Wednesday, 28 August 2019

‘हर’ कृपा का दिन है ‘हरतालिका तीज’


हरकृपा का दिन हैहरतालिका तीज
सुहागिनों के लिए सबसे उत्तम व्रत है हरतालिका तीज। इस दिन शिव-पार्वती की संयुक्त उपासना एवं विधि विधान की गयी पूजा से अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद मिलता है। कन्याओं को विवाह योग्य मनचाहे वर की प्राप्ति होती है। हरतालिका तीज का व्रत भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि के दिन रखा जाता है। मान्यता है कि इस दिन ही पार्वती जी ने महान तप करके शिवजी को प्राप्त किया था। इस दिन विशेष उपाय करके विवाह और वैवाहिक जीवन की समस्याएं दूर की जा सकती हैं 
सुरेश गांधी
हरितालिका तीज को हरतालिका तीज भी कहा जाता है। इसका सम्बन्ध शिव से है। हरित शब्द का एक अर्थ अपहरण करना भी है। चूंकि मां पार्वती का अपहरण करके उनको एक कन्दरा तक ले जाया गया था। इसकी वजह से इस व्रत का नाम हरितालिका पड़ा। महिलाएं इस दिन निर्जला व्रत रखने का संकल्प लेती हैं। मुख्य रूप से यह पर्व मनचाहे और योग्य पति को प्राप्त करने का दिन माना जाता है। हालांकि कोई भी स्त्री इस व्रत को रख सकती है। इस दिन हस्तगौरी नामक व्रत को करने का भी विधान है। इस व्रत से सम्पन्नता की प्राप्ति होती है। इस बार हरितालिका तीज 1 या 2 सितंबर को मनाई जाएगी, को लेकर संशय है। मान्यता है कि भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए मां पार्वती ने वर्षों तक जंगल में घोर तपस्या की थी। मां पार्वती के बिना जल और बिना आहार के तप करने के बाद उन्हें भगवान शिव ने पत्नी रूप में स्वीकार किया था। यही वजह है कि हरितालिका तीज के दिन महिलाएं निष्ठा और तपस्या को विशेष महत्व देती हैं।
शुभ मुहूर्त-
05.58 से 08.31 बजे तक, अवधि 2 घंटे 32 मिनट। प्रदोष काल मुहूर्त: 18.43 से से 20.58 बजे तक। हालांकि इस बार हरतालिका तीज की तिथि को लेकर काफी असमंजस है। व्रत किस दिन रखा जाए इस बात को लेकर पंचांग के जानकार और ज्योतिषियों में भी मतभेद है। दरअसल, हरतालिका तीज का व्रत भादो माह की शुक्ल पक्ष तृतीया यानी कि गणेश चतुर्थी से एक दिन पहले रखा जाता है। अब समस्या यह है कि इस साल पंचांग की गणना के अनुसार तृतीया तिथि का क्षय हो गया है। यानी कि पंचांग में तृतीया तिथि का मान ही नहीं है। इस हिसाब से 1 सितंबर को जब सूर्योदय होगा तब द्वितीया तिथि होगी, जो कि 08 बजकर 27 मिनट पर खत्म हो जाएगी। इसके बाद तृतीया तिथि लग जाएगी। ज्योतिषियों के मुताबिक तृतीया तिथि अगले दिन यानी कि दो सितंबर को सूर्योदय से पहले ही सुबह 04 बजकर 57 मिनट पर समाप्त हो जाएगी। ऐसे में असमंजस इस बात का है कि जब तृतीया तिथि को सूर्य उदय ही नहीं हुआ तो व्रत किस आधार पर रखा जाए। इसीलिए इस बार पहली सितम्बर को ही व्रत रखा जायेगा। क्योंकि इस तिथि को दिन भर तृतीया रहेगी। तर्क यह भी है कि हरतालिका तीज का व्रत हस्त नक्षत्र में किया जाता है, जो कि 1 सितंबर को है।
जानकारों का कहना है अगर आप 2 सितंबर को व्रत रखते हैं तो उस दिन सूर्योदय के बाद चतुर्थी लग जाएगी। ऐसे में तृतीया तिथि का व्रत मान्य नहीं होगा। कुछ जानकारों का मानना है कि हरतालिका तीज का व्रत 1 सितंबर की बजाए 2 सितंबर को रखा जाना चाहिए। उनका तर्क है कि ग्रहलाघव पद्धति से बने पंचांग के अनुसार 2 सितंबर को सूर्योदय के बाद सुबह 8 बजकर 58 मिनट तक तृतीया तिथि रहेगी। फिर चतुर्थी लग जाएगी। यानी कि तृतीया तिथि में सूर्योदय होगा। इसके अलावा कुछ विद्वानों को यह भी मानना है कि चतुर्थी युक्त तृतीया को बेहद सौभाग्यवर्धक माना जाता है। ऐसे में 2 सितंबर को तृतीया का पूर्ण मान, हस्त नक्षत्र का उदयातिथि योग और सायंकाल चतुर्थी तिथि की पूर्णता तीज पर्व के लिए सबसे उपयुक्त है। तर्क यह भी है कि हस्त नक्षत्र में तीज का पारण नहीं करना चाहिए। जो महिलाएं 1 सितंबर को व्रत रखेंगी उन्हें 2 सितंबर को तड़के सुबह हस्त नक्षत्र में ही व्रत का पारण करना पड़ेगा, जो कि गलत है। वहीं अगर महिलाएं 2 सितंबर को व्रत करें तो वे 3 सितंबर को चित्रा नक्षत्र में व्रत का पारण करेंगी। पुराणों में चित्रा नक्षत्र में व्रत का पारण करना शुभ और सौभाग्यवर्धक माना गया है। वैसे भी तृतीया तिथि रविवार को दिन 11.21 बजे के बाद शुरू होगी। जो सोमवार सुबह 9.01 बजे तक रहेगी। उदया तिथि के कारण सोमवार को तृतीया तिथि शास्त्रों के अनुसार मानी जाएगी। भगवान शिव और पार्वती का पूजन सुहागिन कुंवारी कन्याएं शाम 7.54 बजे तक पूजा अर्चन करना होगा। क्योंकि शाम 7.56 बजे से भद्रा लग जाएगा। इस कारण भद्रा के पूर्व ही पूजन-अर्चन करना मंगलकारी होगा। द्वितीया युक्त तृतीया इस ब्रत में नहीं ली जाती है। इस तरह की स्थिति करीब 23 वर्षों के बाद उत्पन्न हुई है।
मौजूदा समय में पारिवारिक मतभेद बढ़ने और रिश्तों में सामंजस्य की कमी आम बात है। ऐसे में हमारे पर्व-त्योहार संबंधों की उष्मा को जीवंत बनाए रखने में अहम् भूमिका निभा रहे हैं। अपनत्व और भावनात्मक लगाव को पोषित कर रहे हैं। हरतालिका तीज का पर्व ऐसा ही त्योहार है जो पति-पत्नी के रिश्तों को सामजंस्य और समर्पण के भाव से जोड़ता है। यही वजह है कि यह त्योहार मौजूदा समय में और भी प्रासंगिक लगता है, जब परिवार बिखर रहे है और अपनों के बीच ही दूरियां पैदा हो गयी है। रिश्तों के बदलते समीकरणों के दौर में यह पर्व जुड़ाव की सीख देता है। सांझी खुशियां सहेजने का भाव पैदा करता है। तभी तो जीवन की आपाधापी को भूल महिलाएं पूरे मान-मनुहार के साथ अपने जीवन साथी के आयुष्य और मंगल की कामना करती हैं। बेशक, पति-पत्नी जीवन रुपी गाड़ी के दो पहिए हैं, जिनका संतुलित रहना और एक साथ चलना जिंदगी को गति देता है। वैवाहिक जीवन में इसी संतुलन और साथ के मायने रेखांकित करते हुए हरितालिका तीज का त्योहार एक सुंदर संयोग बनाता है। कहा जा सकता है परंपरा के निर्वहन और दाम्पत्य जीवन में प्रेम के उल्लास का पर्व है हरितालिका तीज।
यह त्योहार उम्रभर के साथ और स्नेह की कामना करने का भाव लिए हैं। इस दिन सुहागिन स्त्रियां निर्जला व्रत रख कर शिव गौरी की पूजा करती है। अपने सुहाग की लंबी उम्र, संबंधों में प्रगाढ़ता, उनके स्वास्थ्य एवं परिवार के सुख समृद्धि का आर्शीवाद मांगती है। चूकि मां गौरी कुआरेपन में यह व्रत किया था इसलिए मनचाहा वर पाने और जीवन में मिलने वाले सुखद संसार की कामना के लिए कुआरी कन्याएं भी इस व्रत को करती है। इस व्रत कोहरतालिका तीजइसीलिए कहते हैं, क्योंकि पार्वती की सखी उन्हें पिता के घर सेहरकर घनघोर जंगल में ले गई थी।हरतअर्थात हरण करना औरआलिकाअर्थात सखी, सहेली। इस व्रत को कई जगहों पर बूढ़ी तीज तो कहीं गौरी तृतीया व्रत के नाम से भी जाना जाता है।
मान्यता है कि इस व्रत को करने वाली सुहागिन महिलाओं का सौभाग्य अखंड बना रहता है और उसे सात जन्मों तक पति का साथ मिलता है। यही वजह है कि तीज के पर्व का अनुष्ठान हर तरह से दाम्पत्य जीवन को सुखी बनाने के भावों से जुड़ा है। भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मां गौरी ने इसी व्रत से भगवान शिव को पति रुप में पाया था। इस दौरान मां पार्वती के तप से सिर्फ भगवान शिव का आसन डोल गया, बल्कि धरती, आकाश और पाताल तक कंपन करने लगे थे। भगवान शिव को स्वयं पार्वती जी को वरदान देने आना पड़ा। मां पार्वती ने वर स्वरूप भगवान शिव को पति रूप में मांगा। बाद में उनका विवाह भगवान शिव के साथ संपन्न हुआ।
मान्यता है कि तभी से महिलाएं मनोवांछित पति, सुखद दांपत्य जीवन एवं पति की दीर्घायु के लिए इस व्रत को करती रही है। कहीं-कहीं इस दिन सास अपनी बहुओं को सुहाग का सिंधारा देती हैं। मान्यता है कि इस व्रत से सुहागिन स्त्रियों के सौभाग्य में वृद्धि होती है और शिव-पार्वती उन्हें अखंड सौभाग्यवती रहने का वरदान देते हैं। इस दिन महिलाएं हाथों में नई चूड़ियां, मेहंदी और पैरों में अल्ता लगाती हैं और नए वस्त्र पहन कर मां पार्वती की पूजा-अर्चना करती हैं। यह दिन स्त्रियों के लिए श्रृंगार तथा उल्लास से भरा होता है। उल्लास, आस्था और प्रेम का यह पर्व यकीनन एक सुंदर उत्सव है। जिसमें शिव-गौरी के पूजन योग्य दाम्पत्य जीवन को प्रतीक मान खुद के लिए सौभाग्य मांगा जाता है। यूं भी भगवान शंकर और माता पार्वती को जन्म-जन्मांतर का साथी माना गया है। उनके अनूठे स्नेह का नाता इतना जीवंत लगता है कि एक आम दंपत्ति के लिए भी वे प्रेरणादायी है। उनका पूजन प्रेमपगी सोच और समर्पण को अपने संसार का हिस्सा बनाने की भावना लिए होता है।
तीज से ही होती है पर्वो की शुरुआत
भारतीय परम्पराओं के अनुसार तीज को पर्वों की शुरुआत का प्रतीक माना जाता है। कहा गया है, ‘ गई तीज बिखेर गई बीज, गई होली भर गई झोली।अर्थात तीज के साथ भारतीय पर्वों का सिलसिला शुरू हो जाता है जो होली तक चलता है। असल में हर त्योहार या उत्सव को मनाने के पीछे के पारंपरिक तथा सांस्कृतिक कारणों के अलावा एक और कारण होता है, मानवीय भावनाओं का। चूंकि प्रकृति मनुष्य को जीवन देती है, जल, नभ और थल मिलकर उसके जीवन को सुंदर बनाते हैं और जीवनयापन के अनगिनत स्रोत उसे उपलब्ध करवाते हैं। इसी विश्वास और श्रद्धा के साथ प्रकृति से जुड़े तमाम त्योहार तथा दिवस मनाए जाते हैं। मेहंदी भरे हाथों की खनक तथा सुमधुर ध्वनि के साथ छनकती चूड़ियां, माहौल को संगीतमय बना देती हैं। सौभाग्य और सुखी दांपत्य जीवन की कामना से मनाई जाने वाली तीन तीजों में से एक हरियाली तीज प्रकृति के सुंदर वरदानों के लिए उसका शुक्रिया अदा करने का भी उत्सव बन जाती है।
सजना खातिर करती है सोलहों श्रृंगार
इस व्रत के सुअवसर पर सौभाग्यवती स्त्रियां नए लाल वस्त्र पहनकर, मेंहदी लगाकर, सोलह श्रृंगार करती है। शुभ मुहूर्त में भगवान शिव और मां पार्वती जी की पूजा करती है। इस पूजा में शिव-पार्वती की मूर्तियों का विधिवत पूजन किया जाता है। हरितालिका तीज की कथा को सुना जाता है। माता पार्वती पर सुहाग का सारा सामान चढ़ाया जाता है। भक्तों में मान्यता है कि जो सभी पापों और सांसारिक तापों को हरने वाले हरितालिका व्रत को विधि पूर्वक करता है, उसके सौभाग्य की रक्षा स्वयं भगवान शिव करते हैं। ऐसा माना जाता है कितीजनाम उस छोटे लाल कीड़े को दर्शाता है जो मानसून के मौसम में जमीन से बाहर आता है। हिन्दू कथाओं के अनुसार इसी दिन देवी पार्वती भगवान शिव के घर गयी थीं। यह पुरुष और स्त्री के रूप में उनके बंधन को दर्शाता है।
कुंआरियों का होता है शीघ्र विवाह
वास्तव में तीज का सम्बन्ध शीघ्र विवाह से ही है। अविवाहित कन्याओं को इस दिन उपवास रखकर गौरी की पूजा विशेष रूप से करनी चाहिए। ऐसा करने से कुंडली में कितने भी बाधक योग क्यों हों, इस दिन की पूजा से नष्ट किये जा सकते हैं। पर इसका सम्पूर्ण लाभ तभी होगा, जब अविवाहिता इस उपाय को स्वयं करें। इस दिन, पूरे दिन उपवास रखना चाहिए। श्रृंगार करना चाहिए। श्रृंगार में मेहंदी और चूड़ियों का जरूर प्रयोग करना चाहिए। सायं काल शिव मंदिर जाकर भगवान शिव और मां पार्वती की उपासना करनी चाहिए। वहां पर घी का बड़ा दीपक जलाना चाहिए। सम्भव हो तो मां पार्वती और भगवान शिव के मन्त्रों का जाप करें। पूजा खत्म होने के बाद किसी सौभाग्यवती स्त्री को सुहाग की वस्तुएं दान करनी चाहिए और उनका आशीर्वाद लेना चाहिए। इस दिन काले और सफेद वस्त्रों का प्रयोग करना वर्जित माना जाता है। हरा और लाल रंग सबसे ज्यादा शुभ होता है।
मिलता है योग्य वर का वरदान
हर माता-पिता का सपना होता है, समय पर बेटियों के हाथ पीले कर दें। लेकिन कभी-कभी ग्रहदोष या दूसरे कारणों से  विवाह में विलंब होने लगता है। मनचाहा वर नहीं हमल पाता है। प्रेम विवाह में रुकावटें होने लगती है। उम्र ज्यादा होने पर समस्या और भी बढ़ जाती है। ऐसे में अगर हरतालिका तीज के दिन कुआंरी कन्याएं व्रत रहकर विधि-विधान से पूजन-अर्चन करें तो वे मनचाहा जीवनसाथी पा सकती है। जबकि विवाहित महिलाएं अपने वैवाहिक जीवन को और भी सुखद बना सकती है।
पूजा विधि
हरतालिका तीज व्रत करने पर इसे छोड़ा नहीं जाता है। प्रत्येक वर्ष इस व्रत को विधि-विधान से करना चाहिए। इस दिन प्रातःकाल उठकर घर की साफ सफाई करके तिल आंवले का उबटन लगाकर महिलाएं स्नान करती हैं। फिरउमामहेश्वर सायुज्यसिद्धये हरतालिकाव्रतं करिष्येमंत्र से व्रत का संकल्प लेती हैं। तत्पश्चात् पार्वती और महादेव की प्रतिमा स्थापित कर मंत्रोच्चार के साथ उनका अभिषेक, पूजन और अर्चना करती हैं। अपने घर के मुख्य द्वार को केले के पत्तों से सजाकर पूरा दिन मां पार्वती का ध्यान रखते हुए अपने पति की दीर्घायु की कामना करती हैं। शाम को यथायोग्य दान देकर व्रत का समापन करती हैं। इस व्रत को प्रदोषकाल में किया जाता है। सूर्यास्त के बाद के तीन मुहूर्त को प्रदोषकाल कहा जाता है। यह दिन और रात के मिलन का समय होता है। पूजन के लिए भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान गणेश की बालू रेत काली मिट्टी की प्रतिमा हाथों से बनाएं। पूजा स्थल को फूलों से सजाकर एक चैकी रखें और उस चैकी पर केले के पत्ते रखकर भगवान शंकर, माता पार्वती और भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित करें। इसके बाद देवताओं का आह्वान करते हुए भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान गणेश का षोडशोपचार पूजन करें। सुहाग की पिटारी में सुहाग की सारी वस्तु रखकर माता पार्वती को चढ़ाना इस व्रत की मुख्य परंपरा है।  इसमें शिव जी को धोती और अंगोछा चढ़ाया जाता है। यह सुहाग सामग्री सास के चरण स्पर्श करने के बाद ब्राह्मणी और ब्राह्मण को दान देना चाहिए। इस प्रकार पूजन के बाद कथा सुनें और रात्रि जागरण करें। आरती के बाद सुबह माता पार्वती को सिंदूर चढ़ाएं ककड़ी-हलवे का भोग लगाकर व्रत खोलें। इस व्रत को करने से पहले वाले दिन यानी द्वितीया के रोज शुद्ध शाकाहरी व्यंजनों का ही सेवन करना चाहिए और सोने से पहले दातून या मंजन करके सोना चाहिए ताकि अन्न का कोई टुकड़ा व्रत के दिन आपके मुंह में रहे। इस व्रत को करने वाली महिलाएं सुबह चार बजे उठकर स्नानादि के बाद मन ही मन भगवान से अपने सुहाग की रक्षा की कामना करती हैं और फिर संध्याकाल में शिव-पार्वती की पूजा कर हरतालिका व्रत की कथा सुनती हैं। इस दिन भगवान शिव को गंगाजल, दही, दूध, शहद आदि से स्नान कराकर उन्हें फल समर्पित किया जाता है। इस दिन भजन कीर्तन के अलावा पूरी रात जगने का भी विधान है।
पूजन सामग्री
पूजन के लिए - गीली काली मिट्टी या बालू रेत, बेलपत्र, शमी पत्र, केले का पत्ता, धतूरे का फल एवं फूल, अकांव का फूल, तुलसी, मंजरी, जनैव, नाडा, वस्त्र, सभी प्रकार के फल एवं फूल, फुलहरा (प्राकृतिक फूलों से सजा), मां पार्वती के लिए सुहाग सामग्री - मेहंदी, चूड़ी, बिछिया, काजल, बिंदी, कुमकुम, सिंदूर, कंघी, माहौर, बाजार में उपलब्ध सुहाग पुड़ा आदि, श्रीफल, कलश, अबीर, चन्दन, घी-तेल, कपूर, कुमकुम, दीपक, घी, दही, शक्कर, दूध, शहद पंचामृत के लिए आदि।
ब्राह्मणों को दी जाती है श्रृंगार पेटी
कथा श्रवण के पश्चात सुहागिन महिलाएं बाजार से लायी गयीं श्रृंगार पेटी या टोकड़ी को ब्राह्मणों के बीच दान करती हैं, जिसमें वस्त्र, आलता, बिंदी समेत शृंगार के कई सामान उपलब्ध होते हैं। 
समूहिक पूजा से बढ़ता है मेल-मिलाप
तीज पर सामूहिक रूप से पूजन करने का एक महत्व यह भी है कि इस तरह स्त्रियां आपस में एक-दूसरे से घनिष्ठता के साथ जुड़ भी पाती हैं। तीज के दिन तीज मिलन का आयोजन भी आपसी जुड़ाव बनाने का ही एक प्रयोजन है। महिलाएं गीत गाती हैं, नृत्य करती हैं, हास-परिहास करती हैं। इस तरह वे हंसी-खुशी से तीज का उत्सव मनाती हैं। राजस्थान में तीज पर्व का विशेष महत्व है और इस दिन स्त्रियां दूर देश गए अपने पति के लौटने की कामना करती हैं। अनेक स्थानों पर मेले लगते हैं।

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