Saturday, 15 January 2022

गोरक्षनाथ की तपोस्थली से योगी जीतेंगे 2022 की जंग

गोरक्षनाथ की तपोस्थली से योगी जीतेंगे 2022 की जंग


गोरखनाथ मंदिर गुरु गोरक्षनाथ की तपो स्थली है और उनके आर्शीवाद से ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सिर्फ गोरखनाथ मठ के गोरक्षपीठाधिश्वर हैं बल्कि लगातार पांच बार सांसद रहते हुए मुख्यमंत्री तक बने। एक बार फिर मुख्यमंत्री के चेहरे के रुप में भाजपा ने प्रोजेक्ट कर गोरखपुर विधानसभा शहर से प्रत्याशी बनाया है। योगी की छबि को लेकर यूपी सहित देश में गलत मैसेज जाएं, इसके लिए पार्टी ने जीत पक्की करने के लिए उन्हें उनके ही क्षेत्र गोरखपुर शहर सीट से मैदान में उतारा है। बाजी किसके हाथ लगेगी, 10 मार्च को ही पता चलेगा। लेकिन इतना तो तय है कि उनके लिए सबसे मुफीद के साथ-साथ पूर्वांचल के जिलों की 170 सीटों को बचाएं रखने की भी चुनौती होगी। और पूर्वांचल के नतीजे तय करेंगे योगी दुबारा मुख्यमंत्री बनेंगे या नहीं?

सुरेश गांधी

बेशक, लोकतंत्र के इस महादंगल में जीत का सेहरा किसके सिर बधेगा, यह तो 10 मार्च को दोपहर बाद ही पता चलेगा। लेकिन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की लोकप्रियता में कहीं बट्टा लगे, इसके लिए भाजपा ने उन्हें अयोध्या मथुरा से लड़ाने के बजाय उनके गढ़ गोरखपुर से ही मैदान में उतारा है। माना जा रहा है विरोधियों की कड़ी निगहबानी घेराबंदी के चलते उन्हें गोरखपुर सीट पर कम मेहनत के साथ ही पूरे सूबे में दौरा का मौका मिलेगा। बता दें, चाहे 2014 2019 लोकसभा हो या 2017 का विधानसभा चुनाव पूर्वांचल की 170 सीटों में से बीजेपी को 137 से 150 सीटों में बीजेपी के वोट प्रतिशत में जबरदस्त बढ़त मिली थी। जबकि 2012 के विधानसभा चुनावों में इन्हीं 170 सीटों में सिर्फ 19 सीटे ही मिली थी। पार्टी सूत्रों की मानें तो मोदी लहर में पूर्वांचल में बीजेपी का ग्राफ बढ़ने का श्रेय योगी के नाम ही है। पार्टी इस बात को समझ रही हैं कि गोरखपुर से योगी सिर्फ पड़ोसी जिला अयोध्या बल्कि पूरे पूर्वांचल पर इसका प्रभाव पड़ेगा। माना जाता है कि जो हवा काशी, गोरखपुर अयोध्या में बहेगी, उसकी बयार भदोही, जौनपुर, मिर्जापुर, सोनभद्र, आजमगढ़, गाजीपुर, बलिया समेत पूरे पूर्वाचल को शीतल करेगी। इसीलिए इस महासमर में लक्ष्य तो पूरा पूर्वाचल है लेकिन कुरुक्षेत्र गोरखपुर बनेगा।

फिरहाल, सत्ता पक्ष से लेकर विपक्ष तक चाहे जितनी भी शक्ति प्रदर्शन कर लें, लेकिन जीत का ताना-बाना तो जातिगत गुणा-गणित पर ही तय होते रहे है और आज भी किया जा रहा है। क्योंकि पूर्वाचल में जातीय ध्रुवीकरण की गणित और सियासी समीकरणों को बनाने बिगाड़ने की दिलचस्पी पश्चिम से कहीं ज्यादा दिखती रही है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुकाबले पूर्वाचल में पिछड़ों की कई उपजातियां हैं जो अलग-अलग हिस्से में प्रभावी हैं। इनमें मौर्य, कुर्मी, लोध, राजभर, कुशवाहा, निषाद, बिंद, बढ़ई, कश्यप, केवट, सैथवार, नाई, नोनिया चौहान, लोहार जैसी 80 से ज्यादा जातियां शामिल हैं। दलितों की भी लगभग सभी उपजातियां पूर्वाचल में रहती हैं। इनमें पासी काफी प्रभावी हैं। इसके अलावा खटिक, वाल्मीकि धोबी जैसी दलित जातियां प्रभावी संख्या में हैं। ये जातियां कभी गोलबंदी से वोट देती आई हैं तो कभी अलग-अलग रुझान पर लामबंद होती रही हैं। भूमिहार वोट के अलावा पूर्वाचल के कई जिलों में मुस्लिम आबादी भी सियासी हवा का रुख बदलने की ताकत रखती है। आजमगढ़, मऊ, कुशीनगर, महाराजगंज वाराणसी जैसे जिलों में 20 से 30 फीसदी तक मुस्लिम आबादी है। यह अलग बात है मोदी-योगी लहर में मुस्लिमों की एकजुटता भाजपा को हराने की मंशा धरी की धरी रह गयी।  लेकिन इस बार एमवाई फैक्टर के बढते रुझान से समीकरण के लिहाज से लड़ाई टफ होने वाली है।

बता दें, गोरखपुर शहर सीट को भाजपा का गढ़ माना जाता है। 1967 से अब तक हुए चुनावों में इस सीट पर बीजेपी (पहले भारतीय जनसंघ) कभी नहीं हारी  है। पिछले चार चुनावों से (2002, 2007, 2012 और 2017) राधा मोहनदास अग्रवाल विधायक बनते रहे हैं, लेकिन इस बार उनकी जगह योगी मैदान में होंगे। राधामोहन दास अग्रवाल 2002 में जब पहली बार विधायक बने थे तो उसमें योगी आदित्यनाथ का बहुत बड़ा योगदान था। दरअसल योगी आदित्यनाथ के सहारे ही राधामोहन दास अग्रवाल निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरे थे। उनके सामने बीजेपी के शिवप्रताप शुक्ल थे। राधामोहन दास अग्रवाल ने शिवप्रताप को मात देते हुए पहली बार गोरखपुर सीट से जीत हासिल की। फिर बाद में वह बीजेपी से जुड़ गए। इसके बाद से गोरखपुर में योगी आदित्यनाथ और राधामोहन दास अग्रवाल का ही गोरखपुर में डंका बजता रहा है। पार्टी गोरखपुर शहर सीट से सीएम योगी आदित्यनाथ को चुनाव लड़ाकर गोरखपुर-बस्ती मंडल की 41 सीटों पर जीत पक्की करना चाहती है। 2017 के चुनाव में 41 में से 37 सीटों पर बीजेपी जीती थी। गोरखपुर जिले की 9 सीटों में से 8 पर बीजेपी जीती थी। 2017 की जीत को दोहराने की जिम्मेदारी अब योगी आदित्यनाथ के कंधे पर होगी। योगी के चुनाव लड़ने से गोरखपुर, कुशीनगर, महराजगंज, देवरिया, संतकबीरनगर समेत कई जिलों पर पड़ेगा, जहां 2017 के चुनाव में बीजेपी की आंधी चली थी, लेकिन बीते कुछ महीनों से एमवाई फैक्टर के चलते साईकिल अपनी रफ्तार पकड़ रही है। ऐसे में योगी के चुनाव लड़ने से साईकिल की रफ्तार पर ब्रेक लगाने की कोशिश की जाएगी। मतलब साफ है सीएम योगी आदित्यनाथ का गृह मंडल होने की वजह से पार्टी और सरकार की प्रतिष्ठा दांव पर है।

1998 से लेकर 2017 तक सांसद रहे

योगी आदित्यनाथ ने गोरखपुर लोकसभा सीट से पहली बार बीजेपी उम्मीदवार के रूप में 1998 में चुनाव लड़ा और उन्होंने 26 हजार वोटों से जीत दर्ज की थी। इस दौरान वे सबसे कम उम्र के सांसद थे। उस समय योगी आदित्यनाथ सिर्फ 26 साल के थे। 1998 से लेकर मार्च 2017 तक योगी आदित्यनाथ गोरखपुर से सांसद रहे। योगी आदित्यनाथ गोरखपुर लोकसभा सीट से लगातार 5 बार सांसद चुने गए। 1998 से लगातार 2 दशक तक इस सीटे पर बीजेपी के टिकट पर योगी आदित्यनाथ काबिज रहे। हालांकि, 2017 में उन्होंने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली थी। योगी के सीएम बनने के बाद सपा के प्रवीण निषाद सांसद चुने गए।

गोरखनाथ मंदिर गोरखपुर की पहचान

गोरखपुर रेलवे स्टेशन से महज चार किमी की दूरी पर नेपाल रोड पर स्थित हैबाबा गोरखनाथ मंदिर नाथ संप्रदाय के संस्थापक परम सिद्ध गुरु गोरखनाथ का अत्यंत सुंदर और भव्य मंदिर सिर्फ आस्था के लिहाज से बल्कि पयर्टकों के लिए मुख्य आकर्षण का केंद्र है। बाबा गोरखनाथ के नाम पर ही गोरखपुर का नाम पड़ा है। अगर गोरखपुर का नाम लिया जाए, तो जुबां पर गीता प्रेस आए ऐसा भला कैसे हो सकता है। महाभारत, रामायण, आरती की किताबों से लेकर पुराने हिंदू ग्रंथों के प्रकाशन के लिए गीता प्रेस जाना जाता है।

जातीय समीकरण

दरअसल, गोरखपुर मंडल में सीटवार मुस्लिम-यादव, निषाद, सैंथवार, ब्राह्मण, पाल ठाकुर जैसे जातीय समीकरण भी हैं, जो हर एक सीट पर असर दिखाते हैं। वहीं यूपी की राजनीति में ब्राह्मणों का वर्चस्व हमेशा से रहा है। प्रदेश में करीब 13 फीसदी ब्राह्मण आबादी है। कई विधानसभा सीटों पर 20 फीसदी से अधिक वोटर ब्राह्मण हैं। ऐसे में हर पार्टी की नजर इस वोट बैंक पर टिकी है। माना जा रहा है कि एक बार फिर भाजपा की लहर आगामी 2022 के विधानसभा चुनावों को प्रभावित करेगी. साथ ही योगी को एक बार फिर सीएम की कुर्सी मिलेगी। ऐसे में उनके लिए विधानसभा सीट का चुनाव करना आसान नहीं था। उनके गोरखपुर सीट से उतरने के पीछे कई राजनीतिक समीकरण हैं। इसके लिए 2002 के इतिहास पर नजर डालनी होगी। दरअसल, गोरखपुर सदर सीट पर गोरक्षपीठ मठ का हमेशा से प्रभाव रहा है। ऐसे में यहां पर जो भी प्रत्याशी उतरता है उसके पीछे मठ की सहमति अवश्य होती है। शायद यही वजह रही कि कभी अयोध्या तो कभी मथुरा, आखिरकार सीएम योगी के लड़ने के लिए भाजपा ने गोरखपुर सीट फाइनल कर दी है। वैसे दो दिन पहले जब योगी आदित्यनाथ के अयोध्या से लड़ने की सम्भावना खबरों की शक्ल लेने लगी थी तो गोरखपुर में भी सियासी चर्चाएं तेज हो गई थीं। भाजपा और हिन्दूवादी संगठनों से जुड़े लोग सवाल उठा रहे थे कि आखिर सीएम गोरखपुर से क्यों नहीं लड़ रहे? गोरखपुर के मेयर सीताराम जायसवाल ने तो भाजपा नेतृत्व से सीएम को गोरखपुर की नौ में से किसी सीट से चुनाव लड़ा देने की मांग तक कर दी थी। पार्टी के स्थानीय रणनीतिकारों का साफ कहना था कि सीएम योगी गोरखपुर से लड़ेंगे तो इसका फायदा पूर्वांचल की तमाम सीटों के साथ पूरे प्रदेश में भाजपा को मिलेगा। गोरखपुर में प्रचार-प्रसार का सीएम का अपना तंत्र है। यहां भाजपा के अलावा हिन्दू युवा वाहिनी का मजबूत संगठन है। पार्टी नेताओं-कार्यकर्ताओं से मिले ऐसे फीडबैक के बाद शनिवार को भाजपा ने 105 उम्मीदवारों की पहली लिस्ट में सीएम के गोरखपुर शहर की सीट से चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया।

अन्य जिला में योगी को मिलेगा मौका

गोरखपुर से लड़ने के लिए सीएम को ज्यादा वक्त नहीं देना होगा। वे प्रदेश की अन्य सीटों पर फोकस कर सकेंगे। गोरखपुर जिले में विधानसभा की नौ सीटें हैं। पार्टी के स्थानीय रणनीतिकारों का कहना है कि यहां हर विधानसभा क्षेत्र में भाजपा और हिन्दू युवा वाहिनी की अपनी टीम है। खासतौर से सदर विधानसभा क्षेत्र में तो शायद ही कोई ऐसा मोहल्ला, कालोनी या गली होगी जहां सीएम योगी गए हों और वहां के लोगों को जानते हों। रणनीतिकारों के मुताबिक सीएम अयोध्या या मथुरा से चुनाव लड़ते तो वहां चुनाव संचालन की टीम पर नए सिरे से काम करना होता। जाहिर है, चुनाव के समय पार्टी और उम्मीदवार सीएम का ज्यादा से ज्यादा समय अन्य सीटों पर चाहेंगे। योगी आदित्यनाथ यदि गोरखपुर क्षेत्र से बाहर रहते तो, शहरी के साथ ही आसपास के 17 विधानसभा सीटों पर असर पड़ने के आसार थे। गोरखपुर ग्रामीण के साथ ही पिपराइच, चौरीचौरा की सीट भी फंसती हुई दिखाई दे रही थी। कुशीनगर में स्वामी प्रसाद मौर्या के अलग होने से पडरौना, तमकुहीराज, फाजिलनगर की सीट पर भी सपा का कब्जा होता दिख रहा था। क्योंकि, यहां पर कांग्रेस के साथ ही मौर्या का दबदबा है। संत कबीर नगर में तीन विधानसभा सीट में खलीलाबाद की सीट हाथ से निकलती दिखाई दे रही थी।

पहले ही मिल गए थे संकेत

बीजेपी ने पहले ही संकेत दे दिया था कि सीएम योगी आदित्यनाथ गोरखपुर शहर सीट से चुनाव लड़ सकते हैं। इसकी वजह है सीएम योगी को अक्टूबर 2021 में गोरखपुर नगर सीट पर पन्ना प्रमुख बनाया जाना। उसी समय से यह आशंका जतायी जाने लगी थी कि सीएम योगी गोरखपुर से चुनाव लड़ सकते हैं। उन्हें गोरखनाथ क्षेत्र के बूथ संख्या 246 पर पन्ना प्रमुख बनाया गया था। दरअसल, बीजेपी के सांसदों, विधायकों और पदाधिकारियों को उनके निर्वाचन क्षेत्र में पन्ना प्रमुख की जिम्मेदारियां सौंपी जा रही थी. उसी समय सीएम योगी को भी पन्ना प्रमुख बनाया गया. बीजेपी ने शहर औऱ ग्रामीण विधानसभा क्षेत्रों में 13 हजार 100 पन्ना प्रमुख बनाए गए हैं.

पन्ना प्रमुख क्यों बनाया गया?

दरअसल, बीजेपी ने सबसे पहले गुजरात विधानसभा चुनाव में पन्ना प्रमुख का इस्तेमाल किया गया था. इस चुनाव में बीजेपी को अच्छी सफलता हासिल हुई थी. इसके बाद पन्ना प्रमुख का उपयोग बीजेपी ने कई चुनावों में किया, जिसमें उसे सफलता हासिल हुई. बीजेपी ने मतदाता सूची के हर पन्ने के लिए एक प्रमुख बनाया है, जिन्हें पन्ना प्रमुख कहा जाता है. इनकी जिम्मेदारी मतदान के दिन पर्ची बांटने से लेकर मतदाताओं को बूथ तक ले जाने की होती है. एक पन्ने पर 30 मतदाताओं के नाम होते हैं।

विधान परिषद सदस्य हैं सीएम योगी

सीएम योगी आदित्यनाथ का जन्म उत्तराखंड के पौढ़ी गढ़वाल में 5 जून 1972 को हुआ था. वह 19 मार्च 2017 से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं. इससे पहले वह गोरखपुर से सांसद रहे हैं. वे गोरक्षपीठाधीश्वर और वर्तमान में विधान परिषद सदस्य हैं. सीएम योगी बीजेपी के स्टार प्रचारक हैं.

18 साल बाद कोई सीएम विधायक का चुनाव लड़ेगा

योगी आदित्यनाथ को गोरखपुर से चुनाव मैदान में उतारा गया है, यानी यहां 18 साल का एक रिकॉर्ड टूटने जा रहा है। दरअसल, यहां आखिरी बार मुलायम सिंह यादव गुन्नौर सीट से विधानसभा चुनाव लड़कर ब्ड बने थे। उन्होंने जनता के बीच अपनी लोकप्रियता साबित की थी। अब 2022 के विधानसभा चुनाव में विधान परिषद सदस्य यानी एमएलसी बनकर सीएम बनने की परिपाटी पर ब्रेक लग रहा है।

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