Saturday, 11 May 2019

जौनपुर : नाराजगी के बाद भी ‘राष्ट्रवाद’ की ललक


जौनपुर : नाराजगी के बाद भीराष्ट्रवादकी ललक
राष्ट्र एक कल्पना है और जब यह राष्ट्रवाद में तब्दील होता है तो वह बीमारी हो जाता है। इमरती तथा लंबी मूली लौकी के लिए विख्यात जौनपुर में राष्ट्रवाद सिर चढ़कर बोल रहा है। यहां मुख्य मुकाबला सपा बसपा गठबंधन एवं भाजपा के बीच है। भाजपा ने कृष्णा प्रताप सिंह को एकबार फिर मैदान में उतारा है। जबकि गठबंधन की ओर से अखिलेश की इच्छा के विपरीत मायावती ने श्याम सिंह यादव पर भरोसा जताया है। 2014 में भाजपा के कृष्णा प्रताप ने 1,46,310 वोटों के भारी अंतर से जीत दर्ज की थी। दूसरे स्थान पर बसपा के सुभाष पांडेय रहे। जिन्होंने 2,20,839 वोट हासिल किये थे। सपा के पारसनाथ यादव 1, 80,003 वोट पाकर तीसरे स्थान पर थे। सपा बसपा के वोटो को अगर मिला दें तो गठबंधन भारी है। कृष्णा प्रताप को ने 3,67,149 वोट मिले थे। विकास में अरुचि, लोगों के दुख दर्द में सरीक होने से लोगों में उनके प्रति खासी नाराजगी है। यही वजह है कि क्षेत्र में नाराजगी को देखते हुए भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के चाहते हुए भी उन्हें दुबारा प्रत्याशी बनाया है। लेकिन लोगों में मोदी की सर्जिकल स्ट्राइक की भूत इस कदर है कि सारी नाराजगी गौढ़ हो चला है। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इस 47 डिग्री के प्रचंड तापमान में मोदी को सुनने कुद्दूपुर गांव में लोग घंटों धूप में खड़े रहे
                                                सुरेश गांधी
भारत में शर्की शासकों की राजधानी रहा जौनपुर गोमती नदी के किनारे बसा ऐतिहासिक रूप से चर्चित शहर है। यह अपने चमेली के तेल, तंबाकू की पत्तियों, इमरती और मिठाइयों के लिए लिए पूरे देश दुनिया में प्रसिद्ध है। इस जिले में 2 संसदीय क्षेत्र और कुल 9 विधानसभा क्षेत्र आते हैं। जौनपुर के अलावा मछलीशहर एक और संसदीय क्षेत्र है। जौनपुर में पांच विधानसभा बदलापुर, शाहगंज, जौनपुर, मल्हनी और मुंगरा बादशाहपुर है। अब तक के हुए चुनावों में जातीय समीकरणों पर यहां के वोटर रोचक आंकड़े गढ़ते आये हैं। लेकिन 2014 में मोदी लहर में सारे मुद्दे हवा में उड़ गए। भाजपा ने कृष्णा प्रताप सिंह ने यहां रिकार्ड मतों से जीत हासिल की थी। इस बार वे मैदान में है और संयोग से इस बार भी मोदी के सर्जिकल स्ट्राइक, उनके कामकाज के तौर तरीकों को लेकर जनता उन पर फिदा है। वर्तमान सांसद के क्रियाकलापों को लेकर लोगों में उनके प्रति खासी नाराजगी के बावजूद जब हाईकमान ने उन्हें ही मैदान में उतारा तो शुरुवाती दौर में कहा जाने लगा अब तो गई भइस पानी में। लेकिन मोदी की सभा के बाद लोगों की सारी नाराजगी काफूर हो चली है। हाल यह है कि कांग्रेस के 72 हजार (न्याय) की चर्चा है, और ना ही ही जातियता की बयार। जिसे देखों वहीं सर्जिकल स्ट्राइक की धून में बंशी बजा रहा है।
यह अलग बात है कि अंतिम समय में गठबंधन ने जातीय गोलबंदी को अपने पक्ष में करने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है। शाही पुल से गुजर रहे जय किशुन राजभर एवं शकील अहमद आपस में बात कर रहे हैं। वोट की चर्चा करने पर बिफर पड़ते हैं। जय किशुन कहते हैं- क्या बताये साहब, बहुत विधायक सांसद देख लिये। जाम की समस्या जस की तस है। जेसीपी चौराहा, शाहंगज रोड पर ओवरब्रिज एवं बाईपास रिंग रोड की मांग अरसे से की जा रही लेकिन किसी के कान में जू तक नहीं रेंग रहा। किसी भी मुहल्ले में जाइए, विकास पता चल जायेगा। 15 साल में शहर की अधिकांश सड़के जस की तस है। शाहगंज बाजार के डा चंद्रजीत मौर्य कहते है अखिलेश यादव तो सिर्फ बाते करते है, उनका काम कहीं नजर नहीं आता। कुछ ऐसा ही उनके पिता मुलायम का क्षेत्र के प्रति रहा। दोनों ने अपने दौरे में भरोसा दिलाया था कि शाहगंज को जिला बना देंगे, लेकिन दो दशक बाद भी कुछ नहीं हुआ। इस बार तो देश वीर जवानों को मजबूत करने के लिए वोट पड़ेगा। दिनेश यादव कहते है मुददों की बात करें तो यहां बिजली कटौती अब मुद्दा ही नहीं रहा। बेरोजगारी, कल कारखानों का अभाव जरुर है। लेकिन अब जाति व्यक्ति आधारित वोट मिलते है। इसलिए प्रत्याशी की कर्मठता योगदान को देखकर ही वोट करेंगे। संजय जासवाल कहते है वास्तव में यहां जातिवादी राजनीति का गणित चलेगा। लंबे समय में यहां कोई बड़ा कल कारखाना नहीं लगा है। लेकिन चुनाव के समय मुद्दे गायब हो जाते है, जातिवादी ही चलती है। यादव ब्राह्मण क्षत्रिय बाहुल क्षेत्र होने के चलते इस सीट पर भाजपा का पलड़ा भारी रहेगा। क्योंकि भाजपा से गठबंधन करने वाली अपना दल की अनुप्रिया पटेल का समर्थन है। बनिया, ठाकुर, ब्राह्मण, पासी, मौर्या आदि वोट भाजपा के पक्ष में जा सकता है।
बदलापुर में वोटर पूरी तरह खुल कर तो नहीं बोल रहे हैं। लेकिन उनका मिजाज टटोलने से पता चलता है कि इस बार लोकल फैक्टर कमजोर पड़ रहा है। शिक्षक रामचंद्र प्रसाद सिंह इशारे में कहते हैं कि स्थानीय मुद्दा पर वोट नहीं पड़ेगा। महिलाओं की बात करें तो वे पत्ता नहीं खोलना चाहती हैं। गिरिजा देवी को पता है कि 12 मई को वोट करना है। लेकिन तय नहीं कर पायी हैं कि वोट किसे देना है। कुरेदने पर सिर्फ इतना कहती हैं, जे हमरे देश के जवानन के लीए कुछ करी वोही वोट देईब। वैसे भी चुनाव में राष्ट्रीय नेताओं और मुद्दों पर ही वोट डाले जायेंगे। केराकत के कमालुद्दीन को बड़ी उम्मीद थी योगी सरकार से। मानता हूं कि गुंडागर्दी नहीं है, पर लगता है कि मुसलमानों को भरोसे में नहीं लिया जाता। उन पर भरोसा नहीं किया जाता। बात को आगे बढ़ाते हुए वह सवाल पूछते हैं, ‘पाकिस्तान की चर्चा क्यों की जाती है? हम भी राष्ट्रवाद में यकीन करते हैं, हमें पाकिस्तान से कोई मतलब भी नहीं है, लेकिन कोई यह सवाल तो पूछे कि पुलवामा हमले में इतना सारा आरडीएक्स आया कैसे?
बता दें, 2011 के जनगणना के आधार पर जौनपुर की कुल आबादी 44,94,204 है। जिसमें महिलाओं की संख्या पुरुषों से अधिक है। पुरुषों की संख्या 2,220,465 है जबकि महिलाओं की संख्या 2,273,739 है। एक हजार पुरुषों की तुलना में महिलाओं की संख्या 1,024 है। जिले की साक्षरता दर 71.55 फीसदी है। जिसमें शिक्षित पुरुषों की संख्या 83.80 फीसदी और महिलाओं की संख्या 59.81 फीसदी है। धर्म आधारित आबादी के लिहाज से देखा जाए तो यहां पर हिंदू बहुसंख्यक हैं और उनकी संख्या 88.59 फीसदी है, जबकि मुस्लिमों की आबादी 10.76 फीसदी है। बाकी अन्य धर्म वालों की संख्या नगण्य है। किवदंतियों में ऐसा कहा जाता है की इस शहर का नाम विष्णु के छठे अवतार परशुराम के पिता ऋषि जमदग्नि के नाम पर रखा गया है। 4038 वर्ग किमी क्षेत्रफल में बसे जौनपुर की पहचान पुरातात्कि धरोहरों के कारण है। बहुत सी मस्जिदें और राजा के किले, मंदिर बने हुए हैं जो जिले के इतिहास में चार चांद लगा देते हैं। यहां पर स्थापित अटाला मस्जिद, शाही किला, शाही पुल छह सौ वर्षों से लोगों को आकर्षित कर रहे हैं। इसे देखने काफी टूरिस्ट यहां आते रहते हैं। इसके अलावा सैकड़ों वर्ष पूर्व चौकियां स्थित मां शीतला का धाम है जहां दर्शन के बाद ही लोग मिर्जापुर मां विन्ध्याचल का दर्शन करते हैं। जिले की पहचान मूली, मक्का और उच्च शिक्षा के रूप में भी होती है।
यहां 12 मई को वोटिंग है। भाजपा ने जौनपुर से सांसद डॉ. केपी सिंह पर ही भरोसा जताया है। गठबंधन ने यहां पर पूर्व प्रशासनिक अधिकारी बसपा के श्याम सिंह यादव को उतारा है तो कांग्रेस से देवव्रत मिश्रा ताल ठोंक रहे है। बाजी किसके हाथ लगेगी यह तो 23 मई को पता चलेगा। लेकिन मुख्य मुकाबला केपी सिंह श्याम सिंह यादव के बीच है। इससे पहले 2009 के लोकसभा चुनाव में बसपा के धनंजय सिंह ने सपा के पारसनाथ को हराया था। इस सीट से कांग्रेस ने जीत की शुरुआत की थी, लेकिन 1984 के बाद उसे यहां से एक बार भी जीत नहीं मिली है। 1962 में जनसंघ के ब्रह्मजीत भी विजयी रहे हैं।

बीजेपी ने 1989 में राजा यघुवेंद्र दत्ता के रूप में यहां से पहली बार जीत हासिल की थी। हालांकि 1991 में जनता दल ने बीजेपी से यह सीट छीन ली थी। 1996 में बीजेपी ने फिर से इस सीट पर कब्जा जमाया। 1996 से लेकर यहां की लड़ाई द्वीपक्षीय रही है और 4 चुनावों में एक बार बीजेपी तो एक बार सपा ने यह सीट जीता। 2009 में यह सिलसिला बसपा की जीत के बाद टूट गया। 2014 में बीजेपी ने यह सीट फिर से अपने नाम की। बीजेपी यहां से एक बार भी लगातार 2 बार चुनाव नहीं जीत सकी है। बदले राजनीतिक समीकरण में सभी की नजर इस पर रहेगी कि क्या बीजेपी पहली बार लगातार जीत दर्ज कर पाएगी।
बदलापुर विधानसभा सीट पर भाजपा के रमेश चंद्र मिश्रा विधायक हैं। उन्होंने 2017 के चुनाव में बसपा के लालजी यादव को 2.372 मतों के अंतर से हराया था। शाहगंज विधानसभा सीट पर सपा के शैलेंद्र यादव का कब्जा है जिन्होंने सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के राणा अजित प्रताप सिंह को 9,162 मतों के अंतर से हराया था। जौनपुर सदर से भाजपा के गिरीश चंद्र यादव विधायक है। उन्होंने कांग्रेस के नदीम जावेद को 12,284 मतों के अंतर से धूल चटाई थी। मल्हानी विधानसभा सीट से सपा के पारसनाथ यादव विधायक हैं। पारसनाथ ने निषाद पार्टी के धनंजय सिंह को 21,210 मतों के अंतर से हराया था। मुंगरा बादशाहपुर से बसपा की सुषमा पटेल विधायक है। उन्होने बीजेपी की सीमा द्विवेदी को 5,920 मतों के अंतर से हराकर जीत हासिल की थी। अब सपा-बसपा का गठबंधन हो जाने से यहां का मुकाबला रोचक हो गया है। 
2014 के चुनाव में बसपा ही दूसरे नंबर पर रही थी और हार-जीत का अंतर लगभग डेढ़ लाख वोटों का था। सपा के पारसनाथ यादव को एक लाख 80 हजार वोट मिले थे। ऐसी स्थिति में अगर सपा-बसपा के वोट मिल जाते हैं तो गठबंधन के लिए बात बन सकती है। 2014 के लोकसभा चुनाव की बात करें तो बीएसपी के सुभाष पांडेय भाजपा के कृष्ण प्रताप उर्फ केपी सिंह से 1,46,310 वोटों से हार गए थे। 1984 के चुनाव के बाद कांग्रेस यहां से कभी लोकसभा का चुनाव नहीं जीत पाई है। कांग्रेस ने युवा नेता देवव्रत मिश्र को अपना उम्मीदवार बनाया है। देवव्रत मिश्र प्रतापगढ़ के दिग्गज कांग्रेसी पूर्व राज्यसभा सदस्य बाबा मिश्र के बेटे हैं। देवव्रत 2004 में मछलीशहर सीट से चुनाव लड़ चुके हैं।  ऐसे में सभी प्रमुख दलों के प्रत्याशियों को लेकर अगर जातीय मतों पर नजर दौड़ाएं, तो अगड़ी जाति के मतों में बिखराव दिखता है और गठबंधन के मतों में एकजुटता से भाजपा की राह आसान नहीं लगती है।

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