चंद्रशेखर की ‘विरासत’
संभालने को बेताब ‘चेला’
आजादी की लड़ाई
में ब्रतानियां हुकूमत
की छक्के छुड़ा
देने वाला बलिया
का नाम लेते
ही हर शख्स
के मानस पटल
पर मंगल पांडेय
की बलिदानी गाथा
आखों के सामने
घूमने लगता है।
ठीक वैसे ही
बात जब सियासत
की छिड़ती है
तो चंद्रशेखर की
चर्चा किए बगैर
पूरी ही नहीं
होती। हर तबके
के दिलों पर
राज करने वाले
चंद्रशेखर कुल 8 बार यहां
से सांसद चुने
गए। जबकि दो
बार उनकी विरासत
संभाल रहे उन्हीं
के बेटे नीरज
शेखर इस सीट
से 2007 और 2009 में सांसद
रह चुके हैं।
लेकिन इस बार
समाजवादी कुनबा या यूं
कहे बुआ बबुआ
गठबंधन ने ठेंगा
दिखा दिया है।
उनकी जगह सपा
ने ब्राह्मण कार्ड
खेलते हुए सनातन
पांडेय को मैदान
में उतारा है।
उनका मुकाबला भाजपा
से भदोही सांसद
रहे वीरेन्द्र सिंह
मस्त से है।
बाजी किसके हाथ
लगेगी ये तो
23 मई को पता
चलेगा। लेकिन जातीय चकरघिन्नी
के बीच चंद्रशेखर
की सियासी विरासत
को आगे बढ़ाने
को लेकर जंग
छिड़ी है। कहते
है जब चंद्रशेखर
थे तो वीरेन्द्र
सिंह की तूती
बोलती थी। उनके
साथ वे साएं
की तरह थे।
लेकिन विरासत की
जंग एवं विचारधारा
उलट होने से
मस्त ने अपनी
सियासी जमीन भदोही
में बनाई और
तीन बार भाजपा
से सांसद रहे।
चंद्रशेखर के करीबी
रहे सुलेमान कहते
है अगर कोई
बड़ा उलटफेर व
भीतरघात नहीं हुआ
तो एकबार फिर
उनका बेटा ना
सही चेला जरुर
विरासत संभालेगा
सुरेश गांधी
जहां तक
विकास का सवाल
है तो बलिया
का आज भी
समस्याओं से पीछा
नहीं छूटा है।
कहीं सड़के नदारद
है तो कहीं
उबड़-खाबड़। मेडिकल
व इंजिनियरिंग काजेल
तो दूर एक
अदद विश्वविद्यालय भी
नहीं है, जहां
इंटरमीडिएट उर्त्तीण करने के
बाद युवा उच्चशिक्षा
हासिल कर सके।
इसके लिए उन्हें
बनारस इलाहाबाद दिल्ली
तक जाना पड़ता
है। यही वजह
है कि बलिया
के युवा ही
नहीं अब हर
तबका विकास चाहता
है। लेकिन सियासत
उनके मंसूबो पर
पानी फेर रही
है। चाहकर भी
बलियावासी जातीय बंधन से
आजाद नहीं हो
पा रहे है।
वक्त जब चुनाव
का है तो
पार्टियां एकबार फिर जातियों
को ही केन्द्र
में रखकर उम्मींदवार
मैदान में उतारा
है। मोहम्मदाबाद के
अमजद रिजवी का
कहना है कि
भाजपा के कामों
की वजह से
मुस्लिम समाज से
भी कुछ लोग
उन्हें वोट कर
सकते हैं। लेकिन
विपक्ष के जातीय
समीकरण को देखने
के बाद फिलहाल
आप नतीजे के
बारे में कुछ
नहीं कह सकते।
ऑटो चालक मनोज
राम कहते हैं
कि रेलवे एवं
सड़कों का विकास
जरूर हुआ है,
लेकिन रोजगार को
लेकर कुछ नहीं
किया गया। मेरे
हिसाब से यहां
विकास मुद्दा नहीं
रहेगा। लोग जाति
के आधार पर
वोट करेंगे। नसीम
खान कहते हैं,
‘हम विकास चाहते
हैं, मंदिर-मस्जिद
की बातें नहीं।
जति-धर्म में
बांट कर ध्यान
भटकाने की कोशिश
हो रही है।’
फेफना के अकरम,
फजुल्लाह, सादिक, इब्राहिम, मो.
जगदैल और हामिद
कहते हैं-हमें
देश विरोधी कह
कर बदनाम किया
जाता है। हमारा
गांव देखिए, हिन्दू-मुस्लिम सब साथ
रहते हैं। मिलजुल
कर त्योहार मनाते
हैं। इस समूह
को केंद्र सरकार
की तीन बातें
सबसे खराब लगती
हैं। नसीम कहते
हैं-भाजपा सरकार
काम से ज्यादा
काम के प्रचार
पर लगी रही।
विकास उन्हीं इलाकों
में किया जहां
उन्हें वोट मिले।
अकरम और सादिक
इसमें जोड़ते हैं-
भाजपा सरकार मुसलमानों
के धार्मिक मामलों
में हस्तक्षेप कर
रही है। इन
नौजवानों को कांग्रेस
से बहुत उम्मीद
नहीं है। गरीबों
को 72 हजार रुपये
देने वाली ‘न्याय’ योजना को वे
कोरी बयानबाजी बताते
हैं। इन सभी
को गठबंधन पर
भरोसा है।
सादिक
और हामिद कहते
हैं- इस सरकार
में खाद की
बोरी में वजन
कम कर दिया
गया। खाद की
कीमत भी बढ़ा
दी गई। कांग्रेस
से उम्मीद बेमानी
है। हमारा भला
गठबंधन सरकार में ही
हो सकता है।
इसलिए हम उसके
साथ हैं। यही
भाजपा को हराने
में सक्षम है।
बैरिया के सुधाकर
यादव कहते है
विधवा, वृद्धा पेंशन के
लिए प्रदेश में
भाजपा सरकार बनने
के बाद से
परेशानी बढ़ी। हालांकि
किसान सम्मान निधि
से किसानों को
पूरा लाभ मिला
है। चुनाव पर
इसका असर भी
पड़ेगा, लेकिन वे गठबंधन
का साथ देंगे।
क्योंकि भाजपा सरकार में
बेरोजगारी बढ़ी है।
नेशनल हाईवे तो
बन रहे हैं
लेकिन गांव की
सड़कों को कोई
नहीं पूछ रहा
है। भ्रष्टाचार के
खात्मे का ढिंढोरा
पीटा गया पर
यह कम नहीं
हुआ। गरीबों का
शोषण बढ़ गया
है। उन्हें कांग्रेस
की न्याय योजना
जुमलेबाजी लगती है।
जहूराबाद के प्रहलाद
और जगदंबा कहते
हैं-चुनाव बाद
कांग्रेस खुद ही
इसे भुला देगी।
तरक्की से सुरक्षा
तक भाजपा ने
सब किया है।
यहां सैकड़ों प्रधानमंत्री
आवास और टॉयलेट
बने है। बड़ी
संख्यां में लोगों
को उज्ज्वला गैस
कनेक्शन और सौभाग्य
बिजली कनेक्शन दिए
गए। गांव के
सैकड़ों लोगों तक किसान
सम्मान निधि पहुंची
है। बलिया नगर
के अनिल, संतोष,
प्रवीण, सकलाज, रामप्रीत, उमेश,
भगेदू, और कलवारी
कहते हैं- मोदी
और योगी की
सरकारों ने शानदार
काम किया। खेती
किसानी के लिए
पैसा मिल रहा
है। राशन घोटाला
रुका है। .सब्सिडी
भी खाते में
सीधे मिल रही
है। यहां नौजवान
मोदी को त्वरित
फैसला लेने और
पाकिस्तान को करारा
जवाब देने वाला
नेता मानते हैं।
सर्जिकल और एयर
स्ट्राइक को नए
भारत की पहचान
करार देते हैं।.देवेन्द्र सिंह कहते
है नीरज शेखर
को टिकट मिलना
चाहिए था। नीरज
शेखर नहीं तो
क्या उनको पत्नी
को टिकट देना
चाहिए था। नीरज
शेखर के नहीं
लड़ने से कहीं
न कहीं इसका
फायदा बीजेपी को
होता दिख रहा
है।
यह अलग
बात है कि
वीरेंद्र सिंह मस्त
एक बार पहले
भी बलिया से
चुनाव लड़ चुके
हैं और उन्हें
करारी हार का
सामना करना पड़ा
था। वीरेंद्र सिंह
मस्त की स्थिति
कमजोर मानी जा
रही थी लेकिन
जैसे ही नीरज
शेखर का बलिया
से टिकट कटा
उसी समय से
यह माना जाने
लगा कि वीरेंद्र
सिंह की राह
अब आसान हो
गई। क्षत्रिय समाज
अब मस्त की
जीत को अपे
स्वाभिमान से जोड़ा
है। चाय की
चुस्की ले रहे
जर्नादन पांडेय कहते है
सपा ने ब्राह्मण
कार्ड खेला है।
इसका उसे लाभ
मिल रहा है।
ब्राह्मण एकजुट है। साथ
ही यादव, मुस्लिम
और दलितों का
वोट उसे मिल
गया तो सपा
जीत के पायदान
पर होगी। यह
अलग बात है
कि मोदी योगी
फैक्टर में ब्राह्मण
वोटरों को सपा
अपने साथ कितना
जोड़ पाती है
यह देखने वाली
बात होगी। क्योंकि
इ वक्त हर
किसी के जुबान
पर देशभक्ति है।
मोदी ने जो
कर दिखाया वो
किसी के बूते
का नहीं। 2014 की
करारी हार से
खिसियांएं अखिलेश यादव ने
इस बार नीरजशेखर
का टिकट काटकर
ब्राह्मण कार्ड जरुर खेला
है लेकिनइसक फादरिल्ट
बतायेगा।
बता दें,
बलिया की कुल
आबादी की करीब
81 फीसदी आबादी सामान्य वर्ग
की है। जबकि
यहां 15 फीसदी आबादी अनुसूचित
जाति और 3 प्रतिशत
आबादी अनुसूचित जनजाति
की है। यहां
ओबीसी आबादी बेहद
कम है। मुस्लिम
आबादी जरुर 8 फीसदी
है लेकिन वो
दो धड़ों में
बंटी हुई है।
चंद्रशेखर की लगातार
जीत का वजह
भी यही थी।
बलिया सीट इस
बार भी चर्चा
में है। बागी
जिला के रूप
में पहचाने जाने
वाले बलिया में
इस बार लड़ाई
सीधे बीजेपी और
एसपी के बीच
में है। यहां
सिर्फ एक बार
मोदी लहर में
2014 में कमल खिला
और भरत सिंह
लोकसभा पहुंचे। जबकि पहली
बार पूर्व पीएम
चंद्रशेखर के कुनबे
के बाहर जाकर
एसपी ने सनातन
पांडेय पर दांव
चला है।
बलिया
की जनसंख्या करीब
24,65,522 है। पुरुष मतदाता 973384 व
महिला मतदाता 794887 है।
कुल मतदाता 1768271 है।
2014 के लोकसभा चुनाव में
भाजपा के भरत
सिंह को 3 लाख
59 हजार 758 वोट हासिल
वोट मिले थे।
दूसरे नंबर रहे
सपा के नीरज
शेखर को 2 लाख
20 हजार 324 वोट हासिल
हुए। जबकि कौमी
एकता दल के
अफजल अंसारी को
1 लाख 63 हजार 943 वोट मिले।
बसपा के वीरेन्द्र
को उन्हें 141684 वोट
मिले थे। अगर
सपा बसपा के
वोट को मिला
भी दे तो
384267 के मकाबले भाजपा का
करीब 10 हजार कम
है। लेकिन भीतरघात
की आशंका ने
बीजेपी और महागठबंधन
उम्मीदवारों की नींद
उड़ाई है। चुनाव
में राष्ट्रीय और
विकास के मुद्दे
सहित जाति की
लहरों पर उफान
मार रहा है।
क्योंकि सीट पर
इस बार भी
जातीय समीकरण को
साधना ही जीत
का सबसे बड़ा
मंत्र है।
मौजूदा सीट बचाने
की जद्दोजहद में
जुटे मोदी ने
जातीय किलेबंदी को
धार देते हुए
और हवा दे
दी है। सभा
में मोदी ने
कुछ ऐसे बिंदुओं
को शामिल किया
जो बलिया ही
नहीं पूर्वांचल के
विकास के लिए
काफी महत्वपूर्ण है।
बिहार से सटे
बलिया जिला और
पूर्वांचल में विकास
हमेशा से मुददा
रहा है। लिहाजा
पीएम नरेंद्र मोदी
ने भी जनता
की नब्ज को
थामते हुए यहां
के विकास के
बिंदुओं को भी
अपने भाषण में
साझा किया। कहा,
विकास जाति की
लड़ाई में मैं
गरीबी के खिलाफ
बिल्कुल बलिया अंदाज में
बागी हो गया
हूं। उनके इस
स्पीच ने हर
किसी के दिल
को छू लिया।
उधर, गठबंधन का
मानना है कि
2014 के चुनाव में भाजपा
विरोध में पड़े
वोट एक होने
के बावजूद भी
अधिक मतों से
पराजय होती। यही
कारण है कि
सपा जहां सवर्ण
मतदाताओं के साथ-साथ अतिपिछड़ी
जाति के वोटरों
को भी लुभाने
की कोशिश कर
रही है। वहीं
भाजपा ब्राह्मण मतों
में भी सेंध
लगाने के साथ
ही क्षत्रियों को
एकजूट बनाएं रखना
चाहती है। दीपांकर
यादव का कहना
है कि सपा
से नाराज नीरज
शेखर साथ ना
भी घुमें केवल
चुप रहे तो
भी भाजपा के
लिए रामबाण होगा।
उधर, मुस्लिम
व यादव गठबंधन
के पक्ष में
नजर आ रहे
हैं। राजपूत वोटरों
में अभी बिखराव
दिख रहा है,
पर समाज और
बिरादरी को लेकर
एक बहस भी
चल रही है।
भाजपा के प्रत्याशी
मस्त विकास के
नाम पर 2019 लोकसभा
चुनाव की वैतरणी
को पार करना
चाहते हैं। गौरतलब
है कि गंगा
और सरयू नदी
के किनारे बसा
बलिया कभी ’राजा
बलि’ की राजधानी
थी। इसलिए इसका
नाम बलिया पड़ा।
2,981 वर्ग किमी में
फैले बलिया संसदीय
क्षेत्र में कुल
पांच विधानसभाएं फेफना,
बलिया नगर, बैरिया,
जहूराबाद और मोहम्मदाबाद
आती हैं। ये
सभी सीटें फिलहाल
एनडीए के कब्जे
में हैं, जिनमें
चार बीजेपी और
एक सुहेलदेव भारतीय
समाज पार्टी के
खाते में है।
माना जाता
है कि महान
ऋषि जमदग्नि, वाल्मीकि,
भृगु और दुर्वासा
आदि ऋषियों के
आश्रम बलिया में
ही थे। एक
समय यहां बौध
धर्म का काफी
प्रभाव था। प्राचीन
काल में बल्लिया
के नाम से
जाने जाने वाला
बलिया कोसाला राज्य
में शामिल था।
छठी शताब्दी ईसा
पूर्व में कोसला
सोलह महाजनपदों में
एक था। प्राचीन
काल के अलावा
मध्ययुगीन काल में
भी इसकी महत्ता
बनी रही। इस
धरती ने कई
महान हस्तियों से
देश को नवाजा
है। मंगल पांडे,
चित्तू पांडे, जय प्रकाश
नारायण और हजारी
प्रसाद द्विवेदी समेत कई
विभूतियों के अलावा
एक प्रधानमंत्री (चंद्रशेखर)
भी देश को
दिया। यह क्षेत्र
पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर
की कर्मभूमि के
नाम से जानी
जाती है। ब्रिटिश
राज में भी
बलिया शहर अपने
त्याग, बलिदान और साहस
के लिए जाना
गया।
इस शहर
का आजादी की
लड़ाई में अहम
योगदान रहा। देश
के पहले स्वतंत्रता
संग्राम (1857) के नायक
मंगल पांडे इसी
जिले के नगवां
गांव में पैदा
हुए थे। 1942 के
भारत छोड़ो आंदोलन
के दौरान 20 अगस्त
1942 को चित्तू पांडे ने
लोकप्रिय सरकार का गठन
किया और यहां
कांग्रेस राज घोषित
कर दिया। आजादी
के पहले बलिया
गाजीपुर जिले का
एक हिस्सा था।
लेकिन बाद में
स्वतंत्र रूप से
जिला हो गया।
इसे राजा बलि
की धरती के
रूप में माना
जाता है। और
इस कारण इस
क्षेत्र का नाम
बलिया पड़ा। कहते
है 1977 में जब
चंद्रशेखर पूरी तरह
राजनीति में सक्रिय
हुए तब से
आठ बार अकेले
चंद्रशेखर ही यहां
के प्रतिनिधि चुने
गए। उनके गुजरने
के बाद दो
बार उनके पुत्र
को बलिया की
जनता ने अपना
आशीर्वाद दिया।
1952 में इस
सीट पर पहली
बार हुए चुनाव
में निर्दलीय उम्मीदवार
के तौर पर
मुरली मनोहर ने
जीत दर्ज की
थी। वहीं, 1957 में
कांग्रेस के राधा
मोहन सिंह, 1962 में
कांग्रेस के मुरली
मनोहर और 1967-1971 में
कांग्रेस के चंद्रिका
प्रसाद ने दो
बार जीत हासिल
की थी। इस
सीट से कांग्रेस
ने 1984 में आखिरी
बार चुनाव जीता
था। बलिया लोकसभा
सीट से दिग्गज
नेता चंद्रशेखर ने
कुल आठ बार
जीत हासिल की
थी। चंद्रशेखर के
पुत्र नीरज शेखर
इस सीट से
2007 और 2009 में सांसद
रह चुके हैं।
बलिया संसदीय क्षेत्र
के अंतर्गत 5 विधानसभा
(फेफना, बलिया नगर, बैरिया,
जहूराबाद और मोहम्मदाबाद)
क्षेत्र आते हैं।
यह सभी पांचों
सीट सामान्य वर्ग
के लिए है।
इन विधानसभा सीट
की बात की
जाए तो फेफना
विधानसभा सीट पर
बीजेपी के उपेंद्र
तिवारी विधायक हैं। उन्होंने
बसप की अंबिका
चौधरी को 17,897 मतों
के अंतर से
हराया था। बलिया
नगर विधानसभा सीट
पर भी भाजपा
का कब्जा है।
बीजेपी के आनंद
स्वरूप शुक्ला ने एकतरफा
मुकाबले में सपा
के लक्ष्मण को
40,011 मतों से हराया
था।
बैरिया विधानसभा सीट
पर भी बीजेपी
का ही कब्जा
है। बीजेपी के
सुरेंद्र नाथ सिंह
ने सपा के
जयप्रकाश अंचल को
17,077 मतों के अंतर
से हराया था।
जहूराबाद विधानसभा से
सुखदेव भारतीय समाज पार्टी
के ओम प्रकाश
राजभर विधायक हैं।
उन्होंने बसपा के
कालीचरण को 18,081 मतों से
हराया था। मोहम्मदाबाद
विधानसभा क्षेत्र से बीजेपी
की अलका राय
विधायक है। जिन्होंने
बसपा के सिबकतुल्लाह
अंसारी को 32,727 मतों के
अंतर से हराया
था। इस लिहाज
से भीयहां मुकाबले
में है। लगभग
सभी जगहों पर
कथित मोदी मैजिक
के बजाय जातीय
समीकरण हावी रहेगा।
एक नजर बैरिया
के निर्णायक मतों
को देखें तो
ठाकुर और यादव
बिरादरी के लोग
यहां प्रभावी हैं।
बलिया सदर बणिक
समुदाय के प्रभाव
में है। जाति
के लिहाज से
देखें तो फेफना
विधानसभा यादव और
राजभर बाहुल्य क्षेत्र
है। कई बार
भूमिहार भी निर्णायक
मतदाता साबित होते हैं।
जहूराबाद विधानसभा गाजीपुर जिले
में पड़ता है।
यहां भूमिहार और
राजभर निर्णायक मतदाता
हैं। ठाकुर भी
भरपूर हैं। इस
बात के मजबूत
आसार हैं कि
भूमिहार मत बीजेपी
के कद्दावर नेता
मनोज सिन्हा के
प्रभाव में रहेंगे।
तो गठबंधन के
लिए जहूराबाद में
सेंध लगाना एक
मुश्किल काम होगा।
अपनी बेबाक बयानबाजी
के लिए सुर्खियों
में रहने वाले
ओम प्रकाश राजभर
यहां के विधायक
हैं। लेकिन अब
36 का आंकड़ा है।
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