Saturday, 11 May 2019

भोपाल : ‘जुर्म’ पर भारी है ‘चीख’


भोपाल : ‘जुर्मपर भारी हैचीख
भोपाल में राष्ट्रवाद, विकास और राजनीतिक जागिर के बीच जुर्म और चीख चुनावी एजेंडा बन गया है। रामअवतार कहते हैसाध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर पर किया गया कांग्रेसी जुर्म का इस जनता में जनता बदला लेगी। आतंकियों की हिमाकत करने और हिन्दुओं को भगवा आतंकवाद के नाम पर बदनामी अब नहीं सहन होगा। जबकि सलाउद्दीन कहते है अगर दिग्विजय सिंह आतंकी है तो उन्हें छूट क्यों दी जा रही है, जेल में क्यों नहीं डाल दिया जाता। सच तो यह इस धर्म मजहब से इतर इस बार विकास के लिए मतदान होगा। बाजी किसके हाथ लगेगी यह तो 23 मई को पता चलेगा। लेकिन शहीद हमेंत करकरे से लेकर श्रीराम मंदिर पर दिए बयान से भोपाल में सियासी भूचाल चरम पर है। भगवा आतंकवाद पर मुखर होकर अपनी बात रखने वाले दिग्विजय जो साध्वी के सामने मैदान में हैं, उनकी बोलती बंद है
                                                सुरेश गांधी 
फिरहाल, भोपाल की फिजा में सिर्फ और सिर्फ आतंकवाद और भगवा आतंकवाद इस कदर घुल मिल गया है कि इससे इतर कुछ चर्चा ही नहीं हैं। बता दें, तमाम आरोपों से इतर बीजेपी डंके की चोट पर उस साध्वी को पूरे मान-सम्मान के साथ चुनाव मैदान में ले उतारा है जिसे कांग्रेसियों ने भगवा आतंकवाद के नाम अधमरा कर छोड़ दिया था। लेकिन अब सबूतों के अभाव में न्यायालय से क्लीन चिट पा चुकी प्रज्ञा ठाकुर अपने उपर हुए जुर्म का बदला लेना चाहती है। वो कांग्रेस उम्मींदवार दिग्विजय सिंह को हराने के लिए हर हथकंडे अपना रही है। जबकि मुस्लिम वोटर्स खुलकर कांग्रेस के पक्ष में होते दिखाई देने लगे है। वहीं हिंदुओं में बीजेपी की साध्वी के लिए ध्रुवीकरण होता दिख रहा है। दरअसल, कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी सिरदर्द यही है। यहां का समीकरण ऐसा है जिसने 30 साल से इस सीट को बीजेपी के लिए सबसे सुरक्षित बना रखा है।
भोपाल में कुल 21 लाख वोटर्स हैं। इसमें मुस्लिम वोटर्स 5 लाख हैं, ओबीसी वोटर्स 4 लाख 75 हजार, ब्राह्मण वोटर्स 4 लाख, राजपूत वोटर्स 1 लाख 50 हजार, वैश्य वोटर्स 1 लाख 25 हजार और अन्य वोटर्स 1 लाख हैं। मतलब भोपाल में मुसलमान निर्णायक तो हैं लेकिन तब जब उनके साथ ओबीसी का वोट मिले। इसी ओबीसी वोटर्स को अपने पाले में लाने के लिए बीजेपी ने एड़ी से चोटी का जोर लगा दिया है। इसके लिए चुनाव की रणनीतिक कमान अब संघ के वरिष्ठ नेता भारत रक्षा मंच के संयोजक सूर्यकांत केलकर से लेकर खुद शिवराज सिंह चौहान ने संभाल ली है। दोनों नेता भोपाल में डेरा डाल रखा है। इसके अलावा जो सवर्ण वोटर्स 6 लाख हैं वो बीजेपी के पाले में चला जाता है लेकिन इस बार दोनों उम्मींदवारों के सवर्ण होने से बंटता दिखाई दे रहा है। भोपाल का ये मूड दोनों तरफ के लिए चुनौती है।
कांग्रेस के लिए इस धर्मयुद्ध के नारे में ध्रुवीकरण को भोपाल में ही रोकने की चुनौती है तो बीजेपी सारा दिमाग इस पर खपा रही है कि इस ध्रुवीकरण को भोपाल से बाहर कैसे ले जाया जाए? फिलहाल भोपाल में भगवा की जय होगी या फिर से दिग्विजय होंगे ये 12 मई को वोटिंग और 23 मई को नतीजे के बाद पता चलेगा। लेकिन साध्वी प्रज्ञा के उपर हुए कांग्रेसी जुर्म को लेकर जनता में जबरदस्त आक्रोश देखा जा रहा है। यही वजह है कि अबकी बार पूरे देश की नज़रें मध्य प्रदेश के भोपाल पर टिक गई हैं। जहां से बीजेपी की उम्मीदवार साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने कांग्रेस के कद्दावर नेता दिग्विजय सिंह के खिलाफ ताल ठोक दी है। बीजेपी ने जिस दिन प्रज्ञा ठाकुर को भोपाल के मैदान--जंग में उतारा उसी दिन से ये कहा जा रहा है कि 2019 के चुनाव में हिंदुत्व की नई प्रयोगशाला भोपाल बनने वाला है क्योंकि मुकाबला भगवा ब्रिगेड की सबसे तीखी ज़ुबानों में शुमार साध्वी प्रज्ञा और कभी अल्पसंख्यकों के सबसे बड़े पैरोकार रहे कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह के बीच है।
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल की स्थापना 11वीं शताब्दी में परमार राजा भोज ने की थी। इसे नवाबों के शहर और झीलों की नगरी के नाम से भी जाना जाता है। सर्राफा चौक, मोती मस्जिद, ताज उल मस्जिद, गौहर महल और एक से बढ़कर एक स्थापत्य के नमूने इस शहर की समृद्ध विरासत और संस्कृति की शानदार मिसाल हैं। पर्यटन की दृष्टि से भी भोपाल का विशेष महत्व है। 2011 की जनगणना के अनुसार भोपाल की जनसंख्या 18 लाख है। हालांकि एक अनुमान के मुताबिक भोपाल की जनसंख्या 23 लाख से ज्यादा है। अर्थव्यवस्था के लिहाज से भोपाल में भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड (भेल) का एक कारखाना है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र ने यहां अपना दूसरामास्टर कंट्रोल फ़ैसिलिटीभी स्थापित किया है। भोपाल में भारतीय वन प्रबंधन संस्थान भी है, जो भारत में वन प्रबंधन से जुड़ा एकमात्र संस्थान है। पर्यटन की दृष्टि से भी भोपाल का विशेष महत्व है। यह भारत के पसंदीदा पर्यटन स्थलों में से एक है। लोकसभा चुनाव 2014 के मुताबिक यहां मतदाताओं की कुल संख्या 19 लाख 56 हजार 936 है, जिसमें 10 लाख 39 हजार 4 पुरुष और 9 लाख 17 हजार 932 महिलाएं हैं। भोपाल भारत के मध्य भाग में स्थित है और यह विंध्य पर्वत श्रृंखला के पूर्व में है। यह एक पहाड़ी इलाके पर स्थित है, किंतु इसका तापमान अधिकतर गर्म रहता है। इसका भू-भाग ऊंचा-नीचा एवं इसके दायरे में कई छोटे पहाड़ हैं। भोपाल नगर निगम की सीमा 289 वर्ग किलोमीटर है।
2014 में भाजपा नेता आलोक संजर 16वीं लोकसभा के सांसद हैं। 1952 से 1977 तक यहां कांग्रेस ने लगातार जीत हासिल की। 1989 से यहां से भाजपा लगातार चुनाव जीत रही है। लोकसभा चुनाव के आंकड़ों पर नजर डालें तो 1957 में यहां से कांग्रेस की मैमूना सुल्तान सांसद चुनी गईं। उन्हें 1962 में भी कांग्रेस के उम्मीदवार के रूप में जीत मिली। इसके बाद 1967 में यहां से भारतीय जनसंघ के जेआर जोशी जीते लेकिन 1971 में शंकरदयाल शर्मा ने यह सीट फिर कांग्रेस की झोली में डाल दी। कांग्रेस विरोधी लहर के चलते 1977 में जनता दल के आरिफ बेग यहां से जीते तो 1980 में शंकरदयाल शर्मा दो बार लोकसभा पहुंचे। वर्ष 1984 में कांग्रेस के केएन प्रधान सांसद बने। इस सीट पर 1989 से भाजपा का कब्जा है। वर्ष 1989 से 1999 तक चार बार यहां से भाजपा के सुशीलचंद्र वर्मा सांसद रहे। साल 1999 में यहां से भाजपा की उमा भारती सांसद चुनी गईं। वर्ष 2004 में भाजपा ने यहां से कैलाश जोशी पर दांव खेला, जो 2014 तक भोपाल के सांसद रहे।
भोपाल मध्य प्रदेश के महत्वपूर्ण लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों में से एक है। मध्य प्रदेश की राजधानी होने के कारण यह शहर बेहद खास है। इस क्षेत्र को झीलों की नगरी भी कहा जाता है। 1984 में हुआ भोपाल गैस कांड यहां का सबसे दुभाग्य पूर्ण घटनाक्रम है। गैस रिसाव से लगभग बीस हजार लोग मारे गये थे। भोपाल की स्थापना परमार राजा भोज ने की थी। इस क्षेत्र का पुराना नाम भोजपाल था। यहां पर अफगान सिपाही दोस्त मोहम्मद का शासन रहा, इसलिये इसे नवाबी शहर भी कहा जाता है। आज भी यहां मुगल संस्कृति देखी जा सकती है। 2014 के लोकसभा चुनाव में इस सीट से भारतीय जनता पार्टी के आलोक संजार ने 7 लाख 14 हजार 178 वोट हासिल किये थे। उन्होंने अपने निकटतक प्रतिद्वंदी प्रकाश मांगी लाल शर्मा को 3 लाख 70 हजार 696 वोटों के भारी अंतर से हराकर जीत दर्ज की थी। इन्हें कुल 3 लाख 43 हजार 482 वोट मिले थे। आम आदमी पार्टी के रचना ढींगरा 21 हजार 298 वोट पाकर तीसरे तो बहुजन समाज पार्टी के सुनील बोरसे 10 हजार 152 वोट पाकर चौथें स्थान पर रहे थे।
गौरतलब है कि मालेगांव महाराष्ट्र का वो शहर है जो पिछले 11 बरस से रह-रहकर सुर्खियों में आता है। सितंबर 2008 में इस शहर ने धमाकों का वो जख्म झेला था जिसमें 6 लोगों की जान चली गई थी और इन्हीं धमाकों के बाद पहली बार हिंदू आतंकवाद शब्द सामने आया था। साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर इसमें गिरफ्तार हुईं थीं। अब 11 बरस बाद कोर्ट के फैसले के बाद हिंदू आतंकवाद का मुद्दा फिर से उठा है। बीजेपी ने साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को भोपाल से उम्मीदवार उन्हीं के सामने बनाया है, जिस दिग्विजय सिंह ने भगवा आतंकवाद का नाम दिया था।  मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे दिग्विजय सिंह आरएसएस और बीजेपी पर तीखे हमले करने के लिए जाने जाते रहे हैं। बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने कहा भी है जो हिंदू आतंकवाद शब्द के जन्मदाता हैं हमने उन्हीं के खिलाफ साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को उतारा है।
दिग्विजय सिंह की कभी कांग्रेस में तूती बोलती थी वह 1993 से लेकर 2003 तक लगातार मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। उससे पहले बीजेपी के सुंदरलाल पटवा मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। दिग्विजय सिंह ने मध्य प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रहते हुए पूरे प्रदेश की पदयात्रा की थी और बीजेपी को सत्ता से बेदखल करने में कामयाब रहे थे। 10 साल सीएम रहने के बाद साध्वी उमा भारती से हार गए थे। भोपाल से साध्वी प्रज्ञा के उतरने के बाद यह कयास लगाए जाने लगे हैं कि क्या एक बार फिर साध्वी के हाथों ही दिग्विजय की हार होगी या इस बार वह अपना वजूद बचाने में कामयाब होंगे? साध्वी प्रज्ञा ठाकुर भी उसी तरह की फायर ब्रांड नेता मानी जाती हैं जैसी उमा भारती मानी जाती रही हैं। उमा भारती भी भगवा वस्त्र धारण करती हैं और साध्वी प्रज्ञा ठाकुर का पहनावा भी ठीक वैसा ही है। कटे हुए बाल और, भगवा वस्त्र और गले में रूद्राक्ष की माला उनकी पहचान है।

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