‘ड्रैगन’
बना पूरी दुनिया का ‘खलनायक’
चीन
के
वुहान
से
निकला
कोरोना
नामक
जिन्न
पूरी
दुनिया
को
झकझोर
कर
रख
दिया
है।
इस
अदृश्य
वायरस
ने
दुनिया
के
बड़े-बड़े
हथियारों
को
एक
झटके
में
बच्चों
का
खिलौना
साबित
कर
दिया
है।
क्योंकि
इस
वायरस
को
ना
तो
परमाणु
बम
से
कोई
खतरा
है,
ना
आधुनिक
मिसाइलों
से,
ना
तोप
से
और
ना
ही
किसी
बंदूक
से।
और
ना
ही
इससे
निपटने
के
लिए
चंद्रयान
तक
की
शैर
करने
वाले
वैज्ञनिकों
ने
अब
तक
कोई
दवा
या
यूं
कहे
वैक्सीन
ही
तैयार
की
है।
यह
सीधे
मानव
के
गिरेबान
पकड़ता
है
और
जान
लेकर
ही
शांत
होता
है।
इसकी
तबाही
का
आलम
यह
है
कि
दुनियाभर
में
कोहराम
मचा
है।
उद्योग-धधे
ठप
पड़े
है
और
कहा
जा
रहा
है
इस
तबाही
से
उबरने
में
सालों
लगेंगे
सुरेश गांधी
दुनिया भर में
मौत का दूसरा
नाम बन चुके
कोरोना वायरस का तांडव
खत्म होने का
नाम नहीं ले
रहा। वैश्विक महामारी
की वजह से
विश्व में अब
तक कोरोना वायरस
से दुनियाभर में
अब तक 47 हजार
205 लोगों की मौत
हुई और 9 लाख
35 हजार से ज्यादा
संक्रमित हैं। वहीं,
1 लाख 94 हजार लोग
ठीक भी हुए
हैं। हजारों लोगों
की जान जा
चुकी है। वहीं
अमेरिका में पिछले
24 घंटे में रिकॉर्ड
865 मौतें हुईं। न्यूयॉर्क में
कुल 83 हजार 712 लोग संक्रमित
हैं, यहां अब
तक 1941 की मौत
हुई। इटली और
स्पेन में मौतों
की संख्या लगातार
बढ़ रही है
तो वहीं फ्रांस
की स्थिति भी
गंभीर होते जा
रही है। अकेले
भारत में अब
तक 65 जाने जा
चुकी है और
संक्रमितों की संख्या
2000 के पार पहुंच
गयी है। ब्रिटेन
में 24 घंटे में
563 लोगों की जान
गई। डब्ल्यूएचओ का
कहना है कि
जल्द ही दुनियाभर
में मौतों का
आंकड़ा 50 हजार और
संक्रमितों की 10 लाख से
अधिक होगा। फिलीपींस
में कोरोनावायरस से
2311 लोग संक्रमित हैं, जबकि
96 की मौत हो
चुकी है। ऐसे
में बड़ा सवाल
तो यही है
क्या चीन देगा
पूरी दुनिया में
तबाही का मुआवजा?
क्या चीन का
कोरोना पूरी दुनिया
को दीवालिया कर
जायेगा? क्या ग्लोबल
इकोनामी को कंगाल
कर देगा कोरोना?
कोरोना वायरस का
सबसे बड़ा अर्थव्यवस्था
पर पड़ रहा
है। अमेरिका की
सरकार पर इस
समय 750 लाख करोड़
रुपये का कर्ज़
है। ये भारत
की कुल अर्थव्यवस्था
का तीन गुना
है। अगर दूसरे
विश्वयुद्ध को छोड़
दिया जाए तो
अमेरिका पर कर्ज़
का ये बोझ
पिछले 150 वर्षों में सबसे
ज्यादा है। कोरोना
की वजह से
अमेरिका में बेरोज़गारी
भी ऐतिहासिक स्तर
पर पहुंच गई
है। पिछले सप्ताह
अमेरिका के 30 लाख से
ज्यादा लोगों ने खुद
को बेरोज़गार घोषित
किया है। इस
महामारी ने अमेरिका
की अर्थव्यस्था की
कमर तोड़कर रख
दी है। कुछ
ऐसा ही भारत
का भी होने
वाला है। एक
रिपोर्ट के मुताबिक
भारत में सेवाओं
और वस्तुओं की
मांग 60 प्रतिशत तक कम
हो सकती है
जबकि अर्थव्यवस्था को
10 प्रतिशत का नुकसान
हो सकता है।
इस महामारी की
वजह से पर्यटन
उद्योग को हर
महीने 8 हज़ार 200 करोड़ रुपये
का नुकसान हो
रहा है। विशेषज्ञों
के मुताबिक सिर्फ
लॉकडाउन की वजह
से ही भारत
की अर्थव्यवस्था को
9 लाख करोड़ रुपये
का नुकसान हो
सकता है। ये
भारत की कुल
जीडीपी का 4 प्रतिशत
है। मतलब साफ
है चीन की
लापरवाही ने पूरी
दुनिया में लाखों
करोड़ों लोगों का जीवन
बर्बाद कर दिया
है और अब
इसी वजह से
अमेरिका की एक
अदालत में चीन
के खिलाफ एक
मुकदमा दायर किया
गया है। जिसमें
चीन से 20 ट्रिलियन
डॉलर्स यानी 1500 लाख करोड़
रुपये का मुआवज़ा
मांगा गया है।
ये रकम चीन
की मौजूदा जीडीपी
से भी ज्यादा
है। सवाल ये
है कि दुनिया
की अर्थव्यस्था को
होने वाले 200 लाख
करोड़ रुपये की
भरपाई कौन करेगा?
भारत की अर्थव्यवस्था
को होने वाले
9 लाख करोड़ रुपये
के नुकसान की
भरपाई कौन करेगा?
भारत के जो
हज़ारों लोग आज
पलायन को मजबूर
हैं उनके नुकसान
की भरपाई कौन
करेगा? भारत में
जिन लोगों को
साढ़े 4 हज़ार रुपये
में कोरोना वायरस
का टेस्ट कराना
होगा, उसकी भरपाई
कौन करेगा? चीन
जब तक इन
सवालों के जवाब
नहीं देता. उसकी
मंशा पर सवाल
उठते रहेंगे और
शक की सुई
उसकी तरफ घूमती
रहेगी।
कहा जा
सकता है कोरोना
की जननी चीन
अपने कुछ लोगों
को गवाने के
बाद अब इसके
वैक्सीन व कीड्स
का बड़ा व्यापारी
बन गया है।
पूरी दुनिया को
वेंटिलेंटर, वैक्सीन व कीड्स
की सप्लाई कर
रहा है। यह
अलग बात है
कि पूरी दुनिया
में कोरोना कोहराम
मचा के रखा
है। स्थिति यह
है कि इसकी
चपेट में आएं
लोगों की लाशों
को ठेकाने लगाना
मुश्किल हो गया
है। इस महामारी
की वजह से
पूरी दुनिया की
अर्थव्यस्था संकट में
है। पिछले पांच
महीनों से संक्रमण
के मामले हर
देश में तेजी
से बढ़े हैं।
पिछले हफ्ते की
तुलना में मृतकों
की संख्या दोगुनी
हो गई है।
जर्मनी ने कोरोना
वायरस के प्रसार
को रोकने के
लिए लगाए गए
प्रतिबंधों में दो
सप्ताह की बढ़ोतरी
कर दी है।
अब यह अवधि
बढ़कर 19 अप्रैल तक हो
गई है। इसका
सर्वाधिक नुकसान जानमाल के
साथ ही अर्थ
व्यवस्था पड़ रहा
है। कहा जा
रहा है दुनिया
इस महामारी से
एक दशक पीछे
चली गयी है।
यही वजह है
कि भारतीय अर्थव्यवस्था
का नुकसान करने
के लिए भारत
को चीन से
500 बिलियन डॉलर का
हर्जाना वसूलना की बात
कहीं जा रही
है। इसके लिए
इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस
जाने की बात
कही जा रही
है। क्योंकि चीन
ने संयुक्त राष्ट्र
के सदस्य देशों
के लिए तय
‘स्वास्थ्य नियम 2005’ के खिलाफ
काम किया है।
16 दिसंबर 2019 को चीन
में कोरोना का
पहला मामला सामने
आया। 2 जनवरी 2020 को वायरस
की जीनोम मैपिंग
की गई। 14 जनवरी
को इस बात
की पुष्टि हो
गई कि यह
बीमारी संक्रामक है। मनुष्य
से मनुष्य को
फैलती है। इसके
बावजूद चीन ने
पूरी दुनिया से
इस जानकारी को
छुपाया। 18 जनवरी को वहां
पर चीनी नववर्ष
हमेशा की तरह
धूमधाम से मनाया
गया।
23 जनवरी तक चीन
में आने या
चीन से जाने
को लेकर किसी
तरह का की
यात्रा पाबंदी भी नहीं
लगाई गई। इस
पूरी अवधि के
दौरान चीन ने
कहा यह बीमारी
साधारण न्यूमोनिया है। इस
तरह चीन में
एक तरह की
आपराधिक लापरवाही बरती है।
इसके चलते पूरी
दुनिया में यह
बीमारी फैल गई।
अब यह बीमारी
पूरी दुनिया के
साथ भारत में
भी गंभीर रूप
से फैलती जा
रही है। देश
को लॉक डाउन
करना पड़ा है।
लोगों को समस्या
न आए, इसलिए
सरकार ने 2 लाख
करोड़ रुपए के
पैकेज का ऐलान
किया है। आगे
और नुकसान पहुंचने
का अंदेशा है।
एक अनुमान के
मुताबिक भारतीय अर्थव्यवस्था को
20 फ़ीसदी तक का
नुकसान हो सकता
है। इसलिए, अंतरराष्ट्रीय
नियमों का उल्लंघन
करने वाले चीन
के खिलाफ भारत
को इंटरनेशनल कोर्ट
ऑफ जस्टिस जाना
चाहिए। चीन से
500 बिलीयन डॉलर का
हर्जाना वसूला जाना चाहिए।
कुछ ऐसा ही
ट्रंप सहित पूरी
दुनिया के राष्ट्राध्यक्षों
ने कहीं है।
उनका कहना है
कि बीमारी इतनी
घातक है हथियार
बनाने वाली कंपनियों
को भी अब
नए काम में
लगाया जा रहा
है। चीन ने
यह सब जानबूझ
कर किया है
और मकसद सिर्फ
और सिर्फ अपनी
अर्थव्यवस्था को मजबूत
करने का है।
खास बात यह
है कि कोरोना
वायरस से निपटने
के लिए चीन,
दूसरे देशों को
जिन जरूरी चीजों
की सप्लाई कर
रहा है उन
चीजों की गुणवत्ता
पर भी अब
सवाल उठने लगे
हैं। तो ऐसे
में सवाल ये
है कि ऐसी
कौन सी मजबूरी
है कि दुनियाभर
के देशो को
कोरोना वायरस से लड़ने
के लिए जरूरी
उपकरण और मास्क
चीन से ही
खरीदने पड़ रहे
हैं।
दरअसल मिसाइलें बनाने
की होड़ में
दुनिया जान बचाने
वाली वैक्सीन जैसी
चीजें बनाना भूल
ही गई, जो
कोरोना वायरस के खिलाफ
इस युद्ध में
सबसे बड़े हथियार
हैं। कोरोना संक्रमण
की वजह से
दुनिया में इस
वक्त जितने संसाधनों की मांग
है, आपूर्ति उससे
दस गुना कम
है। दुनिया में
इस वक्त जितने
की जरूरत है,
आपूर्ति उससे 40 प्रतिशत कम
है। ऐसे में
दुनिया के पास
बचाव के उपकरण
चीन से खरीदने
के अलावा कोई
विकल्प नहीं है।
फिर चाहे उनकी
गुणवत्ता खराब ही
क्यों ना हो।
क्योंकि जब कोरोना
दुनिया में फैल
रहा है तब
चीन, इससे उबरने
वाली स्टेज में
पहुंच चुका है।
वहां लॉकडाउन खत्म
हो चुका है।
फैक्ट्रियां खुल चुकी
हैं। इसी बात
का लाभ चीन
को मिल रहा
है। कोरोना वायरस
संक्रमण से पहले
दुनिया में 50 प्रतिशत मास्क
का उत्पादन चीन
में होता था।
कोरोना संक्रमण के बाद
चीन ने इसे
450 प्रतिशत बढ़ा दिया।
यानी कोरोना वायरस
से निपटने के
बाद अब चीन
ने इसे भी
अपने फायदे का
सौदा बना लिया
है।
या यूं
कहे दुनिया भर
की जो कंपनियां
हथियार, हवाई जहाज़,
कार बना रही
थीं, उन्हें आज
समझ में आ
गया कि हथियार
से ज्यादा जरूरी
वक्सीन है। एक
वायरस ने दुनिया
को ये सबक
सिखा दिया कि
अगर आप स्वास्थ्य
की अनदेखी करेंगे
तो सारी ताकत
और सारा ऐशो-आराम एक
दिन धरा का
धरा रह जाएगा।
आखिर में आपका
स्वास्थ्य ही आपके
काम आएगा। कोरोना
का कहर दुनिया
पर इस तरह
भारी पड़ेगा शायद
ही किसी ने
सोचा होगा। दिन-प्रतिदिन बढ़ रही
मरीजों की संख्या
समूची मानवता के
लिए गंभीर चुनौती
है। हालांकि दुनिया
के दूसरे देशों
के मुकाबले भारत
अब तक संभला
हुआ है, लेकिन
भाभी खतरों से
निपटने की तैयारी
पूरी रखने की
जरूरत है। अमेरिका
की तरह ना
तो इसे हल्के
में लेने की
भूल करनीं चाहिए
और ना ही
अति विश्वास में
रहना चाहिए। हालांकि
चीन में कोरोना
खत्म होने के
बाद चीनी जनता
ने सरकार के
खिलाफ मोर्चा खोल
रखा है। पूछा
जा रहा है
कि जिनपिंग ने
लाशों के ढेर
को कहा छुपाया
हैं। अचानक दो
करोड़ मोबाइल सेवाएं
सेवाएं ठप कैसे
हो गई है।
2 करोड़ लोग कहा
गायब है।
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