Thursday, 13 May 2021

पीड़ितों गरीबों की आवाज थे हाजी अब्दुल हादी

चाहे गरीबों तथा पीड़ितों की आवाज हो या भदोही के कारपेट इंडस्ट्री सहित इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास को मुखर करने में अब्दुल हादी कभी पीछे नहीं रहे

लोगों की एक बुलावा पर दमनकारियों के खिलाफ चट्टान बनकर खड़े हो जाते थे

बीमारी या शादी-ब्याह की खबर उनके कान में पड़ी तो सुबह के निकले रात के 12 ही क्यों बजे हो हाजिरी लगाकर ही घर लौटते थे

क्या हिन्दू क्या मुस्लिम सबके दिलों पर राज करने वाले जन जन की आवाज हमेशा बने रहे

सुरेश गांधी

वाराणसी। अपने जीवन का अधिकांश साल कांग्रेस में खपाने वाले कालीन निर्यातक अब्दुल हादी का इस कोरोनाकाल में इंतकाल हो गया। 13 मई की अलसुबह वाराणसी के एक अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांस ली। उनकी उम्र 65 वर्ष थी। वे पिछले एक पखवारे अस्पताल में जिन्दगी और मौत से जुझ रहे थे। उनका आक्सीजन लेबल इतना नीचे चुका था कि तमाम प्रयासों के बावजूद वे उसकी पूर्ति नहीं कर सके। उनके असामयिक निधन से पूरे कारपेट इंडस्ट्री में शोक की लहर है। दोपहर बाद उन्हें परंपरागत आबाई कब्रिस्तान में सुपूर्द--खाक किया गया।

अब्दुल हादी भदोही के सीनियर कालीन निर्यातक एवं विदेशों में कालीन इक्सपोर्ट के जनक कहे जाने वाले एवं वाराणसी के शहर दक्षिणी से दो बार कांग्रेस विधायक रहे अब्दुल समद के नाती थे। चूकि मरहूम समद साहब के पुत्र होने से उन्हें नेवासे के रुप में अपने पास रखा और उनके इंतकाल के बाद अब्दुल हादी अपने तीन भाईयों के साथ भदोही में ही रहने लगे और उनके विरासत को आगे बढ़ाते रहे। समद साहब कांग्रेस नेता पंडित कमलापति त्रिपाठी से काफी करीबी रिश्ता था, जिसे अब्दुल हादी ने भी पंडित लोकपति त्रिपाठी राजेशपति त्रिपाठी के साथ कायम रखा। पंडित लोकपति के प्रयास से ही अब्दुल हादी भदोही के सिर्फ कांग्रेस जिलाध्यक्ष रहे बल्कि 1998 में मिर्जापुर-भदोही संसय क्षेत्र से चुनाव भी लड़ा। यह अलग बात है कि पंडित राजेशपति त्रिपाठी से टिकट को लेकर अनबन होने के बाद हादी ने कांग्रेस छोड़ दिया। भदोही के अजीमुल्लाह चौराहा के समीप समद हाउस में रह रहे अब्दुल हादी मूलतः गाजीपुर के जियाहुल हक के पुत्र थे। जियाउल हक समद साहब के दामाद थे। अब्दुल हादी समद साहब के वसूलों पर चलते हुए गरीबों पीड़ितों के साथ साथ भदोही की शान कालीन उद्योग एवं भदोही की मूलभूत आधारभूत समस्याओं के लिए लगातार संघर्ष करते रहे।

उनका विवाह भदोही के ही कालीन निर्यातक हाजी नईमुल्लाह अंसारी के पुत्री के साथ हुआ था। उनके दो बेटे तीन पुत्रियां है। उनकी लगनशीलता कार्यक्षमता को देखते हुए अखिल भारतीय कालीन निर्माता संघ के सदस्यों ने दो बा उपाध्यक्ष् एक बार मानद सचिव भी चुना। कहते है जब कालीन उद्योग पर बालश्रम का हंटर चल रहा था और कैलाश सत्यार्थी द्वारा विदेशों में अभियान चलाया जा रहा था तब वे सिर्फ इस बदनामी को दूर करने के लिए संघर्ष किया बल्कि भदोही आएं एकमा भवन में कैलाश सत्यार्थी से हाथापाई भी कर ली थी। शुरुवाती दिनों में कालीन मेले के आयोजन में भी हाजी जलील अहमद अंसारी के साथ महती भूमिका निभाई। उनके साथ ऑल इंडिया कारपेट ट्रेड फेयर कमेटी का गठन कर रजिस्ट्रेशन कराने में उनका खासा योगदान रहा। चाहे कालीन निर्यातकों के लिए ड्यूटी ड्रा बैक बढ़ाने का मामला रहा हो या सड़क बिजली पानी हर समस्याओं से उबारने के लिए बढ़चढ़कर हिस्सा लिया करते थे। देश में हो भदोही में जब सांप्रदायिक दंगों बहस, धर्म, जाति और मजहब के नाम पर भेदभाव की घटना के मामले सामने आते रहे तो वे इस खाई को तोड़ने में जुट जाते थे। साझी संस्कृति की बात करते थे। शहर के काग्रेसियो ने पूर्व काग्रेस जिला अध्यक्ष अब्दुल हादी अंसारी के निधन पर उन्हे खिराज--अकीदत पेश की।

काग्रेस के वरिष्ठ नेता मुशीर इकबाल ने उन्हे खिराज--अकीदत पेश करते हुए कहा कि अब्दुल हादी का तीन सप्ताह से वाराणसी के एक अस्पताल मे इलाज चल रहा था। आज रात्रि मे उनका निधन हो गया। अब्दुल हादी भदोही काग्रेस के 9 वर्षो तक अध्यक्ष रहे। पार्टी से लोकसभा का चुनाव भी लङा था। उनके निधन से काग्रेस पार्टी को गहरा दुख पहुचा है। अल्लाह उन्हे जन्नत मे उच्च स्थानदे। उन्होने कहाकि अब्दुल हादी एक बङे कालीन निर्यातक थे। कालीन उद्योग पर जब कोई संकट आता था तो वह सबसे पहले आगे आते और समस्याओ को लेकर संघर्ष करते थे।

उद्योग की समस्याओ को शासन- प्रशासन तक बहुत ही प्रभावशाली ढंग से रखते थे। जिससे उद्योग जगत अपनी बात मनवाने मे सफल हो जाती थी। उनके निधन से उद्योग जगत को अपूर्णीय क्षति हुआ है। इसकी भरपाई निकट भविष्य मे ना मुमकिन है। उनके निधन पर जिला काग्रेस कमेटी के अध्यक्ष अब्दुल माबूद खां, हाजी शौकत अली अंसारी सहित हिरामणि तिवारी, हाजी अशफाक अंसारी, अबरार सिद्दीकी, काशीनाथ, कमर मलिक, संजीव दूबे, करमचन्द बिन्द, स्वालेह अंसारी, विजय गौतम, परवेज अंसारी, दिनेश चौरसिया, अरशद मलिक, उपेन्द्र भारतीय, बद्री पटवा इत्यादी ने शोक संवेदना व्यक्त की।

कुंवर मुश्ताक अंसारी ने कहा कि उद्योग की समस्याओं को लेकर हमेशा आवाज़ बुलंद करने वाले, समाज के हर तबके हर वर्ग में सम्मान की नज़र से देखे जाने वाले हादी साहब की कमी पूरी नही की जा सकती। उन्हें नये प्रयोगों समाजसेवा के क्षेत्र में भी आगे रहने के लिए जाना जाता था। भारतीय कालीन संवर्द्धन परिषद (सीईपीसी) के चेयरमैन सिद्धनाथ सिंह पूर्व चेयरमैन श्रीधर मिश्रा ने कहा कि हादी एक सफल उद्यमी, निर्यातक समाजसेवी थे। उनके निधन से पूर्वांचल ही नहीं देश के तमाम उद्यमियों में शोक की लहर है। सीईपीसी के प्रशासनिक सदस्य उमेश गुप्ता, ओमकारनाथ उर्फ बच्चा मिश्रा, हुसैन जफर हुसैनी, वासिफ अंसारी, अब्दुल रब, राजेंद्र मिश्रा, संजय गुप्ता आदि ने श्रद्धांजलि व्यक्त की है। एकमा के अध्यक्ष ओंकारनाथ मिश्रा, असलम महबूब, ओपी गुप्ता, धरमप्रकाश गुप्ता, वेदप्रकाश गुप्ता आदि ने उन्हें श्रद्धाजंलि अर्पित की है।

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