भूमाफिया आजम खां पर बहुत पहले हो जानी चाहिए थी कार्रवाई
’देर आए, दुरुस्त
आए’ वाली कहावत
बिगडैल सपा नेता
एवं सांसद आजम
खान पर बिल्कुल
सटीक बैठती है।
उनके खिलाफ ताबड़तोड़
हो रही कार्रवाईयां
योगी सरकार की
बड़ी उपलब्धि मानी
जायेगी। क्योंकि उन्हें भूमाफिया
घोषित करने के
साथ ही 15 से
20 मुकदमें बहुत पहले
दर्ज हो जाने
चाहिए था। लेकिन
उनके रसूख के
आगे घूटने टेक
चुका शासन प्रशासन
उनके खिलाफ शिकायत
करने वाले, आवाज
उठाने वालों के
खिलाफ ही बलातकार
जैसी झूठी रपट
दर्ज कर प्रताड़ित
किया करती थी।
उन्हीं शिकायतकर्ताओं में से
एक थे सीनियर
आईपीएस अधिकारी अमिताभ ठाकुर।
फिरहाल, आजम खान
के खिलाफ अब
तक दर्ज हुए
15 मुकदमें और उन्हें
भूमाफिया घोषित किया जाना
इस बात का
संकेत है कि
सपाई गुंडे, माफियाओं
के खिलाफ कार्रवाई
शुरु हो चुकी
है। लेकिन बड़ा
सवाल तो यही
आजम खान जैसे
भूमाफिया के खिलाफ
कार्रवाई में इतनी
देरी क्यों?
सुरेश गांधी
हो जो
भी हकीकत तो
यही है कि
आजम खान ने
जौहर यूनिवर्सिटी के
नाम पर करोड़ों
अरबों की किसानों
की जमीन अवैध
तरीके से न
सिर्फ हड़प रखी
है बल्कि उन्हें
प्रताड़ित भी किया
है। खास बात
यह है कि
उस दौरान जिस
किसी ने भी
किसानों के लिए
आवाज उठाई उन्हें
सत्ता के गुंडों
द्वारा कुचल दिया
गया। ये गुंडा
कोई और नहीं
बल्कि खां
के करीबी रिटायर्ड
पुलिस अधिकारी आले
हसन ही थे,
जिन्होंने किसानों की जमीन
अवैध तरीके से
हड़पने में उनकी
मदद की। उस
वक्त जो किसान
जमीन नहीं देता
आजम खान के
इशारे पर उस
किसान पर झूठा
मुकदमा दर्ज करवा
देता था। लेकिन
अब आजम खान
पर कुल 62 आपराधिक
मुकदमे दर्ज हो
चुके हैं। रामपुर
प्रशासन ने आजम
खान को भूमाफिया
घोषित कर दिया
है। दरअसल, रामपुर
में आजम खान
द्वारा निर्मित जौहर यूनिवर्सिटी
के लिए किसानों
की जमीन हथियाने
के दर्जनभर मुकदमे
उनके खिलाफ किसानों
ने दर्ज कराए
हैं। प्रशासन ने
कोसी नदी क्षेत्र
की 5 हेक्टेयर सरकारी
जमीन कब्जाने और
सरकारी कार्य में बाधा
डालने का मुकदमा
भी दर्ज कराया
किया है। साथ
ही उनका नाम
एंटी भू-माफिया
पोर्टल पर डाल
दिया गया है।
लगभग 26 किसानों की जमीन
पर कब्जा करने
का आरोप आजम
खान पर है,
जिसके बाद प्रशासन
द्वारा यह कार्रवाई
की गई है।
आजम
बता दें
अखिलेश सरकार में चारो
तरफ सिर्फ और
सिर्फ गुंडगर्दी थी।
भूमाफियाओं, डकैतों व चोर
उचक्कों सहित आजम
खां जैसे भ्रष्ट
मंत्री, अमित त्रिपाठी
जैसे भ्रष्ट आइएएस
व कोतवाल संजयनाथ
तिवारी जैसे डकैत
व लूटेरा इंस्पेक्टर
के बूते कहीं
पत्रकारों की हत्या
तो कहीं उन
पर झूठे मुकदमें
दर्ज कर घर
गुहस्थी लुटवाने की धौंस
दिखाकर जमीन कब्जे
किए जा रहे
थे। काठ का
उल्लू बने अखिलेश
चाहकर भी कुछ
नहीं कर पा
रहे थे। क्योंकि
उनकी सरकार का
दोहरा चरित्र या
यूं कहें मंत्री
व बाहुबलियों के
लिए कुछ और
जबकि आम आदमी
के लिए कुछ
और था। उस
वक्त के कैबिनेट
मंत्री आजम खां
की निजी संस्था
को लीज पर
दी जाने वाली
जमीन की कीमत
मात्र एक रुपये
प्रति वर्ष थी।
जबकि अन्य के
लिए कोई सीमा
ही नहीं था।
उस वक्त आजम
की जमीन की
कीमत के 1000 गुणा
से भी अधिक
सालिना दर लोग
देने को तैयार
थे। मामला मौलाना
जौहर अली शोध
संस्थान, रामपुर का है।
इस संस्थान के
कर्ताधर्ता यूपी सराकर
के कैबिनेट मंत्री
आजम खां थे।
अल्पसंख्यक विभाग के अधीन
इस शोध संस्थान
को आजम खा
द्वारा संचालित एक निजी
संस्था मौलाना जौहर अली
ट्रस्ट, जो सोसाइटी
रजिस्ट्रेशन एक्ट में
पंजीकृत एक संस्था
है, को रामपुर
शहर के बीचोंबीच
लगभग 1500 वर्ग गज
जमीन अगले 30 सालों
तक के लिए
लीज पर दी
गयी। वित्तीय वर्ष
2005-2006 से अब तक
कुल 983 लाख रुपये
जौहर अली ट्रस्ट
को सरकार द्वारा
दिया जा चुका
है।
दावा है
कि इस शोध
संस्थान में रामपुर
की लड़कियों को
शिक्षा दी जायेगी।
बेशक आज के
बदलते दौर में
अगर लड़कियों को
शिक्षा की बात
कही जा रही
है या विश्व
विद्यालय खोले जा
रहे है, तो
सराहनीय है। लेकिन
बड़ा सवाल यह
है कि अगर
इस तरह की
सुविधाएं अन्य इलाकों
या यूं कहें
जिलों के स्वयंसेवी
संस्थाओं की दी
गयी होती दुसरे
जिलों के लड़कियों
को बेहतर शिक्षा
दी जा सकती
थी, जो नहीं
किया गया। लेकिन
इतनी कम दर
पर शायद आजम
खां कैबिनेट मंत्री
न होते तो
उन्हें भी नहीं
दिया जा सकता
था। फिरहाल, पीपल्स
फोरम नामक संस्था
चाहती है कि
उक्त शोध संस्थान
की भूमि और
भवन सामाजिक कार्यों
हेतु उन्हें दी
जाय। जहां श्री
आजम खान की
निजी संस्था इस
लीज के बदले
एक रुपये प्रति
वर्ष दे रही
है। वह उसी
भूमि और भवन
के लिए श्री
खान द्वारा दिए
जाने वाले वार्षिक
शुल्क से 1000 (एक
हजार) गुणा अधिक
अर्थात 1,00,000 रुपये प्रति वर्ष
के वार्षिक शुल्क
देंगे। जितनी अच्छी शिक्षा
आजम की संस्था
द्वारा दी जायेगी,
उससे कहीं बेहतर
शिक्षा कम दर
या शुल्क में
पीपल्स फोरम द्वारा
दी जायेगी। जितना
अधिक सामाजिक और
सार्वजनिक लाभ जौहर
अली ट्रस्ट को
यह भूमि और
भवन देने से
मिलेगा, उससे कहीं
बहुत ज्यादा पीपल्स
फोरम यह भूमि
और भवन प्राप्त
कर के समाज
को देगा। इन
तथ्यों के आधार
पर पीपल्स फोरम
ने एक लाख
रुपये वार्षिक शुल्क
पर उक्त शोध
संस्थान 30 वर्ष या
जितनी अवधि उचित
समझी जाए, उतनी
अवधि के लिए
उक्त शोध संस्थान
की भूमि और
भवन दी जाय।
चूंकि पीपल्स फोरम
में अन्य लोगों
के अलावा सामाजिक
कार्यकर्ता डॉ नूतन
ठाकुर भी हैं,
और इसके अलावा
इससे कई अन्य
सदस्य भी जुड़ें
है।
डॉ नूतन
ठाकुर के पति
अमिताभ ठाकुर का कहना
है कि वह
अलग से इस
शोध संस्थान को
लीज पर प्राप्त
करने हेतु प्रस्ताव
बना कर शासन
को प्रस्तुत कर
चुके हैं। उनका
मानना है कि
यदि कोई संस्था
दूसरी संस्था से
एक हजार गुणा
अधिक शुल्क सरकार
को दे रही
हो और अधिक
बेहतर सामाजिक योगदान
की बात रख
रही हो, तो
निश्चित रूप से
उसके जैसा विवेकवान
और राजकीय हित
में प्रतिबद्ध व्यक्ति
द्वारा शासकीय हित में
पहली संस्था से
हुए करार को
निरस्त कर तत्काल
राजकोष में उससे
अधिक शुल्क देने
वाले और उससे
अधिक सामाजिक योगदान
देने वाली संस्था
को ही सरकार
की भूमि और
भवन दिया जाना
चाहिए। भले ही
उस पहली संस्था
से सरकार का
कोई व्यक्तिगत लगाव
ही क्यों न
हो, क्योंकि प्रदेश
के मंत्री के
रूप में उनकी
प्रतिबधता निश्चित रूप से
स्वयं द्वारा संचालित
मौलाना जौहर अली
ट्रस्ट से कई
गुणा अधिक प्रदेश
की जनता और
प्रदेश के हित
के प्रति जवाबदेही
है। इस बाबत
श्री ठाकुर ने
अल्पसंख्यक कल्याण विभाग, उत्तर
प्रदेश शासन को
पत्र भेंजकर पीपल्स
फोरम द्वारा प्रस्तुत
प्रस्ताव को मंजूर
कर लीज की
जमीन उसे ही
दिए जाने की
मांग की, लेकिन
उन्हें देने के
बजाय कई झूठे
मुकदमों में फंसा
दिया गया। हालांकि
इस गंभीर मसले
पर सरकार या
संबंधित विभाग भले ही
उस वक्त कुछ
नहीं किया लेकिन
लोकायुक्त शिकायत मिलने पर
सजग जरुर हो
गए थे।
लोकायुक्त
ने भी माना
कि कहीं न
कहीं गड़बड़ी जरुर
है। लोकायुक्त की
जांच में बताया
कि यह असंवैधानिक
है। ऐसा सर्वोच्च
न्यायालय द्वारा सौरभ गांगुली,
सुभाष घई और
कुशाभाई ठाकरे ट्रस्ट मामलों
में प्रतिपादित सिद्धांतों
के खिलाफ बताया
गया है। साथ
ही इसे हितों
का टकराव बताते
हुए पद का
सीधा दुरुपयोग बताते
हुए इस आवंटन
को निरस्त करने
और दोषी व्यक्तियों
के खिलाफ कार्यवाही
किये जाने की
भी बात उन्होंने
कही। लेकिन अखिलेश
सरकार कोई कार्रवाई
नहीं की। कुछ
ऐसा ही मायावती
के भाई आनंद
कुमार का है।
आयकर विभाग के
मुताबिक, 2007 से 2014 के बीच
आनंद कुमार की
संपत्ति में 18 हजार फीसदी
इजाफा हुआ है।
2007 में आनंद कुमार
की संपत्ति 7.1 करोड़
थी, जो 2014 में
1300 करोड़ हो गई।
आयकर विभाग की
नजरें उन 12 कंपनियों
पर भी है,
जिनसे आनंद कुमार
बतौर निदेशक जुड़े
थे। आयकर विभाग
को अपनी जांच
में पता चला
है कि 2007 से
2012 तक जब मायावती
उत्तर प्रदेश की
मुख्यमंत्री थीं, तब
पांच कंपनियों के
फैक्टर टेक्नोलॉजीज, होटल लाइब्रेरी,
साची प्रॉपर्टीज, दीया
रियल्टर्स और ईशा
प्रॉपर्टीज के जरिए
अधिकतर पैसा इकट्ठा
किया गया। आयकर
विभाग ने अनुमान
लगाया है कि
आनंद कुमार के
पास 870 करोड़ रुपये
से अधिक की
अचल संपत्ति है।
इसके अलावा आनंद
के पास कई
बेनामी संपत्ति है। इन्हीं
बेनामी संपत्तियों में से
एक संपत्ति को
आयकर विभाग ने
जब्त किया है।
इस संपत्ति की
कीमत करीब 400 करोड़
रुपये बताई जा
रही है। दावा
है कि उसके
पास कई बेनामी
संपत्तियों की जानकारी
है। इन संपत्तियों
के खिलाफ भी
जल्द कार्रवाई की
जा सकती है।
इस कार्रवाई की
जद में मायावती
भी आ सकती
है।
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