Sunday, 1 January 2023

नए साल में हर थाली का ’सुपर फूड’ होगा मोटा अनाज

नए साल में हर थाली कासुपर फूडहोगा मोटा अनाज

जी हां, यह दावा हम नहीं यूपी की राज्यपाल महामहिम आनंदी बेन पटेल का है। इस दावे को हकीकत में बदलने के लिए उन्होंने सिर्फ पहल भी शुरु कर दी है, बल्कि महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के दीक्षांत समारोह में मेडलधारकों से लेकर वहां मौजूद बुद्धजीवियों से दो टूक कहा, नए साल में हर थाली में मोटा अनाज सुपर फूड हो, इसके लिए युनिवर्सिटी का होम सांइस की छात्राएं मुफीद होंगी। वे वाट्स्प, फेसबुक, इंस्टागाम सहित सोशल मीडिया पर मोटे अनाज की रेसीपी बनाकर वीडियोंज पोस्ट करें। खासकर जी-2 सम्मेलन में शिरकत करने वालें मेहमानों की थाली में परोसे और इसकी गुणवत्ता से उन्हें रु--रु करवाएं। खुशी की बात है कि देहाती या गरीबों का भोजन समझकर जिन मोटे अनाजों को रसोई से बाहर कर दिया गया, आज वैज्ञानिक और डॉक्टर उन्हें ही पौष्टिक बताकर खाने की सलाह दे रहे हैं। कई रिपोर्ट ने खुलासा किया है कि अगर देश में मोटा अनाज फिर से चलन में जाए तो 70 फीसदी लोग कुपोषण से मुक्त हो जाएंगे। इसके अलावा आमजन मोटापा, बदहजमी, डॉयबिटीज, एनीमिया, हार्ट, कोलेस्ट्राल, जैसी 36 बीमारियों से मुक्त हो सकते है। बता दें, सुपर फूड मतलब मोटा अनाज। मोटे अनाज में ज्वार, बाजरा, जई, जौं, चना, सावां, कोदो, रामदाना और कुट्टू जैसी फसलें आती हैं। मोटा अनाज चिकित्सकीय और पौष्टिक गुणों के मामले में चावल, गेहूं और मक्के से बेहतर है। ये पौष्टिक तत्त्व जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों से लड़ने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं

सुरेश गांधी

बड़े बूढ़ों से सुना था कि उनके बचपन में बाजरे की रोटी और खिचड़ी ज्यादातर रोजाना की आम खुराक थी। गेहूं की रोटी एक तरह की विलासिता थी जो कभी-कभार ही मय्यसर होती थी वह भी तब जब कोई मेहमान घर आया हो। लेकिन अब विलासिता वाली गेहूं की रोटी हर थाली की शान बन गयी है। परिणाम यह है कि जब से यह चलन में आयी बीमारियां भी अपने चरम पर है। शोधकर्ताओं के अनुसार, आमतौर पर जब हम सामान्य गेंहू को पकाते हैं तो इसमें मौजूद एसपर्जिन, कैंसर फैलाने वाले तत्व एक्रेलामाइड में परिवर्तित हो जाता है जो कि कैंसर का कारण बनता है। मतलब साफ है स्वास्थ्य के लिहाज से देखा जाएं तो चावल गेहूं जैसे अनाजों की तुलना में मोटे अनाज कैल्शियम आयरन से भरपूर होते हैं। मोटे अनाज बच्चों के विकास के लिए जरूरी पोषक तत्वों की पूर्ति में सहायक हैं। क्योंकि मोटे अनाज में नियासिन, विटामिन बी-6, फोलिक एसिड, पोटेशियम, मैग्नीशियम, खनिज और अन्य विटामिन प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। यही वजह है हमारे बुजुर्ग खाने में गेहूं की जगह ज्वार, बाजरा, रागी, कंगनी, कुटकी, कोदो, सावां, मक्का, जौ, जई जैसे मोटे अनाज खाते थे। ये मोटे अनाज सिर्फ आसानी पच जाते थे, बल्कि स्वास्थ्य की दृष्टि से फायदेमंद होते थे, बीमारी से बचे रहते थे। 

चिकित्सकों की मानें तो चावल गेहूं की तुलना में मोटे अनाज में 3.5 गुना अधिक पोषक तत्व पाए जाते हैं। इन्हें खाने से वनज, बीपी कोलेस्ट्रॉल नियंत्रित रहता है। इनमें हृदय रोग, मधुमेह और कैंसर जैसे रोगों से लडने की भरपूर क्षमता होती है। उदाहरण के तौर पर देखें तो भरपेट भोजन के बावजूद कुपोषण की समस्या देश में तेजी से पनप रही है। खासकर कोविड-19 बाद तकनीक हमारे जीवन में बीमारियां तेजी से अपने आगोश में ले रही है।

बड़े बुजुर्गो की मानें तो चावल हो या गेहूं हमारे लिए अनजाना था सिवाए उत्सवों पर या विशेष तौर कभी-कभी बनने वाली खीर या घी-बूरा के रूप में दिए जाने वाले मिष्ठान के तौर पर। जहां तक मुझे अपने बचपन की याद है तो सफेद मक्खन और गुड़ के साथ खाए जाने वाली बाजरे की रोटी हमें सर्दियों में कभी-कभार ही मिला करती थी। हां इतना जरूर है कि जो गेहूं की रोटी हम खाया करते थे वह दरअसल यह गेहूं के आटे में चने और जौ का सम्मिश्रण हुआ करती थी। आज मिलने वाला पॉलिश किया गया चावल उस वक्त तक भी हमारी खुराक का हिस्सा नहीं बन पाया था। इन खूबियों के अलावा मोटे अनाज की फसल को उपजाना आसान होता है। इन्हें कम पानी और कम लागत की जरूरत होती है। ये फसलें कीड़ों, रोगों और जलवायु परिवर्तन को आसानी से झेल लेती हैं। मोटे अनाज की फसलें मवेशी को अधिक खाद्य सामग्री देती हैं। इसलिए यह मनुष्य और मवेशी दोनों के लिए लाभदायक है। भारत पांचवा सबसे बड़ा उत्पादक देश है। भारत में 1.2 करोड़ मेट्रिक टन बाजरे का उत्पादन होता है, कुल उत्पादन का 41 फीसदी है। बाजरा उत्पादन में 1039 करोड़ अमेरिकी डालर का निवेष 2022 में हुआ था। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दक्षिण अफ्रीका, दुबई, जापान, दक्षिण कोरिया, इंडोनेशिया, सऊदी अरब, सिडनी, बेल्जियम, जर्मनी, ब्रिटेन अमेरिका में मोटे अनाज को बढ़ावा देने का कार्यक्रम होंगे। भारत पर मोटे अनाजों की ब्रांडिंग और प्रचार में विदेश स्थित भारतीय मित्रों का सहयोग लिया जाएगा।

मोटा अनाज कुपोषण दूर करने का महत्वपूर्ण जरिया है। वैज्ञानिक भी खाने में इसकी महत्वपूर्ण उपयोगिता को बार-बार प्रमाणित करते रहे हैं। मोटा अनाज सेहत संवारने में रामबाण है। मोटे अनाज में प्रचुर मात्रा में फाइबर, प्रोटीन, कैल्शियम, कार्बोहाइड्रेट, लौह तत्त्व और विटामिन्स पाए जाते हैं। यह महिलाओं में एनीमिया दूर करता है। मोटा अनाज हाईबीपी, डायबिटीज और दिल से जुड़ी बीमारियों का खतरा कम करता है। दरअसल, ‘व्हीट-एलर्जीगेहूं में पाए जाने वाले ग्लूटन के प्रति एलर्जी पैदा होने से हो जाती है, लेकिन यह पदार्थ मोटे अनाज जैसे कि बाजरा आदि में नहीं होता। मानवीय शरीर की क्षमता एक हद से ज्यादा ग्लूटन की मात्रा को हजम करने के लिए नहीं बनी है या यूं कहे पूरी तरह से गेंहू-आधारित खुराक की तरफ चले जाना घातक बीमारियों जैसी मुसीबत मोल लेने जैसा है। 

        फिलवक्त रेशे युक्त भोजन की बजाए मैदे से बने नान-रोटी, दाल-मक्खनी, छोला भटूरा और मटर-पनीर ने उत्तर भारतीयों की थालियों परधावाबोल रखा है। देखा जाएं तो इसका समाधान राजनीति में है जो केवल चुनावी राजनीति पर आधारित हो, इसके लिए सरकारी नीति, राजनीतिक पहल और जनजागरण के सम्मिश्रण की जरूरत है। सरकार को गेहूं और चावल के प्रति लाड़लापन छोड़कर मोटे अनाज को प्रोत्साहित करने पर ध्यान देना होगा। सरकारी वितरण प्रणाली और मिड-डे मील में बाजरे की आपूर्ति को बढ़ाना होगा। शायद यही वजह है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 2023 कोअंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्षघोषित किया है। उनकी कोशिश है कि देश का हर नागरिक सेहतमंद रहे। इसके लिए सुपरफूड मिलेट्स को हर घर की पंसद बनाने के लिए वे प्रयासरत हैं. संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा भारत की ओर से पेश इस प्रस्ताव को सर्वसम्मति से स्वीकार कर लिया गया है, जिसके तहत वर्ष 2023 कोअंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्षघोषित किया गया है। इस प्रस्ताव का 70 से अधिक देशों ने समर्थन किया। इसका उद्देश्य बदलती जलवायु परिस्थितियों में मोटे अनाज के पोषण और स्वास्थ्य लाभ और इसकी खेती के लिए उपयुक्तता के बारे में जागरूकता बढ़ाना है।

सुपर फूड है मोटा अनाज

मोटा अनाज यूं ही सुपर फूड नहीं कहलाता है. इसके खास गुणों की वजह से ही इसे ये नाम दिया गया है. इसमें पोषक तत्वों की अच्छी खासी मात्रा होती है. ज्वार, बाजरा, रागी, सावां, कंगनी, चीना, कोदो, कुटकी और कुट्टू 8 फसलों को मोटे अनाज की फसलें कहा जाता है. गेहूं और धान की फसलों के मुकाबले इसमें सॉल्युबल फाइबर के साथ ही कैल्शियम और आयरन की मात्रा  अधिक होती है. रागी यानी मडुवे को ही ले तो इसके प्रति 100 ग्राम में 364 मिलिग्राम कैल्शियम की मात्रा होती है. हड्डियों की मजबूती में भी रागी का कोई सानी है. ये डायबिटीज के मरीजों के लिए खासा फायदेमंद रहता है. बाजरे में अच्छा खासा प्रोटीन होता है. बाजरे के प्रति 100 ग्राम में 11.6 ग्राम प्रोटीन, 67.5 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 8 मिलीग्राम लौह तत्व और 132 मिलीग्राम के करीब कैरोटीन होता है. कैरोटीन आंखों की सेहत के लिए अच्छा माना जाता है. बढ़ती आबादी की खाद्य जरूरतों को पूरा करने और बेबी फूड में ज्वार का मुकाबला नहीं है. आसानी से पचने वाले जौ यानी ओट्स में बहुत अधिक मात्रा में फाइबर होता है. कॉम्पलेक्स कार्बोहाइड्रेट वाले मोटे अनाज जौ में ब्लड कोलेस्ट्रोल काबू रहता है. यही वजह है कि मोटे अनाज के सेहत संबंधी फायदों को देखते हुए दुनिया इसे अपनाने में खासी दिलचस्पी ले रही है. मोटे अनाज में मुख्य रूप से बाजरा, मक्का, ज्वार, रागी, सांवा, कोदो, कंगनी, कुटकी और जौ शामिल हैं। यह हर दृष्टि से सेहत के लिए लाभदायक हैं। कोरोना के बाद मोटे अनाज इम्यूनिटी बूस्टर के रूप में प्रतिष्ठित हुए हैं। इन्हें सुपर फूड कहा जाने लगा है। पोषक तत्वों की दृष्टि से ये गुणों की खान हैं। प्रोटीन फाइबर की भरपूर मौजूदगी के चलते मोटे अनाज डाइबिटीज, हृदय रोग, उच्च रक्तचाप का खतरा कम करते हैं। इनमें खनिज तत्व भी प्रचुरता में होते हैं, जिससे कुपोषण की समस्या दूर होती है। यह कई प्रकार के कवकों, बैक्टीरिया और वायरल संक्रमणों से लड़ने में फायदेमंद होते हैं। इसके अलावा मोटे अनाज ग्लूटेन से मुक्त होते हैं। ये ग्लूटेन की संवेदनशीलता से पीड़ित लोगों के लिए गेहूं के विकल्प के रूप में काम करते हैं। मोटे अनाज गैर एसिड बनाने वाले, आसानी से पचने वाले और ऐंटीऑक्सीडेंट युक्त गैर एलर्जिक खाद्य पदार्थ होते हैं। ये कई स्वास्थ्य विकारों के खिलाफ रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में मदद करते हैं। मधुमेह, हृदय रोगों और कैंसर के प्रति संवेदनशील लोगों को मोटे अनाज का सेवन करने की सिफारिश की जाती है।

कम मशक्कत वाली फसलें

दुनिया का तापमान लगातार बढ़ता जा रहा है. अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की हाल में जारी की गई एक रिपोर्ट इस मामले में लोगों को आगाह करती है. इसमें कहा गया है कि भारत जैसे कई देशों में आने वाले वर्षों में बढ़ते तापमान की वजह से दिन में काम करना दूभर हो जाएगा.  इसका सबसे अधिक प्रभाव असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले लोगों पर पड़ने की बात की जा रही है. खेती ऐसा ही असंगठित क्षेत्र है. खेती जैसे पेशे में सुबह से लेकर रात तक किसान लगा रहता है. दिन के वक्त तापमान जब सहने लायक नहीं होगा तो खेती-किसानी करने में भी परेशानी आएगी. इस हिसाब से देखा जाए धान जैसी बहुत अधिक मेहनत वाली फसलों के मुकाबले मोटे अनाज की फसलें मुफीद रहेंगी. धान की फसल को ही ले इसके लिए किसान को घंटों पानी में खड़ा रहना पड़ता है. वहीं दूसरी तरफ मोटे अनाज को उगाने में इस तरह की मशक्कत कम करनी पड़ती है. ये अनउपजाऊ किस्म की मिट्टी और कम मेहनत में भी आसानी से पैदा हो जाते हैं.

सर्दियों में है अनगिनत फायदे

मोटा अनाज तासीर में गर्म होते हैं। ऐसे में सर्दियों में इसके सेवन से शरीर को गर्माहट मिलती है, जिससे हम ठंड से बचे रहते हैं। इसके अलावा इसमें मौजूद कई पोषक तत्व भी शरीर के लिए फायदेमंद होते हैं। मिलेट्स यानी मोटा अनाज खाने से हमारे पाचन तंत्र को भी काफी फायदा मिलता है। दरअसल, इसके सेवन से पेट को दुरुस्त रखता है, जिससे कब्ज, गैस, एसिडिटी जैसी समस्याओं दूर रहती हैं। इन दिनों डायबिटीज की समस्या काफी आम हो चुकी है। कई लोग इस गंभीर समस्या से परेशान है। ऐसे में मोटा अनाज का सेवन कई तरह के मधुमेह में गुणकारी है। दरअसल, डायबिटीज के मरीजों के लिए गेहूं का सेवन हानिकारक माना जाता है। ऐसे में बाजरा, रागी, ज्वार आदि ब्लड शुगर को कंट्रोल करने में काफी अहम भूमिका निभाते हैं।

मोटे अनाज और उनके पोषक मान

रागी : रागी को भारतीय मूल का माना जाता है और यह उच्च पोषण मान वाला मोटा अनाज होता है, जिसमें 344 मिग्रा प्रति 100ग्राम कैल्शियम होता है। दूसरे किसी भी अनाज में कैल्शियम की इतनी अधिक मात्रा नहीं पाई जाती है। रागी में लौह तत्त्व की मात्रा 3.9मिग्रा प्रति 100ग्राम होती है, जो बाजरे को छोड़कर सभी अनाजों से अधिक है। रागी खाने की सलाह मधुमेह के रोगियों को दी जाती है। पारंपरिक रूप से रागी का इस्तेमाल खिचड़ी जैसे आहार के रूप में किया जाता है। अब बाजार में एक तुरंत प्रयोग योग्य आहार के रूप में रागी वर्मीसेली उपलब्ध है।

बाजरा : बाजरे का इस्तेमाल कई औद्योगिक उत्पादों में किया जाता है। बाजरे के 100 ग्रा. खाद्य हिस्से में लगभग 11.6 ग्रा. प्रोटीन, 67.5 ग्रा. कार्बोहाइडेट, 8 मि.ग्रा लौह तत्व और 132 माइक्रोग्राम कैरोटीन मौजूद होता है, जो हमारी आँखों की सुरक्षा करता है। भले ही इसमें पाइटिक अम्ल, पॉलीफेनॉल और एमाइलेज जैसे कुछ पोषण-निरोधी अवरोधक होते हैं, पर पानी में भिगोने के बाद अंकुरण और अन्य पकाने की विधियों से इसके पोषण-निरोधी तत्त्वों में कमी हो जाती है।

ज्वार : यह नाइजीरिया का प्रमुख भोजन है। ज्वार का औद्योगिक उपयोग अन्य मोटे अनाजों की तुलना में अधिक होता है। इसका उपयोग शराब उद्योग, डबलरोटी उत्पादन उद्योग, गेहूं-ज्वार संयोजन में किया जाता है। व्यापारिक रूप से शिशु आहार बनाने वाले उद्योगों में ज्वार चवली तथा ज्वार सोयाबीन संयोजन का इस्तेमाल किया जाता है। इसमें 10.4 ग्रा. प्रीटीन, 66.2 ग्रा. कार्बोहाइड्रेट, 2.7 ग्रा. रेशा और अन्य सूक्ष्य तथा वृहत पोषण तत्त्व मौजूद होते हैं।

आहार में रेशों का महत्व

आहार रेशे को वनस्पति कोशिका के ऐसे घटक के रूप में परिभाषित किया जाता है, जो हमारे भोजन में मौजूद रहते हैं। आहार रेशों के बड़े लाभ होते हैं। आहार रेशों में पानी सोखने की प्रवृत्ति होती है और ये फूलने (बल्किंग) वाले एजेंट के रूप में कार्य करता है। यह आमाशयांत्र प्रणाली में भोजन की तेज गति को प्रेरित करता है तथा बड़ी आंत में मल के जमा होने की अवधि को कम करता है। यह पित्त लवण से जुड़कर कॉलेस्ट्रॉल की कमी में वृद्धि लाता है तथा हाइपो कॉलेस्ट्रेमिक एजेंट के रूप में कार्य करता है। इसलिए इसका इस्तेमाल हृदय- रक्तवाहिका तंत्र रोगों में लाभदायक होता है। चावल में अन्य अनाजों की तुलना में सबसे कम आहार रेशे होते हैं। ज्वार का आहारीय रेशा 89.2 फीसदी, बाजरे में 122.3 फीसदी तथा रागी में 113.5 फीसदी रेशा मौजूद होता है।

मोटे अनाज पर आधारित प्रसंस्कृत भोजन

मक्का, ज्वार और अन्य मोटे अनाज का उत्पादन भारत के कुल खाद्य उत्पादन का एक चौथाई है तथा यह देश की अर्थव्यवस्था में अहम योगदान देता है। इसके अलावा पारंपरिक पाकविधियों में मोटे अनाजों का इस्तेमाल शिशु आहार बनाने वाले उद्योग तथा अन्य खाद्यपदार्थों के उत्पादन में किया जाता है। ज्वार का इस्तेमाल ग्लुकोज और अन्य पेय निर्माण उद्योग में किया जाता है। अब रागी और गेहूं के मिश्रण से निर्मित वर्मिसेली बाजार में उपलब्ध है, जिसे खाने के लिये तैयार भोजन के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।

पोषण-निरोधी तत्त्वों को घटाने की पहल

हवा लगाना, सेंकना, अंकुरण, भिंगोने और माल्टिंग जैसी कुछ पारंपरिक विधियों के जरिए मोटे अनाजों के गाढ़ेपन में काफी कमी जाती है। गाढ़ेपन में सबसे अधिक कमी माल्टिंग के दौरान आती है। अनाज के अंकुरण के बाद और धूप में सुखाने के बाद अधिकतर अवांछित एंजाइम नष्ट हो जाते हैं। मिश्रण का गाढ़ापन और अमाइलेज की मात्रा, गैर-माल्टेड अनाज मिश्रण से काफी कम होती है। माल्टेड मोटे अनाज, शिशु आहार फार्मूलों और साथ ही बूढ़े व्यक्तियों के पोषण में काफी लाभदायक होते हैं। मोटे अनाज को बढ़ावा देने के लिए कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा वर्ष 2022 -23 के रवि मौसम से ही शुरुआत की गई है, जिसमें जौ की खेती को बढ़ावा देने हेतु कृषि विज्ञान केंद्र नगीना द्वारा जनपद के 5 किसानों के क्षेत्रों पर इसका प्रदर्शन प्रशिक्षण कराया जा रहा है। आगामी वर्ष 2023 में कृषि विज्ञान केंद्र नगीना द्वारा मोटे अनाजों में जौ, बाजरा, मक्का, ज्वार, रागी, सांवा, कोदो, कंगनी, कुटकी को बढ़ावा देने के लिए प्रशिक्षण, प्रदर्शन इत्यादि कार्यक्रम कराए जाएंगे जिससे किसानों को आत्मनिर्भर, आय की वृद्धि का अतिरिक्त साधन बढ़ाया जा सके।

मोटा अनाज से 36 रोगों का इलाज

पहले माताएं शिशुओं को ज्वार और मक्के के आटे का घोल पिलाती थीं। क्योंकि मोटे अनाज आसानी से पचने वाले फाइबर और कॉम्पलेक्स कार्बोहाइडेट्स का अच्छा स्रोत है। लो सैच्यूरेटेड फैट के साथ लेने पर हृदय संबंधी बीमारियों को कम करता है। यह एलडीएल (लो डेसिंटी लिपोप्रोटीन) की क्लियरेंस बढ़ाता है। इसमें मौजूद फोलिक एसिड बढ़ती उम्र वाले बच्चों के लिए बेहद उपयोगी है। यह एंटीकैंसर भी होता है। इसमें कैल्शियम, प्रोटीन, जिंक, मैग्नीज, लोहा, खनिज तत्व, कैलोरी, कैरोटीन, फोलिक ऐसिड, एमिनो एसिड, विटामिन-बी, और एंटीऑक्सीडेंट भरपूर मात्रा में होते हैं। मोटे अनाज डिसलिपिडेमिया और डायबिटीज पीड़ितों के लिए रामबाण है।

बेबी फूड उत्पाद कंपनियों की चांदी

मोटे अनाज से हेल्थ ड्रिंक, चिल्ला, इडली, टोस्ट, ब्रेड, बिस्किट, बेबी और हेल्दी फूड बड़ी मात्रा में बनाए जा रहे हैं। भारत में इस समय 4500 करोड़ रुपए से ऊपर का बेबी फूड कारोबार है। वर्ष 2020 में वैश्विक शिशु आहार बाजार 30.0 बिलियन डॉलर था जिसमें 2030 तक 6.1 फीसदी बढऩे की उम्मीद है।

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