Monday, 27 May 2024

अंतिम चरण के ‘‘जातिय चक्रव्यूह’’ में ‘‘बुलडोजर’ की ‘‘अग्निपरीक्षा’’

अंतिम चरण के ‘‘जातिय चक्रव्यूह’’ में ‘‘बुलडोजरकी ‘‘अग्निपरीक्षा’’

     उत्तर प्रदेश के सातवें चरण में पूर्वांचल के 13 सीटों पर एमवाई फैक्टर के बीच हर तरफ बुलडोजर की गूंज है। एक तरफ जातीय चक्रव्यूह को भेदने के लिए एनडीए की ओर से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, जेपी नड्डा, डॉ मोहन यादव सहित दर्जनों भाजपा के शीर्ष नेता सभा से लेकर नुक्कड़ सभाएं तक में कह रहे है धर्म के आधार पर मुसलमानो को आरक्षण नहीं होने देने देंगे, ये योगी का बुलडोजर है जो अच्छे अच्छों की गरमी शांत कर देती है। तो दुसरी तरफ इंडी गठबंधन के लिए राहुल, प्रियंका, अखिलेश डिंपल आदि सभाओं में कहते फिर रहे है मोदी आया तो संविधान बदलने के साथ ही एसीसी एसटी ओबीसी अति पिछड़ों को मिलने वाला आरक्षण खत्म कर देंगे। फिरहाल, कौन किसकी गरमी शांत करेगा और कौन मोदी योगी को सात समुंदर पार खेदेगा इसका फैसला तो चार जून को होगा। लेकिन सातवें चरण में यूपी के पूर्वांचल की 13 सीटों पर जहां भाजपा को चक्रव्यूह को भेदने के लिए हाड़ भेदती लू के थपेड़ों के बीच पसीने बहाने पड़े रहे है, वहीं इंडी नेताओं ने भी जीत के भरोसे के साथ चुनाव में पूरी ताकत झोक रखी है। खास बात यह है कि प्रधानमंत्री मोदी का निर्वाचन क्षेत्र वाराणसी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की कर्मभूमि गोरखपुर इसी पूर्वांचल की सीटों में शामिल है। सातवें चरण में जिन 13 सीटों वोटिंग होनी हैं उनमें से 11 सीटों पर पिछली बार एनडीए ने जीत दर्ज की थी जबकि दो सीटों पर विपक्ष की जीत हुई। रामजीत राम का कहना है कि इन इलाकों में अब जातिगत फैक्टर से ज्यादा विकास का फैक्टर मायने रखते लगा है. चुनाव में इस बार बाबा के बुलडोजर संस्कृति से माफियाओं का सफायसा हो गया है। इस वजह से भी उनके प्रभाव वाले लोग वो नहीं कर पा रहे है, जो पहले करते रहे हैं

सुरेश गांधी

देश में लोकसभा चुनाव के आखिरी चरण का मतदान में अब चार दिन ही बचे है. इससे पहले सियासी पारा चढ़ा हुआ है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ताबड़तोड़ रैलियां कर धुंआधार प्रचार करते दिख रहे है। तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी आखिरी चरण के मतदान से पहले प्रचार में अपनी पूरी ताकत झोंक रहे हैं. बता दें, यूपी में सातवें चरण का मतदान 1 जून को होगा. इस दौरान 13 सीटों पर वोटिंग होगी. इसमें महाराजगंज, गोरखपुर, खुशीनगर, देवरिया, बसनगांव, घोसी, सलेमपुर, बलिया, गाजीपुर, चंदौली, वाराणसी, मिर्जापुर, रॉबर्टस्गंज शामिल हैं, जिस पर जीत तय करने के लिए पीएम मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ लगातार कमान संभाले हुए हैं. दोनों जमकर चुनाव प्रचार कर रहे हैं और तमाम मुद्दों पर विरोधी दलों को घेर रहे हैं. उधर, विपक्षी इंडिया गठबंधन भी पूर्वांचल में बड़ी जीत के भरोसे के साथ जोरदार तरीके से प्रचार में जुटा हुआ है.पूर्वांचल के विकास के लिए चाहें पूर्वांचल एक्सप्रेसवे हो या चाहें अलग-अलग योजनाएं सभी की दुहाई दी जा रही है। यह अलग बात है कि 2019 में बीजेपी मोदी लहर के बावजूद भी पूरी तरह से पूर्वांचल में क्लीन स्वीप नहीं कर पाई थी

     विपक्ष को इन 13 सीटों में से केवल दो पर जीत मिली थी। यही वजह है कि इस चरण में एनडीए और इंडी अलाइंस के बीच बढ़त बनाने की जंग देखने को मिल रही है। भाजपा जहां सभी तेरह सीटों को जीतने के इरादे से अपनी ताकत लगाए हुए है तो वहीं विपक्षी गठबंधन में अपनी सीटें बढ़ाने के लिए जातीय गणित सेट करने में जुटा है. ऐसे में दोनों पक्षों के बीच जबरदस्त टक्कर देखने को मिल सकती है. साथ ही पीएम नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी से सीएम योगी आदित्यनाथ के गृह क्षेत्र गोरखपुर तक फैले इस चरण में कद और जातीय सरहद का लिटमस टेस्ट होगा। भाजपा के दिग्गज चेहरों के साथ उसके सहयोगी दलों की भी जमीन परखी जाएगी। मिर्जापुर और रॉबर्ट्सगंज से अपना दल (एस) चुनाव लड़ रही है। वहीं, घोसी में सुभासपा प्रमुख ओम प्रकाश राजभर अपने बेटे अरविंद राजभर को चुनाव लड़ा रहे हैं। यह अलग बात है कि दूसरी ओर सपा भी सामाजिक-स्थानीय समीकरणों के जरिए खाता खोलने और संख्या बढ़ाने पर जोर लगा रही है। 

2019 के लोकसभा चुनाव के आंकड़ों पर नजर डाले से इस बार इन सीटों पर इंडिया गठबंधन की लड़ाई उतनी आसान भी नहीं है. अगर विपक्षी दलों को अपनी सीटें बढ़ानी है तो उन्हें कम से कम 15 फीसद वोट अपने पक्ष में बढ़ाना होगा जो बेहद मुश्किल दिखाई दे रहा है. पिछले चुनाव में सपा-बसपा का गठबंधन था जो बीजेपी के सामने बेहद मजबूत था, बावजूद इसके विपक्ष को तब दो ही सीटें मिल पाई थी. इसमें गाजीपुर और घोसी 2019 में बसपा के खाते में गई थी। सपा-बसपा दोनों तब साथ थे। इस बार तो बसपा भी साथ नहीं है और कांग्रेस की संगठन भी जमीन पर उतना मजबूत नहीं है. दूसरी तरफ एनडीए का जातीय समीकरण बेहद मजबूत हैं. पूर्वांचल में बीजेपी के साथ राजभर, चौहान, निषाद और गैर यादव ओबीसी समाज के लोग साथ दिखाई देते हैं. ओम प्रकाश राजभर, अपना दल सोनेलाल और निषाद पार्टी एकजुट होकर एनडीए को मजबूत करने में जुटी है. पिछले चुनाव में बीजेपी को औसतन 52.11 फीसद वोट मिले और विपक्ष के खाते में 37.43 वोट ही मिल पाए थे. इनमें यूपी की वाराणसी सीट पर बीजेपी को सर्वाधिक वोट हासिल हुआ था। यहां बीजेपी के पक्ष में 63.62 और विपक्ष को सिर्फ 18.40 फीसद वोट हासिल हुए, जबकि गोरखपुर में 60.54 और सपा-बसपा को 31.45 फीसद वोट मिले. जबकि चंदौली और बलिया सीट पर वोटों में सबसे कम अंतर रहा. चंदौली में बीजेपी को 47.07 और विपक्ष को 45.79 फीसद और बलिया में बीजेपी को 47.40 और विपक्ष को 45.43 फीसद वोट मिला.

देखा जाएं तो पीएम नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र में पिछले तीन दशक से 2004 को छोड़कर हर बार भाजपा अजेय रही है। 2014 से मोदी की उम्मीदवारी के बाद यहां चुनाव एकतरफा ही रहा है और जीत का अंतर बढ़ा है। इस बार भी जमीन पर चर्चा जीत के अंतर की ही है। मोदी के सामने सपा-कांग्रेस गठबंधन के उम्मीदवार के तौर पर कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय राय खड़े हैं। बसपा ने अतहर जमाल लारी को टिकट दिया है। कुछ ऐसा ही गोरखपुर में भी है। तीन दशक से इस सीट पर भाजपा काबिज है। 1989 से 2018 तक गोरक्षपीठ के प्रतिनिधि ने ही इस सीट का प्रतिनिधित्व किया, जिसमें पांच बार मौजूदा सीएम योगी आदित्यनाथ की जीत भी शामिल है। भाजपा से इस बार भी 2019 में जीतने वाले अभिनेता रवि किशन शुक्ला पर दांव लगाया है जबकि सपा से काजल निषाद सामने हैं। इस सीट पर विपक्ष के सामने चुनौती योगी फैक्टर से पार पाने की है जो उसके लिए अभेद्य रहा है। 2018 के उपचुनाव में सपा ने गोरखपुर फतह किया था। इस बार भी निषाद उम्मीदवार और कोर वोटरों के सहारे मजबूत चुनौती देने की कोशिश है।

बुद्ध के परिनिर्वाण की धरती कुशीनगर की सियासत जाति से ही सधती है। भाजपा ने इस बार कांग्रेस से आए आरपीएन सिंह को टिकट दिया है। 2009 में आरपीएन ने ही यहां कमल नहीं खिलने दिया था। इस बार उन पर भाजपा की हैटट्रिक लगाने की जिम्मेदारी है। सपा ने भाजपा के ही पूर्व विधायक जन्मेजय सिंह के बेटे पिंटू सैंथवार पर दांव लगाया है। नजर यहां राष्ट्रीय शोषित समाज पार्टी के उम्मीदवार स्वामी प्रसाद मौर्य पर भी है कि वह चुनाव को त्रिकोणीय बनाने में कितना सफल रहते हैं। 2009 में यहां वह बसपा के टिकट पर 21 हजार वोटों से चुनाव हारे थे। घोसी में 2019 में यहां से बसपा के अतुल राय सांसद बने थे, हालांकि रेप के आरोप में फरारी काटते हुए उन्होंने चुनाव लड़ा था। इस बार सपा ने राजीव राय और भाजपा गठबंधन ने ओम प्रकाश राजभर के बेटे अरविंद राजभर को टिकट दिया है। बसपा ने पूर्व सांसद बालकृष्ण चौहान को उम्मीदवार बनाया है। राजभर के सामने यहां मुश्किल लड़ाई है। मुख्तार अंसारी की जेल में बीमारी के दौरान मौत से उपजे माहौल का भी यहां असर है। यहां की मऊ विधानसभा सीट से मुख्तार का बेटा अब्बास विधायक है। पिछले साल हुए विस उपचुनाव में राजभर के पूरी ताकत झोंकने के बाद भी भाजपा के दारा सिंह चौहान हार गए थे। हालांकि, राजभर दारा दोनों ही योगी सरकार में मंत्री बनाए गए हैं। घोसी के नतीजे राजभर का सियासी कद तय करेंगे। 

बलिया में पूर्व पीएम चंद्रशेखर की परंपरागत सीट से उनके बेटे नीरज शेखर इस बार पाला बदलकर भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। सपा ने पिछली बार महज 15 हजार वोट से पिछड़ने वाले सनातन पांडेय को फिर टिकट दिया है। फिलहाल नीरज के सामने भाजपा की जीत का सिलसिला कायम रखने की चुनौती है। इसके लिए जातीय समीकरण साधने के साथ आंतरिक समन्वय पर भी काम करना होगा। वहीं, सपा के च्क्। (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) के साथ स्वजातीय ब्राह्मण वोटों से भी सनातन ने आस लगा रखी है। हालांकि, इस बार बसपा का साथ होने से लड़ाई और कठिन हो गई है। गाजीपुर में मौजूदा सांसद अफजाल अंसारी इस बार सपा के उम्मीदवार हैं, लेकिन चुनाव में मुद्दा उनका भाई पूर्व विधायक माफिया मुख्तार है। सजायाफ्ता मुख्तार की 28 मार्च को बीमारी से हुई मौत के बाद से सपा और अफजाल ने इसे साजिश का सुर दे रखा है, जिससे सियासी फायदा भी जुड़ा है। भाजपा से पारसनाथ राय उम्मीदवार हैं जो जम्मू-कश्मीर के एलजी मनोज सिन्हा के करीबी हैं। 2019 में अफजाल ने मनोज सिन्हा को 1.19 लाख वोटों से हराया था, हालांकि तब बसपा का साथ था। भाजपा को यहां जीत के लिए मुश्किल सामाजिक समीकरणों के साथ भावनाओं की दीवार भी भेदनी होगी। चंदौली में केंद्रीय मंत्री महेंद्र नाथ पांडेय लगातार तीसरी जीत की उम्मीद लिए चुनाव मैदान में है। पिछले चुनाव में वह महज 14 हजार के नजदीकी अंतर से जीते थे। हालांकि, तब सपा-बसपा साथ थे। इस बार सपा ने उनके सामने ठाकुर चेहरे के तौर पर वीरेंद्र सिंह को उतारा है। उसकी रणनीति अपने कोर वोटरों के साथ अगड़ों को जोड़कर जीत का आंकड़ा हासिल करने पर है।

हालांकि, भाजपा के कोर वोट, अपने काम और मोदी के नाम के भरोसे महेंद्र नाथ पांडेय हैटट्रिक के लिए पूरा जोर लगाए हुए हैं। मिर्जापुर में अपना दल सोनेलाल की मुखिया अनुप्रिया पटेल तीसरी बार ताल ठोक रही है। उनका मुकाबला भाजपा से सपा के रमेश बिन्द से है। बता दें भदोही से उनका टिकट कटने के बाद सपा में चल गए और घोषित प्रत्याशी राजेंद्र एस. बिंद का टिकट काटकर उन्हें मैदान में उतारा गया है। 2019 में अनुप्रिया ने सपा-बसपा गठबंधन के रामचरित निषाद को 2.32 लाख वोटों से हराया था। ओबीसी बहुल इस सीट पर इस बार भी लड़ाई कद और जातीय गणित की ही है। पूर्वांचल की सियासत ओबीसी के इर्द-गिर्द सिमटी हुई है. माना जाता है कि इस पूरे इलाके में करीब 50 फीसदी से ज्यादा ओबीसी वोट बैंक जिस भी पार्टी के खाते में गया, जीत उसकी तय हुई. 2017-2022 के विधानसभा और 2014 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को पिछड़ा वर्ग का अच्छा समर्थन मिला. नतीजतन केंद्र और राज्य की सत्ता पर मजबूती से काबिज हुई. ऐसे में बीजेपी और सपा दोनों ही पार्टियां ओबीसी वोटों का साधने के लिए तमाम जतन इस बार किए हैं. ऐसे में बसपा ने भी पूर्वांचल के सियासी समीकरण को देखकर अपने उम्मीदवार उतारे हैं.

 

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