Friday, 6 April 2018

कथक सम्राट बिरजू के नृत्य पर झूमी काशी



कथक सम्राट बिरजू के नृत्य पर झूमी काशी
हनुमत जयंती के मौके पर इन दिनों काशी के संकट मोचन संगीत समारोह में सुर, लय एवं नृत्य कलाकारों की धूम है। हर शाम नृत्य से लेकर भजन की अद्भुत छटा बिखर रही है। इस आयोजन की दुसरी संध्या में पं. बिरजू महाराज की अनूठी प्रस्तुति देख श्रोता भाव विभोर हो गए तो पं. जसराज ने अपने प्रसिद्ध भजन गोविंद दामोदर माधवेति.. से श्रद्धा -भक्ति की गंगा कुछ इस तरह बहाई की लोग देर रात तक डटे रहे
सुरेश गांधी
ताल और घुंघरू का तालमेल करना किसी भी नर्तक के लिए आम बात है। लेकिन जब बात अपने घुंघरू की झनक पर दर्शकों को सम्मोहित करने की हो तो पंडित बिरजू महाराज का नाम सबसे पहले आएंगा। भारत के प्रसिद्ध शास्त्रीय नृत्य कलाकारों में बिरजू महाराज शीर्ष पर काबिज हैं। उन्होंने कथक को सिर्फ भारत में बल्कि विश्व भर में एक अलग मुकाम पर पहुंचाया है। उसकी एक झलक काशी के श्रीसंकट मोचन संगीत समारोह के मंच पर उस वक्त देखने को मिला जब बिरजू महराज ने स्वरचितश्याम की हर सांस में राधा बसी है..’ पर भाव नृत्य किया और बंदिशजाने दे मायका मोहे सजनवा..’ पर विद्युत गति से सजते भावों के सम्मोहन में हर किसी को बांध लिया। कभी ऐसा प्रदर्शित करते कि जैसे नायिका बहुत गुस्से में है तो कभी ऐसे भाव दर्शाते जैसे नायिका बेहद उदास है। मध्य लय तीन ताल में उपज, राग देस में भाव नृत्य गत निकास और राग मिया मल्हार में झुमाया तो बारिश की बूंदों का अहसास देते हुए मयूर नृत्य पर कला प्रेमियों को झूमने पर मजबूर कर दिया। उनके नृत्य में अदावु तथा अभिनय की सहज प्रस्तुति देखने को मिली। नृत्य की यही अदा उन्हें अन्य कलाकारों से अलग करती है। इससे पहले उन्होंने बोल पढ़ंत का मोर्चा संभाला औरजाके हनुमत हृदय बसे हैं, ध्यान करो हनुमंत रूप को..’ फिजा में घुल गया। इस पर उनकी पोती रागिनी महाराज पोते त्रिभुवन महाराज ने अपने नृत्य संयोजन से दर्शकों को पौराणिक कथा के सार में गोते लगाते हुए अलौकिक संसार की यात्रा करा दी। नृत्य के माध्यम से उन्होंने भावनाओं की परतें खोलकर अवचेतन मन को जागृत कर दिया। पारंपरिक कथा के अंतर्गत उन्होंने कथक में गिनती की तिहाइयां, आमद, टुकड़े, परन आदि की बेहतरीन प्रस्तुति की।
चार दिन पूर्व लिखित छोटी बंदिश तीन ताल 16 मात्र में प्रस्तुत की। इसमें परंपरागत कथक आमद-उठान, परन पेश किया। तिहाइ में गेंद, मित्रों को ढूंढ़ने आदि खेलों का बखूबी प्रदर्शन किया। राधा कृष्ण की छोटी सी गत प्रस्तुतिकरण में आलिंगन, छेड़छाड़ के साथ ही आधुनिकता का पुट घोलते हुए नेटवर्क कटने को तिहाई में दिखाया। तबले घुंघरू की युगलबंदी से भी रिझाया। पं. रतन मोहन शर्मा ने राग वैरागी में सुर छेड़े और विलंबित मध्य लय द्रुत में विभिन्न बंदिशें प्रस्तुत कीं। एल सुब्रमणियम ने वायलिन की झंकार पर कर्नाटक शैली की चार बंदिशों को झंकृत किया। पं. बिरजू महाराज की मोहक प्रस्तुति के बाद पं. जसराज ने मंच संभाला। वर्ष 1972 से पं. जसराज लगातार इस संगीत समारोह में अपनी उपस्थिति दर्ज कराते रहे हैं। अरसे बाद यह पहला ऐसा मौका था जब पद्मविभूषण पं. जसराज ने लीक से हटते हुए प्रभु चरणों में रात के प्रथम प्रहर में हाजिरी लगाई। राग जयजयवंती में नटवर नागर की स्तुति की।मंगलम भगवान विष्णु मंगलम गरुड़ ध्वजः ..’ से आरंभ किया औरमन मंदिर में विराजत अवध नरेश..’ से विभोर किया। पं.जसराज ने राग जयजयवंती में हनुमानजी की आराधना की। विलंबित एकताल में मां मोहे दरस देर तक क्यों नहीं के गायन का शुरुआत की और इस क्रम को अपने प्रिय भजन गोवद दामोदर माधवेति से आगे बढ़ाया। अपने प्रसिद्ध भजन गोविंद दामोदर माधवेति.. से श्रद्धा -भक्ति की गंगा बहाई। समापन से पूर्व उन्होंने राग वसंत में एक प्राचीन बंदिश सुनाई। बोल थे-और राग सब बने बराती दूल्हा राग बसंत। अपने गायन समापन उन्होंने हनुमान लला मेरे प्यारे लला भजन से किया। आरंभ में पंडित जसराज जैसे ही मंच पर बैठे आदतन उन्होंने दोनों हाथ उठाएं और जय हो का संबोधन किया। उसका जवाब भी काशी के श्रोताओं ने जय हो से ही दिया वह भी दोनों हाथ उठाकर। इन दो दिग्गज कलाकारों की प्रस्तुति के उपरांत बारी थी दो युवा कलाकारों की। इनमें से एक का संबंध गायन से तो दूसरे का वादन से। एक पं. केवल महाराज का शिष्य तो दूसरा पं. हरिप्रसाद चैरसिया किस शैली को अपनाकर चलने वाला साधक। गुरु शिष्य परंपरा में रहकर दादा गुरु संगमेश्वर एवं गुरु कैवल्य महाराज से गायन की शिक्षा प्राप्त करने वाले धारवाड़ के विजय कुमार पाटिल ने राग गावती में गायन का आरंभ किया। विलंबित एकताल में धन-धन भाग तथा तीन ताल में बंदिश सुनाने के बाद उन्होंने द्रुत एक ताल में एक और बंदिश सुनाई। इसके बाद पं. हरिप्रसाद चैरसिया के शिष्य विवेक सोनार ने बांसुरी की सुरीली तान छेड़ी।
इस मौके पर संकटमोचन परिसर में ही लगाई गई कला दीर्घा में एक से बढ़कर एक चित्रकारी लोगों को खूब आकर्षित कर रही है। यहां वैशाली के साथ विशाखा, अनूप, अंजलि, आयुष, प्रीति, मोनी, आकांक्षा, सृष्टि और पीयूष ने मिलकर हनुमानजी के एक चित्र को ऐसा आकार दिया है कि लोगों की आंखे खुली की खुली रह गयी। भारतीय गणराज्य के तूलिका प्रहरी शीर्षक से एक विशाल चित्र श्रृंखला तैयार की जा रही है। इसमें उन चित्रकारों के चित्र बनाए जा रहे हैं। इसमें कूंची के सिपाही श्रृंखला के तहत कलाकारों ने ख्यातिनाम चित्रकला विभूतियों की छवि उकेरी। इसमें प्रो. सुनील कुशवाहा, प्रो. सुनील विश्वकर्मा, डा. बच्चा बाबू, प्रो. वेद प्रकाश मिश्र, डा. शारदा सिन्हा, पंकज वर्मा, पंकज कुमार पूर्णिमा राय ने रंग सजाए। संयोजक प्रो. विजयनाथ मिश्र ने बताया कि तीन दिनों में सौ चित्र उकेरे जाएंगे। इसमें कोई भी रंग भर सकेगा। फिल्म बाजीराव मस्तानी के एक गाने के लिए फिल्म फेयर अवार्ड में बेस्ट कोरियोग्राफर से नवाजे गए कथक सम्राट पं.बिरजू महाराज ने सलमान खान की कला का पक्ष लिया है। उन्होंने कहा कि बतौर कलाकार सलमान खान पर करोड़ों रुपए लगे हुए हैं इसलिए उन्हें शूटिंग की छूट मिले। बाकी समय वह अपनी सजा काटते हुए जेल में गुजारें। काम नही रुकना चाहिए, क्योकि फिल्म तो समाज के लिए होती है। बिरजू महाराज ने कहा कि कथक नृत्य का भविष्य सुनहरा है और कई विश्वविद्यालयों में कथक की शिक्षा दी जा रही है। शास्त्रीय संगीत ही भारतीय परंपरा की संवाहक है। शास्त्रीय संगीत का भविष्य हमेशा सुनहरा और उज्जवल रहेगा। उन्होंने कहा कि संकटमोचन दरबार में हाजिरी लगाना हमारे लिए सौभाग्य की बात है। उनका मानना है कि संकट मोचन संगीत समारोह में नृत्य की गुणवत्ता हरहद तक बरकरार रहनी चाहिए। नृत्य विधा के किसी ऐसे कलाकार को यह मंच नहीं प्रदान करना चाहिए जिससे गुणवत्ता प्रभावित हो।

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