Friday, 5 April 2024

‘जाति जुगलबंदी’ व ‘राम मंदिर’ के पेच में हैट्रिक लगाने को बेताब ‘ऊर्जांचल’

जाति जुगलबंदीराम मंदिरके पेच में हैट्रिक लगाने को बेताबऊर्जांचल’ 


यूपी समेत बिहार, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और झारखंड तक को रोशन करने वाला सोनभद्र सरकार को भरपूर राजस्व देता है, लेकिन विकास के नाम पर सिर्फ और सिर्फ सरकारें झुनझुना ही पकड़ाते है। यह अलग बात है कि दमकती चमकती सड़के और ओवरब्रिजों के जरिए दूरियां कम कर लोगों की खर्च में कटौती करने का प्रयास जरुर किया गया है, लेकिन ग्रामीण इलाके आज भी मूलभूत सुविधाओं शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल, सड़क, नक्सली समस्या, पिछड़ेपन से जूझ रहे हैं। हालांकि योगीराज में एक एक कर समस्याओं का निपटारा किया जा रहा है। दुद्धी के लालबिहारी कोल अपनी नाराजगी जताते हुए कहते है चुनाव के वक्त तो नेता खूब बड़ी कड़ी बाते करते है। विकास की दुहाई देते है, लेकिन जीतने पर भूल जाते है। नक्शल पनपने में क्षेत्र की उपेक्षा एक बड़ी वजह है। जबकि रेनुकूट के दिवाकर कहते है इकास विकास कुछो नाहीं ये बार राम मंदिर बनाने वालों को जीतावल जाई। बाजी किसके हाथ लगेगी, ये तो चार जून को पता चलेगा, लेकिन क्षेत्र में राम मंदिर जातीय समीकरण का ताना-बाना बुनते लोगो को देखा जा सकता है 

सुरेश गांधी

                यूपी के अंतिम छोर पर विन्ध्य और कैमूर की पहाड़ियों के बीच बसा सोनभद्र का रॉबर्ट्सगंज संसदीय क्षेत्र अपने आंचल में कई खासियतों को समेटे सबसे कमाऊ जिला है। यह सिर्फ पूरे यूपी को बल्कि देश के अन्य राज्यों को भी भरपूर बिजली देता है। ऊर्जांचल के नाम मशहूर इस ज़िले में प्राकृतिक संसाधनों की कोई कमी नहीं है। यहां की पहाड़ियों में चूना और कोयला होने की वजह से इसे उद्योग का स्वर्ग भी कहा जाता है। ये देश का इकलौता ऐसा जिला है, जिसका नाम पीएम नेहरू नेस्विट्जरलैंड ऑफ इंडियारख दिया था। यहां देश की सबसे बड़ी थर्मल और हाइड्रो बिजली घर, एलुमिनियम और केमिकल की कई फैक्ट्रियां है। यहां देश की सबसे बड़ी थर्मल और हाइड्रो बिजली घर, एलुमिनियम और केमिकल की कई फैक्ट्रियां है। रॉबर्ट्सगंज (सोनभद्र जिले का मुख्यालय) है और इसी नाम से संसदीय क्षेत्र की पहचान भी है। इसका नाम अंग्रेज अफ़सर फेड्रिक रोबर्ट्स के नाम पर राबर्ट्सगंज पड़ा है। 

    इस बार भी भाजपा ने यह सीट अपने सहयोगी अपना दल (सोनेलाल) को दे दिया है। लेकिन जीत की हैट्रिक में कोई लोचा ना लग जाएं इसके लिए पार्टी मुखिया अनुप्रिया पटेल काफी ठोक-बजाकर प्रत्याशी उतारना चाहती है। और यही वजह है कि अभी तक उन्होंने अपना प्रत्याशी नहीं उतारा है। हालांकि सपा, बसपा ने भी अभी प्रत्याशी नहीं दिया है। लेकिन हर दल के कार्यकर्ताओं एवं समर्थकों में अपनी पार्टी की जीत दिलाने का जोश देखा जा सकता है। बता दें, 2014 अपना दल के छोटेलाल खरवार 2019 में पकौड़ीलाल कोल सांसद रहे। पकौड़ी कोल ने पिछले चुनाव में सपा के भाईलाल को 54,336 मतों के अंतर से हराया था। उन्हें 4,47,914 वोट मिले। जबकि भाईलाल को 3,93,578 वोट मिले। इस बार मतदाताओं में खासा उत्साह है और वे लोकतंत्र में वोटों की ताकत दिखाने को और ज़्यादा जागरुक और तैयार हैं।

सुरेन्द्र कोल कहते है इस क्षेत्र के उद्योगों को पुनर्जीवित करने का श्रेय अनुप्रिया पटेल को जाता है। इसलिए इसबार भी कार्यकर्ता अपने दल का परचम लहराने के लिए बेताब है। उनका दावा है कि खरवार, कोल समेत अन्य आदिवासी एवं सवर्णो के साथ पिछड़ी जातियों के सहारे इस बार भी एनडीए प्रत्याशी जीत की हैट्रिक लगा सकता है। बशर्ते पार्टी में भीतरघात ना हो। जबकि सपा समर्थित तंजीम हैदर कहते है यहां विकास कुछ भी नहीं हुआ है और इस बार विकास के नाम पर वोट पड़ेगा। रोजी रोटी से जुड़े मुद्दे उठाएं जायेंगे। वे गांवों की खस्ताहाल सड़कें, साफ और स्वच्छ पानी का मुद्दा जोरशोर से उठा रहे है। जबकि बसपा के बनवारीराम कहते है इस बार दलित मुस्लिम सहित अन्य विरादरियों की जुटता से जीत उन्हीं की होगी। ओबरा के आदिवासी बिन्दूलाल कहते हैं -’ऐसी दुइ बरस में गांव के अन्दर काम ठीक-ठाक भवा है। एइसी दुई साल में गांव की सूरत बदली है। डाला के राम खेलावन कहते हैं -’ तो कोई अच्छा स्कूल और ही कोई और आधुनिक सुविधाएं। सालों से ऐसे ही गुजर-बसर हो रही है। जांबर के रवींद्र कहते हैं कि इस बार भी एनडीए की पकड़ मजबूत हैं। वह पांचों सीटों पर भाजपा का विधायक होने की बात कहकर अपने तर्क देते हैं। 

      दुद्धी के बालकृष्ण जायसवाल कहते है कि कुछ भी हो मोदी का प्रभाव ही उनकी पार्टी को लड़ा रहा है। राम मंदिर, 370, कल्याणकारी योजनाएं इस बार एनडीए की जीत का कारण बनेगी। किसानों को दो-दो हजार रुपये और उज्ज्वला जैसी योजनाओं का जिक्र करते हुए विमला उत्साहित होते हुए बोलती है कि भाजपा ही सरकार बनाएं। इनकी बात को काटते हुए मजीद बोलते हैं - इस बार सपा कड़ी टक्कर देने जा रही हैं। मुस्लिम के साथ ही अन्य पिछड़ी जातियां उनके साथ है। ग्रामीण इलाको में उनका अच्छा प्रभाव है। सलमान का कहना है कि मुद्दों का टोटा है। विकास की बातें खूब होती हैं, लेकिन गांव ही नहीं शहरी इलाकों में भी विकास नहीं दिखाई देता है। हर पार्टी अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए योजनाओं की बातें ही करती है। योजनाएं आती भी हैं, लेकिन उसका फायदा बिचौलिए ही ले जाते दिखाई देते हैं।

कुल मतदाता

       राबर्ट्सगंज सीट पर कुल 1,36,3495 मतदाता हैं। इनमें 7,27,125 पुरुष और 6,36,333 महिलाएं हैं। वर्ष 2019 में इस सीट पर 45.32 प्रतिशत मतदान हुआ था। यहां की कुल आबादी करीब 20 लाख है। यह सीट दो जिलों चंदौली और सोनभद्र की विधानसभा सीटों को मिलाकर बनाई गई है. रॉबर्ट्सगंज लोकसभा सीट के तहत 3 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है. अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व रॉबर्ट्सगंज संसदीय सीट का अधिकतर हिस्सा सोनभद्र जिले में आता है. यहां की 5 सीटों में से 3 सीटें रिजर्व हैं जबकि यहां की सभी पांचों सीटों पर भारतीय जनता पार्टी को जीत मिली थी. 2019 में कुल 1723538 मतदाता थे. जबकि 2014 में 1639074 मतदाता दर्ज थे. 2009 में 1214735 मतदाता थे। जनपद में उम्रवार मतदाताओं की भागीदारी देखा जाए तो सर्वाधिक मतदाता 30-39 आयु वर्ग के हैं। यह कुल मतदाताओं में 30.1 प्रतिशत की भागीदारी रखते हैं। दूसरे नंबर पर 40 से 49 आयु वर्ष के 21.12 प्रतिशत मतदाता हैं। सबसे कम भागीदारी 80 वर्ष से अधिक आयु वर्ग के मतदाता 1.36 प्रतिशत हैं। 

जातिय समीकरण

जाति आधार पर देखा जाए तो यहां पर 59 फीसदी यानी 5,31,075 लोग सामान्य वर्ग से आते हैं, जबकि 23 फीसदी अनुसूचित जाति और 18 फीसदी अनुसूचित जनजाति की संख्या क्रमशः 2,08,257 और 1,62,498 है. क्षेत्र में हिंदू बहुसंख्यक हैं और इनकी आबादी 8,40,814 है जबकि मुस्लिमों की आबादी 52,976 और ईसाई समाज के 1,191 लोगों की है। चंदौली जनपद का चकिया विधानसभा इसमें शामिल है। इसमें 7,33,337 (53.18 प्रतिशत) पुरुष 6,45,654 (46.82 प्रतिशत) महिला मतदाता है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार अनुसूचित जाति की आबादी करीब पौने चार लाख है। 3.5 लाख आबादी अनुसूचित जनजाति की है। 2011 की जनगणना के अनुसार सोनभद्र में 3,33 लाख परिवार रहते हैं। जिले की कुल जनसंख्या 18.62 लाख है जिनमें पुरुषों की संख्या 9.71 लाख और महिलाओं की संख्या 8.91 लाख है। 16.88 प्रतिशत लोग अनुसूचित जाति और 20.67 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति के है। उत्तर प्रदेश के लिंगानुपात 912 के मुकाबले सोनभद्र में प्रति 1000 पुरुषों पर 918 महिलायें है। यहां की औसत साक्षरता दर 52.92 प्रतिशत है जिनमें पुरुषों की साक्षरता दर 61.97 प्रतिशत और महिलाओं की साक्षरता दर 43.06 प्रतिशत है। यहां मतदाताओं की कुल संख्या 1,639,074 है जिसमें महिला मतदाता 737,885 और पुरुष मतदाताओं की संख्या 901,147है। 

12 बार बने हैरामनाम के सांसद

रॉबर्ट्सगंज में अभी तक 15 सांसद चुने जा चुके हैं. जो भी सांसद चुने गए ज्यादातर सांसदों के नाम मेंरामलगा हुआ है. जिनमें से 10 सांसदों के नाम मेंरामऔर तीन सांसदों के नाम मेंलालजुड़ा हुआ है.1962, 1967 और 1971 में कांग्रेस के राम स्वरूप, 1977 में जनता पार्टी के शिव संपत्ति राम, 1980 और 1984 में कांग्रेस के राम प्यारे, 1989 में भाजपा के सूबेदार प्रसाद, 1991 में जनता दल के राम निहोर राय, 1996, 1998, 1999 में भाजपा के राम शकल 2004 में बसपा के लाल चंद्र कोल जीते। 2009 में सपा के पकौड़ी लाल कोल, 2014 में बीजेपी के छोटेलाल 2019 में भाजपा के पकौड़ी लाल कोल जीते।

इतिहास

6,788 वर्ग किमी क्षेत्रफल के साथ यह उत्तर प्रदेश का दूसरा सबसे बड़ा जिला है। सोन, कर्मनाशा, चंद्रप्रभा, रिहंद, रेणू, घग्गर नदियां इसके ग्रामीण इलाकों से होकर बहती हैं। पहाडियों से घिरा इस शहर का नामकरण ब्रिटिश-राज में अंग्रेजी सेना के फिल्ड मार्शल फ्रेडरिक रॉबर्ट के नाम पर हुआ था। देवकीनंदन खत्री के सुप्रसिद्ध उपन्यास चंद्रकांता और चंद्रकांता संतति के कथा की पृष्ठभूमि विजयगढ़ है। विजयगढ़ का किला, सोढरीगढ़ का किला, वीर लोरिक का पत्थर, सलखन, जीवाश्म पार्क, नगवा बांध, लखनिया दरी, रिहंद बांध, अगोरी दुर्ग, रेनुकूट रेडूकेश्ववर मंदिर यहां के प्रमुख पर्यटन स्थल के साथ-साथ खनन के लिए भी जाना जाता है. यहां की गुफाओं के भित्ति-चित्रों और चट्टानों पर उकेरी गई चित्रकारी से इस बात के प्रमाण मिलते हैं कि इसका प्रागैतिहासिक काल से रहा है। आदिवासीय बाहुल्य जिला होने के चलते इस सीट को सुरक्षित श्रेणी में रखा गया है। एनर्जी कैपिटल आफ इंडिया के रूप में मशहूर इस जिले में एनटीपीसी, लैंकों, उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन की कई बिजली इकाईयां स्थापित हैं। एक आंकडे़ के अनुसार सभी इकाईयों से यहां पर लगभग 10 हजार मेगावाट बिजली होता है। जिले में रिहंद जलाशय की स्थापना के बाद पहली पन बिजली परियोजना भी स्थापित हुई। आजादी के बाद से मिर्जापुर सोनभद्र जिले को मिलाकर एक संसदीय सीट राबर्ट्सगंज हुआ करती थी। 1989 में अस्तित्त्व में आया सोनभद्र यूपी का अंतिम जिला है। इसका मुख्यालय रॉबर्ट्सगंज है और यही इस क्षेत्र के लोकसभा का नाम है। कोयला, बालू और वन संपदा से समृद्ध राबर्ट्सगंज लोकसभा सीट पांच विधानसभा चकिया, ओबरा, घोरावल, दुद्धी और राबर्ट्सगंज को मिलाकर बना है। चकिया और दुद्धी विधानसभा अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है. पिछले दो चुनाव से यहां भाजपा और उसके सहयोगी अपना दल का कब्जा है.

कब कौन जीता

1952 में पहली बार कांग्रेस के राम स्वरूप सांसद चुने गए थे। राम स्वरुप ने 1967 और 1971 के आम चुनावों में भी कांग्रेस के ही टिकट पर जीत हासिल की थी। हालांकि 1977 में राबर्ट्सगंज की लोकसभा सीट से जनता दल पार्टी के उम्मीदवार शिव संपत राम ने लोकसभा चुनाव जीत हासिल की थे। वहीं 1980 और 1984 के आम चुनाव में कांग्रेस के राम प्यारे पानिका को जीत मिली थी। 1989 के लोकसभा चुनाव में यह सीट पहली बार भाजपा के पास आई। भाजपा के टिकट पर सूबेदार प्रसाद ने जीत दर्ज की थी, लेकिन भाजपा के पास यह सीट ज्यादा समय तक नहीं रह सकी। 1991 के लोकसभा चुनाव में यह सीट एक बार फिर जनता दल पार्टी के खाते में चली गई। वर्ष 1991 में जनता दल पार्टी के प्रत्याशी राम निहोर राय को चुनाव में सफलता मिली थी। वर्ष 1996, 1998 और 1999 के लोकसभा चुनाव में यह सीट भाजपा के पास थी। भाजपा के टिकट पर प्रत्याशी राम शकल तीन बार रॉबर्ट्सगंज लोकसभा सीट से सांसद रहे। 2004 में बसपा के लाल चंद्र कोल को जीत मिली थी। जबकि 2009 में पहली बार सपा ने अपना परचम लहराया। सपा के पकौड़ी लाल ने जीत दर्ज की। लेकिन 2014 में मोदी लहर के दौरान इस सीट का समीकरण बदला और भाजपा के प्रत्याशी छोटेलाल को जीत मिली। 2019 में भाजपा और अपना दल (एस) के पकौड़ी लाल कोल 18वें सांसद चुने गए। इन्होंने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी सपा-बसपा गठबंधन के प्रत्याशी भाईलाल कोल को 54,336 मतों से हराकर जीत दर्ज किया। यह साहित्यकारों और वीरों की भूमि कही जाती है. पिछले 34 साल से यहां कांग्रेस नहीं जीत पाई है. कांग्रेस और भाजपा दोनों ही जीत की हैट्रिक लगा चुकी हैं.

वर्ष    सांसद    पार्टी

1952    रूप नारायण    कांग्रेस

1957    रूप नारायण    कांग्रेस

1962    राम स्वरूप    कांग्रेस

1967    राम स्वरूप    कांग्रेस

1972    राम स्वरूप    कांग्रेस

1977    शिव संपत राम    भालोद

1980    रामप्यारे पनिका    कांग्रेस

1984    रामप्यारे पनिका    कांग्रेस

1989    सूबेदार    भाजपा

1991    राम निहोर    जनता दल

1996    राम सकल    भाजपा

1998    राम सकल    भाजपा

1999    राम सकल    भाजपा

 

 

 

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