Sunday, 29 April 2018

वैशाख व बुद्ध पूर्णिमा: आज पूरे होंगे हर बिगड़े काम

वैशाख व बुद्ध पूर्णिमा: आज पूरे होंगे हर बिगड़े काम 
          वैशाख मास की एकादशी हो या अमावस्या, सभी तिथियां खास है। लेकिन इनमें वैशाख पूर्णिमा का विशेष महत्व है। क्योंकि इस दिन ही भगवान बुद्ध का जन्म हुआ था। इसी दिन बोध गया में पीपल के वृक्ष के नीचे उन्हें बुद्धत्व की प्राप्ति हुई थी। वैशाख पूर्णिमा के दिन ही भगवान बुद्ध ने गोरखपुर से 50 किलोमीटर दूर स्थित कुशीनगर में महानिर्वाण की ओर प्रस्थान किया था। दुनियाभर के बौद्ध गौतम बुद्ध की जयंती को धूमधाम से मनाते हैं...
            सुरेश गांधी 
            इस बार वैशाख पूर्णिमा 30 अप्रैल सोमवार को है। सोमवार को पूर्णिमा का योग होने से सोमवती पूर्णिमा का योग बन रहा है। खास यह है कि इस बार वैशाख पूर्णिमा पर 3 साल बाद सिद्धि योग का शुभ संयोग बन रहा है। अब यह संयोग वर्ष 2022 में बनेगा। इस दिन स्वाति नक्षत्र और तुला राशि का चंद्रमा समृद्धि व वैभव प्रदान करेगा। यह योग कैरियर और कारोबार में सफलता के साथ साथ दान से लेकर खरीदारी तक के लिए शुभ माना जाता है। इस दिन सत्य विनायक व्रत रखने का विशेष विधान है। मान्यता है कि इस दिन यह व्रत रखने से व्रती की दरिद्रता दूर होती है। उसके बिगड़े काम बनते हैं। इस शुभ योग में शिवलिंग पर दूध चढ़ाने से धन की प्राप्ति होती है। वैशाख पूर्णिमा को ‘सत्य विनायक पूर्णिमा‘ के तौर पर भी मनाया जाता है। मान्यता है कि इसी दिन श्रीकृष्ण ने उनसे मिलने पहुंचे उनके मित्र सुदामा को सत्य विनायक व्रत करने की सलाह दी थी, जिसके प्रभाव से उनकी दरिद्रता समाप्त हो सकी। इसके अलावा इस दिन ‘धर्मराज‘ की पूजा का भी विधान है। धर्मराज की इस दिन पूजा-उपासना से साधक को अकाल मृत्यु का भय नहीं सताता है। इसे सोमवती पूर्णिमा भी कहा जाता है। इस दिन गुरू का विशाखा नक्षत्र भी है। इस दिन भगवान बुद्ध की जयंती भी है जिसे बुद्ध पूर्णिमा कहते हैं। इसी दिन भगवान बुद्ध को ज्ञान भी मिला था इसी दिन भगवान बुद्ध ने अपनी देह का त्याग भी किया था। 
          वैशाख पूर्णिमा भगवान बुद्ध के जीवन से बहुत गहराई से जुड़ी हुई है। इस दिन भगवान बुद्ध का ध्यान करना विशेष लाभदायक होता है। दुनिया भर में इस दिन भगवान बुद्ध की याद में कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। भगवान बुद्ध को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। इस दिन को दैवीयता का दिन भी माना जाता है। इस दिन ब्रह्म देव ने काले और सफेद तिलों का निर्माण भी किया था। अतः इस दिन तिलों का प्रयोग जरूर करना चाहिए। इस दिन बृहस्पति चंद्र का अद्भुत योग भी होगा। स्वास्थ्य और जीवन का कारक सूर्य अपनी उच्च राशि में होगा। इसके अलावा सुख को बढ़ाने वाला ग्रह शुक्र भी स्वगृही होगा। इस पूर्णिमा को स्नान और दान करने से चन्द्रमा की पीड़ा से मुक्ति मिलेगी। साथ ही साथ आर्थिक स्थिति भी अच्छी होती जाएगी। मान्यता है कि इस दिन स्नान करने से व्यक्ति के पिछले कई जन्मों के पापों से मुक्ति मिल जाती है। यह स्नान लाभ की दृष्टि से अंतिम पर्व माना जाता है। बुद्ध पूर्णिमा पर बौद्ध मतावलंबी बौद्ध विहारों और मठों में इकट्ठा होकर एक साथ उपासना करते हैं। दीप जलाते हैं। रंगीन पताकाओं से सजावट की जाती है और बुद्ध की शिक्षाओं का अनुसरण करने का संकल्प लेते हैं। इस दिन भक्त भगवान महावीर पर फूल चढ़ाते हैं, अगरबत्ती और मोमबत्तियां जलाते हैं तथा भगवान बुद्ध के पैर छूकर शांति के लिए प्रार्थना करते हैं। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, महात्मा बुद्ध को भगवान विष्णु का अवतार माना गया है। इस दिन लोग व्रत-उपवास करते हैं। बौद्ध और हिंदू दोनों ही धर्मों के लोग बुद्ध पूर्णिमा को बहुत श्रद्धा के साथ मनाते हैं। बुद्ध पूर्णिमा का पर्व बुद्ध के आदर्शों और धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। 
चंद्रमा करेगा धन की अमृत वर्षा  
            शास्त्रों के अनुसार पूर्णिमा के दिन चंद्रमा, विष्णु भगवान और माता लक्ष्मी की पूजा करने से चारो तरफ से सुख-समृद्धि और वैभव की प्राप्ति होती है। सिद्धि योग और सोमवार के चलते यह तिथि बहुत महत्वपूर्ण हो गई है। कहते है पूर्णिमा पर ज्योतिष में बताए उपायों को विधि विधान से करने से जीवन में तमाम तरह की परेशानियों का अंत हो जाता है। चंद्रमा को सफेद रंग और शीतलता का प्रतीक माना गया है। इसलिए इस योग में दूध और शहद के उपाय से धन, मान-सम्मान में बढ़ोत्तरी होती है। पूर्णिमा की तिथि पर सुबह स्नान के बाद माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजन करने के बाद दिनभर अपने मन में ऊं सोम सोमाय नमः के मंत्र का जप करना चाहिए। पूर्णिमा की रात को कच्चे दूध में पूजा के उपयोग में लाने वाले शहद और चंदन को मिलाकर उसमें अपनी छाया देखें फिर चंद्रमा को अघ्र्य दें। इस तिथि को चन्द्रमा सम्पूर्ण होता है। या यूं कहें सूर्य और चन्द्रमा समसप्तक होते हैं। इस तिथि पर जल और वातावरण में विशेष ऊर्जा आ जाती है। चन्द्रमा इस तिथि के स्वामी होते हैं। अतः इस दिन हर तरह की मानसिक समस्याओं से मुक्ति मिल सकती है। इस दिन स्नान, दान और ध्यान विशेष फलदायी होता है। इस दिन सत्यनारायण देव या शिव जी की उपासना अवश्य करनी चाहिए। भविष्य पुराण और आदित्य पुराण के अनुसार बैशाख पूर्णिमा अत्यन्त पवित्र और फलदायिनी बताई गयी है। इस दिन महीने भर से चले आ रहे बैशाख स्नान और महीने भर से चले आ रहे धार्मिक अनुष्ठान आदि की पूर्णाहुति होती है। स्वाति नक्षत्र 27 नक्षत्रों में दान में पुण्य प्रदान करने वाला है। इसके अधिपति वायुदेव हैं। इसी तरह सिद्धि योग के अधिपति गणेश है जो कि हर प्रकार के कार्य में सिद्धि प्रदान करने वाले हैं। तुला के चंद्रमा से वैभव में वृद्धि होगी। कहते है नक्षत्रों में स्वाति ऐसा नक्षत्र है जिसमें दान करने से पुण्य होता है जिसपर वायुदेव का आधिपत्य है। बता दें कि सिद्धी योग के स्वामी गणपति हैं जो अपने भक्तों को हर तरह की सिद्धी प्रदान करते हैं। तुला का चंद्रमा राज प्रताप देने वाला है। इसलिए भी इस दिन का खास महत्व है। इस दिन लक्ष्मी मां की भी खासकर पूजा की जाती है।  
पूजन विधि 
        प्रातः काल स्नान के पूर्व संकल्प लें। पहले जल को सर पर लगाकर प्रणाम करें। फिर स्नान करना आरम्भ करें। स्नान करने के बाद सूर्य को अघ्र्य दें। साफ वस्त्र या सफेद वस्त्र धारण करें, फिर मंत्र जाप करें। मंत्र जाप के पश्चात सफेद वस्तुओं और जल का दान करें। चाहें तो इस दिन जल और फल ग्रहण करके उपवास रख सकते हैं। इस दिन खासकर अगर लक्ष्मी मां को प्रसन्न
करना चाहते हैं तो पीपल के पेड़ के नीचे घी का दीया जलाएं। पीपल के पेड़ पर इस दिन जल चढ़ाने से आपकी शनि की साढ़ेसाती कम हो सकती है। कुंवारी कन्याओं को खाना खिलाएं और उपहार दें। इससे कुछ अच्छा होगा। इस दिन हनुमान जी को प्रसन्न करने के लिए सिंदूर और चमेली का तेल चढ़ाएं। इस व्रत को विधिपूर्वक करने से व्रती को अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता। इस दिन विशेष तौर से सूर्योदय से पूर्व उठकर घर में साफ-सफाई जरूर करें। पूजा के दौरान गाय के घी का दीपक जलाएं। धूप करें और कपूर जलाएं। मां लक्ष्मी को मखाने की खीर, साबू दाने की खीर या किसी सफेद मिठाई का भोग लगाएं। पूजा के बाद सभी में प्रसाद बाटें. ध्यान रखें कि इस दिन घर में कलह का माहौल बिल्कुल न हो। इस दिन व्रती को जल से भरे घड़े सहित पकवान आदि भी किसी जरूरतमंद को दान करने चाहिये। स्वर्णदान का भी इस दिन काफी महत्व माना जाता है।
महात्मा बुद्ध का ज्ञान
         महात्मा बुद्ध ने हमेशा मनुष्य को भविष्य की चिंता से निकलकर वर्तमान में खड़े रहने की शिक्षा दी। उन्होंने दुनिया को बताया आप अभी अपनी जिंदगी को जिएं, भविष्य के बारे में सोचकर समय बर्बाद ना करें। बिहार के बोधगया में बोधिवृक्ष के नीचे महात्मा बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई और उनके ज्ञान की रौशनी पूरी दुनिया में फैली। महात्मा बुद्ध का एक मूल सवाल है। जीवन का सत्य क्या है? भविष्य को हम जानते नहीं है। अतीत पर या तो हम गर्व करते हैं या उसे याद करके पछताते हैं। भविष्य की चिंता में डूबे रहते हैं। दोनों दुखदायी हैं। बुद्ध के जीवन में दो स्त्रियां बहुत अहम स्थान रखती हैं। एक तो उनकी मौसी महापजापति गौतमी और दूसरी सुजाता जो उनके आत्मिक जन्म का निमित्त बनी। बुद्ध की जन्मदात्री मां उनके जन्म के बाद मर गईं लेकिन उनकी मौसी ने अपना दूध पिलाकर उनका पोषण किया। उसके लिए गौतमी ने अपने नवजात पुत्र को किसी और दाई को सौंपा और वह खुद बालक सिद्धार्थ का पालन करने लगी। गौतमी ने आगे चलकर बुद्ध से दीक्षा लेने की जिद की, उसके कारण संघ में स्त्री का प्रवेश हुआ, और वह बुद्धत्व को उपलब्ध हुई। दूसरी घटना है कि बुद्ध दिन रात बिना रुके ध्यान करते थे, इस वजह से उनका शरीर उपवास और तपस्या से क्षीण, अस्थिपंजर हो गया था। लेकिन एक पूर्णिमा के दिन उन्होंने सारे नियम तोड़ने का निश्चय किया और सहज स्वीकार भाव में बैठ गए। भोर के समय सुजाता नाम की स्त्री अपनी मन्नत पूरी करने के लिए खीर बनाकर ले आई। बुद्ध को देख कर उसे लगा, वृक्ष देवता प्रगट हुए हैं। उसने उन्हीं को भोग लगाया और खीर खाने की बिनती करने लगी। बुद्ध ने उसकी बिनती स्वीकार की और सुजाता के हाथ की खीर खाई। उसी दिन उन्हें बुद्धत्व की उपलब्धि हुई। उस दिन सुजाता उन्हें खीर नहीं खिलाती तो उनका शरीर नष्ट हो सकता था। बुद्ध की मां उनके जन्म के बाद नहीं रहीं थीं लेकिन उनकी मौसी ने अपना दूध पिलाकर उनका पोषण किया। महामानव वो होते हैं, जिन्होंने अपनी जिंदगी में ताउम्र कुछ ऐसी मिसाल कायम की, जिसके कारण उनको भगवान का दर्जा दिया गया। और वह अंत में देवत्व को प्राप्त होकर लोगों के पूज्य हो जाते हैं। उनके नाम पर एक विशेष धर्म जन्म लेता है। जो उस व्यक्ति के विचारों को आगे ले जाने के लिए अपने अनुयायियों को बढ़ाते हुए लोगों के अंदर नई शक्ति और नई चेतना का संचार करता है। इन्हीं में से एक थे भगवान बुद्ध, जिन्हें बौद्ध धर्म का निर्माता भी कहा जाता है। भगवान बुद्ध समय की महत्ता को बेहद अच्छी तरह से जानते थे। वह अपना हर क्षण कभी भी व्यर्थ नहीं जाने देते थे। एक बार उनके पास एक व्यक्ति आया और बोला, तथागत आप हर बार विमुक्ति की बात करते हैं। आखिर यह दुःख होता किसे है? और दुःख को कैसे दूर किया जा सकता है? प्रश्नकर्ता का प्रश्न निरर्थक था। तथागत बेतुकी चर्चा में नहीं उलझना चाहते थे। उन्होंने कहा, ‘अरे भाई! तुम्हें प्रश्न करना ही नहीं आया। प्रश्न यह नहीं था कि दुःख किसे होता है बल्कि यह कि दुख क्यों होता है?‘ और इसका उत्तर है कि आप निरर्थक चर्चाओं में समय न गवाएं ऐसा करने पर आपको दुःख नहीं आएगा। यह बात ठीक उसी तरह है कि किसी विष बुझे तीर से किसी को घायल कर देना और फिर बाद में उससे पूछना कि यह तीर किसने बनाया है? भाई उस तीर से लगने पर उसका उपचार जरूरी है न की निरर्थक की बातों में समय गंवाना। कई लोग, कई तरह की बेतुकी बातों में समय को पानी की तरह बहा देते हैं बहते पानी को तो फिर भी सुरक्षित किया जा सकता है लेकिन एक बार जो समय चला गया उसे वापिस कभी नहीं लाया जा सकता। इसलिए समय को सोच समझ कर खर्च करें। यह प्रकृति की दी हुई आपके पास अनमोल धरोहर है।
बुरे समय को ऐसे टालिए 
       शाम का समय था। महात्मा बुद्ध एक शिला पर बैठे हुए थे। वह डूबते सूर्य को एकटक देख रहे थे। तभी उनका शिष्य आया और आया और गुस्से में बोला, गुरुजी ‘रामजी‘ नाम के जमींदार ने मेरा अपमान किया है। आप तुरंत चलें, उसे उसकी मूर्खता का सबक सिखाना होगा। महात्मा बुद्ध मुस्कुराकर बोले, ‘प्रिय तुम बौद्ध हो, सच्चे बौद्ध का अपमान करने की शक्ति किसी में नहीं होती। तुम इस प्रसंग को भुलाने की कोशिश करो। जब प्रसंग को भुला दोगे, तो अपमान कहां बचेगा?‘। लेकिन तथागत, उस धूर्त ने आपके प्रति भी अपशब्दों का प्रयोग किया है। आपको चलना ही होगा। आपको देखते ही वह अवश्य शर्मिंदा हो जाएगा और अपने किए की क्षमा मांगेगा। बस, मैं संतुष्ट हो जाउंगा। महात्मा बुद्ध समझ गए कि शिष्य में प्रतिकार की भावना प्रबल हो उठी है। इस पर सदुपदेश का प्रभाव नहीं पड़ेगा। कुछ विचार करते हुए वह बोले, अच्छा वत्स! यदि ऐसी बात है तो मैं अवश्य ही रामजी के पास चलूंगा, और उसे समझाने की पूरी कोशिश करूंगा। बुद्ध ने कहा, हम सुबह चलेंगे। सुबह हुई, बात आई-गई हो गई। शिष्य अपने काम में लग गया और महात्मा बुद्ध अपनी साधना में। दूसरे दिन जब दोपहर होने पर भी शिष्य ने बुद्ध से कुछ न कहा तो बुद्ध ने स्वयं ही शिष्य से पूछा- प्रियवर! आज रामजी के पास चलोगे न?‘ नहीं गुरुवर! मैंने जब घटना पर फिर से विचार किया तो मुझे इस बात का आभास हुआ कि भूल मेरी ही थी। मुझे अपने कृत्य पर भारी पश्चाताप है। अब रामजी के पास चलने की कोई जरूरत नहीं। तथागत ने हंसते हुए कहा, ‘यदि ऐसी बात है तो अब अवश्य ही हमें रामजी महोदय के पास चलना होगा। अपनी भूल की क्षमा याचना नहीं करोगे।‘ 
गौतम बुद्ध के कुछ प्रमुख सूत्र
         गौतम बुद्ध प्रज्ञा पुरुष थे। उन्होंने धर्म को पारंपरिक स्वरूप से मुक्त कराकर उसे ज्ञान की तलाश से जोड़ा। उन्होंने विवेक को धर्म के मूल में रखा और तमाम रुढ़ियों को खारिज किया। उन्होंने ज्ञान को सर्वोच्च महत्व दिया और उनके इन विचारों की प्रासंगिकता आज भी है।पुष्प की सुगंध वायु के विपरीत कभी नहीं जाती लेकिन मानव के सदगुण की महक सब ओर फैलती है। तीन चीजों को लम्बी अवधि तक छुपाया नहीं जा सकता, सूर्य, चन्द्रमा और सत्य। हजार योद्धाओं पर विजय पाना आसान है, लेकिन जो अपने ऊपर विजय पाता है वही सच्चा विजयी है। हमारा कर्तव्य है कि हम अपने शरीर को स्वस्थ रखें, अन्यथा हम अपने मन को सक्षम और शुद्ध नहीं रख पाएंगे। हम आपने विचारों से ही अच्छी तरह ढलते हैं, हम वही बनते हैं जो हम सोचते हैं। जब मन पवित्र होता है तो खुशी परछाई की तरह हमेशा हमारे साथ चलती है। हजारों दीपों को एक ही दिए से, बिना उसके प्रकाश को कम किए जलाया जा सकता है। खुशी बांटने से कभी कम नहीं होती। अप्रिय शब्द पशुओं को भी नहीं सुहाते हैं। अराजकता सभी जटिल बातों में निहित है। परिश्रम के साथ प्रयास करते रहो। आप को जो भी मिला है उसका अधिक मूल्यांकन न करें और न ही दूसरों से ईष्र्या करें। वे लोग जो दूसरों से ईष्र्या करते हैं, उन्हें मन को शांति कभी प्राप्त नहीं होती। अतीत पर ध्यान केंद्रित मत करो, भविष्य का सपना भी मत देखो, वर्तमान क्षण पर ध्यान केंद्रित करो। आप चाहे कितने भी पवित्र शब्दों को पढ़ लें या बोल लें, लेकिन जब तक उन पर अमल नहीं करते उसका कोई फायदा नहीं है। इच्छा ही सब दुःखों का मूल है। जिस तरह उबलते हुए पानी में हम अपना, प्रतिबिम्ब नहीं देख सकते उसी तरह क्रोध की अवस्था में यह नहीं समझ पाते कि हमारी भलाई किस बात में है। चतुराई से जीने वाले लोगों को मौत से भी डरने की जरुरत नहीं है। वह व्यक्ति जो 50 लोगों को प्यार करता है, 50 दुखों से घिरा होता है, जो किसी से भी प्यार नहीं करता है उसे कोई संकट नहीं है।


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