Monday, 13 April 2020

रोजमर्रा की आपूर्ति घटी तो संक्रमण से पहले निपट जायेंगे लाखों


रोजमर्रा की आपूर्ति घटी तो संक्रमण से पहले निपट जायेंगे लाखों
मोदी जी के सामने चुनौती है कि लॉकडाउन को अनिश्चित काल तक जारी नहीं रखा जा सकता, मगर इसे हर जगह से एकबारगी हटाया भी नहीं जा सकता। संकेत यही है कि हॉटस्पॉट चिह्नित करके शहरी और ग्रामीण भारत के लिए अलग-अलग रणनीति पर अमल करते हुए लिमिटेड लॉकडाउन की राह पर आगे बढ़ा जाएगा और सड़क रेल जैसे सार्वजनिक परिवहन को धीरे-धीरे बहाल किया जाएगा। एक तरफ कोरोना-संबंधी जांच, परीक्षण, आइसोलेशन, सोशल डिस्टैंसिंग, क्वारेंटाइन, सख्त पोलिसिंग और जरूरतमंदों को राहत पहुंचाने का काम जारी रहेगा और दूसरी तरफ आम जनजीवन को पटरी पर लाते हुए सीमित आर्थिक और शैक्षणिक गतिविधियां शुरू की जाएंगी
सुरेश गांधी
15 राज्यों के 25 जिलों कोरोना संक्रमण के केस सामने नहीं आएं है। हालांकि बाकी के इलाकों में कोरोना के लिए मरीजों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है। मतलब साफ है कोरोना की जंग जीतने की ओर हम आगे बढ़ रहे है। हालांकि अबतक देश में कुल 9,352 केस सामने चुके है। इसमें 324 लोगों की मौत हो चुकी है। जबकि 979 मरीज ठीक हुए है। कहा जा सकता है अन्य देशों के मुकाबले भारत में कोरोना संक्रमण के बढ़ने की वजह सही वक्त पर लागू लॉकडाउन है। लेकिन लॉकडाउन बहुत दिनों तक नहीं खींचा जा सकता। क्योंकि बड़ी आबादी वाले इस देश में रोजमर्रा के सामानों की आपूर्ति घटी तो संक्रमण से पहले बड़ी संख्या में लोग भूखों मरने लगेंगे। यह अलग बात है कि सरकार इसे खारिज करते हुए सालभर तक के स्टॉक होने की दुहाई दे रही है।
फिरहाल, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 11 अप्रैल को राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथजान है तो जहान हैके आह्वान में तब्दीली करते हुए नया नारा दिया हैअब जान भी जहान भी है। मतलब साफ है वे लॉकडाउन को लंबा नहीं खींचना चाहते। तमाम सुविधाएं मुहैया कराने के बाद भी वे समझ रहे है कि भोजन वितरण राशन वितरण सहित अन्य कल्याणकारी योजनाओं के सहारे बहुत दिनों तक लोगों को घरों में कैद नहीं किया जा सकता। रोजमर्रा की जरुरत वाले समानों की आपूर्ति घटी तो त्राहिमाम की स्थिति उत्पंन होने लगेगी। हालांकि सरकारी महकमें का दावा है कि देश में सालभर तक स्टॉक है, जिससे खाने पीने की कमी नहीं होगी। लेकिन अब उन्हें कौन बताएं कि जरुरी चीजों जैसे दवाइयों, दूध, साग-सब्जी, फल सहित अन्य डिब्बाबंद पैकेट वाले सामनों की पैदावार या यूं कहे पैकेजिंग ही नहीं होगी तो रखे स्टॉक के सहारे कितने दिन तक आपूर्ति होगी। समझना होगा कि देश में बड़ी आबादी मध्यम वर्गीय परिवारों की है, जो सड़क पर अन्य लोगों की तरह ना ही हाथ फैला सकते है और ना ही कहेंगे कि उनके समक्ष अब भूखमरी आने वाली है।
कामकाज ठप होने से जमापूंजी भी खत्म होने को है। जहां तक रोजमर्रा के समानों का सवाल है तो मेडिकल स्टोर तो रोज खुल रहे है, लेकिन वहां कई दवाओं उपकरणों का स्टॉक ही खत्म है। कुछ ऐसा ही तेल, मसाला, साग-सब्जी, फल, दूध आदि का है। इन उत्पादों का उत्पादन ठप होने से भी हालात विकट हो रहे हैं। ऐसे में बेहतर होगा कि चरणबद्ध तरीके से रियाद देने का सिलसिला शुरू किया जाएं। दवाइयां, मेडिकल उपकरणों, खानपान का पैकेट समेत अन्य रोजमर्रा की जरुरतों वाली औद्योगिक इकाइयों में कामकाज प्राथमिकता के आधार पर बहाल किया जाएं। इससे इनकी आपूर्ति शुरू होगी और मजदूरों को काम मिलने के रास्ते भी खुलेंगे। या यूं कहे जिन क्षेत्रों में कोरोना का ज्यादा प्रकोप नहीं है उन इलाकों में उत्पाद वाले ईकाइयों में लॉकडाउन का ढील देते हुए कामकाज शुरु कराएं। किसानों की परेशानी को भी ज्यादा दिन तक नजरअंदाज करना उचित नहीं होगा। क्योंकि गरीबों एवं मजदूरों का एक बड़ा वर्गकृषि क्षेत्र पर भी निर्भर है। रबी फसल तैयार है, यह जितनी जल्दी खलिहान से मंडी पहुंचेगी, किसानों के साथ साथ पस्त पड़ी अर्थव्यवस्था को भी थोड़ी ऑक्सीजन मिलेगी।
बता दें, घरों में कैद जनता की परेशानियों का निदान नहीं होने पर हालत कोरोना संक्रमण के खतरे से भी और अधिक विस्फोटक हो सकते हैं। इसलिए जरुरी है कि चरणबद्ध तरीके से लॉकडाउन में ढील देने पर विचार किया जाना चाहिए। जिस तरह से महाराष्ट्र, पंजाब, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा कर्नाटक और तेलंगाना की सरकारों ने 30 अप्रैल तक लॉकडाउन को बढ़ाया है वो ठीक है, क्योंकि वहां कोरोना के मरीजों का मिलना जारी है। हालांकि 14 अप्रैल को सुबह 10 बजे तक साफ हो जायेगा कि लॉकडाउन खत्म होगा या कुछ शर्तो के साथ ढील दी जायेंगी। सोशल डिस्टेंसिंग के साथ ढील देना भी चाहिए। इससे अर्थव्यवस्था और सामान्य जीवन पटरी पर चलता रहेगा। या यूं कहे कुछ जरुरी सामानों के निमार्ण वाले उद्योग, किसान और मजदूरों को राहत मिल सकती है।
खुशी की बात है कि यूपी के सीएम योगी सरकार ने सड़क निर्माण, ईंट भट्ठो के काम को शुरू करने को कह दिया है। कुछ ऐसा ही राजस्थान सरकार करेगी। फसल कटाई के लिए मजदूरों, होम डिलिवरी वाले फूड कर्मचारियों आदि को छूट दे दी है। राज्य में जरूरी सामान ले जाने के लिए ट्रांसपोर्ट को छूट दी गई है। साथ ही हर हाईवे पर 40 किमी पर एक ढाबा खोलने की छूट रहेगी। हाईवे पर ऑटो रिपेयर, ऑटो पार्ट्स और पंचर की दुकान खोलने की भी छूट दे दी गई है। इसी तरह गैर संक्रमित वाले राज्यों जिलों में भी इस तरह की छूट देनी होगी। इससे मजदूरों के समक्ष भूखमरी वाली समस्या खत्म हो सकती है। क्योंकियह ऐसा अदृश्य संकट है जिस पर तत्काल काबू पाना होगा। वरना भविष्य में समग्र मांग कमजोर रहेगी और यह पूरे एक साल तक देश की जीडीपी ग्रोथ की संभावना पर असर डालेगा।
इस समय मौद्रिक नीति के सामने मुख्य चुनौती यह है कि घरेलू मांग पर कोरोना वायरस का असर ज्यादा ना होने पाए। गौरतलब है कि कोरोना की वजह से 2020 2021 के लिए भारत के जीडीपी ग्रोथ अनुमान को 1.50 से 2.00 फीसदी कर दिया है, जो पिछले कई दशकों में सबसे कम है। हालांकि रिजर्व बैंक जीडीपी अनुमान जाहिर करने से बचता रहा है क्योंकि हालात काफी तेजी से बदल रहे हैं। माना कि लॉकडाउन से जान तो बचा लेंगे लेकिन रोजगार कैसे बचायेंगे? बदलती अर्थव्यवस्था में पहले ही झटके लग रहे थे अब ये नया संकट करोड़ों लोगों को बेरोजगार बना देगा। यही वजह है कि पीएम जान भी, जहान भी के रास्ते आगे बढ़ेंगे। मतलब ये कि लघु उद्योगों को लॉकइन के सहारे छूट दी जा सकती है। हरियाणा के सीएम मनोहर लाल खट्टर ने संकेत दिया कि कंपनियां मजदूरों के खाने-पीने, सोने रहने और सोशल डिस्टेंसिंग का ख्याल रखे तो काम चलता रहेगा। लेकिन बड़ी समस्या बड़े उद्योगों के लिए है जो बंद पड़े हैं, जिन पर देश की अर्थव्यवस्था भी निर्भर करती है। देखना ये है कि इन उद्योगों के लिए पीएम मोदी क्या ऐलान करते हैं।
दुसरा सवाल ये है कि क्या कोरोना को खत्म किया जा सकता है? मेरा मानना है कि बिना वैक्सीन के तो नहीं. दवाई बनने के बाद भी स्वाइन फ्लू खत्म नहीं हो पाया है। कोरोना का वायरस अभी दुनिया भर में घूम रहा है और घूमता रहेगा। ऐसे में ये वायरस कभी भी लौट कर सकता है। खतरा इस बात का भी है कि कोई दुश्मन इसे हथियार की तरह इस्तेमाल भी कर सकता है। खतरा ये भी है कि कोरोना कुछ मरीजों में लौट कर रहा है। मतलब जो पहले निगेटिव थे वो बाद में पॉजिटिव हो गए। ऐसे में सावधानी ही एकमात्र जरिया है जिसके लिए कोरोना की स्पीड को रोक सकते हैं। मतलब सरकार को इतना वक्त मिलता रहे कि अगर कई संक्रमित निकले तो उसकी चेन की पहचान कर इलाज किया जा सके।
भारत ही नहीं, कोरोना वायरस की बाढ़ रोकने के लिए चीन से शुरू करके इटली, फ्रांस, आयरलैंड, ब्रिटेन, डेनमार्क, न्यूजीलैंड, पोलैंड और स्पेन समेत कई देशों में धड़ाधड़ लॉकडाउन किया गया। लेकिन अब इसे खत्म करने को लेकर दुनिया भर में दो विचार आमने-सामने खड़े हो गए हैं। यह बहस जोरों पर है कि पहले कोरोना वायरस से हो रही मौतें रोकी जाएं या रसातल में जा रही अर्थव्यवस्था संभालने को प्राथमिकता दी जाए। इसी कशमकश के चलते अमेरिका में लॉकडाउन टलता रहा था और आज हालत यह है कि अब तक उसके 3 लाख से ज्यादा नागरिक इस वायरस की चपेट में चुके हैं तथा कई हजार लोगों की मौत हो चुकी है। आर्थिक गतिविधियां ठप हो जाने के चलते फैली बेरोजगारी के दरम्यान करोड़ों अमेरिकी नागरिक अपने-अपने राज्यों में बेरोजगारी भत्ता पाने के आवेदन कर रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने भी एलान कर दिया है कि मंदी चुकी है और इस बार यह 2008 के आर्थिक संकट से अधिक भयावह होगी। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ कि किसी महामारी या आपदा में पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था ही ठप हो जाए!
भारत जैसे विकासशील देशों के परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो यह आर्थिक संकट विकसित देशों की तुलना में कई गुना भयंकर साबित हो सकता है। खस्ताहाल स्वास्थ्य सेवाओं के चलते विशाल वर्कफोर्स को दोबारा कार्यरत करने में भारत के पसीने छूट जाएंगे। अब डब्ल्यूएचओ और आईएमएफ ने जोर देकर कहा है कि फिलहाल लोगों की जान बचाना नौकरी-धंधा बचाने से कहीं ज्यादा जरूरी है। अगर लोग जिंदा रहे तो अर्थव्यवस्था को बाद में भी संवारा जा सकता है। कोरोना वायरस पर नियंत्रण पाना सरकारों की पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। लेकिन भारत में ऐसा हो पायेगा ये बड़ा सवाल है। क्योंकि अस्पतालों और लैब्स टेस्टिंग किट की अनुउपलब्धता तो है ही पर्याप्त डॉक्टर भी नहीं है। जो है वे पर्याप्त परीक्षण किट, मास्क और चिकित्सकीय उपकरण मिलने का रोना रो रहे हैं। कोरोना के मरीजों का निहत्थे होकर उपचार कर रहे सैकड़ों डॉक्टरों के संक्रमित हो जाने के समाचार हैं। इन डॉक्टरों को भी उचित इलाज नहीं मिल पा रहा है।
भोजन और चिकित्सा के अभाव में संक्रमण के संदिग्ध लोगों के क्वारेंटाइन केंद्रों से निकल भागने की खबरें रही हैं! ऐसे में लॉकडाउन खुलेगा तो देश भर में जहां-तहां फंसे लोगों को अपने घर की ओर भागने से कैसे रोका जा सकेगा? उनकी टेस्टिंग कैसे होगी? देशबंदी के बावजूद तबलीगी जमात के संक्रमित लोगों तक को तो सरकार खोज नहीं पा रही है। माना कि लोग मुश्किलों में हैं और अलग-अलग वजहों से अपनी-अपनी जगह परेशान हैं। उन्हें राहत देने के लिए लॉकडाउन को खत्म करना लाजिमी है, लेकिन क्या हम अपनी हरकतों और रवैये से बाज चुके हैं? क्या केंद्र और हमारी राज्य सरकारें लॉकडाउन के बाद पैदा होने वाले हालात से निपटने के लिए चाक-चौबंद हैं? जरूरी है कि कोरोना की आफत से बचने के लिए कारगर कदम उठाएं जाएं। इतना ही नहीं, यह प्रश्न दुनिया के सामने नैतिकता और मानवता का मूल प्रश्न बन कर उभरा है। हमने देखा है कि इटली में कोरोना संक्रमित बूढ़ों पर जवान मरीजों को बचाने की तरजीह दी केंद्र सरकार को किसी भावनात्मक दबाव में नहीं बल्कि जमीनी सच्चाई और अपनी तैयारियों का ठोस आकलन करने के बाद ही कोई कदम उठाना चाहिए।

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