जिसके जाट, उसके ठाट के बीच ’जाटलैंड’ में ’रामजी’ करेंगे बेडापार
कोई
इलेक्टोरल
बॉन्ड
का
मुद्दा
उछाल
कर
माहौल
अपने
पक्ष
करने
में
जुटा
है,
तो
कोई
जातिय
तानाबाना
के
उधेड़बुन
में
प्रत्याशी
बदल
रहा
है।
तो
किसी
को
अपने
सोशल
इंजिनियंरिंग
पर
भरोसा
है।
लेकिन
’400 पार’
के
नारे
के
साथ
किला
फतह
करने
निकली
भाजपा
इस
बार
किसी
को
भी
मौका
देने
की
मूड
में
नहीं
हैं।
इसे
संयोग
कहिए
या
पॉलिटिकल
प्रयोग
समझिए,
मगर
त्रेतायुग
में
राक्षसों
का
संहार
करने
के
लिए
जिस
धरा
पर
कौशलान्यानंदन
पहुंचे
थे,
वहां
इस
बार
सियासी
शत्रुओं
का
सामना
करने
लिए
दुनिया
की
सबसे
लोकप्रिय
धारावाहिक
’रामायण’
में
भगवान
राम
का
किरदार
निभाने
वाले
अरुण
गोविल
को
मैदान
में
उतारकर
हिन्दुत्व
का
संदेश
देने
की
कोशिश
की
है।
मकसद
है
उनकी
मौजूदगी
में
पूरे
जाटलैंड
या
यूं
कहे
पश्चिमी
उत्तर
प्रदेश
को
हथियाने
की।
मतलब
साफ
है
रावण
के
ससुराल
व
कौरवों
की
राजधानी
हस्तिनापुर
के
रुप
में
विख्यात
मेरठ
पर
लगातार
चौथी
बार
की
जीत
के
लिए
भाजपा
पूरी
तरह
आशान्वित
होना
चाहती
है।
30 मार्च
को
खुद
प्रधानमंत्री
नरेन्द्र
मोदी
अरुण
गोविल
के
साथ
यहां
से
चुनावी
शंखनाद
करने
वाले
है।
लेकिन
बड़ा
सवाल
तो
यही
है,
क्या
रामायण
के
’राम’
को
चुनावी
मैदान
में
उतारने
का
पश्चिमी
यूपी
पर
असर
पड़ेगा?
खास
तौर
से
तब
जब
सपा
मुखिया
अखिलेश
यादव
बसपा
सप्रीमो
मायावती
अपने
कोर
वोटबैंक
के
साथ
डटे
रहने
के
लिए
धाकड़
से
धाकड़
रणबांकुरो
को
मैदान
में
उतारने
की
रणनीति
तैयार
कर
रखी
है।
फिरहाल,
ये
सियासी
धुरंधर
अपने
उम्मींदवार
को
जिताने
में
कितना
सफल
हो
पायेंगे,
इसका
पता
तो
4 जून
को
ही
चलेगा।
लेकिन
मेरठ
शहर
के
प्रफुल्ल
कुमार
कहते
है
जिसके
जाट,
उसके
ठाट।
अगर
मतो
का
ध्रुवीकरण
हुआ
तो
मेरठ
ही
नहीं
पूरे
जाटलैंड
में
भगवा
लहराने
से
कोई
रोक
नहीं
सकता।
जबकि
उन्हीं
के
बगल
में
खड़े
सलाउद्दीन
का
कहना
है
अगर
प्रतिद्वंदी
दलों
का
कोर
वोटर
एकजुट
हुआ
तो
भगवा
फहराना
तो
दूर
जमानत
बचाना
मुश्किल
हो
जायेगा
सुरेश गांधी
दो पवित्र नदियों
गंगा और यमुना के
बीच बसा मेरठ अपनी
खास राजनीतिक पहचान रखता है. आजादी
की जंग की शुरुआत
इसी मेरठ शहर से
हुई थी. इतना ही
नहीं खेलों से जुड़े अपने
शानदार उत्पादों की वजह से
भी मेरठ दुनियाभर में
जाना-पहचाना नाम है. मेरठ
का नाम मयराष्ट्र से
निकला हुआ माना जाता
है जिसका अर्थ होता है
मय का प्रदेश. हिंदू
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार मय
असुरों का राजा हुआ
करता था. उसकी बेटी
मंदोदरी रावण की पत्नी
थी. यही नहीं महाभारत
काल में कौरवों की
राजधानी हस्तिनापुर थी जो वर्तमान
में मेरठ जिले के
अंतर्गत आता है. यही
नहीं मेरठ को ‘भारत
का खेल नगर’ भी
कहते हैं. यहां पर
विशाल खेल उद्योग है.
यहां भारतीय सेना की एक
छावनी भी है।
शहर में कुल चार विश्वविद्यालय हैं, चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, सरदार वल्लभ भाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, शोभित विश्वविद्यालय एवं स्वामी विवेकानंद सुभारती विश्वविद्यालय। पांडव किला, शहीद स्मारक, हस्तिनापुर तीर्थ, जैन श्वेतांबर मंदिर, रोमन कैथोलिक चर्च, सेन्ट जॉन चर्च, नंगली तीर्थ, सूरज कुंड, हस्तिनापुर सेंचुरी यहां के प्रमुख पर्यटन स्थल हैं। देखा जाएं तो यूपी के सियासी महासंग्राम में पहला पड़ाव पश्चिमी यूपी है. इस पड़ावरुपी भवसागर को पार करने के लिए हिन्दुत्व, राम मंदिर, राष्ट्रवाद जैसे दांव चले जा रहे हैं, तो अपराधीकरण, दंगा, तुष्टिकरण जैसे संगीन आरोपों का भी खूब सहारा लिया जा रहा है. कुल मिलाकर सियासी मैदान पर लड़ाई जबरदस्त चल रही है. लेकिन इस बार भाजपा ने मेरठ ही नहीं पूरे ‘जाटलैंड’ को हथियाने के लिए सबसे चर्चित व हीट धारावाहिक रामायण के ‘राम’ अरुण गोविल को मेरठ से उतारकर बड़ा संदेश देने की कोशिश की है। ये वहीं अरुण गोविल है, जिसमें देश की एक बड़ी आबादी भगवान राम की छवि देखता है. इनकी छबि या नाम का इस क्षेत्र में कितना असर पड़ेगा, ये बताने के लिए काफी है कि सपा मुखिया अखिलेश यादव ने अपना प्रत्याशी ही बदल दिया। अब यहां से एडवोकेट भानु प्रताप सिंह की जगह दसरे उम्मींदवार के चयन पर मंथन चल रहा है। जबकि बसपा ने अभी अपना उम्मींदवार ही नहीं उतारा है। दोनों पार्टियों के सियासतदान अपने-अपने कोर वोटबैंक के साथ जातिय समीकरण बैठाने में जुटे है।
हालांकि पश्चिमी उत्तर प्रदेश की जब भी
बात आती है तो
जाट और मुसलमानों की
बात जरूर होती है,
क्योंकि दोनों की आबादी यहां
अच्छी खासी है. यहां
27 प्रतिशत मुसलमान यहां हैं, तो
वहीं 17 फीसदी जाट हैं. यानी
दोनों मिलाकर 44 प्रतिशत वोट होता है,
जिसको इन दोनों के
वोट मिले, उनकी सीट यहां
से निकल गई. इस
बार भाजपा इसी रणनीति पर
काम कर रही है।
सोने पर सुहागा यह
है कि इस बार
उसके साथ राष्ट्रीय लोकदल
के जयंत चौधरी है.
इसी साथ की वजह
से 2014 में बीजेपी ने
क्लीन स्वीप किया था और
90 फीसदी सीटें अपने नाम की
थी. लेकिन 2019 में जयंत व
अखिलेश के साथ-साथ
होने से न सिर्फ
सीटों की संख्या घट
गयी थी,ख् बल्कि
जीत की वोट आफ
मार्जिन भी घट गयी
थी। लेकिन इस बार जाटलैंड
में अखिलेश का गणित गड़बड़
होता दिख रहा है.
मेरठ, मुजफ्फरनगर से लेकर मथुरा
तक उनकी जातिय गणित
उलट-पलट होती दिख
रही है. यही वजह
है कि बार-बार
उन्हें प्रत्यशी बदलना पड़ रहा है।
जाट नेता जनार्दन का
कहना है कि मेरठ
में जाट इस बात
से नाराज हैं कि उनके
साथ छल किया गया
है, उन्हें दुख है कि
उनका वोट तो लिया
जाता है लेकिन काम
मुसलमानों का होता है।
इसलिए इस बार नारा
दे दिया गया है,
जिसके जाट, उसके ठाट.
वोट-युद्ध में विजय का
आशीर्वाद लेने के लिए
अपनों के बीच करबद्ध
खड़े हैं.
अरुण गोविल के
आसरे जाटलैंड पर विजय पताका
बरकरार रखने के लिए
बीजेपी ने औपचारिक शंखनाद
कर दिया है. 66 बरस
की उम्र में चुनावी
राजनीति में नई पारी
शुरू करने वाले अरुण
गोविल बेहद उत्साहित हैं.
मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम को कल्पनाओं से
सुनहरे पर्दे पर उतारकर लोकप्रिय
हुए गोविल इस बार रामनामी
पार्टी का झंडा थामकर
सियासी संग्राम में जीत को
लेकर आश्वस्त हैं. जिस मेरठ
से अरुण गोविल को
चुनावी मैदान में बीजेपी उतारा
है वो अभेद्य किला
सा रहा है. पिछले
आठ चुनावों में छह बार
बीजेपी ने जीत हासिल
की है. हालांकि गोविल
की राह इतनी आसान
नहीं है. यह अलग
बात है कि श्रीराम
का किरदार निभाने वाले अरुण गोविल
को जाटलैंड से मैदान में
उतारकर हिंदुत्व का संदेश दिया
है। समूचे देश में विख्यात
रहे अरुण गोविल मूलतः
मेरठ के ही रहने
वाले हैं. दूसरी बड़ी
बात ये है कि
सियासी तौर पर बीजेपी
का गढ़ रहे मेरठ
में जातीय समीकरण के हिसाब से
गोविल फिट हैं. वैश्य
समाज से ताल्लुक रखने
वाले अरुण गोविल के
जरिए बड़े वोटबैंक को
साधने की कोशिश में
है. गोविल के पक्ष में
लोगों को गोलबंद करने
के लिए सीएम योगी
आदित्यनाथ ने मोर्माचबंदी शुरू
कर दी है. चौधरी
चरण सिंह विश्वविद्यालय के
नेताजी सुभाषचंद्र बोस प्रेक्षागृह में
बीजेपी के प्रबुद्ध वर्ग
सम्मेलन में शिरकत की.
30 मार्च को प्रधानमंत्री मोदी
मेरठ से चुनावी रैलियों
की शुरुआत करेंगे. ऐसे में बीजेपी
समर्थक बेहत उत्साहित हैं.
2019 व 2014 का परिणाम
2019 लोकसभा चुनाव में इस सीट
से बीजेपी के राजेंद्र अग्रवाल
ने जीत हासिल की,
उन्हें 5,86,184 वोट मिले थे.
जबकि बसपा के हाजी
याक़ूब क़ुरैशी 5,81,455 वोटों के साथ दूसरे
स्थान पर रहे और
कांग्रेस के हरेंद्र अग्रवाल
34,479 वोटों के साथ तीसरे
नंबर पर रहे थे.
2014 के लोकसभा चुनाव में यूपी में
मोदी लहर के बीच
भाजपा की आंधी चली
थी. इसकी शुरुआत मेरठ
से ही हुई थी.
मेरठ में भारतीय जनता
पार्टी को करीब 48 फीसदी
वोट मिले थे. मेरठ
में राजेंद्र अग्रवाल ने स्थानीय नेता
मोहम्मद शाहिद अखलाक को दो लाख
से अधिक वोटों से
मात दी थी. इस
सीट पर बॉलीवुड अभिनेत्री
नगमा कांग्रेस की ओर से
चुनाव लड़ी थीं, हालांकि
उन्हें हार का सामना
करना पड़ा था. राजेंद्र
अग्रवाल को कुल वोट
मिले 5,32,981 यानी 47.86 फीसदी। जबकि बसपा के
मो शाहिद अखलाक को 3,00,655 यानी 27 फीसदी और सपा के
शाहिद मंजूर को 2,11,759 वोट यानी 19.01 फीसदी
व कांग्रेस की नगमा को
42,911 यानी 3.85 फीसदी। 2022 के विधानसभा चुनाव
में बीजेपी ने 3 सीटों पर
कब्जा जमाया था जबकि 2 सीटों
पर सपा का कब्जा
रहा है. हालांकि 2019 के
लोकसभा चुनाव के इतर 2022 के
विधानसभा चुनाव में बसपा और
सपा के गठबंधन नहीं
हो सका था. 2019 के
लोकसभा चुनाव की बात करें
तो यहां पर बेहद
कड़ा मुकाबला हुआ था.
जातीय समीकरण
मेरठ क्षेत्र को
दलित और मुस्लिम बाहुल्य
वोटर्स का वर्चस्व माना
जाता है. 2019 के चुनाव में
यहां पर मुस्लिम आबादी
करीब 5 लाख 64 हजार थी. जाटव
बिरादरी का भी यहां
पर खास भूमिका और
इनकी आबादी 3 लाख 14 हजार 788 है. बाल्मीकि समाज
59,000 के करीब आबादी रहती
है. यहां ब्राह्मण, वैश्य
और त्यागी समाज के वोटर्स
की अच्छी खासी संख्या है.
जाटों की भी करीब
1.30 लाख आबादी रहती है. गुर्जर
और सैनी समाज के
वोटर्स का भी खासा
प्रभाव दिखता रहा है. मेरठ
में मुस्लिम वोटर की आबादी
करीब साढ़े पांच लाख
है. दूसरे नंबर पर दलित
हैं. इनकी संख्या करीब
तीन लाख है. तीसरे
नंबर पर वैश्य हैं.
इनकी आबादी करीब ढाई लाख
है. चौथे नंबर पर
ब्राह्मण हैं. जिनकी आबादी
करीब डेढ़ लाख है.
पांचवें नंबर पर जाट
वोटर हैं जिनकी आबादी
करीब एक लाख है.
अन्य जातियों जिनमें ठाकुर, त्यागी, गुर्जर, पंजाबी वगैरह शामिल हैं, इनकी तादाद
करीब 5 लाख चालीस हजार
है. 2019 के चुनाव में
सपा और आरएलडी ने
ये सीट बीएसपी को
दी थी. बीएसपी के
हाजी याकूब कुरैशी चुनावी मैदान में उतरे थे.
करीब चार हजार वोट
से कुरैशी ये चुनाव हार
गए थे. तब अलग
रहे रही कांग्रेस के
कैंडिडेट को करीब 35 हजार
वोट मिले थे. मगर
इस बार समीकरण उल्टा
है. इस बार बीएसपी
अलग चुनाव लड़ रही है
जबकि कांग्रेस और एसपी साथ
है.बीएसपी ने देववृत त्यागी
को चुनावी मैदान में उतारा है.
जबकि सपा ने भानु
प्रताप सिंह की जगह
दुसरे को लड़ाने का
मन बनाया हैं. हालांकि अगले
तीस दिनों में वोटर का
मूड कितना बदलता है, ये अहम
है. पार्टी के मूल वोटबैंक
के साथ ही प्रत्याशियों
को जातिगत गठजोड़ पर भी पूरा
भरोसा है। इसके सहारे
ही जीत-हार के
कयास लगाए जा रहे
हैं। मुकबला बहुत दिलचस्प रहने
वाला है. भारतीय जनता
पार्टी (बीजेपी) को जीत की
हैट्रिक बचाए रखने की
चुनौती है तो सपा-बसपा गठबंधन को
भी अपनी साख बचानी
है. इसलिए पार्टियों ने जातिगत हिसाब
से छांटकर प्रत्याशी उतारे हैं.
दावा
भाजपा की ओर लोकसभा
क्षेत्र में केंद्र और
प्रदेश सरकार द्वारा हजारों करोड़ रुपये के
विकास कार्य कराने का दावा किया
जा रहा है. दिल्ली-
मेरठ एक्सप्रेस-वे, दिल्ली से
हापुड़, मेरठ से बुलंदशहर
तक का राष्ट्रीय राजमार्ग,
हाईस्पीड ट्रेन शुरुआत कराना, क्षेत्रीय हवाई सेवा, अकाशवाणी
केंद्र निर्माण जैसे कई कार्य
भाजपा सरकार में हुए हैं.
पात्रों को सरकार की
योजनाओं का अधिक से
अधिक लाभ दिलाया गया.
क्या कहते है वोटर
मेरठ के प्रवीन
तिवारी का कहना है
कि इस बार सभी
राजनीतिक दल ध्रुवीकरण के
प्रयास में हैं. पिछली
बार के सांसद से
स्थानीय लोग नाराज जरूर
हैं, लेकिन अरुण गोविल के
आने से माहौल बदल
गया हैं वैसे भी
लोग मोदी के नाम
पर वोट करने को
तैयार है. चुनाव इस
बार यहां मोदी विरोध
और मोदी के समर्थन
पर है. उन्होंने कहा
कि भाजपा वैश्य, ब्राह्मण, त्यागी ठाकुर, गुर्जर, अतिपिछड़ों आदि के सहारे
चुनावी मैदान में हैं, सपा
मुस्लिम तथा अनुसूचित जाति
के साहरे मैदान मारने की फिराक में
हैं. उन्होंने बताया कि गन्ना बकाया
विषय पर सिर्फ बयानबाजी
हो रही है. आवारा
पशुओं की समस्या के
बजाय यहां पशु चोरी
की समस्या हैं. हालांकि योगी
सरकार आने के बाद
इसमें कुछ कमी आई
है, फिर भी किसानों
को अपने पशुओं को
बचाने के लिए चौकन्ना
रहना पड़ता है. महिला
छेड़छाड़ का बड़ा मुद्दा
है, जिसमें कुछ प्रतिशत की
कमी आई है, लेकिन
पूरी तरह समाप्त नहीं
हुआ है. त्यागी और
गुर्जर बिरादरी पूरी तरह से
मोदी के नाम पर
एकजुट है तो मुस्लिम
और दलित वर्ग गठबंधन
के साथ है और
उन्हें यह दर्शाने में
भी कोई संकोच नहीं.
2014 में सभी पांच विधानसभाओं
से भाजपा के राजेंद्र अग्रवाल
को लगभग एक लाख
वोट मिला था, जिसमें
मुस्लिम को छोड़कर सारी
जातियों ने इन पर
भरोसा किया था. दलित
वर्ग में जाटव को
छोड़कर बाकी अन्य लोगों
ने भी इन्हें वोट
दिया था. इस बार
यह थोड़ा कठिन है.
मेरठ की कैंट विधानसभा
में तो भाजपा को
अच्छे मर्जिन से वोट मिलता
आ रहा है. अन्य
विधानसभा क्षेत्रों का रुख इस
बर कुछ अलग है.
कैंट के परवेज आलम
कहते है कि इस
बार यहां हाईकोर्ट बेंच,
स्मार्ट सिटी, जाम, कूड़ा प्रबंधन,
कानून-व्यवस्था, अपराध नियंत्रण, गन्ना बकाया भुगतान जैसे अहम मुद्दे
चुनावी हैं. किठौर गांव
के किसान राजाराम की मानें तो
डेढ़ गुना लागत बढ़ाने
की सिर्फ बातें हो रही हैं.
अभी तक इसमें कुछ
हासिल नहीं हुआ है.
असौड़ा के सलीम कहते
हैं कि पिछले चुनाव
को ध्रुवीकरण की चटनी चटाई
गई थी. लेकिन इस
बार खेल कुछ अलग
ही रहने वाला है.
विनोद जाटव कहते हैं
कि किसी के लिए
यहां राह आसान नहीं
है. मुंडाली के परवीन बानों
कहती हैं चुनाव इस
बात पर टिका है
कि दलित और मुस्लिम
समाज में कितना गठजोड़
होता है, लेकिन बेवजह
का तीन तलाक मुद्दा
छेड़ दिया गया है.
बबिता दुबे कहती हैं
कि कानून व्यवस्था हर चुनाव में
मुद्दा रहता है, जो
सीधा महिलाओं से जुड़ा है.
इसमें ठोस कदम उठाए
जाने की जरूरत है.
मेरठ के मो अतहर
कहते हैं भाजपा हर
बार की तरह यहां
पर सम्प्रदायिकता का जहर घोल
रही है. लेकिन इस
बार उसका ध्रुवीकरण का
कार्ड चलने वाला नहीं
है.
इतिहास
1857 में स्वाधीनता संग्राम की नींव रखने वाला शहर मेरठ पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीति का न सिर्फ केंद्र माना जाता है, बल्कि हवा किसके पक्ष में बह रही है, इसका संदेश पूरे पश्चिम में असर डालता है। साथ ही एशिया के अग्रणी व्यापारिक बाजार, सर्राफा के लिए जाना जाता है, जो एक जीवंत आर्थिक और सांस्कृतिक परिदृश्य है। यहां से निकले संदेश का असर पूरे पश्चिमी यूपी पर पड़ता है। राम मंदिर आंदोलन का सियासी असर मेरठ में ज़बरस्त हुआ था. बाबरी ढांचा विध्वंस के बाद लगातार तीन चुनाव में बीजेपी जीतती रही. उसके बाद दो बार कांग्रेस और बीएसपी के सांसद रहे. लेकिन 2009 से 2019 तक मेरठ में बीजेपी ही जिताती रही। लेकिन इस बार फिर जब राम मंदिर बन चुका है, तो मेरठ में कौन जितेगा, ये बड़ा सवाल है। यह वो सीट है जो बीजेपी का गढ़ माना जाता रहा है. मेरठ लोकसभा के साथ हापुड़ का कुछ क्षेत्र भी जुड़ता है। कुल मिलाकर यहां 5 विधानसभा क्षेत्र हैं. इनमें किठौर, कैंट, मेरठ शहर, मेरठ दक्षिण और हापुड़ की सीट है. 2011 के आंकड़ों के अनुसार, मेरठ की आबादी करीब 35 लाख है, इनमें 65 फीसदी हिंदू, 36 फीसदी मुस्लिम आबादी हैं. मेरठ में कुल वोटरों की संख्या 19,64,388 है। इसमें 55.09 फीसदी पुरुष और 44.91 फीसदी महिला वोटर हैं. 2014 में यहां मतदान का प्रतिशत 63.12 फीसदी रहा. देश में हुए पहले लोकसभा चुनाव में यहां कांग्रेस का परचम लहराया था, लेकिन 1967 में सोशलिस्ट पार्टी ने कांग्रेस को मात दी. 1971 में एक बार फिर कांग्रेस ने बाजी मारी, लेकिन उसके अगले चुनाव में इमरजेंसी के खिलाफ चली लहर जनता पार्टी के हक में गई. हालांकि, 1980, 1984 में.कांग्रेस की ओर से मोहसिना किदवई और 1989 में जनता पार्टी ने ये सीट जीती थी. 1990 के दौर में देश में चला राम मंदिर आंदोलन का मेरठ में सीधा असर दिखा और इसी के बाद ये सीट भारतीय जनता पार्टी का गढ़ बन गई. देखा जाएं तो मेरठ लोकसभा सीट पर 1991 से लेकर अब तक हुए 8 चुनाव में 6 बार बीजेपी को जीत मिली है. 1991, 1996 और 1998 में भारतीय जनता पार्टी को जीत मिली. 1996 और 1998 के चुनाव में बीजेपी के टिकट पर अमर पाल सिंह विजयी हुए थे. बीजेपी की लगातार जीत का सिलसिला 1999 में जाकर टूट गया जब कांग्रेस के अवतार सिंह भड़ाना चुनाव जीते थे. मतलब साफ हे 1990 के बाद से ज्यादातर समय बीजेपी के पास ही यह सीट रही है और वर्तमान में भी यह सीट भगवा दल के पास ही है.
No comments:
Post a Comment