Tuesday, 5 March 2024

आजमगढ़ : ’निरहुआ’ को अब पटखनी देना नाको चने चबाना जैसा

आजमगढ़ : निरहुआको अब पटखनी देना नाको चने चबाना जैसा 

             तमसा नदी के किनारे बसा आजमगढ़ राजनीति के लिहाज से खास तो है ही, सपा-बसपा का गढ़ भी रहा है। लेकिन पूर्वांचल के इस हॉट सीट पर पहली बार अगर किसी ने भगवा लहराया तो वो दिनेश लाल यादव निरहुआ ही रहे। यह अलग बात है कि इसके लिए उन्हें 2022 के उपचुनाव में उनके खुद का ग्लैमर के बीच मोदी योगी के विकासरुपी पतवार साथ में था। खास बात यह है कि जब जीत हुई तो निरहुआ की कनेक्टिविटी आजमगढ़वासियों से बनी रही और पूर्वांचल एक्सप्रेस, सुहैलदेव राजभर विश्व विद्यालय, एअरपोर्ट कल्याणकारी योजनाओं सहित विकास की ऐसी गंगा बहायी, जिसमें हर तबका गोते लगाते दिखा। सीनियर जर्नलिस्ट राजीव सिंह की मानें तो निरहुआ ने सरकारी योजनाओं की बात तो दूर, अपने निजी फंड से दस करोड़ से भी अधिक राशि से लोगों के इलाज कराएं है। बता दें, आजमगढ़ में सपा का दबदबा कायम रहा है. मोदी लहर में भी भाजपा ने यहांकमलनहीं खिला पाया था. हालांकि, बाद में अखिलेश यादव के विधानसभा में चले जाने के बाद यह सीट भाजपा के खाते में चली गई. उपचुनाव में यहां से भाजपा प्रत्याशी दिनेश लाल यादव निरहुआ को जीत मिली। भाजपा ने दुबारा भगवा लहराने के लिए निरहुआ को मैदान में उतारा है। इस बार जीत का सेहरा किसके सिर बधेंगा, ये तो चुनाव परिणाम बतायेंगे, लेकिन वोटबैंक की समीकरण के बीच श्रीराम, 370, राष्ट्रवाद, विकास मोदी लहर में निरहुआ को पटखनी देना विपक्ष के लिए नाकों चने चबाना जैसा होगा 

                                                    सुरेश गांधी

फिरहाल, यादव मुस्लिम समुदाय के दबदबे वाली आजमगढ़ लोकसभा सीट पर दिलचस्प जंग देखने को मिलेगी। इस सीट पर भाजपा ने एक बार फिर सांसद दिनेश लाल यादव निरहुआ को अपना उम्मीदवार बनाया है। तो दुसरी तरफ सपा अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का दावा है कि पिता मुलायम सिंह की थाती यादव, मुस्लिम, दलित समीकरण सपा को जीत दिलायेगीं। जबकि निरहुआ अपने काम लोकप्रियता को आधार बताते हुए आजमगढ़ से एक बार फिर जीत का दावा कर रहे हैं। उनके दावे हकीकत में बदल पायेंगे या नहीं, ये तो चुनाव परिणाम बतायेंगे, लेकिन यादव-मुस्लिम बहुल्य वाली इस सीट का चुनावी समीकरण कुछ ऐसा है कि अंत समय में जीत हार किसी के भी पाले में जा सकती है। खासतौर से तब जब श्रीराम मंदिर मोदी लहर में जात-पात का सिगुफा सब हवाहवाई होकर रह गया है। इसलिए दावे के साथ कुछ नहीं कहा जा सकता, लेकिन इतना तो तय है कि उपचुनाव में जीत के बाद निरहुआ ने जिस तरह खुद के ग्लैमर के बीच मोदी योगी के विकासरुपी एजेंडे को आगे बढ़ाते हुए अपनी कनेक्टिविटी आजमगढ़वासियों से बनाएं रखा और पूर्वांचल एक्सप्रेस, सुहैलदेव राजभर विश्व विद्यालय, एअरपोर्ट कल्याणकारी योजनाओं सहित विकास के काम कराएं है, उससे साफ है कि उसे हरा पाना सपा-बसपा के लिए बड़ी चुनौती साबित होने वाली है। 

खास यह है कि इस बार गुड्डू जमाली की जगह ऑल इंडिया मजलिस--इत्तेहादुल मुस्लिमीन के प्रदेश अध्यक्ष शौकत अली प्रत्याशी होंगे। इसके अलावा इस बार भाजपा को राष्ट्रीय लोक दल, सुहेलदेव पार्टी, अपना दल और निषाद पार्टी का समर्थन है। वैसे भी इस लहर में सपा बसपा के सामने मुस्लिम और यादव सहित दलित वोट बैंक को अपने पाले में बनाए रखने के साथ अपने पुराने जनाधार को वापस लाने का चैलेंज है. ऐसे में देखना है कि आजमगढ़ की सियासी जमीन पर कमल, हाथी और साइकिल की लड़ाई में कौन आगे निकलता है? जलालुद्दीन कहते है उपचुनाव में निरहुआ पर सिर्फ इसलिए भरोसा जताया कि मोदी और योगी आजमगढ़ को विकास की पहली पंक्ति में खड़ा करेंगे, जहां सड़क से लेकर बिजली, पानी, शिक्षा जैसी समस्याएं फुर्र हो जायेगी, वो एक एक हो भी रहा है। इसका फायदा तो भाजपा को मिलेगा ही। बता दें, आजमगढ़ जिले में तो दस विधानसभा सीटें आती हैं, लेकिन लोकसभा क्षेत्र में 5 सीटें हैं. गोपालपुर, सगड़ी, मुबारकपुर, आजमगढ़ सदर और मेहनगर विधान सभा क्षेत्र हैं. इन सभी सीटों पर सपा के विधायक हैं. 2022 चुनाव में इन पांचों सीटों पर सपा को 4.35 लाख तो भाजपा को 3.30 लाख और बसपा को 2.24 लाख मत मिले थे. इस तरह से आजमगढ़ की लड़ाई काफी दिलचस्प हो गई है. आजमगढ़ में व्यापारी, अन्य पिछड़ा वर्ग और सवर्ण भाजपा के परंपरागत वोटर माने जाते हैं। 2009 में यादवों और इसी वर्ग के बूते ही रमाकांत ने यहां से भाजपा की टिकट पर जीत हासिल की थी। 2014 में उन्हें सपा के मुलायम सिंह यादव के मुकाबले 63 मतों से हार का सामना करना पड़ा था। रमाकांत को दो लाख 76 हजार 998 मत मिले थे। आजमगढ़ की 84 प्रतिशत जनसंख्या हिंदुओं की है, 27 फीसदी यादव है। जबकि मुस्लिम आबादी 15 प्रतिशत है। 2019 में सपा बसपा गठबंधन होने के कारण भोजपुरी स्टार दिनेश लाल यादव को सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के सामने हार का सामना करना पड़ा था। लेकिन 2022 में अखिलेश के लोकसभा सीट से इस्तीफा देने के बाद हुए उपचुनाव में निरहुआ ने सपा के धर्मेंद्र यादव को हराकर जीत हासिल की। जीत हासिल करने के बाद वह जिले में फिल्म की शूटिंग करने के साथ ही लोगों के बीच कार्यक्रमों में भी शामिल होते रहे। उनकी सबसे बड़ी बात यह रही कि जहां सांसद बनने के बाद लोग सुरक्षा व्यवस्था के बीच रहते और आम जनमानस से दूर होते हैं। वहीं सांसद निरहुआ लोगों के बीच बने रहे और कोई भी आम व्यक्ति उनसे आसानी से मिल सकता था। जिससे उनकी लोकप्रियता में इजाफा हुआ है। जिसे देखते हुए पार्टी ने एक बार फिर उन पर भरोसा जताते हुए मैदान में उतारा है। साथ ही पिछले लोकसभा उपचुनाव में निरहुआ ने सपा के परंपरागत वोटों में भी सेंधमारी की थी। जिसे देखते हुए भी पार्टी ने यादव बाहुल्य सीट पर निरहुआ को प्रत्याशी बनाया है।

चार-चार बार सपा-बसपा जीते

आजमगढ़ लोकसभा सीट पर करीब 19 लाख मतदाता हैं। इस सीट पर यादव मतदाता निर्णायक साबित होता है। उनकी संख्या लगभग 4 लाख है। दूसरे नंबर मुस्लिम समाज आता है। उनकी संख्या 3 लाख 50 हजार है। तीसरे नंबर पर दलित मतदाता है। उनकी संख्या लगभग 3 लाख है। यह सीट परंपरागत रूप से समाजवादी पार्टी की रही है। बसपा ने जरूर यहां से 3 बार जीत हासिल की है। 2009 में पहली बार आजमगढ़ से भाजपा ने जीत हासिल की थी। 2009 के लोकसभा उपचुनाव में रमाकांत यादव को टिकट देकर भाजपा ने यादवों में सेंधमारी कर दी थी। बीजेपी ने एक बार फिरयादवफैक्टर के सहारे आजमगढ़ की लोकसभा सीट फतह करने के लिए 2019 में निरहुआ को मैदान में उतारा लेकिन सफलता नहीं मिली। अखिलेश यादव आजमगढ़ से सांसद चुने गए. या यूं कहे बीजेपी की प्रचंड लहर में भी आजमगढ़ से सपा ने झंडा बुलंद किया. 2022 के विधानसभा चुनाव में सभी 10 सीटों पर सपा प्रत्याशियों को जीत मिली. विधानसभा चुनाव के बाद अखिलेश यादव ने लोकसभा से इस्तीफा दे दिया. उपचुनाव में बीजेपी ने यादव फैक्टर का सहारा लिया. भोजपुरी कलाकार दिनेश लाल निरहुआ पर बीजेपी ने दांव लगाया. बीजेपी को यादव फैक्टर का फायदा मिला. दिनेश लाल निरहुआ ने सपा प्रत्याशी धर्मेंद्र यादव को आजमगढ़ लोकसभा सीट पर पटखनी दी. सपा की मजबूत सीट बीजेपी के खाते में चली गई. आजमगढ़ की लोकसभा सीट जीतने के बाद बीजेपी काफी उत्साहित है. यादव वोटरों को पाले में करने के लिए बीजेपी मजबूत रणनीति बनाते हुए एमपी मुख्यमंत्री मोहन यादव को भेजकर कार्यकर्ताओं को लोकसभा चुनाव जीतने का मंत्र दिया। इस बार भी अखिलेश यादव के गढ़ में दोबारा कमल खिलाने की योजना के लिए निरहुआ को मैदान में उतारा है। यह अलग बात है कि अखिलेश यादव ने बसपा नेता और पूर्व विधायक शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली को पार्टी में शामिल कर आजमगढ़ सीट पर अपनी पकड़ मजबूत कर ली है. हालांकि इस धमाचौकड़ी सही तस्वीर बसपा उम्मींदवार के आने के बाद ही साफ हो पायेगा। क्योंकि सपा के गढ़ में बसपा एक नहीं बल्कि 4 बार अपना सांसद यहां पर बनाने में कामयाब रही है। देखा जाएं तो उपचुनाव में बसपा से अपनी किस्मत आजमा रहे शाह आलम (गुड्डू जमाली) के चलते ही त्रिकोणिय लड़ाई में निरहुआ को जीत मिली थी।

बसपा की जड़े कमजोर नहीं

बता दें कि सपा के सियासी वजूद में आने से पहले ही बसपा आजमगढ़ में अपनी सियासी जड़ें जमा चुकी थी. कांशीराम ने आजमगढ़ को दलित राजनीति के सियासी प्रयोगशाला के तौर पर भी स्थापित किया था, जिसके चलते बसपा गठन के पांच साल के बाद ही आजमगढ़ संसदीय सीट पर जीत दर्ज करने में सफल रही थी. 1989 से 2019 तक इस सीट पर कभी सपा तो कभी बसपा का कब्जा रहा और बीच में एक बार 1991 में जनता दल और 2009 में एक बार बीजेपी जीती है. इस तरह से आजमगढ़ का मुकाबला सपा और बसपा के बीच ही सिमटा रहा. या यूं कहे सपा और बसपा के उदय के बाद आजमगढ़ सीट सपा और बसपा की झोली में ही झूलती रही है. सपा आजमगढ़ में चार बार अपना सांसद बनाने में कामयाब रही, जिनमें एक बार मुलायम सिंह यादव और एक अखिलेश यादव सांसद बने जबकि दो बार रमाकांत यादव चुने गए. साल 2019 में अखिलेश यादव यादव सांसद बने, तब सपा-बसपा का गठबंधन था. वहीं, बसपा भी चार बार आजमगढ़ में अपना सांसद बनाने में कामयाब रही. 1989 में रामकृष्ण यादव तो 2004 में रमाकांत यादव बसपा के टिकट पर जीते जबकि 1998 और 2008 में अकबर अहमद डंपी बसपा से प्रत्याशी के तौर पर जीतकर सांसद बने. इस तरह सपा के टिकट पर आजमगढ़ में चारों सांसद जहां यादव समुदाय से बने तो बसपा से दो बार यादव और दो बार मुस्लिम जीते. सपा इस सीट को किसी भी कीमत पर खोना नहीं चाहती है, जिसके चलते पार्टी ने काफी मंथन और विचार-विमर्श के बाद इस सीट से प्रत्याशी उतारने का मन बनाया हैं। इसकी एक बड़ी वजह यह है कि रामाकांत यादव को छोड़कर आजमगढ़ में सपा का कोई स्थानीय नेता कभी जीत नहीं सका. पहले लोकसभा चुनाव से 1971 तक यह सीट कांग्रेस के पास रही. उसके बाद 1980 और 1984 में कांग्रेस ने वापसी की. 1952 में कांग्रेस के अलगू राय शास्त्री, 1957 में कालिका सिंह, 1962 में राम हरख यादव, 1967 और 1971 में चंद्रजीत यादव ने चुनाव जीता.

इमरजेंसी से पहले कांग्रेस का था दबदबा

इमरजेंसी के बाद यह सीट कांग्रेस के हाथ से निकल गई और जनता पार्टी के रामनरेश यादव सांसद बने. 1978 में कांग्रेस की मोहसिना किदवई यहां से सांसद बनीं. 1980 में जनता पार्टी सेक्युलर के चंद्रजीत यादव जीते. 1989 में बसपा के रामकृष्ण यादव और 1991 में जनता दल के चंद्रजीत यादव सांसद चुने गए. आपातकाल के बाद हुए चुनाव में उत्तर प्रदेश से लेकर केंद्र तक जनता पार्टी की सरकार बनी. उस दौर में हुए चुनावों में उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को एक भी सीट पर जीत नहीं मिली. एक बार तो इंदिरा गांधी ने आजमगढ़ सीट पर हो रहे उपचुनाव में अपना उम्मीदवार ना खड़ा करने का एलान किया था. पार्टी के पुनर्निर्माण पर जोर दिया लेकिन अचानक में उन्हें ऐसी सनक लगी. उन्होंने आजमगढ़ सीट पर अपना प्रत्याशी ही नहीं खड़ा किया बल्कि खुद चुनाव मैदान में इस सीट को जीतने के लिए उतर पड़ी. दरअसल, 1977 में हुए चुनाव में जनता पार्टी को पूर्ण बहुमत मिला. आजमगढ़ की रहने वाले राम नरेश यादव राज्य के मुख्यमंत्री बन गए. इससे पहले वह लोकसभा चुनाव में आजमगढ़ सीट से ही सांसद चुने गए थे. लेकिन मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने लोकसभा सीट छोड़ दी थी. बाराबंकी की रहने वाली अपनी विश्वसनीय सहयोगी मोहसिना किदवई को चुनाव मैदान में उतार दिया. आज से 44 साल पहले आजमगढ़ सीट के लिए हो रहे उपचुनाव में एक तरफ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री राम नरेश यादव का गृह क्षेत्र था तो वहीं दूसरी तरफ पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की प्रतिष्ठा दांव पर लग गई. चौधरी चरण सिंह उन दिनों देश के गृह मंत्री थे. इंदिरा गांधी का चौधरी चरण सिंह एक दूसरे के कट्टर प्रतिद्वंदी थे. आजमगढ़ लोक सभा सीट पर हो रहे उपचुनाव पर जीत के लिए इंदिरा गांधी और चौधरी चरण सिंह की प्रतिष्ठा दांव पर लग चुकी थी. केंद्र औऱ राज्य सरकार ने चुनाव जीतने के लिए सरकारी मशीनरी का जमकर इस्तेमाल किया, लेकिन जीत कांग्रेस की हुई. आजमगढ़ संसदीय क्षेत्र का उपचुनाव कांग्रेस के लिए संजीवनी साबित हुई. और सत्ता पक्ष के लिए अपमान का कारण बना. ऐसे मे ंसवाल उठता है कि क्या एक बार फिर आजमगढ़ अपना इतिहास दोहराने जा रहा है?

उपचुनाव के परिणाम

2022 उपचुनाव में बीजेपी से निरहुआ ने जीत दर्ज की है। उन्हें 3,12,768 वोट मिले हैं. वहीं सपा उम्मीदवार और अखिलेश यादव के चचेरे भाई धर्मेंद्र यादव को 3,04,089 वोट मिले. जिन्हें 8,679 वोटों के अंतर से हार का सामना करना पड़ा. जबकि बसपा उम्मीदवार शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली को 2,66,210 मिले हैं और वे तीसरे नंबर पर रहे. अगर बीजेपी के जीत का अंतर यानि 8,679 वोट बसपा को मिले वोटों में से कम कर दिया जाए तो कुल 2,57,531 हो जाते हैं. करीब इतने ही वोटों से पिछली बार के चुनाव में सपा को जीत मिली थी. ऐसे में बिल्कुल स्पष्ट है कि गुड्डू जमाली के चुनाव लड़ने की वजह से बीजेपी यहां मुलायम सिंह यादव परिवार के किले को ध्वस्त कर पाई.

 

 

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