Saturday, 18 May 2019

वाराणसी : ‘चर्चा’ सिर्फ ‘जीत’ के अंतर पर!


वाराणसी : ‘चर्चासिर्फजीतके अंतर पर!
यों तो लोकसभा की हर सीट का महत्व है, पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी खासा मायने रखती है। क्योंकि मोदी एक बार फिर से चुनाव मैदान में है। उनका मुकाबला अस्तित्व बचाने खातिर साथ आएं बुआ-बबुआ के गठबंधन कांग्रेस से है। यहां मोदी के खिलाफ कांग्रेस के अजय राय सपा के शालिनी यादव से है। हालांकि अजय राय 2014 में तिसरे नंबर पर थे। मतलब साफ है वोटों के बिखराव के बीच विपक्षी लोकसभा में मोदी को टक्कर दे पायेंगी या नहीं ये तो 23 मई को पता चलेगा, लेकिन बाजी किसके हाथ लगेगी इसकी बहस तेज है। लंका के दिवाकर सिंह कहते है बात जीत का नहीं, जीत के अंतर का है। यहां मुद्दा इस बार भाजपा का हैट्रिक लगेगा या विरोधियों के खाता खुलने की.... 
सुरेश गांधी
बेशक, धर्म एवं आस्था की नगरी और पर्यटन केन्द्र के रुप में दुनिया भर में अपनी पहचान रखता है। या यूं कहे वाराणसी शाश्वत शहर की तरह है, जो कई कालखंडों के इतिहास को समेटे हुए है। यह शहर, सिर्फ इमारतों का शहर नहीं है बल्कि यहां के जर्रे जर्रे से भारतीय संस्कृति अपनी गाथा का बयान करती है। यही वजह है कि इस लोकसभा चुनाव में चाहे विपक्ष हो या भाजपा दोनों के लिए प्रतिष्ठा की सीट बन गयी है। हर कोई अपने दल की जीत का तो दावा कर रहा है लेकिन बात जीत के अंतर को लेकर अटक जा रही है। जिसे देखों वो चुनावी समर में बात सिर्फ और सिर्फ स्थानीय मु्द्दों के बजाय जीत हार के अंतर को लेकर कर रहा है। मोदी समर्थकों का हौसला उस वक्त कुछ ज्यादा ही बढ़ गया जब मोदी के रोड शो में पूरा बनारस भगवामय हो गया। हर कोई मोदी-मोदी के नारे लगाते दिखा। तकरीबन पांच किमी के रोड शो में दौरान पार्टी नेताओं से लेकर कार्यकर्ताओं और समर्थकों का सैलाब उमड़ पड़ा। रोड शो के रुप में भाजपा का शक्ति प्रदर्शन मां गंगा के घाट पर भक्ति के रंग में परिवर्तित हो गया।
जबकि बेरोजगारी, अतिक्रमण, जाम, कानून व्यस्था, स्वच्छ पानी, गंगा सफाई, जानलेवा हो चुका कैंट का अधूरा ओवरब्रिज जैसे तमाम ऐसे मुद्दे है जो आम जनजीवन को प्रभावित करते है। विपक्ष के सिवाय कोई भी समस्याओं का जिक्र तक नहीं कर रहा है। बड़ी बाजार निवासी शैलेन्द्र जायसवाल कहते है विरोधियों के अलावा मोदी की जीत का किसी को शंका नहीं है। उन्होंने चुनावी चर्चा में कश्मीर तक का जिक्र करते हुए कहते है पाकिस्तान को ऐसा जवाब पहली बार दिया गया। अगर केन्द्र में कोई दुसरा गया तो देश कमजोर हो जायेगा। पूछे जाने पर सिर्फ एक ही जवाब है विकास चौतरफा हो रहा है। दुबारा मोदी प्रधानमंत्री बने तो बनारस का कयापलट हो जायेगा। जहां तक मोदी का सवाल है तो वो पीएम रहते 19 बार काशी आएं और 42 हजार को करोड़ से भी अधिक की योजनाओं की आधारशिला एवं शुरुवात की। खुद पीएम नरेंद्र मोदी कहते हैं कि इस शहर से उनका सिर्फ बैलट से रिश्ता नहीं है, बल्कि वो भावनात्मक तौर पर इस शहर से जुड़े हैं। खाटी बनारसी रामकुमार यादव तो यहां तक कहते हैऐसा कौन सख्श या यूं कहे नेता है जो काशीवासियों से सियासी नहीं बल्कि आत्मीय रिश्ते रखता है। छठ पूजा हो या दीपावली या फिर नया साल, मोदी ने हर अवसर पर वाराणसी को अपने जेहन में रखा। 17 सितंबर को वह अपना 68वां जन्मदिन मनाने के लिए अपने संसदीय क्षेत्र के बच्चों के बीच आए। शायद इसीलिए वाराणसी के लोगनमो-नमोकरते हुए शहर में बीते पांच दशक और पांच साल में हुए विकास कार्यों के अंतर की चर्चा करते हैं। तीन दिवसीय प्रवासी भारतीय सम्मेलन में सौ से अधिक देशों के छह हजार से अधिक प्रवासी आए और काशी की मेहमाननवाजी के साथ भारत की खुशनुमा यादें लेकर गए। यह सब मोदी के चलते ही संभव हो पाया।
20वां दौरा के रुप में नामांकन करने आएं पीएम मोदी के रोड शो में 42 डिग्री की चिलचिलाती धूप में लाखों काशीवासियों ने सड़के से लेकर गली-मुहल्ले और दशाश्वमेध घाट तक 5 किमी के रास्ते में इतना स्वागत किया कि काशी केशरिया हो गयी। पीएम के रोड शो के रुट को भव्य लघु भारत का रुप देकर मोदी ने एक बड़ी लकीर खींची है जिसकी शायद ही कोई पुनरावृत्ति कर सके। अपनी काशी में मोदी को नजदीक से निहारने के लिए घंटो इंतजार के बाद हर ओर उल्लास और कार्यकर्ताओं समर्थकों के उत्साह ने बता दिया कि 5 साल तक मोदी ने जिस जिम्मेदारी, भावनात्मक लगाव और तत्परता से काशी की कायाकल्प करने की कोशिश की है, वे उसे भूले नहीं है। राष्ट्रवाद और विकास के मुद्दे पर चुनाव लड़ रही भाजपा बनारस में हुए बदलाव को अपनी ताकत बता रही है। जबकि कांग्रेस और सपा-बसपा गठबंधन बेरोजगारी, धरोहरों के संरक्षण के नाम पर मनमानी, काम के नाम पर दिखावा, शहर में बुनियादी सुविधाओं के अभाव और वादे पूरे नहीं करने को मुद्दा बनाकर मोदी को घेरने में लगे हुए हैं।
सुधीर प्रजापति कहते ईहां ब्रह्मा भी जाएं, कोई फर्क नहीं। सब किनारे लग जइहन। जीएसटी या नोटबंदी से घाटा नहीं हुआ। जैसे कल थे, वैसे आज हैं। नोटबंदी और जीएसटी से शुरू में केवल बनारस नहीं, पूरा देश परेशान हुआ। समय के साथ परेशानी दूर हो गई। मेरा वोट तो देश के नाम ही होगा। गोपाल यादव कहते है हृदय योजना ने बनारस के हृदय को बदल दिया। ऐतिहासिक धरोहरों का संरक्षण, प्रकाश, पेयजल अन्य सहूलियतें विकसित हुई हैं। पांच साल में दुनिया के मानचित्र पर काशी की अलग पहचान बनी है। धरोहरों के संरक्षण का काम शुरू होने, रामनगर की रामलीला, काशी की ठुमरी, दादरा, चैती के यूनेस्को की सूची में शामिल होने से दुनियाभर में बनारस की चर्चा है। इसका फायदा पर्यटन को मिला है। कपसेठी के रामप्यारी कहती हैं आवास तो नहीं मिला मगर प्रधान जी ने भरोसा दिया है। कमला कहते हैं, ‘हमें सिलेंडर मिला है।जबकि नम्रता टोकती हैं, ‘तीन बार फार्म भरा पर सिलेंडर नहीं मिला। पानी भरने के लिए दूर जाना पड़ता है। गीता देवी सामने एक कमरे का मकान दिखाते हुए कहती हैं, ‘हमरे छत हो गईल। जे हमार मकान बनवइलस हय बार ओनही के वोट देब।वहीं राजभर समाज के युवकों ने कहा, ‘ईहां विकास करने वाले दल की बात करिए। पूरा गांव उसके साथ है।रोहनियां विधानसभा क्षेत्र के रामकुमार पटेल ने कहा, ‘कांग्रेस के पास संगठन नहीं बचा। गठबंधन को जाति के नाम पर वोट मिलेगा। हरहुआ के किसान प्रमोद दुबे ने कहा, ‘पांच साल में किसानों की दशा नहीं सुधरी। किसानों को कुछ पैसे देने से ज्यादा भला नहीं होने वाला। परिणाम सब जानते हैं। मोदी ही जीतेंगे। भारी अंतर से जीतेंगे। विपक्ष तुष्टीकरण को प्रश्रय देता है। वंदे मातरम तक को मुद्दा बना देता है।
बता दें, 2014 में प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने भारी मतों से जीत दर्ज कराई थी। उन्होंने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल को 3,71,784 वोटों के अंतर से हराया था। मोदी को कुल 5,81,022 वोट मिले, जबकि दूसरे स्थान पर अरविंद केजरीवाल को 2,09,238 मत मिले। कांग्रेस के अजय राय 75,614 वोटों के साथ तीसरे स्थान पर रहे। हालांकि वो ज़मानत नहीं बचा सके। बसपा और सपा के उम्मीदवार भी अपनी ज़मानत नहीं बचा सके। बसपा के विजय प्रकाश जायसवाल चौथे स्थान पर रहे। उन्हें 60,579 मत मिले। सपा के कैलाश चौरसिया 45,291 मतों के साथ पांचवें स्थान पर रहे। वैसे भी वाराणसी लोकसभा सीट भाजपा परंपरागत रूप से जीतती रही है। पिछले छह लोकसभा चुनावों में पांच में भाजपा ने यहां से जीत हासिल की थी। मोदी का दावा है कि इस शहर के मुसलमानों को भी उनसे प्यार हो जाएगा। खुद को मुसलमानों का रहनुमा बताने के तमाम दावे पार्टी की ओर से किए जा रहे हैं। मदन मोहन दुबे की मानें तो अब सपा बसपा मुसलमानों को मोदी का डर दिखा कर वोट नहीं हासिल कर सकती। क्योंकि बगैर किसी के भेदभाव के सबका काम हुआ है। मोदी के खिलाफ सपा-बसपा गठबंधन कोई मजबूत कैंडिडेट के बजाय कमजोर प्रत्याशी को उतारा है।
शालिनी दलित, मुस्लिम और यादव मतों के सहारे मोदी को मात देने की ख्वाब संजोएं है तो अजय राय भी मुस्लिम और भूमिहार मतों के सहारे मोदी को टक्कर देना चाहते हैं। जहां तक जाति समीकरणों का सवाल है तो लोकसभा में पांच विधानसभाएं हैं। जिनमें रोहनिया और सेवापुरी विधानसभा में पटेल मतदाता अच्छी खासी संख्या में है। यदि महागठबंधन की तरफ से किसी तेजतर्रार पटेल नेता को उम्मीदवार बनाया जाता तो वाराणसी में मोदी की राह मुश्किल हो जाती। इसके अलावा वाराणसी में अच्छी खासी संख्या मुसलमानों की भी है। साल 2009 के लोकसभा चुनाव में यहां से बसपा के टिकट पर मुस्लिम समुदाय के प्रत्याशी मुख्तार अंसारी चुनाव लड़े थे और 16 हजार के मामूली अंतर से भाजपा के कद्दावर नेता मुरली मनोहर जोशी से चुनाव हारे थे। मतलब साफ है यदि मुस्लिम, यादव, पटेल और दलित वोटर मिल जाएं तो मोदी के लिए बनारसी पान का जायका खराब हो सकता है। इसके अलावा स्थानीय निषाद वोटर भी भाजपा से मछली पकड़ने में सरकारी दखल गंगा में बड़ी-बड़ी नौकाएं चलवाने से मछुआरे नाराज हैं। सौंदर्यीकरण के नाम पर शहर के कई मंदिरों को जमींदोज किए जाने से कुछ सवर्ण और साधु संत भी नाराज है। यानी अच्छे खासे लोग बीजेपी से नाराज हैं। यह अलग बात है कि कांग्रेस के अजय राय मुस्लिम सहित तमाम जातियों में अपनी अच्छी पकड़ रखते हैं।
फिरहाल, भाजपा के सामने अपने इस किले को बचाएं रखने की बड़ी सियासी चुनौती है। यही वजह है कि एक एक वोट की इस लड़ाई में बीजेपी ने अपनी पूरी ताकत झोक रखी हैं। नामांकन से पहले मोदी के रोड शो में उमड़ा जनसैलाब बता दिया कि वे यहां से भारी वोटों से जीतेंगे। मोदी 26 अप्रैल को नामांकन करेंगे। मोदी ने इस रोड शो के जरिए सिर्फ बीजेपी के चुनावी रथ को और रफ्तार दी, बल्कि कार्यकर्ताओं में भी उत्साह भरा है। 2011 की जनगणना के मुताबिक 36.8 लाख मतदाता है। जिसमें 19.2 लाख (52 प्रतिशत) पुरुष और 17.5 लाख (48 प्रतिशत) महिलाएं है। इनमें से 86 प्रतिशत आबादी सामान्य वर्ग की है, जबकि 13 प्रतिशत अनुसूचित जाति की है। महज 1 प्रतिशत आबादी अनुसूचित जनजाति की है। इसमें 57 फीसदी यानी 20.8 लाख आबादी ग्रामीण इलाकों में और 43 फीसदी यानी 16 लाख आबादी शहरी इलाकों में रहती है। धर्म के आधार पर वाराणसी में 85 फीसदी आबादी हिंदुओं की है जबकि 15 फीसदी मुस्लिम समाज के लोग रहते हैं। यहां के लिंगानुपात का अनुपात देखा जाए तो प्रति हजार पुरुषों पर 913 हिंदू और 915 मुसलमान महिलाएं रहती हैं। वाराणसी का साक्षरता दर 76 फीसदी है। जिसमें 84 फीसदी पुरुषों की आबादी तो 67 फीसदी महिलाओं की आबादी साक्षर है।
काम बोलता है
बाबतपुर तक 17 किलोमीटर लंबी फोरलेन सड़क।
250 बिस्तरों का कैंसर संस्थान।
400 बेड का सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल।
ईएसआई अस्पताल का निर्माण शुरू।
हृदय योजना में 89 करोड़ से ऐतिहासिक स्थलों का संरक्षण शुरू। जापान के सहयोग से कन्वेंशन सेंटर का निर्माण शुरू।
18 हजार हेरिटेज स्ट्रीट लाइट लगीं।
572 करोड़ से बिजली के खुले तार भूमिगत हुए।
वाराणसी-हल्दिया गंगा जलपरिवहन परियोजना शुरू।
रामनगर में मल्टीमॉडल टर्मिनल का निर्माण।
मंडुआडीह रेलवे स्टेशन का सौंदर्यीकरण, मॉडल स्टेशन बना।
गंगा घाटों की मरम्मत-सफाई।
सीवर लाइन बिछी, तीन सीवर ट्रीटमेंट प्लांट बने।
सारनाथ में लाइट-एण्ड-साउंड शो, गंगा में लेजर शो की पहल।
बनारस की पहचान से जुड़ी 10 चीजों को जीआई टैग मिला।
11 हजार करोड़ रुपए से वाराणसी से 4 फोरलेन का काम शुरू।.
7 बार कांग्रेस, 6 बार बीजेपी 
16 लोकसभा चुनावों में बनारस में कांग्रेस सात बार, भाजपा छह बार, जनता दल एक बार, माकपा एक बार और भारतीय लोकदल एक बार जीत दर्ज करा चुके हैं। वाराणसी लोकसभा सीट पूर्वांचल की सबसे प्रमुख सीटों में मानी जाती रही है। भाजपा यहां छह बार जीत दर्ज कर चुकी है। भाजपा के श्रीश चंद्र दीक्षित ने सबसे पहले 1991 में जीत कर भाजपा का खाता खोला। इसके बाद तीन बार शंकर प्रसाद जायसवाल और एक बार मुरली मनोहर जोशी जीत दर्ज कर संसद पहुंचे। वर्ष 2014 के चुनाव में नरेंद्र मोदी सांसद बने और प्रधानमंत्री बने। इस बार भी वह मैदान में हैं। देश ही नहीं दुनियां भर की निगाहें इस सीट पर लगी हुई हैं।
जमानत जब्त हो गयी केजरीवाल की
इस बार फिर वह बनारस से प्रत्याशी हैं। ऐसे में सबकी निगाहें बनारस पर हैं। यह जानने के लिए नहीं कि कौन जीतेगा, बल्कि यह जानने के लिए कि इस बार जीत का अंतर कितना रहेगा। 2014 के चुनाव में बनारस में मोदी के खिलाफ अरविंद केजरीवाल समेत 41 उम्मीदवार थे। इस बार 25 प्रत्याशी मैदान में हैं। कांग्रेस से अजय राय और सपा से शालिनी यादव तो हैं ही। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह, केंद्रीय मंत्री जेपी नड्डा, पीयूष गोयल और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ समेत भाजपा और संघ के दिग्गज यहां लगातार रहे हैं। मोदी मतदान से पहले एक-दो दिन यहां फिर आएंगे।
चहक उठा नागेपुर जयापुर
सांसद आदर्श गांव जयापुर में पहले स्वास्थ्य सेवा के नाम पर बस टीकाकरण होता था। अब वहां प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र खुल गया है। हालांकि इसमें सेवाएं शुरू नहीं हो पाई हैं। एक कंपनी ने 25-25 किलोवाट के दो सोलर पैनल लगा दिए हैं। इससे घरों में एलईडी के लिए कनेक्शन दिया गया है। मुसहर बस्ती में पक्के घर बना दिए गए हैं। कुछ बायो टॉयलेट भी बनवाए गए, पर अब वे खराब हो चुके हैं। जयापुर के दिवाकर यादव बताते हैं कि गोद लेने से गांव का विकास हुआ, पर कई काम बाकी हैं। तीन साल पहले गोद लिए गए गांव नागेपुर (मिर्जामुराद) में बच्चों के लिए नंद घर बना। हालांकि अभी यहां बालिका स्कूल और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बनने का इंतजार है। ककरहिया गांव को 2017 में प्रधानमंत्री ने गोद लिया। इसके बाद यहां करीब सवा करोड़ रुपये खर्च कर पांच सड़कें बनीं। पानी की टंकी बनकर तैयार है। लगभग पांच हजार की आबादी वाला सांसद आदर्श गांव डोमरी जिला मुख्यालय से महज 11 किलोमीटर दूर है। यहां काशी दर्शन के लिए हेलीपैड बन रहा है।
एक नजर प्रत्याशियों पर
शालिनी यादव, सपा (गठबंधन)- शालिनी यादव पूर्वांचल के कद्दावर नेता और पूर्व मंत्री श्यामलाल यादव की बहू हैं।
अजय राय (कांग्रेस)- पहले भाजपा विधायक रहे अजय राय पिछले चुनाव से पहले कांग्रेस में चले गए। पिछली बार तीसरे स्थान पर रहे।
पिछला परिणाम
45,291 सपा - कैलाश चौरसिया.
5,81,022 भाजपा - नरेन्द्र मोदी
75,614 कांग्रेस - अजय राय
60,579 बसपा - विजय जायसवाल
2,09,238  आप - अरविंद केजरीवाल
पांच विधानसभा सीटें
रोहनियां, वाराणसी कैंट, वाराणसी उत्तर, वाराणसी दक्षिण, सेवापुरी

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