Tuesday, 26 March 2024

बलिया : चंद्रशेखर कीविरासतसंभालने की छिड़ी हैजंग

वीरों की धरती, जवानों का देश, ’बागी बलियाहमेशा से सुर्खियों में रहा। बात चाहे आजादी की लड़ाई में ब्रतानियां हुकूमत की छक्के छुड़ा देने का रहा हो या सियासत की, मंगल पांडेय चंद्रशेखर सिंह की चर्चा किए बगैर पूरी ही नहीं होती। हर तबके के दिलों पर राज करने वाले चंद्रशेखर कुल 8 बार यहां से सांसद चुने गए। जबकि दो बार उनकी विरासत संभाल रहे उन्हीं के बेटे नीरज शेखर इस सीट से 2007 और 2009 में सांसद रह चुके हैं। यह अलग बात है कि मोदी लहर में वर्ष 2014 के आम चुनाव में उन्हें भी हार का सामना करना पड़ा। हालांकि सपा ने 2014 में ही राज्यसभा सांसद बनाकर उनकी गरिमा को बनाएं रखा। लेकिन सपा में उठापटक के सियासी भंवर में उलझने के बजाएं वे 2019 में सपा से नाता तोड़ भाजपा के हो गए और उसी दिन फिर से राज्यसभा चुन लिए गए। उधर, सपा ने उनकी जगह ब्राह्मण कार्ड खेलते हुए सनातन पांडेय को मैदान में उतारकर इस सीट को हथियाना चाहा, लेकिन कांटे की टक्कर में भाजपा के वीरेन्द्र सिंह मस्त से पस्त हो गई। फिजा में बदलते रुख को भापते हुए 2024 में अबकी बार 400 पार के नारे के साथ मैदान में उतरी भाजपा कोई रिस्क नहीं लेना चाहती। यही वजह है कि भाजपा, सपा-कांग्रेस गठबंधन बसपा प्रत्याशी उतारने से पहले जीत की गारंटी वाले उम्मीदवार की छानबीन में अपना सर खपा रही है। भाजपा मस्त को दुबारा मैदान में उतारे या नहीं के घनचक्क्र में उलझी है तो विपक्ष अबकी बार मौका खोना नहीं चाहती। इधर, मस्त के घूर विरोधी रहे सुरेन्द्र सिंह काफी मान-मनौव्वल बाद भाजपा में तो गए है, लेकिन उन्होंने दो टूक कह दिया है बीजेपी जिसे भी टिकट देगी, हम उसके साथ लगेंगे, मस्त चुनाव लड़े तो हारेंगे. ऐसे धमाचौकड़ी में बाजी किसके हाथ लगेगी ये तो 4 जून को परिणाम बतायेंगे, लेकिन जातियता की चकरघिन्नी में मुकाबला इंडी गठबंधन के सपा भाजपा के बीच ही है, से इनकार नहीं किया जा सकता 

सुरेश गांधी

सरयू गंगा किनारे बसा बलिया में इस बार का चुनाव राष्ट्रवाद, श्रीराम मंदिर और विकास के मुद्दे सहित जाति की लहरों पर उफान मार रहा है। क्योंकि सीट पर इस बार भी जातीय समीकरण को साधना ही जीत का सबसे बड़ा मंत्र है। मौजूदा सीट बचाने की जद्दोजहद में जुटी भाजपा जातीय किलेबंदी को तोड़ने के लिए हरसंभव प्रयास कर रही है। जहां तक विकास का सवाल है तो तमाम प्रयासों के बावजूद बलिया का आज भी समस्याओं से पीछा नहीं छूटा है। कहीं सड़के नदारद है तो कहीं उबड़-खाबड़। मेडिकल इंजिनियरिंग कालेज भी नहीं है. यही वजह है कि बलिया के युवा ही नहीं अब हर तबका विकास चाहता है। लेकिन सियासत उनके मंसूबो पर पानी फेर रही है। चाहकर भी बलियावासी जातीय बंधन से आजाद नहीं हो पा रहे है। वक्त जब चुनाव का है तो पार्टियां एकबार फिर जातियों को ही केन्द्र में रखकर उम्मींदवार मैदान में उतारने की जद्दोजहद में जुटी है। मोहम्मदाबाद के सफीक का कहना है कि मोदी-योगी के कामों की वजह से मुस्लिम समाज से भी कुछ लोग उन्हें वोट कर सकते हैं। लेकिन विपक्ष के जातीय समीकरण को देखने के बाद फिलहाल आप नतीजे के बारे में कुछ नहीं कह सकते। 

ऑटो चालक जर्नादन गिरी कहते हैं कि रेलवे एवं सड़कों का विकास जरूर हुआ है, लेकिन रोजगार को लेकर कुछ नहीं किया गया। मेरे हिसाब से यहां विकास मुद्दा नहीं रहेगा। लोग जाति के आधार पर वोट करेंगे। जबकि जुनैद खान कहते हैं, ‘हम विकास चाहते हैं, मंदिर-मस्जिद की सियासत नहीं। जति-धर्म में बांटकर ध्यान भटकाने की कोशिश हो रही है।फेफना के नसीम कहते हैं-हमें देश विरोधी कह कर बदनाम किया जाता है। हमारा गांव देखिए, हिन्दू-मुस्लिम सब साथ रहते हैं। मिलजुल कर त्योहार मनाते हैं। इस समूह को केंद्र सरकार की तीन बातें सबसे खराब लगती हैं। नसीम कहते हैं-भाजपा सरकार काम से ज्यादा काम के प्रचार पर लगी रही। विकास उन्हीं इलाकों में किया जहां उन्हें वोट मिले। सलीम और जुनैद इसमें जोड़ते हैं- भाजपा सरकार मुसलमानों के धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप कर रही है। उन्हें इंडी गठबंधन पर भरोसा है। हमारा भला इंडी सरकार में ही हो सकता है। इसलिए हम उसके साथ हैं। यही भाजपा को हराने में सक्षम है। बैरिया के दिवाकर यादव कहते है योगीराज के बुलडोजर से अपराध तो रुके है, लेकिन सांसद की उपेक्षात्मक रवैये से केन्द्रीय कल्याणकारी योजनाओं का पूरा लाभ नहीं मिला। चुनाव पर इसका असर भी पड़ेगा, लेकिन वे गठबंधन का साथ देंगे। क्योंकि भाजपा सरकार में बेरोजगारी बढ़ी है। नेशनल हाईवे तो बन रहे हैं लेकिन गांव की सड़कों को कोई नहीं पूछ रहा है। भ्रष्टाचार के खात्मे का ढिंढोरा पीटा गया पर यह कम नहीं हुआ। गरीबों का शोषण बढ़ गया है।

जहूराबाद के रामचरित्र और कुलवंत सिंह कहते हैं तरक्की से सुरक्षा तक भाजपा ने सब किया है। यहां प्रधानमंत्री आवास और टॉयलेट बने। उज्ज्वला गैस कनेक्शन और सौभाग्य बिजली कनेक्शन दिए गए। गांव के सैकड़ों लोगों तक किसान सम्मान निधि पहुंची है। इसलिए प्रत्याशी कौन होगा, उनके लिए मायने नहीं रखता। बलिया नगर के अनिल, संतोष, प्रवीण, सकलाज, रामप्रीत, उमेश, भगेदू, और कलवारी कहते हैं- मोदी और योगी की सरकारों ने शानदार काम किया। खेती किसानी के लिए पैसा मिल रहा है। राशन घोटाला रुका है। .सब्सिडी भी खाते में सीधे मिल रही है। लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी में शामिल हुए बैरिया विधानसभा सीट से विधायक रहे सुरेंद्रनाथ सिंह अपने बयाननों से विवादों में रहने बीजेपी ने 2022 के चुनाव में टिकट काटकर पूर्व मंत्री आनंद स्वरूप शुक्ला को उम्मीदवार बनाया था. टिकट कटने के बाद सुरेंद्र ने बगावत कर दी थी. वह मुकेश सहनी के नेतृत्व वाली विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के टिकट पर चुनाव मैदान में थे। काफी मान-मनौव्वल बाद भाजपा में तो गए है, लेकिन उन्होंने दो टूक कह दिया है बीजेपी जिसे भी टिकट देगी, हम उसके साथ लगेंगे, मस्त चुनाव लड़े तो हारेंगे.

इतिहास

1857 की क्रांति से प्रसिद्ध मंगल पाण्डे की जन्म भूमि बलिया ही है. इतना ही नहीं इस धरती ने कई महान हस्तियों से देश को नवाजा है. जिसमें चित्तू पांडे, जय प्रकाश नारायण और हजारी प्रसाद द्विवेदी समेत कई विभूतियों के अलावा एक प्रधानमंत्री (चंद्रशेखर) भी देश को दिया. इस क्षेत्र का नामराजा बलिके नाम से बलिया पड़ा. माना जाता है कि महान ऋषि जमदग्नि, वाल्मीकि, भृगु और दुर्वासा आदि ऋषियों के आश्रम बलिया में ही थे। एक समय यहां बौध धर्म का काफी प्रभाव था। प्राचीन काल में बल्लिया के नाम से जाने जाने वाला बलिया कोसाला राज्य में शामिल था। छठी शताब्दी ईसा पूर्व में कोसला सोलह महाजनपदों में एक था। प्राचीन काल के अलावा मध्ययुगीन काल में भी इसकी महत्ता बनी रही। ब्रिटिश राज में भी बलिया शहर अपने त्याग, बलिदान और साहस के लिए जाना गया। इस शहर का आजादी की लड़ाई में अहम योगदान रहा। देश के पहले स्वतंत्रता संग्राम (1857) के नायक मंगल पांडे इसी जिले के नगवां गांव में पैदा हुए थे। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान 20 अगस्त 1942 को चित्तू पांडे ने लोकप्रिय सरकार का गठन किया और यहां कांग्रेस राज घोषित कर दिया। आजादी के पहले बलिया गाजीपुर जिले का एक हिस्सा था। लेकिन बाद में स्वतंत्र रूप से जिला हो गया।

कुल मतदाता

    बलिया लोकसभा सीट में कुल पांच विधानसभा क्षेत्र हैं। इनमें बलिया जिले की तीन गाजीपुर की दो विधान सभाएं हैं। सबसे अधिक मतदाता गाजीपुर के हिस्से की मुहम्मदाबाद विस क्षेत्र में हैं, जबकि सबसे कम मतदाता फेफना विधानसभा क्षेत्र में हैं। बलिया लोकसभा सीट के कुल 1057 मतदान केंद्रों पर 19,12, 864 मतदाता वोट डालेंगे। इनमें 10 लाख 26 हजार 474 पुरुष तथा 8 लाख 86 हजार 316 महिला और 74 थर्ड जेंडर मतदाता हैं। जिले में सबसे आखिरी यानी सातवें चरण में एक जून को मतदान होगा। बांसडीह विधानसभा क्षेत्र में सर्वाधिक 409424 मतदाता हैं। जबकि मुहम्मदाबाद (गाजीपुर) विधानसभा क्षेत्र में 4,33,301 वोटर हैं। बलिया की आबादी 32.4 लाख है जो यूपी का 29वां सबसे ज्यादा आबादी वाला जिला है. क्षेत्रफल के लिहाज से यूपी का 31वां जिला है. यहां पुरुषों की संख्या 52 फीसदी (16.7 लाख) और महिलाओं की संख्या 15.7 लाख (48 फीसदी) है. कुल आबादी में 81 फीसदी आबादी सामान्य वर्ग की है, जबकि 15 फीसदी आबादी अनुसूचित जाति और 3 फीसदी आबादी अनुसूचित जनजाति की है. मतलब साफ है 92.79 फीसदी आबादी हिंदू की हैं। जबकि 6.61 फीसदी मुस्लिम हैं. ईसाइयों की करीब 4 हजार आबादी भी बलिया में निवास करती है. 2011 की जनगणना के मुताबिक 1000 पुरुषों पर 937 महिलाएं हैं. सामान्य वर्ग में यह औसत 940 है तो अनुसूचित जनजातियों की आबादी 938 है. यहां की साक्षरता दर 71 फीसदी (81 फीसदी पुरुष और 60 फीसदी महिलाएं) है. बलिया संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत 5 विधानसभा (फेफना, बलिया नगर, बैरिया, जहूराबाद और मोहम्मदाबाद) क्षेत्र आते हैं और यह सभी पांचों सीट सामान्य वर्ग के लिए है.

2014 में पहली बार खिला था कमल

भरत सिंह ने पहली बार इस सीट पर कमल खिलाया था। लोकसभा चुनाव 2014 में भाजपा के भरत सिंह ने सपा के प्रत्याशी नीरज शेखर को 1,39,434 वोटों से हराकर जीत दर्ज की थी। जबकि बाहुबली विधायक मुख्तार अंसारी के भाई अफजल अंसारी को 1,63,943 और बसपा के वीरेंद्र कुमार पाठक को 1,41,684 वोट मिले थे। वहीं कांग्रेस के सुधा राय को 13,501 वोटों से ही संतोष करना पड़ा था। 2019 के चुनाव में यहां कड़ा मुकाबला देखने को मिला। भाजपा के वीरेंद्र सिंह मस्त ने 4,69,114 वोट हासिल कर 15,519 वोटों के अंतर से जीत हासिल की। वीरेंद्र सिंह ने सपा के सनातन पांडे को हराया, जिन्हें 4,53,595 वोट मिले थे.

वीरेन्द्र ने किया विकास का दावा

भाजपा के निवर्तमान सांसद वीरेंद्र सिंह मस्त के मुताबिक उन्होंने संसदीय क्षेत्र में समान रूप से कार्य करवाए हैं। खासकर दो ट्रेनों का परिचालन बलिया से कराने के अलावा आरा से बलिया रेल लाइन का भी काम कराया गया है। ग्रीन फील्ड एक्सप्रेसवे पर भी काम तेजी से चल रहा है। इसके अलावा कई विकास परियोजनाओं की स्वीकृति भी दिलायी है। मंडुवाडीह-नई दिल्ली सुपर फास्ट ट्रेन और कामायनी एक्सप्रेस को बलिया तक विस्तार कराया और पुरानी परियोजनाओं को बजट अवमुक्त कराकर गति दी। सांसद निधि से 200 से अधिक सामुदायिक भवनों के अलावा सोलर वाटर पंप ओपन जिम का निर्माण कराया है। इसके अलावा इंटरलाकिंग सड़क आदि के निर्माण भी कराए गए हैं। भरौली, महावीर और शिवपुर घाट के जीर्णोद्धार के लिए 24 करोड़ रुपये की स्वीकृति मिली है। रोजगार के लिए युवाओं का पलायन रोकने के लिए बायो पेट्रोल उत्पादन प्रोत्साहन योजना द्वारा 200 करोड़ से पहला एथेनाल प्लांट का निर्माण कराया जा रहा है। तेल एवं खाद्य मंत्रालय की सहमति से बैरिया तहसील के ख्वासपुर में प्लांट के लिए दफ्तर एवं भूमि की बाउंड्री कराई जा चुकी है। शीघ्र ही प्लांट के उपकरण लगाने की तैयारी है। एथेनाल प्लांट में प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष तरीके से युवाओं को रोजगार मिलेगा। 

कब कौन जीता

2019       वीरेंद्र सिंह मस्त (बीजेपी)

2014       भरत सिंह (बीजेपी)

2009, 2008 उपचुनाव      नीरज शेखर (सपा)

2004, 1999, 1998, 1996, 1991     चंद्रशेखर (सजपा)

1989       चंद्रशेखर (जनता दल)

1984       जगन्नाथ चौधरी (कांग्रेस)

1980, 1977          चंद्रशेखर (जनता पार्टी)

1971, 1967          चंद्रिका प्रसाद (कांग्रेस)

1962       मुरली मनोहर (कांग्रेस)

1957       राधा मोहन सिंह (कांग्रेस)

1952       राम नगीना सिंह (सोशलिस्ट पार्टी) 

जातिय समीकरण

बलिया में सर्वाधिक 3 लाख आबादी ब्राह्मण की हैं. राजपूत और यादव वोटर भी नतीजे बदलने का दम रखते हैं. मुस्लिम और भूमिहार भी प्रभावशाली हैं. बलिया के दोआबा इलाके सबसे अधिक संख्या में ब्राह्मण रहते हैं. फिर यादव, राजपूत दलित वोट हैं. तीनों वर्ग की आबादी की संख्या यहां पर करीब ढाई-ढाई लाख है और मुस्लिम वोट करीब एक लाख है. पांचों विधानसभा सीटों में से केवल एक सीट पर ही बीजेपी ने जीत दर्ज की. बाकी की सीटों पर विपक्ष ने अपनी जीत दर्ज की. फेफना, बैरिया और मोहम्मदाबाद से सपा के विधायक चुने गए, फेफना से संग्राम सिंह को जीत मिली और बैरिया पर जय प्रकाश अंचल ने जीत दर्ज की. वहीं, मोहम्मदाबाद से विधायकी का चुनाव मन्नू अंसारी ने जीती. जहूराबाद से ओम प्रकाश राजभर जोति सुभासपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष है, विधायक चुने गए. बलिया नगर सीट पर बीजेपी के दयाशंकर सिंह जीत गए.

कभी चंद्रशेखर की तूती बोलती थी  

चंद्रशेखर कभी कांग्रेस के युवा तुर्क हुआ करते थे. उनके बारे में कहा जाता था कि पूरी राजनीतिक गलियारे में अगर कोई ऐसा शख्स है जो इंदिरा गांधी से एक रत्ती नहीं डरता तो वे चंद्रशेखर है. वे अपनी बात को इंदिरा गांधी के सामने भी हूबहू उन्हीं शब्दों में रखते थे, जिन शब्दों में उनकी गैरमौजूदगी में बोलते थे। यही वजह है कि जब इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल थोपा तो चंद्रशेखर चौधरी चरण सिंह की भारतीय लोक दल (ठस्क्) में चले गए और पहली बार बलिया से कांग्रेस सत्ता को ललकारा और जीत दर्ज की. साल 1977 में पहली बार बलिया में चंद्रशेखर कूदे और जीते. इसके बाद केवल 1984 की इंदिरा के मौत के बाद देशभर में दौड़ी कांग्रेस की लहर में बस एक बार चंद्रशेखर को कांग्रेस जगन्नाथ चौधरी से हार का सामने करना पड़ा वरना जब तक चंद्रशेखर जिंदा रहे, बलिया सीट पर 25 सालों के भीतर हुए छह लोकसभा सभा चुनाव में उनके अलावा जनता ने किसी और को मौका नहीं दिया. इस सीट पर पहली बार हुए 1952 में चुनाव हुआ था. तब निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर मुरली मनोहर ने जीत हासिल की थी. वहीं 1957 में कांग्रेस के राधा मोहन सिंह, 1962 में कांग्रेस के मुरली मनोहर और 1967-1971 में कांग्रेस के चंद्रिका प्रसाद ने दो बार जीत हासिल की थी. आखिरी बार इस सीट से कांग्रेस ने 1984 में चुनाव जीता था.

चंद्रशेखर ने कुल आठ बार (1977-2004) जीत हासिल की

इस सीट से प्रसिद्ध और दिग्गज नेता और पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने कुल आठ बार (1977-2004) जीत हासिल की. चंद्रशेखर के पुत्र नीरज शेखर भी इस निर्वाचन क्षेत्र से दो बार 2007-2009 में सांसद पद पर रह चुके हैं. बलिया को अपनी कर्मभूमि बनाने वाले चंद्रशेखर के लिए दल मायने नहीं रखता था। हालांकि 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस के पक्ष में चली सहानुभूति की लहर को वह भेदने में नाकाम रहे। इस चुनाव में उन्हें जगन्नाथ चौधरी ने हराया। हार की वजह से चंद्रशेखर जीत की हैट्रिक से वंचित हो गए। चंद्रशेखर ऐसे राजनेताओं की दुर्लभ नस्ल से थे, जो अपने पूरे सियासी सफर में अपनी समाजवादी विचारधारा के प्रति प्रतिबद्ध रहे। वह साहस और दृढ़ विश्वास के प्रतीक थे। इसका उदाहरण उनकी ओर से समय-समय पर लिए गए फैसलों से मिलता है। चंद्रशेखर वैसे तो शुरू में कांग्रेस पार्टी से ही जुड़े रहे। 1962-1977 तक राज्यसभा के सदस्य भी रहे। ये काल उनके जीवन काल से हटा दें तो उन्होंने हमेशा कांग्रेस के विरोध की राजनीति की। 1977 में आपातकाल के समय उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी। इंदिरा गांधी के ’’मुखर विरोधी’’ के तौर पर उनकी पहचान बनी। बलिया समेत पूरे देश के लोगों को शायद उनकी यही छवि प्रभावित करती थी। पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने बलिया से अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की। हालांकि उनका पैतृक घर इब्राहिमपट्टी में है, जो बलिया और मऊ जिले की सीमा पर है। इसका कुछ हिस्सा सलेमपुर लोकसभा क्षेत्र में आता है। छात्र जीवन से राजनीति का ककहरा सीखने वाले चंद्रशेखर ने आपातकाल के बाद कांग्रेस छोड़ी और 1977 के लोकसभा चुनाव में वह पहली बार भारतीय लोकदल के प्रत्याशी के तौर पर चुनावी समर में उतरे और जीत दर्ज की। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और 2004 तक बराबर राजनीति में सक्रिय रहे। अपने कीर्तिमान भरे सियासी सफर में उन्होंने प्रधानमंत्री के पद को भी सुशोभित किया। खास बात यह है कि चंद्रशेखर सिंह बलिया से लोकसभा चुनाव तो लड़ते थे, लेकिन कभी भी अपने लिए जनता के बीच जाकर वोट नहीं मांगा। वह जनसभा करते थे। लोगों को संबोधित करते हुए अपनी बात को जनता के सामने पुरजोर ढंग से रखते थे। वोट मांगने का काम उनके कार्यकर्ता करते थे। उनके चुनाव लड़ने के दौरान एक लहर उनके पीछे चल पड़ती थी, जो उनकी जीत की इबारत लिखती थी। यह सिलसिला सालों तक चला। चंद्रशेखर ने जब-जब बलिया से चुनाव लड़ा, मुलायम सिंह यादव ने उनके खिलाफ कभी भी अपना प्रत्याशी नहीं उतारा। 2004 के चुनाव में वह सजपा (रा) से चुनाव लड़े तो उनके सामने बसपा और भाजपा का उम्मीदवार था। मगर उन्हें सपा का समर्थन रहा। 1999, 1998 में भी सपा का उन्हें समर्थन मिला। 1996 में चंद्रशेखर समता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़े। उस समय भाजपा ने घोषणा की थी कि किसी भी उत्कृष्ट सांसद के खिलाफ प्रत्याशी नहीं उतारेंगे। उस वर्ष चंद्रशेखर संसद में उत्कृष्ट सांसद चुने गए थे। इसलिए भाजपा ने चुनाव नहीं लड़ा।

 

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