Wednesday, 11 April 2018

सर्वार्थ सिद्धि योग में मनेगा अक्षय तृतीया, बरसेगा धन


सर्वार्थ सिद्धि योग में मनेगा अक्षय तृतीया, बरसेगा धन
अक्षय तृतीया 18 अप्रैल को है। इस बार कई शुभ योगों का संयोग है। मुहूर्त शास्त्र में यह दिन काफी लाभकारी है। अक्षय तृतीया को ही भगवान परशुराम का जन्मदिन भी मानते हैं। इसीलिए इसे परशुराम तीज भी कहा जाता है। मान्यता है कि इस दिन विवाह करने वालों का सौभाग्य अखंड हता है। इस दिन महालक्ष्मी की प्रसन्नता के लिए विशेष पूजा पाठ करने का विधान है। कहते हैं इस दिन देवी लक्ष्मी के प्रसन्न होने पर धन-धान्य की प्राप्ति होती है। अक्षय तृतीया का अत्यंत महात्म्य मानते हुए इसे अक्षय, अक्षुण्ण फल प्रदान करने वाला दिन कहा जाता है। इस दिन खरीदी के साथ ही विवाह, नए अनुुबंध और नया व्यवसाय प्रारंभ करना भी विशेष फलदायी है
सुरेश गांधी  
अक्षय तृतीया का मुहूर्त अबूझ माना जाता है। इस दिन जो भी कार्य किए जाते हैं, वह अक्षय फलदायी होते हैं। इसलिए पूरे साल में इस दिन का बड़ा महत्व है। इस बार अक्षय तृतीया 18 अप्रैल को सूर्योदय से प्रारंभ होकर मध्य रात्रि तक रहेगी। इस दिन खरीद-फरोख्त को और अधिक शुभता मिल सके इसके लिए सूर्यदेव को जल चढ़ाने के बाद सत्तू, ककड़ी, खरबूज, सकोरे घड़े आदि का जरूरतमंदों को दान करना चाहिए। खरीदारी के लिए सुबह 9.02 से 12.21 बजे तक अमृत शुभ है। जबकि दोपहर-3.18 से 7.45 बजे तक चर, लाभ रात-8.05 से 11.33 बजे तक शुभ अमृत बरसेगा। इस अक्षय तिथि में सभी प्रकार की चल अचल संपत्ति जैसे भूमि, भवन, वाहन, आभूषण आदि की खरीदारी करना भी काफी शुभ माना गया है। मांगलिक कार्यों के लिए अक्षय तृतीया का मुहूर्त अबूझ माना जाता है। यानी इस दिन शादियों के लिए जन्म पत्री या फिर लग्न आदि देखने की जरूरत नहीं पड़ती। ज्योतिषशास्त्र की गणना के अनुसार लगभग 11 साल बाद अक्षय तृतीया पर 24 घंटे का सर्वार्थसिद्धि योग का महासंयोग बन रहा है। इस दिन मांगलिक कार्य का विशेष लाभ मिलेगा। ऐसे में रात 2.02 से रात 4 बजे तक विवाह के फेरे लेना शुभ है। इस बार अक्षय तृतीया से पहले द्वितीया तिथि का लोप है, लेकिन भक्तों के लिए अक्षय तृतीया अपार सुख समृद्धि लाने वाली होगी। इसमें दिनभर खरीदारी या कोई भी शुभकार्य किया जा सकता है। सर्वार्थ सिद्धि योग किसी शुभ कार्य को करने का शुभ मुहूर्त होता है। इस मुहूर्त में शुक्र अस्त, पंचक, भद्रा आदि पर विचार करने की जरूरत नहीं होती है। अक्षय तृतीय पर दो स्थायी लग्न सिंह और वृश्चिक मिल रहे हैं। इस दौरान सोना, वाहन, मकान आदि खरीदने और पूजा कर्म का विशेष लाभ मिलेगा। इस दिन मुंडन आदि संस्कारों का भी विशेष लाभ मिलेगा, लेकिन विवाह के फेरे लेने के लिए रात 2.02 से 4 बजे तक का समय ज्यादा बेहतर है। अक्षय तृतीया के दिन किया गया सतकर्म और दान का फल अत्यधिक प्राप्त होता है, इसलिए उस दिन सुबह स्नान करने के बाद पंच देवों का पूजन कर घट, छाता, वस्त्र का दान करना चाहिए।
अक्षय तृतीया में सोना खरीदना हजार अश्वमेघ यज्ञ के बराबर फल प्रदान करता है। अक्षय तृतीया पर लक्ष्मी कुबेर की पूजा करते हैं। इस पूजा में देवी लक्ष्मी की मूर्ति की पूजा सुदर्शन चक्र और कुबेर यंत्र के साथ में रखते है। मान्यता है कि यदि इस काल में हम यदि घर में स्वर्ण लाएंगे तो अक्षय रूप से स्वर्ण आता रहेगा। तिथि का उन लोगों के लिए विशेष महत्व होता है, जिनके विवाह के लिए गृह-नक्षत्र मेल नहीं खाते। लेकिन इस दिन गृह नक्षत्रों का दोष नहीं होता। इस तिथि पर गृह नक्षत्रों के मिलान का अर्थ नहीं होता। अक्षय तृतीया के विषय में मान्यता है कि इस दिन जो भी काम किया जाता है उसमें बरकत होती है। यानी इस दिन जो भी अच्छा काम करेंगे उसका फल कभी समाप्त नहीं होगा अगर कोई बुरा काम करेंगे तो उस काम का परिणाम भी कई जन्मों तक पीछा नहीं छोड़ेगा। अक्षय तृतीया के विषय में कहा गया है कि इस दिन किया गया दान खर्च नहीं होता है, यानी आप जितना दान करते हैं उससे कई गुणा आपके अलौकिक कोष में जमा हो जाता है। मृत्यु के बाद जब अन्य लोक में जाना पड़ता है तब उस धन से दिया गया दान विभिन्न रूपों में प्राप्त होता है। पुनर्जन्म लेकर जब धरती पर आते हैं तब भी उस कोष में जमा धन के कारण धरती पर भौतिक सुख एवं वैभव प्राप्त होता है। पुराणों के अनुसार अक्षय तृतीया के दिन पितरों के लिए किया गया पिंडदान या कोई भी दान भी अक्षय फल प्रदान करता है। इस दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व है। ऐसी मान्यता है कि गंगा स्नान के बाद पूजन और दान करने से सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। इस दिन सौभाग्य योग, छत्र योग तथा शोभन योग का विशेष संयोग भी है जो धन-धान्य और सुख समृद्धि के कारक माने जाते हैं। अक्षय तृतीया का पर्व स्वयं सिद्ध मुहूर्त माना जाता है। अर्थात् इस दिन किसी मुहूर्त को देखने की आवश्यकता नहीं होती। 
इस दिन को संपूर्ण रूप में शुद्ध और शुभ माना गया है लेकिन अगर इस दिन और भी पवित्र संयोग बन जाए तो शुभता में श्री वृद्धि हो जाती है। नियमित केसर और हल्दी से इसकी पूजा देवी लक्ष्मी के साथ करने से आर्थकि परेशानियों में लाभ मिलता है। मान्यता है कि स्वर्ण धातु पर लक्ष्मी विष्णु का आधिपत्य है और जीवन में सुख-समृद्धि के कारक देवी-देवता भी यही हैं। खरीदी गई वस्तु खरीदार के पास स्थाई रुप से बनी रहे, इसलिए अक्षय तृतीया पर खरीद-फरोख्त का अधिक चलन है। सोना खरीदने की दूसरी वजह यह मानी जाती है कि वैशाख माह की तृतीया से ही पुनः विवाह मुहूर्त प्रारंभ होते हैं। वर-वधु के लिए स्वर्ण आभूषण की आवश्यकता होती है। प्राचीन समय में लोग स्थाई संपति के रूप में सोना भूमि ही मानते थे। तभी से अक्षय तृतीया पर इनकी खरीदी का चलन बना हुआ है। सोने पर माता लक्ष्मी, विष्णु सूर्य का आधिपत्य है। ये तीनों देव धन, यश, सुख, समृद्धि प्रदान करने वाले देव हैं। सोने को शुद्ध मानते हुए मंदिरों के शिखर पर स्वर्ण कलश लगाने की परंपरा भी इन्हीं कारणों से है।
अक्षय तृतीया वैशाख मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को कहते हैं। इस दिन जो भी शुभ कार्य किए जाते हैं, उनका अक्षय फल मिलता है। अक्षय मतलब जो जिसका क्षय नहीं हो सकता। इसे ईश्वर की तिथि माना जाता है। इसी दिन से सतयुग और त्रेता युग का प्रारंभ हुआ है। भगवान विष्णु ने नर-नारायण, हृयग्रीव और परशुराम का अवतरण भी इसी तिथि को हुआ था। जो सदैव चिरंजीवी हैं। इस दिन बद्रीनाथ की प्रतिमा स्थापित कर पूजा की जाती है। श्री लक्ष्मी नारायण के दर्शन किए जाते हैं। प्रसिद्ध तीर्थ स्थल बद्रीनारायण के कपाट भी इसी तिथि से ही पुनः खुलते हैं। इस दिन सभी विवाहित और अविवाहित लड़कियां पूजा में भाग लेती हैं। इस दिन लोग भगवान गणेश और देवी लक्ष्मी की पूजा भी करते हैं। कई लोग इस दिन महालक्ष्मी मंदिर जाकर सभी दिशाओं में सिक्के उछालते हैं। सभी दिशाओं में सिक्के उछालने का कारण यह माना जाता है कि इससे सभी दिशाओं से धन की प्राप्ति होती है। इस दिन भगवान विष्णु के चरणों से धरती पर गंगा अवतरित हुई। भविष्य पुराणनुसार शाकल नगर में रहने वाले एक वणिक नामक धर्मात्मा अक्षय तृतीया के दिन पूर्ण श्रद्धा भाव से स्नान ध्यान और दान कर्म किया करता था। जबकि उसकी भार्या उसको मना करती थी, मृत्यू के बाद किये गये दान पुण्य के प्रभाव से वणिक द्वारकानगरी में सर्वसुख सम्पन्न राजा के रुप में अवतरित हुआ। मान्यता है कि महाभारत के दौरान पांडवों के भगवान श्रीकृष्ण से अक्षय पात्र प्राप्त किया था। इसी दिन सुदामा और कुलेचा भगवान श्री कृष्ण को मुट्ठीभर भुने चावल दिए थे। वृंदावन के बांके बिहारी के चरण दर्शन केवल अक्षय तृतीया को होते हैं। माधव समो मासो कृतेन युगं समं। वेद समं शास्त्रं तीर्थ गङग्या समं।।यानी वैशाख के समान कोई मास नहीं है, सत्ययुग के समान कोई युग नहीं हैं, वेद के समान कोई शास्त्र नहीं है और गंगाजी के समान कोई तीर्थ नहीं है।
एक आंख वाली नारियल पूजा से प्रसंन होगी माता लक्ष्मी
प्रकृति में आमतौर पर तीन आंखों वाले नारियल मिलते हैं। लेकिन हजारों में कभी-कभी ऐसा नारियल भी मिल जाता है जिसकी एक आंख होती है। ऐसे नारियल को लक्ष्मी का स्वरूप माना जाता है। अक्षय तृतीय के दिन इसे घर में पूजा स्थान में स्थापति करने से देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है। इस दिन पारद की देवी लक्ष्मी घर लाएं और नियमित इनकी पूजा करें। शास्त्रों में बताया गया है कि पारद की देवी लक्ष्मी की प्रतमिा जहां होती है वहां कभी अभाव नहीं रहता है। पारद या स्फटिक का बना कछुआ अपने घर लाएं। इस दिन घर में श्री यंत्र की स्थापना भी धन की परेशानी दूर करने के लिए कारगर माना गया है। लक्ष्मी के हाथ में स्थित दक्षिणवर्ती शंख भी धन दायक माना गया है। आप इसे अक्षय तृतीया पर घर ला सकते हैं। श्वेतार्क गणपति की स्थापना भी शुभ फलदायी होती है। किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत लोग उसके सफल होने की उम्मीद के साथ ही करते हैं। ऐसे में एक ऐसा शुभ दिन रहा है, जब आप अपने हर शुभ कार्य की शुरुआत कर सकते हैं।
अक्षय पुण्य की प्राप्ति के लिए उपाय
अक्षय तृतीया के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करने के बाद भगवान विष्णु की शांत चित्त होकर विधि विधान से पूजा करने करें। प्रसाद में जौ या गेहूं का सत्तू, ककड़ी और चने की दाल अर्पित करें। गरीबों को पानी का पात्र ( घड़ा, पानी वाला जग) चावल, नमक और घी का दान करें। चंदनस्य महत्पूण्यम् पवित्रं नामशनम् आपदां हरते नित्यम् लक्ष्मी तिष्ठतु सर्वदा, के जाप से जहां धन की प्राप्ति होती है वहीं आनीतांस्तव पूजार्थम् गृहाण, के जप से बल-बुद्धि मिलता है। उं कलशस्य मुखे विष्णुः कण्ठे रुद्रः समाश्रितः के जप से खर्राटा जैसी बीमारी तो यादृशी भावना यस्य सिद्धिर्भवति तादृशी के जप से सभी कार्याे की सिद्धि होती है। यानि कानि पापानि जन्मांतर कृतानि तानि स्वाणि नश्यन्तु प्रदक्षिणा पदे पदे के जप से घर में आयेगी शांति आती है। जबकि तेन त्वां प्रतिबध्नामि रक्षे माचल माचल के जप से घर के सभी सदस्यों की सुरक्षा होती है। यावत कर्म समाप्तिः स्यात् तावत् त्वं स्थिरोभव के जप से दुर्घटनाएं टलती है। उं ऐं ह्ीं क्लीं आंतनेयाय नमः तमहं सर्वदा वन्दे श्रीमद् वल्लभ नन्दनम् के जप से डिप्रेशन मानसिक क्लेश दूर से मुक्ति मिलती है। भवानी शंकरौ वन्द्र श्रद्ध विश्वासरुपिणौ के जप से आत्मविश्वास बढ़ता है तो एलालवंग संयुक्तम् ताम्बूलं प्रतिगृह्यताम् के जप से अधिकारी प्रसंन होते हैं। वारि परिपूर्ण लोचनम् मारुति नमत रक्षसान्तकम् के जप से बुरी आदतें छूटती है तो उं महालक्ष्म्यै विद्महे विष्णुपत्न्यै धीमहि तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात् के जाप से घर आएं धन की बर्बादी नहीं होगी। धरणी गर्भ सम्भूतम् विद्युत कान्ति समप्रभम् कुमारं शक्ति हस्तं तं मंगलं प्रणमाम्यहम् के जाप से मंगली दोष का निवारण होता है।
सिक्का उछालना फलदायक
इस दिन सभी विवाहित और अविवाहित लड़कियां पूजा में भाग लेती हैं। इस दिन लोग भगवान गणेश और देवी लक्ष्मी की पूजा भी करते हैं। कई लोग इस दिन महालक्ष्मी मंदिर जाकर सभी दिशाओं में सिक्के उछालते हैं। सभी दिशाओं में सिक्के उछालने का कारण यह माना जाता है कि इससे सभी दिशाओं से धन की प्राप्ति होती है। अंकों में विषम अंकों को विशेष रूप से ’3′ को अविभाज्य यानीअक्षयमाना जाता है। सामन्यतया अक्षय तृतीया में 42 घरी और 21 पल होते हैं। पद्म पुराण अपराह्म काल को व्यापक फल देने वाला मानता है।
मां गंगा का अवतरण
इस पर्व से अनेक पौराणिक कथाएं जुड़ी हुई हैं। इसके साथ महाभारत के दौरान पांडवों के भगवान श्रीकृष्ण से अक्षय पात्र लेने का उल्लेख है। इस दिन सुदामा और कुलेचा भगवान श्री कृष्ण के पास मुठ्ठी भर भुने चावल प्राप्त करते हैं। इसी दिन कुबेर को धन के भंडार की जिम्मेवारी मिली थी। इसी दिन महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ था और द्वापर युग का समापन भी इसी दिन हुआ था। इस दिन भगवान विष्णु के चरणों से धरती पर गंगा अवतरित हुई। भविष्य पुराणनुसार शाकल नगर में रहने वाले एक वणिक नामक धर्मात्मा अक्षय तृतीया के दिन पूर्ण श्रद्धा भाव से स्नान ध्यान और दान कर्म किया करता था। जबकि उसकी भार्या उसको मना करती थी। मृत्यु के बाद किये गये दान पुण्य के प्रभाव से वणिक द्वारकानगरी में सर्वसुख सम्पन्न राजा के रुप में अवतरित हुआ। मां अन्नपूर्णा का जन्म द्रोपदी को चीरहरण से कृष्ण ने आज के ही दिन बचाया था। ब्रह्माजी के पुत्र अक्षय कुमार का अवतरण भी इसी दिन हुआ था। 

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