मनचाहा न होने पर घूट रहे नेताओं का पालाबदल
जी हां, यूपी प्रदेश में चुनाव की तारीखों के ऐलान के बाद नेताओं के दल बदलने का सिलसिला शुरू हो गया है। या यूं कहे मिशन 2022 से पहले कई नेता सेफ सियासी घरौंदे की तलाश में हैं। दलबदल के इस मौसम में पांच साल तक मलाई न काट पाने या मनचाही मुरादें पूरी न होने से घूटन महसूस कर रहे स्वामी प्रसाद मौर्य अकेले नेता नहीं है, जिन्होंने भाजपा से नाता तोड़ा है, बल्कि ऐसी संख्या एक-दो नहीं 50 से अधिक है, जिनका जाना अभी बाकी है। खासकर इस संख्या में बढ़ोत्तरी तब और होगी जब जीताऊ प्रत्याशी के चयन में भाजपा के और मंत्री व विधायकों के टिकट कटेंगे। हालांकि यह सिर्फ भाजपा में ही नहीं बाकी दलों में भी टिकट कटने या प्रत्याशी न बनाएं जाने से नाराज नेताओं का जारी पाला बदल में भी और तेजी पकड़ेगी। लेकिन बड़ा सवाल तो यह है कि आखिर जाति के नाम पर दुकान चलाने वाले ऐसे नेताओं को मौका ही क्यों मिलता है? बेजा फायदे के लिए नेता या दल इसे समझे या ना समझे लेकिन इन नेताओं के जातियों को समझने का वक्त है कि नेता तो बनते है आपकी एकजुटता से बाद में अपने बेटे-बेटियों व सगे-संबंधियों के हित में क्यों लग जाते है?
सुरेश गांधी
फिरहाल, विधानसभा चुनाव के नामाकंन तारीख
नजदीक आने और दलों से
टिकट कटने या प्रत्याशी न
बनाएं जाने से नाखुश नेताओं
का पाला बदल अभी और तेज होगा।
विधानसभा से पहले एक
दल से दूसरे दल
में पाला बदलने के लिए कई
बड़े नाम भी सामने आ
रहे हैं। दरअसल, यूपी में विधानसभा चुनाव की तारीखों का
ऐलान हो चुका है।
इसको लेकर सभी सियासी दल जीतने का
दम रखने वाले कैंडिडेट की तलाश में
जुटे हैं। जिन दलों के मौजूदा विधायक
पार्टी जनता की कसौटी पर
खरे नहीं उतरे, खासकर सत्तासीन भाजपा में उनका टिकट कटना पक्का हैं। मुकाबला कड़ा होने से गैर भाजपा
दलों में भी दावेदार इस
बार चुनाव मैदान में उतरना चाहते है, सभी के बारे में
हर पार्टी का हाईकमान गंभीर
है। इसलिए टिकट हासिल करने में अपने दल में खुद
को असुरक्षित महसूस करने वाले नेता अब दूसरे दल
में सुरक्षित ठिकाने की तलाश में
जुटे हैं। लेकिन देश के इस सबसे
बड़े प्रदेश में दलदबदल कमाल तरीके से चल रहा
है। भाजपा के नेता थोक
के भाव टूट कर सपा में
जा रहे हैं और उसी तरह
थोक भाव में सपा के नेता पाला
बदल कर भाजपा में
शामिल हो रहे हैं।
कुछ ऐसा ही बसपा में
भी पालाबदल का खेल चल
रहा है। सपा के चार एमएलसी
पहले ही भाजपा में
शामिल हो चुके है।
जबकि बसपा के भी दर्जनभर
नेता सपा में चले गए और कांग्रेस
के इमरान खान जाने वाले है।
भाजपा से इस्तीफा देकर
सपा में शामिल होने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य के तेवर गर्म
है। घमंड भी कुछ ऐसा
कि उन्होंने कहा, ’उत्तर प्रदेश की राजनीति स्वामी
प्रसाद मौर्य के चारों तरफ
घूमती है। जिन नेताओं को घमंड था
कि वो बहुत बड़े
तोप हैं उस तोप को
मैं 2022 के चुनाव में
ऐसा दागूंगा, ऐसा दागूंगा कि उस तोप
से भाजपा के नेता ही
स्वाहा हो जाएंगे।’ अब
स्वाहा कौन किसे करेगा यह तो 10 मार्च
को ईवीएम बतायेगा, लेकिन अंदर की खबर है
कि वो बसपा की
तर्ज पर भाजपा में
एकछत्र राज चाहते थे, मनचाहा ट्रांसफर-पोस्टिंग के अलावा ठेकेदारी
से लेकर वसूली वाला वो हर वो
काम करना चाहते थे, जो बसपा में
था। पर वो भेल
गए भाजपा में यह सब नहीं
चलने वाला, वहां सिर्फ और सिर्फ देशभक्ति
के तराने गाएं जाते है और ये
तराने सिर्फ स्वामी प्रसाद मौर्य ही नहीं बल्कि
उसके अपने विधायक व मंत्री भी
माल कमाना तो दूर अपने
किसी निजी काम के लिए अधिकारियों
के सामने गिड़गिड़ाते नजर आएं। जानकारी के मुताबिक मौर्य
अपने बेटे और कुछ चुनिंदा
कार्यकर्ताओं के लिए बीजेपी
का टिकट चाहते थे जिसपर बात
नहीं बनने से उन्होंने नाराज
हो गए। उधर, दिल्ली में हुई भाजपा की बैठक में
यूपी के उम्मीदवारों पर
मंथन हुआ है।
खबर है कि 45 से
अधिक सीटिंग विधायक के टिकट काटे
जा सकते हैं। इसके पीछे भाजपा के शीर्ष नेताओं
का मानना है कि योगी
सरकार के खिलाफ जनता
में कोई नाराजगी नहीं है, नाराजगी स्थानीय विधायकों से है। सूत्रों
के अनुसार, भाजपा इस बार बड़ी
संख्या में विधायकों के टिकट काटने
की तैयारी में है। पार्टी की ओर से
कहा जा रहा है
कि ऐसे विधायक ही इस्तीफा दे
रहे हैं, जिन्हें इस बार चुनाव
में टिकट न मिलने का
डर है। बता दें, स्वामी प्रसाद मौर्या वर्ष 2017 के यूपी विधानसभा
चुनाव से पहले बसपा
का साथ छोड़कर भाजपा में शामिल हुए थे। मोदी लहर में उन्होंने भी चुनावी वैतरिणी
पार कर ली और
मंत्री भी बन गए।
लेकिन मनचाहा कामकाज न होने से
नाराज थे। 20 जून, 2021 को मौर्य के
बयान को देखें तो
वे अपने को मुख्यमंत्री की
रेस में थे। मौर्य के बयान से
साफ था कि उन्हें
तब भी योगी आदित्यनाथ
के नेतृत्व पर भरोसा नहीं
था और कामकाज को
लेकर वह खफा चल
रहे थे। दूसरी वजह यह है कि
स्वामी प्रसाद मौर्य अपने बेटे अशोक के लिए विधान
सभा का टिकट माँग
रहे थे, बीजेपी देने को तैयार नहीं
थी, क्योंकि स्वामी प्रसाद मौर्य खुद विधायक और मंत्री हैं
और उनकी बेटी संघमित्रा मौर्य बदायूं लोक सभा सीट से बीजेपी सांसद
हैं। इसके अलावा अधिकारियों की कार्यप्रणाली से
भी स्वामी प्रसाद मौर्य नाराज थे। सरकार के कुछ मुद्दों
को लेकर लगातार स्वामी प्रसाद मौर्य बीजेपी के केन्द्रीय नेतृत्व
से शिकायत कर रहे थे।
मौर्य कुशीनगर की पडरौना विधान
सभा सीट से बीजेपी विधायक
हैं। पांच बार के विधायक स्वामी
प्रसाद मौर्य ने काफी लंबा
समय बसपा में गुजारा और उन्होंने अपने
पुत्र और बेटी को
टिकट न मिलने की
वजह से बसपा को
त्यागा था। दरअसल, स्वामी प्रसाद मौर्य ने 2017 में अपने बेटे उत्कृष्ट मौर्य को ऊंचाहार विधानसभा
सीट से चुनाव लड़वाया
था। लेकिन वो काम अंतर
से वोट हार गए थे। बीजेपी
इस बार भी उन्हें टिकट
देने को तैयार थी,
लेकिन स्वामी प्रसाद मौर्य को लगता है
कि उनके बेटे सपा से ही जीत
सकते हैं। वैसे स्वामी प्रसाद मौर्य
का इतिहास देखा जाए तो स्वामी प्रसाद
मौर्य अपने फैसलों से हमेशा चौंकाते
रहे हैं। जब उन्होंने बसपा
छोड़ी थी तब आखिरी
वक्त किसी को मालूम नहीं
था, अब बीजेपी के
साथ भी ऐसा हुआ।
इस कड़ी में भाजपा विधायक बृजेश प्रजापति ने भी इस्तीफा
दे दिया है। सूत्रों से मिली जानकारी
के मुताबिक प्रजापति भी सपा का
दामन थाम सकते हैं।
’मौसम विशेषज्ञ’ के रूप में
मशहूर प्रतापगढ़ जिले के निवासी स्वामी
प्रसाद मौर्य वकील भी रह चुके
हैं। मायावती के करीबी नेताओं
में स्वामी प्रसाद मौर्य का नाम आता
था। वो बसपा के
प्रदेश अध्यक्ष से लेकर राष्ट्रीय
महासचिव तक रहे। मौर्य
सबसे पहले डलमऊ से 1996 में विधायक बने। फिर 2002 में भी डलमऊ से
जीते. इसके बाद कुशीनगर लोकसभा से 2009 में बीएसपी से उपचुनाव लड़े,
लेकिन हार गए। इसके बाद 2009 लोकसभा चुनाव में आरपीएन सिंह के जीतने के
बाद खाली हुई पडरौना विधानसभा सीट से बीएसपी के
टिकट पर चुनाव लड़ा
और जीत हासिल किया। 2008 में वह बीएसपी के
प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त हो गए। बाबू
सिंह कुशवाहा के पार्टी से
निकाले जाने के बाद मौर्य
का ओहदा धीरे-धीरे पार्टी में बढ़ता गया और वह बीजेपी
के अघोषित ओबीसी चेहरा बन गए थे।
वह नेता विपक्ष और मंत्री भी
थे। 2012 में बीएसपी से पडरौना विधानसभा
से चुनाव लड़े और जीतकर नेता
विपक्ष बने। 2016 में बीएसपी छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए। 2017 में बीजेपी के टिकट पर
पडरौना से चुनाव लड़कर
जीतकर विधायक बने।
जब केशव थे स्वामी मौर्य के खिलाफ
एक दौर था
जब केशव मौर्य बिल्कुल नहीं चाहते थे कि स्वामी
मौर्य बीजेपी में शामिल हों। यहां तक कि उन्होंने
केंद्रीय नेतृत्व से भी अपनी
नाराजगी जताई थी। बावजूद इसके पार्टी हाई कमान ने स्वामी प्रसाद
मौर्य पर दांव लगाया,
क्योंकि उसका मानना था कि केशव
प्रसाद मौर्य की तुलना में
स्वामी मौर्य अपनी जाति के बड़े नेता
हैं और उनका अच्छा-खासा असर है। जहां से उनकी बेटी
संघमित्रा मौर्य लोकसभा सांसद हैं। यादव और कुर्मी के
बाद मौर्य ओबीसी समाज की तीसरी बड़ी
जाति कही जाती है जिससे स्वामी
मौर्य ताल्लुक रखते हैं। इनमें काछी, मौर्य, कुशवाहा, सैनी और शाक्य जैसे
उपनाम होते हैं। मौर्य आबादी यूपी में 6 फीसदी के आसपास बताई
जाती है।
चुनाव से पहले बदल लेते हैं पार्टी
हालांकि चुनाव से पहले पार्टी
बदलने के कारण उनकी
छवि राजनीति ’मौसम वैज्ञानिक’ के रूप में
भी चर्चित रही है जो हवा
का रुख बदलते देख पाला बदल लेते हैं। 2017 से पहले स्वामी
प्रसाद मौर्य बीएसपी में थे। वहां उनका प्रभाव ऐसा था कि मायावती
ने मीडिया में बोलने के लिए पार्टी
में सिर्फ उन्हें अनुमति दे रखी थी।
वह बीएसपी के प्रदेश अध्यक्ष
रह चुके हैं। लेकिन चुनाव से पहले उन
पर कुछ आरोप लगे थे जिसके बाद
वह बीजेपी में आ गए। इससे
पहले वह जनता दल
में भी रहे हैं।
स्वामी प्रसाद मौर्य ने बसपा से
22 जून 2016 को इस्तीफा दिया
था. उन्होंने इस्तीफा देने के बाद मायावती
पर जमकर हमला बोला था।
सपा मुखिया अपराधी व गुंडों के बादशाह : स्वामी
स्वामी प्रसाद मौर्य ने कुशीनगर जिला कलक्ट्रेट में आयोजित जिला पंचायत सदस्यों के शपथ ग्रहण समारोह में अखिलेश यादव को सपा का मुखिया बताते हुए कहा था उनके शासनकाल में आतंकवादियों पर से मुकदमा हटायाजाता था। यह पार्टी अपराधी गुंडे और उपद्रवियों के बल पर शासन करती हैं।
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