्र, झारखंड, असम, अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मणिपुर, गोवा, बिहार, जम्मू-कश्मीर, आंध्र प्रदेश, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, नागालैंड, त्रिपुरा शामिल हैं। 2014 के लोकसभा चुनावों के बाद त्रिपुरा 20वां ऐसा राज्य है, जहां बीजेपी की सरकार बनी है

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