गोरखपुर : न ’’पीडीए’’ न ’’प्रत्याशी’’ योगी ही है ’’जीताऊ फैक्टर’’!
राप्ती किनारे बसा गोरखपुर नाम आते ही सबसे पहले जेहन में आस्था से सरोबार बाबा गोरखनाथ की तस्वीर उभरती है, लेकिन वास्तविकता ये भी है कि इस भव्य मंदिर का साया राजनीति पर भी गहरा है और यही वजह है कि काशी के बाद सबसे हॉट सीट कहा जाने वाले इस लोकसभा सीट की किस्मत यहीं से तय होती है। मठ का जलवा ऐसा है कि मौजूदा महंथ और यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ सहित दो पूर्व महंथ भी यहां से न सिर्फ सांसद रह चुके हैं, बल्कि प्र्रत्याशी कोई भी हो पूरी सियासत ही इसी के इर्द-गिर्द घूमती नजर आती है। ये वही लोकसभा सीट है जिसपर भाजपा का पिछले 30 सालों से दबदबा है. इस सीट से ही 26 साल की उम्र में योगी आदित्यनाथ सांसद बने और 19 साल तक देश की सबसे बड़ी पंचायत में अपनी आवाज बुलंद करते रहे। अब 6 साल से यपी की कमान उन्हीं के हाथ में है। यह अलग बात है कि सीएम होने से अब उनकी विरासत भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री के सुपरस्टार रवि किशन संभाल रहे है। 2019 की बंपर जीत के बाद इस बार भी भाजपा ने उन्हें मैदान में उतारा है। कांग्रेस-सपा गठबंधन के बाद अखिलेश यादव का दावा है 90 फीसदी पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक एकजुट होकर पीडीए को वोट देंगे और गोरखपुर में इस बार सायकिल दौड़ेगी। दावा के बदले दावा में सायकिल दौड़ेगी या कमल खिलेगा, ये तो चुनाव परिणाम बतायेंगे, लेकिन रामनरेश खरवार की मानें तो ’इस बार भी यहां न प्रत्याशी न पीडीए, योगी ही है जीताऊ फैक्टर’! फिरहाल, लंबे समय तक योगी आदित्यनाथ की कर्मभूमि रही गोरखपुर सीट पर बीजेपी वापसी कर पाएगी, ये बड़ा सवाल है? क्योंकि योगी के मुख्यमंत्री रहते ही ये सीट 2018 के उपचुनाव में बसपा के समर्थन से सपा ने जीत ली थीसुरेश गांधी
लोकसभा चुनाव की डुगडुगी बजने
में अब कुछ ही
दिन बचे है। ऐेसे
में हर पार्टियां चुनावी
शतरंज की बिसात सजाने
में सिर खपा रही
है। भाजपा ने इस बार
अपने लिए 370 और एनडीए के
लिए 400 सीट का टारगेट
रखा है. ऐसे में
युद्ध जीतने के लिए राजा
(प्रत्याशी) ने प्यादों (सैनिकों)
को आगे बढ़ा दिया
है। उनके पीछे हाथी
सीधा चल रहा है,
तो घोड़ा भी हिनहिना
रहा है। अपनी तिरछी
चाल से ऊंट भी
मात देने को तैयार
है। कौन शह देगा
और किसकी शिकस्त होगी, यह फैसला प्रभु
(मतदाता) के ऊपर है।
जो वक्त की नजाकत
को समझते हुए फिलहाल मौन
साधे हैं। लेकिन गोरखपुर
के चुनावी मैदान में दुसरी बार
भाजपा से ताल ठोंक
रहे रविशन मतदाताओं की दरबार में
हाजिरी लगाना शुरु कर दिया
है। देखा जाएं तो
गोरखपुर बीजेपी का मजबूत किला
माना जाता है, लिहाजा
उनके ऊपर एक बड़ी
जिम्मेदारी है. तो दुसरी
तरफ सपा मुखिया अखिलेश
यादव इस सीट की
अपने रणबांकुरे के जरिए खुद
निगहबानी कर रहे है।
मतलब साफ है ये
सीट भाजपा और कांग्रेस-सपा
के साथ-साथ बसपा
के लिए भी अहम
है।
भाजपा के लिए इसलिए
अहम है कि 2018 के
उपचुनाव को छोड़ दें
तो 1989 से 2024 तक इस सीट
पर भाजपा का कब्जा ही
नहीं रहा है, हिंदुत्व
के एजेंडा को यहां प्रखर
बनाने में वह कामयाब
भी रही। विपक्ष के
लिए सीट इसलिए अहम
है कि करीब तीन
दशक बाद 2018 के उपचुनाव में
इस सीट को भाजपा
से छीनने में उसे कामयाबी
मिली। इस बार सपा
कांग्रेस मिल कर इस
सीट पर लड़ रही
हैं। वरिष्ठ नेताओं और पदाधिकारी के
साथ कार्यकर्ताओं का जोश भी
पूरी तरह से दिखाई
दे रहा है. लेकिन
यह जोश जीत में
बदल पायेगा ये तो परिणाम
बतायेंगे, लेकिन भाजपा को संजय निषाद
की पार्टी ’निषाद पार्टी’ पर पूरा भरोसा
है कि इस जाति
का वोट उसके ही
झोली में आयेगा। हालांकि
2014 के लोकसभा चुनाव में गोरखपुर सीट
पर बीजेपी के योगी आदित्यनाथ
ने सपा की राजमति
निषाद को 3,12,783 वोट से मात
दी थी। वैसे भी
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का
सियासी सफर जहां से
शुरू हुआ है, वह
गोरखपुर ही है. गोरखपुर
में सबसे ज्यादा निषाद
समुदाय के 3.50 लाख वोटर हैं,
फिर करीब डेढ़ लाख
मुसलमान, दो लाख यादव,
दो लाख दलित, करीब
तीन लाख ब्राहम्ण, 80 हजार
राजपूत और छोटी बड़ी
कई जातियां हैं.
देखा जाएं तो
पूर्वांचल की राजनीति, हमारे
देश की राजनीति का
ही प्रतिनिधित्व करती है. यहां
की राजनीति में अगर किसी
को सर्वाइव करना है तो
उसका ब्राह्मण-ठाकुर-यादव-मुसमान-दलित
या पिछड़ा होना बहुत जरूरी
होता है. पर मोदी-शाह के युग
में पार्टी अपने फैसलों से
यहां भी हमेशा अचंभित
करती रही है. गोरखपुर
और आस-पास के
जिलों में मेन स्ट्रीम
की राजनीति ब्राह्मण और ठाकुरों के
हाथ में ही रही
है. हालांकि मंडल के दौर
के बाद इनके एकतरफा
वर्चस्व में कमी आई
पर नियंत्रण अभी बरकरार है.
गोरखपुर और आसपास के
जिलों में पहले यादवों
ने फिर निषादों ने
सत्ता में अपनी हकदारी
के लिए मजबूती से
कदम रखा पर इन
दो जातियों का दबदबा बना
रहा. कांग्रेस ने जब तक
शासन किया इन दोनों
जातियों में बैलेंस बनाकर
रखा. संगठन और सरकार में
से एक-एक पद
दोनों जातियों के हिस्से आता
रहा। लेकिन भगवा व राम
लहर में अब जाति
नहीं विकास की बात हो
रही है।
1998 से लेकर 2014 तक
लगातार 5 बार योगी जीते।
लेकिन बाबा गोरखनाथ और
बाबा रोशन अली शाह
के शहर में उपचुनाव
के बाद जब से
गठबंधन ने जोर पकड़ा,
योगी के लिए चुनौती
बढ़ गई है और
गोरखपुर का समीकरण भी
बदल गया। योगी के
सीएम बनने के बाद
विकास संबंधी कार्यो में तेजी आई
है। हाल के समय
मे यहां एम्स, फर्टिलाइजर
कारखाना निर्माण का कार्य जोरों
पर है। स्थानीय मुद़दों
में इंसेफ़लाइटिस बीमारी का कहर अब
सपना हो गया है।
बाढ़ भी लोगों को
नहीं सताती। लेकिन ड्रेनेज सिस्टम यहां की बड़ी
समस्या है. शहर की
कई सड़कों को फोरलेन किया
गया है, लेकिन अधिकतर
मुख्य मार्गों पर बनी नालियां
सड़क से ऊंची बना
दी गई हैं. सॉलिड
वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट का नहीं होना
एक बड़ी समस्या है.
शहर के कचरे को
डंप करना नगर निगम
के लिए मुसीबत का
सबब बना हुआ है.
लोगों को जाम के
साथ अतिक्रमण की समस्या से
रोज दोचार होना पड़ता है.
आईटीएमएस और रूट प्लान
के बावजूद अधिकतर सड़कों पर लंबा जाम
लगा होना, लोगों को मुसीबत में
डाल देता है. कान्हा
उपवन और अन्य गोशाला
होने के बावजूद सड़क
पर घूमने वाले आवारा और
पालतू जानवर दुर्घटना का कारण बनते
हैं. नगर निगम इसमें
भी पूरी तरह से
फेल साबित हो रहा है.
हरखापुर में रिक्शा चालक
धर्मेंद्र यादव पसीना पोछते
हुए कहते है प्रत्याशी
कोई भी हो हम
तो मोदी के साथ
है। पाकिस्तानी आतंकवाद को सिर्फ और
सिर्फ मोदी ही निपटा
सकते है। जबकि रामगढ़
ताल के किनारे बसी
गोरखपुर के जनार्दन निषाद
कहते हैं, “अश्वमेध का घोड़ा है,
योगीजी ने छोड़ा है,“
जीत तो मोदी की
ही होगी। मोदी है तो
देश है, मोदी है
तो कुछ भी मुमकिन
है। मोदी की ही
देन है, ‘जब अंतर्राष्ट्रीय
ताकते भारत की ताकत
को महसूस कर रही है।
लेकिन कांग्रेस हो या सपा
बसपा वे पाकिस्तानी भाषा
बोल रहे है। बगल
में खड़े सलीम महेवा
कहते हैं वो योगी
समर्थक हैं और सालों
साल से बीजेपी को
वोट देते आएं हैं
लेकिन इस बार वो
गठबंधन के साथ हैं।
वजह यह है कि
पार्टी ने हमारे बीच
के काबिल नेताओं को जगह नहीं
दी। सहजनवा की रंजना गौतम
कहती है इस बार
उनका राम के नाम
पर पड़ेगा। जबकि सायरा कहती
है ट्रिपल तलाक उनके लिए
वरदान है, इसलिए उन्हें
मोदी पसंद है। क्योंकि
जब देश रहेगा तब
हम भी रहेंगे। आतंक
की गढ़ कश्मीर में
सेना को कमजोर करना
व देशद्रोह जैसे कानून को
खत्म करने वालों का
साथ देने का मतलब
है देश को पाकिस्तान
के हाथों गिरवी रखना। यही वजह है
कि तीन दशक से
यहां कांग्रेस वोटकटवा की भूमिका में
है। पिपराईच की शांति देवी
कहती है बहिनी पांच
साल मोदी जी के
अउर दिहल जाइ, नहीं
चाहिए हमको कुछ। हम
बिना खाए रह लेंगे
लेकिन वोट मोदी जी
को देंगे। पास में बैठे
बुज़ुर्ग दयानंद तिवारी ने कहा, हमरे
त घर ना बनइले
मोदी। लेकिन देशवा खातिर उनहीं के वोट देइब।
ऐताहासिक महत्व
गोरखपुर का इतिहास भी
बेहद समृद्ध रहा है. यहां
बसंत सराय, इमामबाड़ा, रीड साहब का
धर्मशाला, डोहरिया कलां, सूर्यकुंड, अंग्रेजों के जमाने के
चर्च, शहीद बिस्मिल का
शहादत स्थल, रामगढ़ ताल जैसी धरोहरों
की लंबी फेहरिस्त है.
इसके अलावा यहां गीता प्रेस,
चौरीचौरा शहीद स्मारक आकर्षक
के केंद्र हैं. गोरखपुर मुंशी
प्रेम चंद से लेकर
मशहूर शायर फिराक गोरखपुर
की कर्मस्थली रही है. दुनिया
में गोरखपुर की पहचान नाथ
संप्रदाय के महत्वपूर्ण पीठ
गोरक्षनाथ मंदिर के तौर पर
है। गोरखपुर गीताप्रेस के लिए मशहूर
है, जहां धार्मिक पुस्तकें
छपती हैं। सुन्नी समुदाय
का देश का इकलौता
इमामबाड़ा भी इसी धरती
पर है। यहीं के
चौरीचौरा कांड ने भारत
की आजादी को अलग दिशा
दी, तो इसी जमीन
पर पंडित राम प्रसाद बिस्मिल
जैसे आजादी के दीवाने हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर
झूल गए। यह हिंदी
साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर
मुंशी प्रेमचंद की कर्मभूमि है,
तो रघुपति सहाय उर्फ फिराक
गोरखपुरी की जन्मभूमि भी।
कुल मतदाता
गोरखपुर सदर लोकसभा गोरखपुर
सदर लोकसभा क्षेत्र के कुल वोटर
20,74,745 है. जिसमें कुल पुरुष वोटर
11,12,023 है. जबकि महिला वोटरों
की संख्या 9,62,531 है. गोरखपुर शहर
विधानसभा क्षेत्र में कुल मतदाता
4,68209, गोरखपुर ग्रामीण विधानसभा क्षेत्र में कुल मतदाता
4,22,038, सहजनवा विधानसभा क्षेत्र में कुल 3,82,853 मतदाता,
पिपराइच विधानसभा क्षेत्र में 4,10,764 और कैंपियरगंज विधानसभा
क्षेत्र में कुल 3,90,881 मतदाता
हैं. 2011 की जनगणना के
अनुसार गोरखपुर की औसत साक्षरता
दर 60.81 फीसदी है।
2019 में बीजपी ने दर्ज की जीत
गोरखपुर जिले में दो
लोकसभा क्षेत्र हैं. इसमें गोरखपुर
सदर लोकसभा क्षेत्र के तहत कुल
पांच विधानसभा आती हैं, जिसमें
गोरखपुर शहर, गोरखपुर ग्रामीण,
सहजनवा, पिपराइच और कैंपियरगंज गोरखपुर
शामिल हैं. साल 2019 में
बीजेपी ने यहां से
भोजपुरी एक्टर रविकिशन शुक्ला को उम्मीदवार बनाया
था. जिसमें रविकिशन ने जीत दर्ज
की थी. उन्होंने निकटम
प्रतिद्वंद्वी रामभुआल निषाद को 301664 वोटों से हराया था.
रवि किशन को 415458 वोट
मिले थे.
1967 तक कांग्रेस का रहा कब्जा
गोरखपुर लोकसभा सीट साल 1952 में
कांग्रेस के खाते में
गई, यहां से सिंहासन
सिंह कांग्रेस के टिकट पर
चुनाव जीते. वह यहां से
लगातार तीन बार सांसद
बने. यह सीट 1967 तक
कांग्रेस के पास रही.
1962 लोकसभा चुनाव में यहां से
तत्कालीन गोरक्षपीठाधीश्वर महंत दिग्विजयनाथ हिंदू
महासभा के टिकट पर
चुनाव लड़े लेकिन उनको
हार का सामना करना
पड़ा. 1967 लोकसभा चुनाव में महंत दिग्विजयनाथ
निर्दलीय मैदान में उतरे और
जीत दर्ज कर कांग्रेस
का विजयी रथ रोक दिया.
सांसद बनने के दो
साल बाद ही उनका
निधन हो गया. 1969-70 में
इस सीट पर उपचुनाव
हुआ. जिसमें उनके शिष्य महंत
अवेद्यनाथ ने निर्दलीय जीत
हासिल की. 1971 में गोरखपुर सीट
एक बार फिर कांग्रेस
के खाते में गई.
यहां से नरसिंह नरायण
पांडेय चुनाव जीते. इसके बाद भारतीय
लोकदल से हरिकेश बहादुर
और कांग्रेस से मदन पांडेय
जीते.
1989 से है मठ का कब्जा
गोरखपुर की संसदीय सीट
पिछले 29 साल से गोरखनाथ
मठ में रही है.
ये बीजेपी का मजबूत दुर्ग
है. 1989 से इस सीट
पर गोरखनाथ मंदिर से जुड़ी हस्तियां
ही जीत काभगवा ध्वज
फहराती आ रही हैं.
1989 में अवेद्यनाथ ने राजनीति में
वापसी की. हिंदू महासभा
के टिकट पर जीतकर
वह एक बार फिर
सांसद बने. इसके बाद
इस सीट पर साल
2018 तक लगातार बीजेपी और गोरक्षपीठ का
कब्जा रहा., साल 1991-96 में यहां से
महन्त अवैद्यनाथ (बीजेपी), 1996-98 महन्त अवैद्यनाथ (बीजेपी), 1998-2017 योगी आदित्यनाथ (बीजेपी)
जीतते रहे. हालांकि 2018 में
सीएम योगी के सीट
खाली करने के बाद
इस सीट पर हुए
उपचुनाव में सपा के
प्रवीण कुमार निषाद चुनाव जीतने में कामयाब रहे
लेकिन 2019 में यहां फिर
कमल खिला और रवि
किशन सांसद बने.
पांच बार योगी रहे सांसद
अवैद्यनाथ की सियासी विरासत
1998 में उनके उत्तराधिकारी और
यूपी के मौजूदा मुख्यमंत्री
योगी आदित्यनाथ ने संभाली. योगी
लगातार पांच बार यहां
से सांसद बने. वे 1998, 1999, 2004, 2009 और 2014 में बीजेपी के
उम्मीदवार के तौर पर
जीते.
जौनपुरियां हैं रवि किशन
रवि किशन मूल
रूप से जौनपुर के
हैं। फरवरी 2017 में भाजपा में
शामिल हुए रवि किशन
ने 2018 के गोरखपुर महोत्सव
में स्टेज शो किया था।
इसके बाद से ही
उन्होंने गोरखपुर से अपनी राजनीति
करने का प्रयास शुरू
कर दिया था। पहली
बार चुनाव उन्होंने 2014 में जौनपुर लोकसभा
का लड़ा था। ये
चुनाव उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर
लड़ा था। ये चुनाव
वो हार गए थे।
गोरखपुर से सांसद रवि
किशन की संसद में
अब तक 66 फीसदी उपस्थिति रही है. उन्होंने
सदन की कार्यवाही में
95 प्रतिशत भागीदारी दी है. सांसद
फंड की उपयोगिता में
गोरखपुर के एमपी ने
73 फीसदी खर्च किए हैं.
कौन कब जीता
1952 सिंहासन
सिंह
: कांग्रेस
1957 सिंहासन
सिंह
: कांग्रेस
1962 सिंहासन
सिंह
: कांग्रेस
1967 महन्त
दिग्विजयनाथ
: निर्दलीय
1970 महन्त
अवैद्यनाथ
: निर्दलीय
1971 नरसिंह
नारायण
पांडेय
: कांग्रेस
1977 हरिकेश
बहादुर
: लोकदल
1980 हरिकेश
बहादुर
: कांग्रेस
1984 मदन
पांडेय
: कांग्रेस
1989 महन्त
अवैद्यनाथ
: हिन्दू
महासभा
1991 महन्त
अवैद्यनाथ
: भाजपा
1996 महन्त
अवैद्यनाथ
: भाजपा
1998 योगी
आदित्यनाथ
: भाजपा
1999 योगी
आदित्यनाथ
: भाजपा
2004 योगी
आदित्यनाथ
: भाजपा
2009 योगी
आदित्यनाथ
: भाजपा
2014 योगी
आदित्यनाथ
: भाजपा
2018 प्रवीण
निषाद
: सपा
उपचुनाव
2019 रवि
किशन ः भाजपा
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