Thursday, 14 February 2019

‘जन-जन’ की ‘पुकार’, ‘बदला’ मांगे ‘हिंदुस्तान’


जन-जनकीपुकार, ‘बदलामांगेहिंदुस्तान
जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में हुए अभी तक के सबसे बड़े आत्मघाती हमले ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। लोग शहीद जवानों और शोकाकुल परिवारीजनों के प्रति अपनी संवेदनाओं के साथ खड़े है। हर हिन्दुस्तानी की एक ही मांग है पाकिस्तान में घुसकर आतंकियों का सफाया करें मोदी सरकार। आखिर कब तक पुलवामा आत्मघाती हमले का मास्टरमाइंड जैश--मोहम्मद का प्रमुख मसूद अजहर भारत में हमले करता रहेगा? आखिर क्या वजह है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा प्रतिबंधित आतंकियों की सूची में डालने के प्रयास को चीन बार-बार रोकवा दे रहा है? सवाल है कि ऐसी जघन्य घटनाओं से पहले जरूरी कदम क्यों नहीं उठाए जाते? जबकि खुफिया जानकारी के मुताबिक इस तरह के हमला का अंदेशा खुफिया एजेंसियों को पहले से था। मोदी जी देश जानना चाहता है कि आखिर वो कौन सी मजबूरी है कि पाकिस्तानी हुक्मरान इमरान खान एवं जनरल बाजवा से गलबहियां करने वाले सिद्धू समेत पत्थरबाजों, अलगावदियों, आतंकी समर्थित महबूबा और अन्य राजनेताओं के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं हो पा रही है? मजबूरी क्या है ये आप ही जाने लेकिन सच यही है जब तक देश के भीतर बैठे गद्दारों को नहीं सलटाया जायेगा हमारे जवान इसी तरह शहीद होते रहेंगे 
सुरेश गांधी
जम्मू एवं कश्मीर में 1989 में आतंकवाद के सिर उठाने के बाद से हुए अब तक के सबसे बड़े आतंकी हमले में एक आत्मघाती हमलवार ने पुलवामा जिले में श्रीनगर-जम्मू राजमार्ग पर अपनी विस्फोटकों से लदी एसयूवी केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) की बस से टकरा दी और उसमें विस्फोट कर दिया। इस आतंकी हमले में अभी तक 37 जवान शहीद हुए हैं। जवानों की शहादत के बाद हिन्दुस्तान में गम और गुस्सा है। लेकिन अफसोस है कि देश जहां 37 जवानों के मारे जाने पर जहां देश आंसू बहा रहा है, वहीं इस पर राजनीति अपने चरम पर है। जो विपक्षी कल तक आतंकवादियों को बेटा कहते नहीं थकते थे, मसूद अजहर जी कहते थे। पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाने से लेकर भारत तेरे टुकड़े होंगे ककने वालों का समर्थन करते थे, वे ही सरकार को कटघरे में खड़ा करते दिख रहे है। या यूं कहें मोदी सरकार पर हमला बोल रहे है। हालांकि सरकार दावा कर रही है कि इस हमले का मुंहतोड़ जवाब दिया जाएगा। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कह चुके हैं कि जवानों की शहादत व्यर्थ नहीं जाएगी।
गौरतलब है कि आतंकियों ने कायराना हरकत कर मौत का जो खेल खेला है, उसके पीछे आतंकी संगठन जैश--मोहम्मद का हाथ है। जिस आतंकी ने इस हमले को अंजाम दिया उसका नाम आदिल अहमद डार है। वो पुलवामा जिले के काकपोरा का ही रहने वाला है। बताया जा रहा है कि आदिल पिछले साल फरवरी में मोस्ट वांटेड आतंकी जाकिर मूसा के गजवत उल हिंद में शामिल हुआ था और कुछ ही महीने पहले ही वह जैश में शामिल हुआ था। कुछ ऐसा ही आज से तीन साल पहले 18 सितंबर 2016 को आतंकियों ने उरी में सेना के कैंप पर बड़ा हमला किया था। इस हमले में 19 जवान शहीद हुए थे। ढाई साल बाद भी उरी का वो आतंकवादी हमला हिंदुस्तान की आंखों में लहू उतारने के लिए काफी है। उस कायराना हमले ने हिंदुस्तान को हिला दिया था। अब ये गूंज उठी कि कब तक हिंदुस्तान अपने जवानों का बलिदान यूं ही देखता रहेगा। हमले के बाद मोदी सरकार ने कहा था कि आतंकियों को इसका करारा जवाब दिया जाएगा। इसके 10 दिन बाद ही 28-29 सितंबर की रात को पीओके में घुसकर भारतीय सेना ने आतंकियों के कैंपों को उड़ा दिया था। सेना के इस वीरता भरे ऑपरेशन में एक भी जवान शहीद नहीं हुआ था। इस हमले के बाद सरकार हमले का जवाब किस तरह से देगी, ये तो वहीं जाने लेकिन देशवासी बड़ी कार्रवाई चाहते है। क्योंकि ये ताजा हमला उरी हमले से भी बड़ा है।
पुलवामा में हुए हमले के बाद नरेंद्र मोदी सरकार से फिर उसी तरह की उम्मीद की जा रही है। लोग चाहते है कि जवानों का बलिदान व्यर्थ नहीं जाना चाहिए। आतंकवादियों को सहयोग देना बंद करने और उसकी जमीन से चल रहे आतंकी ठिकाने खत्म होने चाहिए। अलगाववादियों से सुरक्षा वापस ले चाहिए। आतंकवादियों को बेटा कहने वाले, पाकिस्तान जिंदाबाद कहने वाले लोगों और आतंकवादियों के साथ वही सलूक होना चाहिए जो कल पुलवामा में सीआरपीएफ के जवानों के साथ हुआ। अब पाकिस्तान के साथ टेबल पर नहीं बल्कि युद्ध के मैदान में बात होनी चाहिए। पूरा देश मसूद अजहर की कटी हुई गर्दन देखना चाहता है। देश मौलाना मसूद अजहर को मांग रहा है, जिंदा या मुर्दा। लोग चाहते है कि इन आतंकवादियों को उसी तरह से घर में घुसकर मारा जाए, जैसे ओसामा बिन लादेन को अमेरिकी नेवी सील ने उसके घर में घुस कर मारा था। खासकर तब जब जर्मनी ऑस्ट्रेलिया, तुर्की, फ्रांस, अमेरिका, रुस, ब्रिटेन और चेक रिपब्लिक सहित दुनियाभर के कई देशों ने ऐलान किया है कि आतंकवाद के खतरे से लड़ने के लिए वे भारत के साथ खड़े हैं। ऐसे में सवाल यही है क्या उरी हमले से दोगुने जवानों की शहादत पर क्या सरकार डबल सर्जिकल स्ट्राइक करेगी?
                इस हमले के बाद सरकार पर हमले के जिम्मेदार लोगों को सबक सीखाने का दबाव है, तो एक सवाल इस पर भी उठता है कि घाटी में रह रहे अलगाववादियों को सरकार की ओर से आखिरकार किस बात की सुरक्षा दी जा रही है और उन्हें ऐसी सुरक्षा दिए जाने का क्या मतलब है। घाटी में भारत के खिलाफ खुलकर जमकर दुष्प्रचार करने और जहर घोलने वाले अलगाववादी नेताओं को सरकार की ओर से ढेर सारी सुविधाएं दी जाती हैं और वो शाही जिंदगी जीते हैं। 1 अप्रैल, 2015 को राज्य सरकार ने विधानसभा में अपनी एक रिपोर्ट में खुलासा किया कि सरकार ने कश्मीर के अलगाववादी नेताओं समेत प्रदेश के कुल 1,472 राजनीतिक कार्यकर्ताओं की सुरक्षा में 506.75 करोड़ रुपये खर्च कर डाले। राज्य सरकार ने उस समय यह खुलासा किया कि उस साल 1,472 राजनीतिक कार्यकर्ताओं की सुरक्षा पर 118.63 करोड़ रुपये खर्च किए गए। 2010-11 में यह खर्च 85.95 करोड़ रुपये का था। 2015 में राज्य सरकार ने बताया कि 2011-12 में राजनीतिक कार्यकर्ताओं की सुरक्षा पर 93.70 करोड़ खर्च हुए। यह खर्च साल दर साल बढ़ता ही गया। 2012-13 में यह खर्च 101.06 करोड़ और 2013-14 में 107.06 करोड़ हो गया। सूत्रों के मुताबिक, राज्य सरकार इन अलगाववादियों को राजनीतिक कार्यकर्ता करार देती है और उनके लिए अकेले कश्मीर में ही 400 से 500 तक होटल के कमरे रखे जाते हैं। इन खर्चों में निजी सुरक्षा गार्ड, गार्ड, गाड़ियों के डीजल और होटल में ठहराने के प्रबंध पर खर्च किए जाते हैं। कहते है घाटी के अलगाववादी नेताओं पर खर्च का ज्यादातर हिस्सा केंद्र सरकार उठाती रही है। इस खर्च में महज 10 फीसदी हिस्सा राज्य सरकार और शेष 90 फीसदी केंद्र वहन करती है।
इससे पहले भी कई आतंकी वारदातों को जम्मू-कश्मीर में जैश के अफजल गुरु स्क्वॉड ने अंजाम दिया है। श्रीनगर के लालचौक पर हुए आतंकी हमले की भी जिम्मेदारी ली थी। इस आतंकी हमले में सात पुलिस और सीआरपीएफ के सात जवान शहीद हुए थे। 30-31 दिसंबर 2017 को भी पुलवामा में बीएसएफ के जवानों पर हुए हमले में भी इसने शामिल होने की बात कही थी। बताया जाता है कि दिसंबर में जैश--मोहम्मद का कमांडर अब्दुल रशीद गाजी घाटी में दाखिल हुआ था। गाजी अफगानिस्तान में तालिबानियों के साथ लड़ाई लड़ने के साथ-साथ पीओके में जैश के कैंप में चीफ इंस्ट्रक्टर भी रह चुका है। गाजी ने ही इस हमले में शामिल फिदायीन आदिल अहमद डार को ब्लास्ट की ट्रेनिंग दी थी। कश्मीर में आतंकियों के सफाये से पाकिस्तान में बैठा आतंक का आका मौलाना मसूद अजहर परेशान था। हाल ही में सुरक्षाबलों ने जैश आतंकी उस्मान और तलहा रशीद को मुठभेड़ में मार गिराया था। उस्मान मौलाना मसूद अजहर का भतीजा और तलहा रशीद भांजा था। बताया जा रहा है कि इन दोनों की मौत का बदला लेने के लिए जैश द्वारा सुरक्षा बलों को निशाना बनाने की साजिश थी।
2014 से अब तक 866 आतंकी मारे जा चुके हैं। 2018 में 91 सुरक्षाकर्मी शहीद हुए, जबकि 257 आतंकी मारे गये। 2017 में 213 आतंकी मारे गये थे, जबकि सुरक्षा बल के 80 जवान शहीद हुए थे। यानी पिछले पांच सालों में 866 आतंकी 2014 से अबतक मारे गये। जबकि फिदायीन हमले हुए। जिसमें उड़ी हमले में 19 जवान मारे गये थे। पठानकोट हमले में सात सुरक्षाकर्मी मारे गये थे। जवाबी कार्रवाई में चार आतंकी भी मारे गये थे। गुरदासपुर हमले में एसपी समेत चार पुलिसकर्मी और तीन नागरिक मारे गये। अमरनाथ यात्रियों पर हमले में 10 जुलाई, 2017 को सात लोग मारे गये थे। कई लोग घायल हुए थे।
पुलवामा हमले की जिम्मेदारी लेने वाला आतंकी संगठन जैश--मोहम्मद भी पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान की सरजमी पर ही पल रहा है। भारत के खिलाफ साजिश रचने वाले उसके जैसे कई आतंकी संगठन आतंकिस्तान बन चुके पाकिस्तान की पनाह में है। उन आतंकी संगठनों के सरगना वहां बैठकर हर वक्त भारत के खिलाफ आग उगलते हैं। खुलेआम भारत को धमकी देते हैं। ऐसे ही तीन आतंकवादी हैं, जो आज भारत के सबसे बड़े दुश्मन है। इन तीन आतंकियों का खात्मा बहुत ज़रूरी है। बहावलपुर में मदरसों के नाम पर हिंदुस्तान का दुश्मन नंबर एक यानी मसूद अज़हर पाकिस्तान से दहशतगर्दी की दुकान चला रहा है। अजहर को आतंकी गतिविधियां चलाने और आतंकी ठिकाने बढ़ाने के साथ ही भारत पर हमले करने की पाकिस्तान ने पूरी छूट दे रखी है। भारतीय फौज के जांबाज़ कमांडो ने बस ज़रा सा ट्रेलर ही दिखाया था कि पाकिस्तान में बैठे भारत के दुश्मनों के पसीने छूट गए। मसूद अजहर भी सर्जिकल स्ट्राइक के बाद नए ठिकाने पर रहने लगा है। सूत्रों के मुताबिक अब हाफ़िज़ सईद और मसूद दोनों अपने-अपने मदरसों और संगठन के हेडक्वार्टर से दूर कुछ चुनिंदा गुर्गों के साथ घनी आबादी के बीच रहने चले गए हैं। इसके पीछे उनकी सोच ये है कि घनी आबादी के बीच रहना ज्यादा महफूज है। 
पठानकोट हमले के मास्टर माइंड और आतंकी संगठन जैश--मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर पर प्रतिबंध लगाने की कोशिशों पर चीन के लगातार लगते वीटो से सरकार इस मसले पर नए तरीके तलाश रही है। भारत के पास पठानकोट हमले का बदला लेने और जैश--मोहम्मद जैसे आतंकी संगठन पर लगाम लगाने के लिए सर्जिकल स्ट्राइक का ऑप्शन जरूर मौजूद है। ठीक यही हाल हाफ़िज़ सईद का है। भारत के सर्जिकल स्ट्राइक और इंटरनेशनल प्रेशर का ही असर है कि पाकिस्तान अब खुलकर हाफ़िज़ सईद का साथ नहीं पाता। पाकिस्तान ने दुनिया को दिखाने के लिए हाफिज सईद की नजरबंदी भी की थी। लेकिन वो सिर्फ दिखावा ही था। वो वहां से चुनाव भी लड़ चुका है। सैयद मोहम्मद यूसुफ शाह को सैयद सलाहुद्दीन के नाम से ही जाना जाता है। उसका मकसद कश्मीर को आजाद कराना है। सलाउद्दीन ने पिछले साल धमकी दी थी कि वह जम्मू-कश्मीर को भारतीय सैनिकों की कब्रगाह बना देगा। पाक खुफिया एजेंसी के इशारे पर ही वो संगठन का मुखिया बन बैठा। तभी से वह भारत के खिलाफ साजिश रचता रहता है। एनआईए ने उसे मोस्ट वॉन्टेड घोषित कर रखा है।
एक सप्ताह पहले अलर्ट में कहा गया था कि जम्मू कश्मीर में आतंकवादी सुरक्षा बलों के डिप्लॉयमेन्ट और उनके आने जाने के रास्ते पर हमला कर सकते हैं। तो क्या हमारी चूक से इतना बड़ा आतंकवादी हमला हो गया और हमें अपने अनमोल जवानों की शहादत देनी पड़ी। क्योंकि पुलवामा में हुए आतंकी हमले से ठीक पहले आतंकियों ने पाकिस्तान में कई रैलियां की थीं. बीते 5 फरवरी को जैश मोहम्मद की आतंकी रैली में भारत पर हमले की बातें की गई थीं। जैश मोहम्मद की कराची रैली में संसद हमले के मास्टरमाइंड अफजल गुरु के नाम पर आत्मघाती दस्ते बनाए जाने का ऐलान किया गया था। इस रैली में ये ऐलान किया गया था कि जैश--मोहम्मद ने ऐसे आत्मघाती हमलावरों के 7 दस्ते भारत के अलग-अलग शहरों में रवाना कर दिए हैं। रैली के दौरान आतंकी हाफिज सईद ने पीएम मोदी को धमकी देते हुए कहा था कि मोदी अपनी फौज लेकर कश्मीर से लेकर निकल जा और नहीं निकलेगा तो और बहुत कुछ छोड़ना पड़ेगा। 
सईद की इस धमकी के बाद कश्मीर में हमला हुआ और 40 से ज्यादा जवान शहीद हो गए। इस इनपुट के बाद सुरक्षा एजेंसियों ने सुरक्षाबलों के साथ एक मीटिंग भी की थी। मीटिंग में कहा गया था कि आतंकी सुरक्षाबलों के काफिले को निशाना बना सकते हैं। इस हमले को सीरिया और अफगानिस्तान में होने वाले आतंकी हमलों की तरह अंजाम दिया जा सकता है। ऐसे में सुरक्षा बलों को अपना काफिला रात में लेकर जाना चाहिए। बावजूद इसके बर्फबारी के कारण सात दिन से बंद हाइवे के खुलते ही दिन में सीआरपीएफ जवानों को श्रीनगर ले जाने के लिए काफिला रवाना हो गया। अब ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर सीआरपीएफ ने खुफिया रिपोर्ट को क्यों इग्नोर किया। लेकिन बड़ा सवाल तो यही है कि आखिर अलर्ट के बाद ऐसी घटना हो कैसी गयी? तो क्या हमारी चूक से इतना बड़ा आतंकवादी हमला हो गया और हमें अपने अनमोल जवानों की शहादत देनी पड़ी?

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