‘मोदी’
को डरा रहा ‘कल्याण जैसा हश्र’
का ‘खौफ’
बीजेपी नेताओं में
एकलौते कल्याण सिंह एक
ऐसे नेता रहे
जिन्होंने राम मंदिर
के लिए सत्ता
भी कुर्बान कर
दी। एक दिन
की सजा भी
काटी। यह अलग
बात है कि
तब आज जैसे
हालात नहीं थे।
लेकिन आज जब
केन्द्र से लेकर
प्रदेश तक बीजेपी
के फायरब्रांड नेता
मोदी और योगी
विराजमान है, इसके
बावजूद कल्याण सिंह जैसा
साहस उनमें नहीं
है। इसके पीछे
वजह क्या है
ये तो वहीं
जाने, लेकिन इतना
तो कहा ही
जा सकता है
कि मोदी व
योगी को कल्याण
सिंह जैसा हश्र
होने का डर
कहीं न कहीं
सता रहा है।
क्योंकि करोड़ों लोगों की
अस्था से जुडे
इस मसले पर
पार्टी के शीर्ष
नेताओं को उम्मींद
थी कि कल्याण
सिंह के इस
कुर्बानी का ईनाम
उन्हें चुनाव में जरुर
मिलेगा, लेकिन ऐसा हो
न सका। ऐसा
नहीं है इसका
खौफ सिर्फ मोदी
योगी को ही
है, बल्कि आरएसएस
में नंबर दो
माने जाने वाले
सरकार्यवाह भैयाजी जोशी को
भी है, तभी
तो उन्होंने कहा,
राम मंदिर साल
2025 में बनेगा
सुरेश
गांधी
फिरहाल, भैयाजी जोशी
द्वारा यह कहा
जाना कि ‘राम
मंदिर साल 2025 में
बनेगा‘,
मोदी पर कटाक्ष
है या नहीं
ये तो वे
ही जानें। लेकिन
इतना तो सच
है कि राम
मंदिर निर्माण को
लेकर मोदी योगी
समेत पूरी भाजपा
संशय में हैं।
उसे इस बात
का कहीं न
कहीं खौफ जरुर
है कि किस
तरह कल्याण सिंह
की कुर्बानी के
बाद सभी विपक्षी
पार्टियां एकजुट हो गयी
और उन्हें चुनाव
में बुरी तरह
पराजय का सामना
करना पड़ा। या
यूं कहें बीजेपी
को इसका खामियाजा
भुगतना पड़ा। उनके
हाथों से प्रदेश
की सत्ता खिसक
गई। सपा और
बसपा जैसी सियासी
पार्टियों के दिन
बहुरे और वो
सूबे की सत्ता
पर विराजमान हुई।
डैमेज कंट्रोल के
लिए शीर्ष नेतृत्व
के नेता रहे
लालकृष्ण आडवानी को पाकिस्तान
स्थित जिन्ना के
मजार पर जाकर
फूट फूट कर
रोना पड़ा। मजार
पर जाने का
हश्र ऐसा हुआ
कि वे न
सिर्फ पार्टी से
अलग थलग पड़
गए, बल्कि प्रधानमंत्री
का ख्वाब भी
सपना ही बनकर
रह गया।
लगता है
कहीं न कहीं
मोदी योगी को
भी कुछ ऐसा
ही खौफ सता
रहा हैं। जबकि
अयोध्या आंदोलन ने बीजेपी
के कई नेताओं
को देश की
राजनीति में एक
पहचान दी, लेकिन
राम मंदिर के
लिए सबसे बड़ी
कुर्बानी पार्टी नेता कल्याण
सिंह ने दी।
वे बीजेपी के
इकलौते नेता थे,
जिन्होंने 6 दिसंबर 1992 में अयोध्या
में बाबरी विध्वंस
के बाद अपनी
सत्ता को बलि
चढ़ा दिया था।
राम मंदिर के
लिए सत्ता ही
नहीं गंवाई, बल्कि
इस मामले में
सजा पाने वाले
वे एकमात्र शख्स
हैं। हालांकि बीजेपी
के हाथों से
तब भले ही
यूपी की सत्ता
गई लेकिन केंद्र
से लेकर कई
राज्यों में पार्टी
का विस्तार हुआ।
1997 में 13 दिन, 1998 में 13 महीना
और 1999 में पांच
साल के लिए
बीजेपी की केंद्र
में सरकार बनी।
लेकिन हर बार
गठबंधन की सरकार
रही। यही वजह
रही कि बीजेपी
के लिए राममंदिर
मुद्दे को पीछे
छोड़ना पड़ा। बीजेपी
के घोषणा पत्र
से भी राममंदिर
बाहर हो गया।
2004 में कांग्रेस की केंद्र
में कांग्रेस की
वापसी हुई और
दस साल तक
वो काबिज रही।
उधर, 2014 में बीजेपी
गुजरात के मुख्यमंत्री
नरेंद्र मोदी के
नेतृत्व में चुनावी
मैदान में उतरी
तो प्रचंड बहुमत
के सत्ता पर
काबिज हुई। इसके
बाद से मोदी
सरकार पर लगातार
राममंदिर बनाने का दबाव
बढ़ने लगा। इसी
बीच 2017 में यूपी
का विधानसभा चुनाव
हुआ तो बीजेपी
ने प्रचंड बहुमत
के साथ सत्ता
में 25 साल बाद
वापसी की। अब
यूपी और केंद्र
दोनों जगह बीजेपी
की सरकार हैं।
ऐसे में सरकार
पर राममंदिर बनाने
का दबाव भी
ज्यादा है। बीजेपी
सुप्रीमकोर्ट में अयोध्या
मामले की हर
रोज सुनवाई कराने
के पक्ष में
है, ताकि इस
मामले पर जल्द
फैसला आ सके।
बीजेपी के नेता
भी लगातार कह
रहे हैं कि
2019 से पहले अयोध्या
में राममंदिर का
निर्माण होगा। इसके अलावा
यूपी में योगी
सरकार बनने के
बाद अयोध्या का
कायाकल्प होना शुरू
हो गया है।
कुंभ का भव्य
आयोजन के बीच
हर तरह की
सुविधाएं देने को
इसी कड़ी से
जोड़कर देखा जा
रहा है। योगी
सरकार ने अयोध्या
में देश की
सबसे बड़ी मूर्ति
स्थापित करने जा
रही है। इसके
अलावा मोदी सरकार
अयोध्या में श्रीराम
संग्राहलय भी बना
रही है। इस
साल अयोध्या में
योगी सरकार ने
भव्य दिपावली मनाया
है। लेकिन राममंदिर
के समर्थक जनता
और संगठन भी
लगातार बीजेपी सरकार पर
दबाव बना रहे
हैं कि अयोध्या
में राममंदिर का
निर्माण किया जाए।
सरकार मामले को
सुप्रीमकोर्ट में बताकर
बचने की कोशिश
कर रही हैं,
लेकिन जनता बीजेपी
को अब कोई
और मौका नहीं
देना चाहती हैं।
जनता के भावनाओं
को देखते हुए
मंदिर को लेकर
एकबार फिर संघ
ने 2025 की नई
तारीख घुमाफिराकर पेश
की है। उन्होंने
साफ तौर पर
कहा कि राम
मंदिर निर्माण को
लेकर अब भी
बहुत सी चुनौतियां
हैं, जिनसे निपटने
की जरूरत है।
उनके मुताबिक अयोध्या
में राम मंदिर
सिर्फ एक मंदिर
का निर्माण नहीं
है, बल्कि यह
करोड़ों हिन्दुओं की आस्था
और सम्मान से
भी जुड़ा हुआ
है। इसके उलट
कांग्रेस भी मैदान
में कूद पडी
है। कांग्रेस सांसद
शशि थरुर मे
एक तस्वीर ट्विट
करके कहा कि
दस साल में
मंदिर का काम
कहां से कहां
तक पहुंचा। यानि
मंदिर को लेकर
आने वाले दिनों
में कांग्रेस बनाम
बीजेपी का युद्द
जोर पकड़ेगा। इन
दिनों सोशल मीडिया
पर दस साल
का चैलेंज जोर
पकड़ रहा है
और इसी हवा
में थरुर ने
भी राम मंदिर
को लेकर अपना
सियासी बाण चल
दिया है। पीएम
मोदी ने राम
मंदिर पर कानूनी
कार्रवाई खत्म होने
के बाद ही
अध्यादेश पर विचार
की बात कही
है।
बता दें
कि बीजेपी के
कद्दावर नेताओं में शुमार
होने वाले कल्याण
सिंह मौजूदा समय
में राजस्थान के
राज्यपाल हैं। एक
दौर में वे
राम मंदिर आंदोलन
के सबसे बड़े
चेहरों में से
एक थे। उनकी
पहचान हिंदुत्ववादी और
प्रखर वक्ता की
थी। 30 अक्टूबर, 1990 को जब
मुलायम सिंह यादव
यूपी के मुख्यमंत्री
थे तो उन्होंने
कारसेवकों पर गोली
चलवा दी थी।
प्रशासन कारसेवकों के साथ
सख्त रवैया अपना
रहा था। ऐसे
में बीजेपी ने
उनका मुकाबला करने
के लिए कल्याण
सिंह को आगे
किया। कल्याण सिंह
बीजेपी में अटल
बिहारी बाजपेयी के बाद
दूसरे ऐसे नेता
थे जिनके भाषणों
को सुनने के
लिए लोग बेताब
रहते थे। कल्याण
सिंह उग्र तेवर
में बोलते थे,
उनकी यही अदा
लोगों को पसंद
आती।
कल्याण सिंह ने एक साल में बीजेपी को उस मुकाम पर लाकर खड़ा कर दिया कि पार्टी ने 1991 में अपने दम पर यूपी में सरकार बना ली। कल्याण सिंह यूपी में बीजेपी के पहले मुख्यमंत्री बने। सीबीआई में दायर आरोप पत्र के मुताबिक मुख्यमंत्री बनने के ठीक बाद कल्याण सिंह ने अपने सहयोगियों के साथ अयोध्या का दौरा किया और राम मंदिर का निर्माण करने के लिए शपथ ली। कल्याण सिंह सरकार के एक साल भी नहीं गुजरे थे कि 6 दिसंबर, 1992 को अयोध्या में कारसेवकों ने विवादित ढांचा गिरा दिया। यह अलग बात है कि उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय में शपथ पत्र देकर कहा था कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में, वह मस्जिद को कोई नुकसान नहीं होने देंगे। इसके बावजूद 6 दिसंबर 1992 को वही प्रशासन जो मुलायम के दौर में कारसेवकों के साथ सख्ती बरता था, मूकदर्शक बन तमाशा देख रहा था। सरेआम बाबरी मस्जिद विध्वंस कर दी गई। इसके लिए कल्याण सिंह को जिम्मेदार माना गया। कल्याण सिंह ने इसकी नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए 6 दिसंबर, 1992 को ही मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया। लेकिन दूसरे दिन केंद्र सरकार ने यूपी की बीजेपी सरकार को बर्खास्त कर दिया।
कल्याण सिंह ने एक साल में बीजेपी को उस मुकाम पर लाकर खड़ा कर दिया कि पार्टी ने 1991 में अपने दम पर यूपी में सरकार बना ली। कल्याण सिंह यूपी में बीजेपी के पहले मुख्यमंत्री बने। सीबीआई में दायर आरोप पत्र के मुताबिक मुख्यमंत्री बनने के ठीक बाद कल्याण सिंह ने अपने सहयोगियों के साथ अयोध्या का दौरा किया और राम मंदिर का निर्माण करने के लिए शपथ ली। कल्याण सिंह सरकार के एक साल भी नहीं गुजरे थे कि 6 दिसंबर, 1992 को अयोध्या में कारसेवकों ने विवादित ढांचा गिरा दिया। यह अलग बात है कि उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय में शपथ पत्र देकर कहा था कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में, वह मस्जिद को कोई नुकसान नहीं होने देंगे। इसके बावजूद 6 दिसंबर 1992 को वही प्रशासन जो मुलायम के दौर में कारसेवकों के साथ सख्ती बरता था, मूकदर्शक बन तमाशा देख रहा था। सरेआम बाबरी मस्जिद विध्वंस कर दी गई। इसके लिए कल्याण सिंह को जिम्मेदार माना गया। कल्याण सिंह ने इसकी नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए 6 दिसंबर, 1992 को ही मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया। लेकिन दूसरे दिन केंद्र सरकार ने यूपी की बीजेपी सरकार को बर्खास्त कर दिया।
कल्याण सिंह ने
उस समय कहा
था कि ये
सरकार राम मंदिर
के नाम पर
बनी थी और
उसका मकसद पूरा
हुआ। ऐसे में
सरकार राममंदिर के
नाम पर कुर्बान।
बाबरी मस्जिद ध्वंस
की जांच के
लिए बने लिब्राहन
आयोग ने तत्कालीन
प्रधानमंत्री वीपी नरसिम्हा
राव को क्लीन
चिट दी, लेकिन
योजनाबद्ध, सत्ता का दुरुपयोग,
समर्थन के लिए
युवाओं को आकर्षित
करने, और आरएसएस
का राज्य सरकार
में सीधे दखल
के लिए मुख्यमंत्री
कल्याण और उनकी
सरकार की आलोचना
की। कल्याण सिंह
सहित कई नेताओं
के खिलाफ सीबीआई
ने मुकदमा भी
दर्ज किया है।
कहा जा सकता
है 26 साल पहले
अयोध्या में जो
भी हुआ वो
खुल्लम-खुल्ला हुआ। हजारों
की तादाद में
मौजूद कारसेवकों के
हाथों हुआ। घटना
के दौरान मंच
पर मौजूद मुरली
मनोहर जोशी, अशोक
सिंघल, गिरिराज किशोर, विष्णु
हरि डालमिया, विनय
कटियार, उमा भारती,
साध्वी ऋतम्भरा और लालकृष्ण
आडवाणी के सामने
हुआ। इनसे मस्जिद
को बचाने का
रोकने का जिम्मा
कल्याण सिंह पर
था। बीजेपी की
आज जो भी
सियासत हैं वह
राम मंदिर आंदोलन
की देन है।
इसी अयोध्या की
देन है कि
आज नरेंद्र मोदी
देश के प्रधानमंत्री
हैं।
लालकृष्ण आडवाणी ने
जब सोमनाथ से
अयोध्या के लिए
रथयात्रा निकाली थी तो
नरेंद्र मोदी उनके
सारथी थे। इसके
बाद 2002 में गोधरा
में ट्रेन की
जो बोगी जलाई
गई उसमें मरने
वाले भी वो
कारसेवक थे, जो
अयोध्या से लौट
रहे थे। इसके
बाद गुजरात में
दंगा हुआ और
नरेंद्र मोदी का
उभार हुआ। 25 साल
बाद सियासत ने
ऐसी करवट ली
कि एक बार
फिर बीजेपी यूपी
की सत्ता पर
पूर्ण बहुमत के
साथ विराजमान है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ
हैं, जो हिंदुत्व
का चेहरा भी
हैं। इतना ही
नहीं केंद्र में
भी बीजेपी की
सरकार पूर्ण बहुमत
के साथ है।
नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री
हैं। ऐसे में
बीजेपी बहाने बनाकर निकल
नहीं सकती। राममंदिर
से जुड़े संगठन
और समर्थक लगातार
मंदिर बनाने का
दबाव बनाने में
जुटे हैं। क्योंकि
राममंदिर आंदोलन के कंधे
पर सवार हो
कर बीजेपी ने
सियासत के बुलंदी
को छुआ है।
बीजेपी 2 सीटों से बढ़कर
285 पहुंच गई है।
1992 से 2007 के बीच
यूपी में जो
भी सरकारें बनी
सभी गठबंधन की
सरकारें थी। तीन
बार बीएसपी बीजेपी
के साथ मिलकर
यूपी के सिंहासन
पर काबिज हुई,
तो वहीं सपा
ने रालोद सहित
कई दलों को
मिलाकर मुख्यमंत्री पद पर
कब्जा किया। 2007 में
मायावती की सरकार
बनी और 2012 में
सपा की पूर्ण
बहुमत वाली सरकार
बनी।
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