मिट गया ‘हिंद’ के माथे का ‘कलंक’ कश्मीर बनेगा धरती का ‘स्वर्ग’
यह हकीकत
है कि जम्मू
कश्मीर 70 साल से
राजनीति के दोगलेपन
को भुगत रहा
था। 370 की आड़
में वहां पनपता
आतंकवाद, रोज-रोज
शहीद होते जवान,
पत्थरबाजों के आतंक
चोटिल होते टूरिस्ट
एवं हिन्द के
माथे पर लगे
इस कलंक के
दर्द से पूरा
देश कराह रहा
था। लेकिन मोदी
सरकार ने संविधान
के दायरे में
रहकर हिन्दुस्तान के
माथे पर लगे
इस कलंक को
धो डाला। देशवासियों
ने इस कदम
को सराहा है।
कश्मीर को अपनी
जागिर समझ रहे
महबूबा एंड अब्दुला
कंपनी की काली
कमाई एवं भ्रष्टचार
पर ब्रेक लग
जायेगा। केन्द्र की कल्याणकारी
योजनाओं का लाभ
अब आम कश्मीरियों
को मिलेगा। अब
जरुरत है कि
राज्य के विस्थापितों
के पुर्नवास, कश्मीरी
पंडितों के साथ-साथ सरकार
यदि अन्य को
बसाने में सरकार
सफल रही तो घाटी
में समावेशी समाज
की स्थापना होगी।
समाज में अमन
और सौहार्द का
माहौल बनेगा और
कश्मीर फिर जन्नत
बनेगा
सुरेश गांधी
फिरहाल, 5 अगस्त का
दिन भारत के
लिए ऐतिहासिक दिन
रहा। भारत ने
जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन
अधिनियम के प्रस्ताव
को संसद में
रखकर इतिहास रच
दिया। खासकर दोनों
सदनों में भारी
बहुमत से इसे
पारित कर भारत
ने इशारों ही
इशारों में साफ
कर दिया कि
कश्मीर हमारे लिए ’मुद्दा’ नहीं है, कश्मीर
पर लिया गया
हर फैसला भारत
का आंतरिक निर्णय
है, जिसमें किसी
भी अंतरराष्ट्रीय समुदाय
का हस्तक्षेप स्वीकार
नहीं है। लेकिन
अफसोस है कि
भारत पर लगे
इस कलंक को
मिटने के बाद
कुछ कांग्रेसी मातम
मना रहे है।
इसे लेकर कांग्रेस
में ही दो
धड़े बन गए
है। एक धड़ा
मोदी सरकार के
इस फैसले की
स्वागत कर रहा
है तो दुसरा
पाकिस्तान के सुर
में सुर मिला
रहा है। मातम
मनाने वाली कांग्रेस
कश्मीर को अन्तर्राष्ट्रीय
मामला बता रही
है। मतलब साफ
है कश्मीर पर
कांग्रेस का एक
बार फिर विश्वासघात
वाला चेहरा सबके
सामने है। कांग्रेस
को लगता है
कि धारा 370 से
कश्मीर की आजादी
असंवैधानिक है। जबकि
हर हिन्दुस्तानी इसके
खात्मे से जश्न
में डूबा हुआ
है। वो कश्मीर
की नई कहानी
लिखने को बेताब
है। हर हिन्दुस्तानी
की जुबान पर
है ‘जान की
बाजी लगायेंगे, अखंड
कश्मीर बनायेंगे..‘। कश्मीरी
खुद खुशी जाहिर
कर रहे है
कि ‘कश्मीरियों को
डराने वाले खानदानी
माॅडल महबूबा एंड
अब्दुल्ला कंपनी का अन्त
हो गया है।
अब उसके हिस्से
की केन्द्र की
कल्याणकारी योजनाएं उसतक सीधे
पहुंचेगी। लेकिन बड़ा सवाल
है तो यही
है क्या कांग्रेस
की सीनाजोरी से
कश्मीर पर छिपेगी
नेहरू की गलती?
हालांकि पाकिस्तान की
भाषा बोल रहे
कांग्रेसियों को मोदी
सरकार ने देश
की सबसे बड़ी
पंचायत में साफ
कर दिया है
कि संविधान के
अनुच्छेद 370 और जम्मू-कश्मीर के प्रशासनिक
पुनर्गठन भारत का
आंतरिक मामला है। इसमें
किसी तीसरे का
हस्तक्षेप भारत विरोधी
माना जायेगा। कहा
जा सकता है
सदन ने सुरक्षा
परिषद के स्थायी
सदस्यों समेत अनेक
देशों को यह
संदेश दे दिया
है कि कश्मीर
मसले पर किसी
की दादागिरी नहीं
चलेगी। दुनिया भी इस
मसले से पूरी
तरह वाकिफ है।
यही कारण है
कि सिर्फ पाकिस्तान
ने ही भारत
की पहल का
विरोध किया है,
बाकी के देशों
ने समर्थन। जहां
तक पाकिस्तान द्वारा
दी जा रही
बर्नघुड़की का सवाल
है तो अमेरिकी
राष्ट्रपति ट्रंप ने भी
सख्त हिदायत दी
है कि वो
भारत के खिलाफ
किसी भी बदले
की कार्रवाई से
दूर रहे। जम्मू
कश्मीर पर भारत
के फैसले के
बाद अमेरिका ने
पाकिस्तान को चेताते
हुए कहा है
कि वो एलओसी
पर किसी भी
घुसपैठ में मदद
ना करे। वो
अपनी जमीन पर
मौजूद आतंकी ठिकानों
के खिलाफ कड़ा
एक्शन ले। यानी
भारत को युद्ध
की गीदड़ भभकी
देने वाले पाकिस्तान
के चेहरे पर
अमेरिका का ये
करारा तमाचा है।
वैसे भी 370 पर
पाक पीएम इमरान
अपने घर में
ही घिरे है।
यूएई सहित मुस्लिम
देशों ने भी
उससे किनारा कर
लिया है। पाकिस्तान
ने भारत के
साथ द्विपक्षीय व्यापार
खत्म करके और
कूटनीतिक संबंधों में कमी
लाने का जो
फैसला किया है,
उससे भारत से
ज्यादा पाकिस्तान पर ही
असर पड़ेगा।
कहा जा
सकता है सरकार
के इस कदम
से कश्मीर घाटी
में अलगाववाद और
आतंकवाद को संरक्षण
देकर भारत को
अस्थिर करने की
दशकों पुरानी पाकिस्तानी
नीति चारो खाने
चित हो गयी
है। यही वजह
है कि पाकिस्तान
अब भारत से
हर तरह के
संबंध तोड़ने की
धमकी दे रहा
है। यह अलग
बात है कि
भारत ने पाकिस्तान
से पहले से
ही निर्यात से
लेकर हर तरह
के मामलों में
किनारा कर लिया
है। मतलब साफ
है कश्मीर के
मसले को अंतरराष्ट्रीय
मंचों पर ले
जाने की भी
उसकी धमकी के
मामले में भी
मुंह की खानी
पड़ेगी। उसके द्वारा
कश्मीर के एक
हिस्से पीओंके और गिलगिट-बाल्टिस्तान का मामला
भी तेजी से
उठेगा। पाक-अधिकृत
कश्मीर में पाकिस्तान
द्वारा किए जा
रहे प्राकृतिक संसाधनों
के दोहन की
भी चर्चा होगी।
उसके द्वारा चीन
के आर्थिक गलियारे
के लिए की
गयी अवैध आवंटन
की भी बात
होगी। बलूच, पख्तून
और मुहाजिर समुदायों
के साथ पाकिस्तान
का सौतेला व्यवहार
जगजाहिर है। पूरी
दुनिया इस बात
से वाकिब है
कि इन तबकों
के बुनियादी अधिकारों
को किस तरह
दशकों से कुचला
जा रहा है।
उनके नेताओं को
प्रताड़ित किया जा
रहा है। यही
वजह है कि
उसके करीबी चीन
और इस्लामिक देशों
के संगठन ने
अनुच्छेद 370 को लेकर
कुछ नहीं कहा
है। आतंकी और
चरमपंथी ताकतों को पनाह
देकर भारत और
अफगानिस्तान समेत दक्षिण
एशिया में अस्थिरता
पैदा करने के
कारण काफी समय
से अंतरराष्ट्रीय समुदाय
पाकिस्तान की आलोचना
करता रहा है।
खुद इमरान खान
यह मान चुके
हैं कि उनके
यहां 30-40 हजार आतंकी
हैं। बहरहाल, अब
पाकिस्तान को अपनी
हरकतों से बाज
आना चाहिए। घाटी
के अलगाववादी और
हिंसक तत्वों को
उकसाने और नियंत्रण
रेखा व अंतरराष्ट्रीय
सीमा पर युद्धविराम
का उल्लंघन करने
से भी बाज
आना चाहिए।
जहां तक
कांग्रेस का सवाल
है तो उसे
जानना होगा कि
जम्मू-कश्मीर मसले
को नेहरू यूएन
लेकर गए थे।
देश के उप
प्रधानमंत्री और गृह
मंत्री को विश्वास
में लिए बगैर
आकाशवाणी के कमरे
में प्रवचन कर
दिया गया था।
रेफरेंडम तो तभी
खत्म हो गया,
जब पाकिस्तान ने
वर्ष 1965 में भारत
की सीमाओं का
अतिक्रमण किया। वास्तव में
धारा 370 भारत को
कश्मीर से नहीं
जोड़ती है, बल्कि
धारा 370 भारत को
कश्मीर से जोड़ने
से रोकती है।
देश का बच्चा-बच्चा बोलता है
कि कश्मीर भारत
का अभिन्न अंग
है। कश्मीर के
लिए ऐसा इसलिए
बोलना पड़ता है,
क्योंकि धारा 370 ने इस
देश और दुनिया
के मन में
शंका आरोपित की
थी कि कश्मीर
भारत का अंग
है या नहीं।
हर भारतीय को
पता है कि
1965 में भारत-पाकिस्तान
के बीच हुए
युद्ध में जब
सेना विजयी हो
रही थी, सेना
पाकिस्तानी कबाइलियों के अधिकार
क्षेत्र में आने
वाले हमारे हिस्से
को जीतकर आई
थी, तब एकतरफा
शस्त्र विराम कर नेहरु
ने सेना का
मनोबल गिरा दिया
था। उसी कारण
आज पीओके है।
अगर हमारी सेनाओं
को छूट दी
जाती तो आज
पीओके भारत अधिकृत
होता। 370 जम्मू-कश्मीर राज्य
के संबध में
अस्थाई उपबंध है। इसे
हटाना इसलिए जरुरी
था कि क्योंकि
यह देश की
संसद का अख्तियार
कम करता है।
ढेर सारे कानून
जो जनता की
अच्छाई के लिए
बने हैं, वे
जम्मू-कश्मीर की
जनता तक पहुंचते
नहीं है। जम्मू-कश्मीर के लोगों
के मन में
अलगाववाद की भावना
को पाकिस्तान पेट्रोल
डाल कर भड़का
रहा है। वर्ष
1965 के अंदर जिस
दिन पाकिस्तान की
सेनाओं ने हमारी
सीमाओं का अतिक्रमण
किया था, उसी
दिन यूएन वाला
प्रस्ताव खारिज हो गया
था। जहां तक
यूएन का मामला
है तो भारत
की सीमाओं के
अंदर कोई भी
निर्णय लेने के
लिए भारत की
संसद के दोनों
सदनों को पूरा
संवैधानिक अधिकार है।
फिरहाल, धारा 370 हटने
के बाद सरकार
के सामने जम्मू-कश्मीर में अब
अधिकारों और दायित्वों
को पुराने ढांचे
से नई प्रशासनिक
व्यवस्था में ट्रांसफर
करने की चुनौती
है। इसके लिए
अजित डोभाल युद्ध
स्तर पर काम
कर रहे हैं
और कोशिश की
जा रही है
कि पॉवर का
सहज स्थानांतरण हो
जाए। सरकार का
मानना है कि
अगर बिना परेशानी
के नई व्यवस्था
काम करनी शुरू
कर देती है
तो लोगों की
प्रतिक्रिया सहज हो
सकती है। बता
दें, जम्मू-कश्मीर
से अनुच्छेद-370 के
कई प्रावधानों को
खत्म करने वाले
संकल्प राज्यसभा से पारित
होने के बाद
राज्य से अभी
तक कोई अप्रिय
हिंसा की खबर
नहीं मिली है।
लेकिन सरकार को
अंदेशा है कि
पाकपरस्त लोग घाटी
में गड़बड़ी पैदा
कर सकते है।
हालात खराब करने
के लिए पाकिस्तान
नियंत्रण रेखा पर
गोली बारी कर
सकता है और
सीमा पार से
आतंकवादियों को भारत
में भेज सकता
है। हालांकि सेना
और प्रशासन अभी
इन चुनौतियों को
लेकर जम्मू कश्मीर
में काम कर
रही है। उसे
सफलता भी मिल
रही है। क्योंकि
370 के खात्मे के बाद
पुलिस ही नहीं
सेना और अर्धसैनिक
बलों के भी
हाथ मजबूत हुए
है। उनका मनोबल
बढ़ा है। सुरक्षा
की चुनौतियों से
पार करने की
पर्याप्त ताकत मिली
है। सेना ने
अवांछनीय तत्वों से निपटने
के लिए जीरो
टॉलरेंस की नीति
की घोषणा की
है। इसके साथ
ही इस बात
का ध्यान रखा
जाएगा कि आम
नागरिकों को किसी
तरह की कोई
दिक्कत नहीं पहुंचे।
साथ ही पाकिस्तान
की ओर से
घुसपैठ से निपटने
के लिए सेना
की इकाई को
और भी मजबूत
कर दिया गया
है। नियंत्रण रेखा
पर जोरदार तैयारी
है। इसके अलावा
जम्मू-कश्मीर के
मुख्य क्षेत्र में
गड़बड़ियों से निपटने
के लिए पैरामिलिट्री
फोर्स को तैनात
किया गया है।
अब तक
लोगों को सिर्फ
एक बात की
ही जानकारी होती
रही थी कि
घाटी एक अशांत
क्षेत्र है, वहां
आतंकवाद है और
मानो पूरा का
पूरा जम्मू-कश्मीर
अशांत है। जबकि
यह बात सही
नहीं है। सिर्फ
कश्मीर घाटी के
कुछ ही क्षेत्रों
में अशांति है,
जो कि विदेश
यानी पड़ोस-प्रेरित
अशांति है। इस
अशांति की वजह
से ही लद्दाख
के क्षेत्र में
विकास की कोई
रोशनी अभी तक
पहुंची नहीं थी
और वहां के
लोग भी अपने
अधिकारों से वंचित
रहे हैं। लेकिन
अब उनके हक
में फैसला हुआ
है, वहां जल्दी
ही विकास अपनी
रफ्तार पकड़ेगी। जम्मू-कश्मीर
में कुछ सीमावर्ती
इलाके भी हैं,
जहां पिछड़े और
गूजर (ये दोनों
हिंदू भी हैं,
मुसलमान भी हैं)
आदि लोगों को
जो अधिकार मिलना
चाहिए था, वह
नहीं मिल रहा
था। इस लिहाज
से सरकार का
यह कदम बहुत
ही अच्छा है।
माना जो विभाजनकारी
या विघटनकारी प्रवृत्तियों
वाले लोग वहां
मौजूद हैं और
अपनी राजनीति चमका
रहे हैं, वे
जरूर इसके विरोध
में आवाज उठायेंगे,
सरकार से लड़ेंगे।
लेकिन अंत में
उन्हें परास्त होकर के
इस व्यवस्था को
स्वीकार करनी ही
होगी।
72 साल पहले ऐसे भारत में शामिल हुआ था कश्मीर
1947 में आजादी
के बाद तब
पाकिस्तान नया-नया
बना था। अब
एक तरफ हिंदुस्तान
था, दूसरी तरफ
पाकिस्तान और बीच
में ज़मीन का
ये एक छोटा
सा टुकड़ा.. कश्मीर।
एक आजाद रियासत...और यहीं
से शुरू होती
है दास्तान-ए-कश्मीर। गौरतलब है
कि आज़ाद हिंदुस्तान
से पहले कश्मीर
एक अलग रियासत
हुआ करती थी।
तब कश्मीर पर
डोगरा राजपूत वंश
के राजा हरि
सिंह का शासन
था। डोगरा राजवंश
ने उस दौर
में पूरी रियासत
को एक करने
के लिए पहले
लद्दाख को जीता
था। फिर 1840 में
अंग्रेजों से कश्मीर
छीना। तब 40 लाख
की आबादी वाली
इस कश्मीर रियासत
की सरहदें अफगानिस्तान,
रूस और चीन
से लगती थीं।
इसीलिए इस रियासत
की खास अहमियत
थी। लेकिन उसी
दौरान एक क़बायली
हमले ने बदल
दी जन्नत की
सूरत। जिसने जन्नत
को जहन्नम बनने
की बुनियाद रखी।
जिसने पहली बार
मुजाहिदीन को पैदा
किया। जिसने कश्मीर
की एक नई
कहानी लिख डाली।
करीब 700 साल पहले
जिस गुलिस्तां को
शम्सुद्दीन शाह मीर
ने सींचा था।
उनके बाद तमाम
नवाबों और राजाओं
ने जिसको सजाया-संवारा। जिसकी आस्तानों
और फिजाओं में
चिनार और गुलदार
की खुशबू तैरती
थी। जिसे आगे
चलकर जमीन की
जन्नत का खिताब
मिला। उसी कश्मीर
में आज से
ठीक सत्तर साल
पहले एक राजा
की नादानी और
एक हुकमरान की
मनमानी ने फिजाओं
में बारूद का
ऐसा जहर घोला
जिसकी गंध आज
भी कश्मीर में
महसूस की जा
सकती है। मेरा
मुल्क.. तेरा मुल्क..
मेरी जमीन.. तेरी
जमीन, मेरे लोग..
तेरे लोग. इस
गैर इंसानी जिद
ने पहले तो
एक हंसते खिलखिलाते
मुल्क के दो
टुकड़े कर दिए।
लाखों लोगों को
मजहब के नाम
पर मार डाला
गया और फिर
उस जन्नत को
भी जहन्नुम बना
दिया गया। जिसके
राजा ने बड़ी
उम्मीदों के साथ
अंग्रेजों से अपनी
रियासत को हिंदू-मुस्लिम की सियासत
से दूर रखने
की गुजारिश की
थी। मगर उनकी
रियासत की सरहदों
के नजदीक बैठे
मुसलमानों के लिए
पाकिस्तान बनाने वाले कायदे
आजम मोहम्मद अली
जिन्ना कश्मीर की इस
आजादी के लिए
तैयार नहीं थे।
उनकी दलील थी
कि जिस तरह
गुजरात के जूनागढ़
में हिंदू अवाम
की तादाद को
देखते हुए उसे
हिंदुस्तान में मिलाया
गया उसी तरह
कश्मीर में मुसलमानों
की आबादी के
हिसाब से उस
पर सिर्फ और
सिर्फ पाकिस्तान का
हक है। अपनी
इसी जिद को
मनवाने के लिए
जिन्ना ने कश्मीर
के महाराजा हरि
सिंह पर दबाव
बनाना शुरू कर
दिया और कश्मीर
को जाने वाली
तमाम जरूरी चीजों
की सप्लाई बंद
कर दी। पाकिस्तान
कश्मीर को अपने
साथ मिलने के
लिए अब ताकत
का इस्तेमाल करने
लगा। महाराज हरि
सिंह अकेले उनका
मुकाबला नहीं कर
पा रहे थे।
अब साफ लगने
लगा था कि
उनके हाथ से
कश्मीर तो जाएगा,
साथ ही डोगरा
रियासत की आन-बान भी
खत्म हो जाएगी।
भारतीय सेना ने दुश्मनों को खदेड़ा
कश्मीर घाटी को
पाकिस्तानी आतंकियों से बचाने
के लिए महाराजा
हरि सिंह ने
आखिरकार भारत के
साथ मिल जाने
का फैसला किया।
भारतीय सेना ने
दुश्मनों को खदेड़
कर रख दिया।
फिर इस जंग
के आखिरी दिन
एलओसी का जन्म
हुआ। महाराजा हरि
सिंह के हिंदुस्तान
के साथ जाने
के फैसले के
फौरन बाद भारतीय
सेना ने कश्मीर
में मोर्चा खोल
दिया। रात के
अंधेरे में विमान
के जरिए भारत
ने सेना और
हथियारों को बिना
एटीसी के डायरेक्शन
के श्रीनगर में
उतार दिया। उस
वक्त हमलावर कबायली
श्रीनगर से महज
एक मील की
दूरी पर थे।
भारतीय सेना ने
सबसे पहले श्रीनगर
के इर्द-गिर्द
एक सुरक्षा घेरा
बनाया। इसके बाद
तो जंग की
सूरत बदलते देर
नहीं लगी।
भारतीय फौज ने लहराया जीत का परचम
जंगी सामान
की कमजोर सप्लाई
और नक्शों की
कमी के बावजूद
जांबाज भारतीय सैनिकों ने
एक के बाद
एक तमाम ठिकानों
से पाकिस्तानी घुसपैठियों
को खदेड़ना शुरू
कर दिया। भारतीय
सेना के बढ़ते
कदमों की धमक
ने तब तक
कबायलियों के दिलों
में दहशत पैदा
कर दी थी।
उनमें भगदड़ मच
चुकी थी। लिहाजा
देखते ही देखते
सेना ने बारामूला,
उरी और उसके
आसपास के इलाकों
को वापस कबायलियों
से अपने कब्जे
में ले लिया।
मोर्चा संभालते ही भारतीय
सेना ने पाकिस्तान
को अहसास करा
दिया कि भारत
सिर्फ आकार में
ही नहीं बल्कि
दिलेरी में भी
पाकिस्तानी से बहुत
बड़ा है। मोर्चा
संभालने के अगले
कुछ महीनों में
ही दो तिहाई
कश्मीर पर भारतीय
सेना का कब्जा
हो चुका था।
भारतीय फौज जीत
का परचम लहरा
चुकी थी।
ऐसे अलग हुआ पीओके
इस जंग
के बाद कश्मीर
का मसला संयुक्त
राष्ट्र में पहुंचा।
जिसके बाद 5 जनवरी
1949 को सीजफायर का ऐलान
कर दिया गया।
तय हुआ कि
सीजफायर के वक्त
जो सेनाएं जिस
हिस्से में थीं
उसे ही युद्ध
विराम रेखा माना
जाए। जिसे एलओसी
कहते हैं। इस
तरह कश्मीर का
कुछ हिस्सा पाकिस्तान
के कब्जे में
चला गया जिसे
आज पाकिस्तान अधिकृत
कश्मीर (पीओके) कहा जाता
है। जिसमें गिलगित,
मीरपुर, मुजफ्फराबाद, बाल्टिस्तान शामिल हैं।
1947 से शुरू हुई कश्मीर पर कब्जे की जंग
कश्मीर को जख्मी
करने वाली इस
वारदात को आज
करीब 70 साल हो
गए हैं। पाकिस्तान
अभी भी अपनी
हरकतों से बाज
नहीं आ रहा
है। पूरे कश्मीर
पर कब्जे के
लिए शुरू हुई
1947 से ये जंग
अब भी जारी
है। 1949 में सीजफायर
के ऐलान के
बाद एलओसी की
लकीर खिंच चुकी
थी। यहां तक
कि उसके बाद
पाकिस्तान से लगने
वाली तमाम सरहदों
पर जो सेनाएं
तैनात की गईं
वो आज तक
कायम हैं। 1949 से
लेकर 1965 तक कश्मीर
को हथियाने के
लिए पाकिस्तान कोई
न कोई मक्कारी
करता रहा।
भारतीय सेना ने पाकिस्तान के मंसूबों पर फेरा पानी
आजादी के बाद
एक तरफ हिंदुस्तान
तरक्की की नई
ऊंचाइयां छू रहा
था तो वहीं
दूसरी तरफ पाकिस्तान
ने अपनी सारी
ताकत दुनियाभर से
हथियारों को बटोरने
में जुटा रखी
थी। भारत से
करारी शिकस्त के
बाद भी पाकिस्तान
बाज नहीं आया
और उसने कश्मीरी
जेहादियों के भेस
में अपनी सेना
के जवानों को
चोरी छिपे करगिल
की पहाड़ियों पर
घुसा दिया। लेकिन
ऑपरेशन विजय चलाकर
भारतीय जांबाजों ने दुश्मन
के नापाक मंसूबों
पर पानी फेर
दिया। हालांकि पहाड़ियों
की ऊंचाई की
वजह से पाकिस्तानी
आतंकियों का सामना
करने में भारतीय
फौज के सामने
कई मुश्किलें आ
रही थीं। लेकिन
भारत ने तोपों
की गरज ने
दुश्मन के हौसले
पस्त कर दिए।
भारतीय फौज ने
26 जुलाई 1999 को कारगिल
से पाकिस्तानी घुसपैठियों
को मार भगाया
था।
370 का कलंक
अनुच्छेद 370 ने जम्मू-कश्मीर को अजीब
तरह से विशेष
अधिकारों वाला बना
दिया था। उसका
अलग संविधान था।
जम्मू कश्मीर ने
17 नवंबर, 1956 को अपना
संविधान लागू किया
था। इसका झंडा
भी अलग था।
जम्मू-कश्मीर के
नागरिकों के पास
दोहरी नागरिकता होती
थी। भारत का
अलग और कश्मीर
का अलग। इसके
35-ए के कारण
जम्मू-कश्मीर को
अपनी नागरिकता देेने
का अलग से
अधिकार था। संसद
जम्मू-कश्मीर के
मामले में सिर्फ
तीन क्षेत्रों- रक्षा,
विदेश मामले और
संचार के लिए
कानून बना सकती
थी। इसके अलावा
किसी कानून को
लागू करवाने के
लिए केंद्र सरकार
को राज्य सरकार
की मंजूरी की
जरूरत पड़ती थी।
शहरी भूमि कानून
(1976) भी जम्मू-कश्मीर पर
लागू नहीं होता
था। जम्मू-कश्मीर
के घोषित नागरिकों
के अलावा कोई
जमीन नहीं खरीद
सकते थे। जम्मू-कश्मीर की विधानसभा
का कार्यकाल छह
साल होता था।
यदि कोई कश्मीरी
महिला पाकिस्तान के
किसी व्यक्ति से
शादी करती थी,
तो उसके पति
को भी जम्मू-कश्मीर की नागरिकता
मिल जाती थी।
कश्मीर में अल्पसंख्यक
हिंदुओं और सिखों
को आरक्षण नहीं
मिलता था। जम्मू-कश्मीर में वोट
का अधिकार सिर्फ
वहां के स्थायी
नागरिकों को ही
था। वहां आरटीआई
और शिक्षा का
अधिकार (आरटीई) लागू नहीं
होता था। यह
जम्मू-कश्मीर के
भारत के साथ
संपूर्ण रूप से
एकाकार होने की
मार्ग की बाधा
बन गया था।
साथ ही वहां
के नेताओं को
इस मायने में
निरंकुश बना दिया
था कि वे
चाहे जितना भ्रष्टाचार
करें।
370 हटने के फायदे
अब अनुच्छेद
370 के हटाने के बाद
जम्मू-कश्मीर को
मिले विशेष अधिकार
पूरी तरह से
खत्म हो गये
हैं। अब वहां
भारतीय संविधान पूरी तरह
से लागू होगा।
अब उसका राष्ट्रध्वज
तिरंगा रहेगा। दोहरी नागरिकता
नहीं होगी। अब
देश का कोई
भी नागरिक जम्मू-कश्मीर में संपत्ति
खरीद पायेगा। अब
मोदी सरकार के
इस ऐतिहासिक फैसले
के बाद भारत
का कोई भी
नागरिक वहां का
वोटर और प्रत्याशी
बन सकता है।
कश्मीर विधानसभा वाला केंद्रशासित
प्रदेश होगा। विधानसभा का
कार्यकाल पांच साल
का होगा। लद्दाख
के लोग वर्षों
से केंद्रशासित प्रदेश
बनाने की मांग
कर रहे थे।
जम्मू के लोग
भी कश्मीर से
अलग होना चाहते
थे। वैसे भी
जम्मू-कश्मीर की
समस्या का समाधान
करना है, तो
केंद्र की भूमिका
वैधानिक रूप से
प्रभावी होनी चाहिए।
इसलिए पुनर्गठन के
तहत राज्य को
बांटकर केंद्रशासित प्रदेश में
बदलने का निर्णय
कश्मीर के भविष्य
की दृष्टि, राष्ट्रीय
सुरक्षा, आतंकवाद तथा
लोकांक्षाओं को ध्यान
में रखते हुए
बिल्कुल उचित है।
अब जम्मू-कश्मीर
विधानसभा वाला केंद्रशासित
प्रदेश होगा, जबकि लद्दाख
चंडीगढ़ की तरह
बिना विधानसभा वाला
केंद्रशासित प्रदेश रहेगा। जम्मू-कश्मीर में दिल्ली
और पुडुचेरी की
तरह विधानसभा होगी।
लद्दाख में चंडीगढ़
की तरह मुख्य
आयुक्त होगा। सच कहें,
तो इससे पुराना
इतिहास बदला और
नये इतिहास का
निर्माण हुआ है।
जम्मू-कश्मीर का
वास्तविक विलय अब
हुआ है।
विकास होगा
पिछले 30 वर्षों में
जबसे जम्मू-कश्मीर
में आतंकवादी गतिविधियां
बढ़ी हैं, तब
से राज्य की
प्रति व्यक्ति आय
में कोई उल्लेखनीय
वृद्धि नहीं हुई
है। अर्थव्यवस्था का
प्रमुख आधार पर्यटन
काफी हद तक
खत्म हो चुका
है। टूरिस्टों का
रुख बहुत कम
होने का परिणाम
यह है कि
जम्मू-कश्मीर की
अर्थव्यवस्था में वह
सुधार नहीं हो
पाया है, जिसकी
उम्मीद थी। अब
वहां की टूरिज्म
इंडस्ट्री को बहुत
भारी उछाल मिलेगा
और शिकारा और
हाउसबोट जैसे उद्योगों
में दोबारा जान
आयेगी। मूल लोगों
को आगे बढ़ने
का मौका मिलेगा।
केंद्र सरकार की सभी
योजनाओं का लाभ
मिलेगा। कश्मीर में व्यापार
और उद्योग के
लिहाज से निवेश
बढ़ेगा, तो उत्पादन
भी बढ़ेगा। जिसका
असर राज्य की
जीडीपी पर सकारात्मक
रूप से पड़ेगा।
इसका फायदा वहां
के लोगों को
सीधे तौर पर
होगा। उद्योग-व्यापार
आने से जम्मू-कश्मीर के स्थानीय
लोगों को रोजगार
के अवसर मिलेंगे।
उन्हें अपने घर
को छोड़कर दूसरे
राज्यों में नौकरी
के लिए नहीं
जाना होगा। वहां
के लोगों की
प्रति व्यक्ति आय
में इजाफा होगा
और जीवनशैली में
सुधार होगा।
बदलेगी आर्थिक तस्वीर
यह सच
है कि 370 के
चलते जम्मू-कश्मीर
में विकास की
संभावनाएं खत्म हो
गयी थी। लेकिन,
इसके हटने के
बाद दिल्ली, नोएडा
और चंडीगढ़ जैसा
आर्थिक विकास होगा। राजस्व
के नये साधनों
से जम्मू-कश्मीर
की अर्थव्यवस्था को
मजबूती मिल सकेगी।
उद्योग-व्यापार की नयी
संभावनाएं उत्पन्न होंगी। जम्मू-कश्मीर के अधिकांश
लोग जीवन निर्वाह
के लिए कृषि
कार्य करते हैं।
कश्मीरी लोग चावल,
मक्का, गेहूं, जौ, दालें,
तिलहन तथा तंबाकू
उत्पादित करते हैं।
कश्मीर घाटी भारतीय
उपमहाद्वीप के लिए
एकमात्र केसर उत्पादक
है। वहां बड़े-बड़े बागों
में सेब, नाशपाती,
आडू, शहतूत, अखरोट
और बादाम उगाये
जाते हैं। लेकिन
इन सबकी उत्पादकता
बहुत कम है।
रेशम कीट पालन
भी कश्मीर में
बहुत प्रचलित है।
इसका लाभ अब
देश तक पहुंचेगा।
गौरतलब है कि
हस्तशिल्प जम्मू-कश्मीर का
परपंरागत उद्योग है। जम्मू-कश्मीर के प्रमुख
हस्तशिल्प उत्पादों में कागज
की लुगदी से
बनी वस्तुएं, लकड़ी
पर नक्काशी, कालीन,
शॉल और कशीदाकारी
का सामान आदि
शामिल हैं। जम्मू-कश्मीर की अर्थव्यवस्था
काफी हद तक
हस्तकला उद्योगों पर निर्भर
है। इससे काफी
मात्रा में विदेशी
मुद्रा अर्जित होती है।
बर्तन, खेल का
सामान, फर्नीचर, माचिस और
राल व तारपीन
जम्मू-कश्मीर के
मुख्य औद्यागिक उत्पादन
हैं। अब अनुच्छेद
370 हटने के बाद
देश के अन्य
क्षेत्रों से इन
छोटे उद्योगों एवं
हस्तशिल्प क्षेत्र में नयी
पूंजी प्राप्त हो
सकेगी, जिससे ये उद्योग
आगे बढ़ सकेंगे।
रोजगार के अवसर बढ़ेंगे
इस समय
जम्मू-कश्मीर में
जन सुविधाओं और
बुनयादी ढांचे की बहुत
कमी है। साथ
ही जम्मू-कश्मीर
में स्वस्थ्य सुविधाओं
का भी अभाव
है। 370 हटने के
बाद बाहरी निवेश
आने से बुनियादी
ढांचे और स्वास्थ्य
सुविधाओं में इजाफा
होगा तथा वहां
आर्थिक-सामाजिक खुशहाली आयेगी।
जो उद्योग वहां
पर प्रदेश सरकार
की दखलअंदाजी की
वजह से नहीं
जा पा रहे
थे, अब वे
वहां पर जा
सकेंगे। जम्मू-कश्मीर में
देश के सभी
लोगों की आवाजाही
बढ़ेगी। मौजूदा समय में
कश्मीर में प्रॉपर्टी
के दाम कम
हैं। अब वहां
प्रॉपर्टी के दामों
में उछाल देखने
को मिलेगा। या
यूं कहे वहां
एक नये आर्थिक
युग की शुरुआत
होगी। जिस तरह
स्विट्जरलैंड पर्यटकों के लिए
शानदार जगह बना
हुआ है, उसी
तरह पर्यटकों से
उत्पन्न हुई आय
से जम्मू-कश्मीर
भी नयी ऊंचाई
को छू लेगा।
जम्मू-कश्मीर में
रोजगार और समृद्धि
के नये द्वार
खुलेंगे।
शानदार
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