भदोही : ‘जनेऊधारियों’ को सता रहा ‘दंगेशराज’ का खौफ
बेलबूटेदार
कलात्मक
रंगों
का
इन्द्रधनुषी
वैभव
लिए
हुए
बेहद
लुभावने
कालीनों
का
शहर
भदोही
में
25 मई
को
वोटिंग
है।
लेकिन
यहां
की
जातिय
सियासी
पैतरों
की
गांठ
कालीनों
की
तरह
इस
कदर
उलझी
है
कि
सीधा
करना
तो
दूर
अब
तो
एक
दुसरे
पर
से
भरोसा
ही
उठने
लगा
है।
ऐसे
में
अगर
जातियां
अपने
अपने
नेताओं
पर
मेहरबानी
की
तो
परिणाम
चौकाने
वाले
हो
सकते
हैं।
यह
अलग
बात
है
कि
महिलाओं
का
निरंतर
बढ़ता
मत
प्रतिशत
और
बिनकारी
से
लेकर
निर्यात
तक
में
मातृशक्ति
का
योगदान
किसी
से
छिपा
नहीं
है।
वैसे
भी
कुटीर
उद्योग
की
श्रेणी
में
शुमार
जनपद
का
एकमात्र
कारपेट
इंडस्ट्री
के
विकास
में
आधी
आबादी
को
यहां
की
रीढ़
कहा
जाता
है।
देखा
जाएं
तो
लोकसभा
के
पिछले
दो
और
विधानसभा
के
चार
चुनावों
के
ट्रेंड
में
महिलाओं
का
मत
प्रतिशत
पुरुषों
से
अधिक
रहा
है।
या
यूं
कहें
कि
चुनावों
में
जीत
की
कुंजी
महिलाओं
के
पास
है
तो
अतिशयोक्ति
नहीं
होगी।
ऐसे
में
कोई
भी
राजनीतिक
दल
यहां
मातृशक्ति
की
अनदेखी
नहीं
कर
सकता।
यही
कारण
भी
है
लोकसभा
चुनाव
के
दृष्टिगत
इस
बार
यहां
की
8.79 लाख
महिला
मतदाताओं
को
साधने
पर
सभी
राजनीतिक
दलों
की
नजर
है।
जीत
का
सेहरा
किसके
सिर
बंधेगा,
ये
तो
4 जून
को
पता
चलेगा।
लेकिन
बड़ा
सवाल
तो
यही
है
क्या
भदोही
में
शक्ति
यानी
मातृशक्ति
के
आशीर्वाद
से
ही
राजनीतिक
दल
चुनावी
वैतरणी
पार
करेंगे?
मतलब
साफ
है
मुसलमान,
यादव,
दलित
व
ब्राह्मण,
क्षत्रीय,
वैश्य
सहित
अन्य
पिछड़ी
जातियों
की
जुगलबंदी
के
बीच
महिलाएं
ही
प्रत्याशियों
के
भाग्य
को
तय
करेगी।
सुरिवाया
के
रामदयाल
दुबे
ने
2019 का
जिक्र
करते
हुए
कहा
कि
तब
भाजपा
ने
उस
रमेश
बिन्द
को
मैदान
में
उतारा
था,
जिसका
ब्राह्मणों
को
गाली
देने
वाला
वीडियों
खूब
वायरल
हुआ
था।
लेकिन
ब्राह्मणों
ने
बसपा
से
चुनाव
मैदान
में
उतरे
रंगनाथ
मिश्रा
जैसे
कद्दावर
व
विकास
पुरुष
नेता
के
विकल्प
के
तौर
पर
मौजूद
रहने
के
बावजूद
भाजपा
के
पक्ष
में
वोटिंग
किया
था,
अब
तो
साफ
सुथरे
छबि
वाले
विनोद
बिन्द
मैदान
में
है।
वैसे
भी
दंगेशराज
का
तांडव,
दंगा
व
फर्जी
मुकदमों
के
बीच
राह
पीटते
लोगों
के
आंखों
के
सामने
खूनी
मंजर,
रंगदारी
न
देने
पर
लूटपाट
का
खौफनाक
दास्तां
अब
भी
लोगांं
के
जेहन
में
है
सुरेश गांधी
फिरहाल, भदोही में सियासी उथल
पुथल के बीच मतदाता
जातियता की कढ़ाही में
तल-भुन रहा हैं।
2014 एवं 2019 में मोदी लहर
में भारी मतों से
जीती भाजपा ने रमेश बिन्द
की जगह डॉ विनोद
बिन्द को मैदान में उतारा है।
जबकि इन दोनों चुनावों
में भाजपा को कड़ी टक्कर
देने वाला सपा इस
बार इंडी गठबंधन के
लिए सीट छोड़े जाने
से यहां पूर्व मुख्यमंत्री
पं कमलापति त्रिपाठी के परपोते ललितेशपति
त्रिपाठी तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) से मैदान में
है। यह अलग बात
है कि टीएमसी के
चुनाव चिन्ह को आमजनमानस के
दिलोदिमाग पर बैठाने के
लिए उन्हें काफी मशक्त करनी
पड़ रही है। लेकिन
उन्हें अपने जातिय समीकरण
पर पूरा भरोसा है।
राजाराम यादव की मानें
तो यदि ब्राह्मणों के
साथ-साथ सपा के
कोर वोटर एमवाई फैक्टर
सहित पिछड़ों का झुकाव टीएमसी
की तरफ हुआ तो
परिणाम चौकाने वाले हो सकते
है। जबकि बनवारी लाल
का कहना है कि
पिछले दो चुनावों से
यहां जातिय फैक्टर तहस-नहस हो
गया है। सिर्फ मोदी
योगी फैक्टर काम कर रहा
है। 370 व राष्ट्रवाद के
साथ इस बार श्रीराम
मंदिर, विकास व लाभार्थी योजनाओं
के बीच योगी का
बुलडोजर लोगों के सिर चढ़कर
बोल रहा है।
सुरियावा के इलेक्ट्रिक दुकानदार
नजर अहमद ने भी
चुनाव बाद मोदी की
सरकार बनने के दावे
किए। इन्होंने कहा कि केंद्र
में मोदी की सरकार
बने इसके लिए मतदान
के दौरान लोग पलट भी
सकते हैं। चाय विक्रेता
कुमार यादव ने कहा
कि इस चुनाव में
भाजपा मैदान में डटी हुई
है। गोपीगंज के पकौड़ी लाल
ने कहां -मोदी-योगी ने
लोगों को परेशान कर
दिया है। जबकि हरिनाथ
की राय जुदा थी।
हरिनाथ के मुताबिक कुर्मी
मत एकजुट भाजपा के साथ हैं।
दलित भी भाजपा के
साथ आ रहे हैं।
युवा अनुभव भी इनकी बातें
सुन रहा था, उसने
सबकी बातें काटते हुए कहा कि
चुनाव में सिर्फ मोदी
का नाम चल रहा
है। भाजपा ही जितेगी। जोशीले
अनुभव ने कहा कि
इस समय सारे भ्रष्टाचारी
बेल पर है या
जेल में हैं। मोदी
की गारंटी है, बाकी सब
हवा-हवाई है। राज्य
में भाजपा सरकार बनने के बाद
बिजली और सड़कें अच्छी
हो गई हैं। सुरिवाया
मिश्राइनपुर के कमलेश बिन्द,
तेजपुर सिंह के अनिल
बिन्द बिठौली के बबलू तिवारी
व हडिया के बेजेश व
जंगीगंज के राजेशखर बोले
यहां मुकाबला कांटे का है। कुर्मी
के साथ यादव भी
भाजपा के साथ जा
सकते हैं, ऐसी चर्चाएं
अब चल रही हैं।
लोग यह जानते हैं
कि सरकार दिल्ली की बनानी है
इसलिए भाजपा को वोट देंगे।
इन्होंने कहा कि अंदर
ही अंदर मोदी के
नाम की लहर जनता
में चल रही है।
कसौड़ा के अमरनाथ यादव
मौजूदा सरकार के प्रति अपनी
नाराजगी जताते हुए कहा, रोजगार
व महंगाई रोक पाने में
यह सरकार विफल है। जबकि
अखिलेशराज में उन्हें कोई
दिक्कत नहीं थी, हर
तरह की आजादी थी।
राममोहन तिवारी का कहना है
कि ब्राह्मण इस बार भी
राम मंदिर की तरफदारी करने
वालों के साथ है।
इससे इतर दयाशंकर मिश्रा
का कहना है कि
अगर ब्राह्मण खुलकर टीएमसी प्रत्याशी ललितेश पति त्रिपाठी के
साथ आए तो ममता
को यूपी में पांव
पसारने का अवसर मिल
सकता है। भदोही निर्वाचन
क्षेत्र के अंतर्गत आने
वाले पांच विधानसभा क्षेत्रों
में से तीन पर
सपा का कब्जा है,
जिसमें एक मुस्लिम और
दो पिछड़े विधायक, एक यादव और
एक बिंद हैं. राजनीतिक
विश्लेषकों के अनुसार भदोही
के राजनीतिक समीकरण निश्चित रूप से जातियों
और समुदायों के मकड़जाल में
फंसे हुए हैं, लेकिन
16 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र
मोदी की रैली के
बाद, मतदाताओं का मूड, जो
कई मुद्दों पर भाजपा से
नाराज थे, बदलना शुरू
हो गया है. बसपा
में शामिल हुए प्रमुख ब्राह्मण
चेहरे रंगनाथ मिश्रा की भाजपा में
वापसी से भाजपा को
राहत मिली है और
पार्टी बसपा के पारंपरिक
मतदाताओं पर भी ध्यान
केंद्रित कर रही है.
कुल मतदाता
भदोही लोकसभा में कुल वोटरों
की संख्या 2009146 है। जिसमें भदोही
की तीन विधानसभा से
1208610 और प्रयागराज की दो विधानसभा
के 800536 वोटर हैं। जिसमें
पुरूष मतदाताओं की संख्या 1129245 और
महिला वोटरों की संख्या 879901 है।
थर्ड जेंडर मतदाताओं की संख्या 97 है।
विधानसभावार देखे तो भदोही
में 4,34,304 वोटों में पुरुष 208072 व
महिला 226192 है। ज्ञानपुर में
3,93,735 मतों में पुरुष 188966 व
महिला 204728 है। औराई में
3,80,570 मतो में पुरुष 182697 व
महिला 197869 हैं। प्रतापपुर में
4,08,714 मतों में पुरुष 198247 व
महिला 210467 हैं। हंडिया में
4,00,811 मतो में पुरुष 195478 व
महिला 205333 हैं। 2011 की जनगणना के
मुताबिक जिले में 53 फीसदी
पुरुषों की आबादी है।
जबकि महिलाओं की आबादी 47 फीसदी
है. यहां पर हिंदुओं
की 53 फीसदी और मुसलमानों की
45 फीसदी आबादी है. स्त्री-पुरुष
अनुपात के आधार पर
एक हजार पुरुषों में
950 महिलाएं हैं. यहां पर
साक्षरता दर 90 फीसदी लोग है, जिसमें
पुरुषों की 94 फीसदी और महिलाओं की
86 फीसदी आबादी शिक्षित है.
किसी दल की मजबूत पकड़ नहीं
भदोही संसदीय क्षेत्र में 2009 में हुए लोकसभा
चुनाव में बसपा के
गोरखनाथ ने जीत हासिल
की थी. उन्होंने सपा
के छोटेलाल बिंद को 12,963 मतों
से हराया था. उस समय
कुल 13 लोग मैदान में
थे. इस चुनाव में
बीजेपी पांचवें स्थान पर थी. जबकि
2019 में बीजेपी ने यहां से
तत्कालीन सांसद बीरेन्द्र सिंह को टिकट
न देकर रमेश चंद
को मैदान में उतारा और
वे बिजयी रहे। जबकि सपा
बसपा गठबंधन में बसपा के
रंगनाथ मिश्रा मैदान में थे. कांग्रेस
ने रामाकांत को प्रत्याशी बनाया
था. इस बार कुल
12 प्रत्याशी मैदान में थे. बीजेपी
के रमेशचंद बिंद को 5,10,029 वोट
मिले थे. तो बसपा
के रंगनाथ मिश्र 4,66,414 वोंटों के साथ दूसरे
नंबर पर रहे और
कांग्रेस के रमाकांत यादव
25,604 वोटों के साथ तीसरे
नंबर पर रहे थे.
2014 में मोदी लहर में
बीरेन्द्र सिंह मस्त 1,58,141 मतों
से शानदार जीत दर्ज करायी
थी। उन्होंने बसपा के राकेशधर
त्रिपाठी को हराकर हराया
था। वीरेंद्र सिंह को 4,03,544 वोट
(41.12 फीसदी) मिले, जबकि राकेशधर त्रिपाठी
को 2,45,505 मत (25.01 फीसदी) मिले. इस चुनाव में
कांग्रेस पांचवें स्थान पर रही।
जातिय समीकरण
लोकसभा की पांच विधानसभाओं
में ब्राह्मण और बिंद सबसे
अधिक मतदाता है। इसके अलावा
यादव, मुस्लिम भी अच्छी खासी
संख्या में है। खासकर
भदोही की तीनों विधानसभाओं
में बिंद और अन्य
अति पिछड़ी जातियों की तादाद भी
अच्छी-खासी है। वर्तमान
में लोकसभा की पांच सीटों
में औराई व ज्ञानपुर
में भाजपा, भदोही, हंडिया और प्रतापपुर में
सपा का कब्जा है।
संख्या दृष्टि से देखे तो
ब्राह्मण 3 लाख 15 हजार, बिंद 2 लाख 90 हजार, दलित 2 लाख 60 हजार, यादव 1 लाख 40 हजार, राजपूत एक लाख, मौर्या
95 हजार, पाल 85 हजार, वैश्य 1 लाख 40 हजार, पटेल 75 हजार, मुस्लिम 2 लाख 50 हजार व अन्य
1 लाख 50 हजार है। डीघ
के रामअवध दुबे का कहना
है कि भदोही में
सर्वाधिक मतदाता ब्राह्मण हैं। इसके बाद
बिंद, मुस्लिम, दलित, यादव, वैश्य, क्षत्रिय सहित अन्य बिरादरियों
का नंबर आता है।
ऐसे में पिछली बार
की तरह इस बार
भी ब्राह्मणों में राष्ट्रवाद का
जज्बा है।
मुख्य कारोबार कालीन
भदोही के लगभग साढ़े
छह लाख लोग कालीन
उद्योग से जुड़े हुए
हैं। वर्ष 2022-23 में देश के
कालीन उद्योग का टर्नओवर 14,774 करोड़
रुपये का था। भदोही
के कालीन निर्यातकों के मुताबिक कालीन
निर्यात में 60 फीसदी हिस्सेदारी थी। इसके बावजूद
भदोही में शिक्षा और
स्वास्थ्य के लिहाज से
सुविधाओं का अभाव है।
एकमा के अनुसार भदोही
में सालाना लगभग 9,000 करोड़ रुपये का
कालीन बनता है. इनमें
से हर साल 5,000 करोड़
रुपये से अधिक के
कालीन संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोपीय देशों
सहित विभिन्न देशों में निर्यात किए
जाते हैं. कालीन उद्योग
पांच लाख से अधिक
कारीगरों को रोजगार देता
है.
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