रायबरेली : रामलहर में दादी व मां की विरासत को सहेजने की चुनौती?
दादी इंदिरा और मां सोनिया की विरासत को सहेजने के लिए प्रियंका बांड्रा रायबरेली में डेरा डाल दिया है। मकसद है ऐनकेन प्रकारेण राहुल गांधी को संसद भेजने की। जबकि 2019 में सोनिया से मात खा चुके भाजपा के दिनेश प्रताप सिंह इस बार बख्सने के मूड में नहीं है। विरासत व विकास की इस जंग में बाजी किसके हाथ लगेगी ये तो 4 जून को पता चलेगा। लेकिन बड़ा सवाल तो यही है क्या श्रीराम मंदिर, विकास, 370 व राष्ट्रवाद सहित मोदी-योगी लहर में राहुल गांधी दादी इंदिरा व मां सोनिया की विरासत को सहेज पायेंगे? देखा जाएं तो रायबरेली लोकसभा की ऐसी सीट है जहां देश के आजाद होने के बाद जब भी गांधी परिवार का सदस्य उतरा, उसे जीत निश्चित तौर पर मिली है. लेकिन इससे इतर याकूब कुरैशी कहते है रायबरेली की लड़ाई, ’डरो मत’ बनाम ’भागो मत’! हो गयी है। मतलब साफ है राहुल के लिए यहां की सीट बहुत मुश्किल नहीं तो बहुत आसान भी नहीं होगी. जबकि धनखड़ यादव कहते है रायबरेली मतलब कांग्रेस के लिए जीत की गारंटी. इससे बड़ा प्रमाण और क्या हो सकता है 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के दौर में भी कांग्रेस ने यहां से सीट जीती थी. 1977 की इमरजेंसी की बात छोड़ दें तो पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी हों या उनके बाद सोनिया गांधी दोनों की जीत सुनिश्चित रही है
सुरेश गांधी
रायबरेली लोकसभा सीट का राजनीतिक रूप के साथ साहित्य रूप से भी काफी महत्वपूर्ण है. महावीर प्रसाद द्विवेदी, मालिक मोहम्मद जायसी आदि कई ऐसी हस्तियां हैं, जिन्होंने रायबरेली के नाम को रोशन किया है. खासकर, रायबरेली लोकसभा ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के लिए एक महल के रूप में काम किया है क्योंकि उन्होंने इस सीट पर लड़े गए 20 लोकसभा चुनावों में से 17 में जीत हासिल की है (तीन उप-चुनावों सहित)। यही वजह है कि रायबरेली देश की हॉट लोकसभा सीटों में शामिल हैं. क्योंकि यह भारतीय राजनीति के कई महत्वपूर्ण नामों, जैसे इंदिरा गांधी, सोनिया गांधी, फ़िरोज़ गांधी आदि का गढ़ रहा है। देश के सबसे प्रभावशाली प्रधानमंत्रियों में से एक, श्रीमती इंदिरा गांधी ने भी करीब एक दशक तक इस सीट को अपना गढ़ बनाए रखा. हालांकि, इस सीट से सबसे सफल नेता पूर्व कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी हैं, जिन्होंने इस सीट से एक के बाद एक पिछले पांच लोकसभा चुनाव जीते (2006 के उपचुनाव सहित)। चूंकि यह गांधी परिवार की पुरानी सीट रही है, इसलिए राहुल गांधी के नामांकन के बाद चुनावी मुकाबला बेहद दिलचस्प हो गया है. उनका मुकाबला भाजपा के दिनेश प्रताप सिंह एवं बसपा के ठाकुर प्रसाद यादव से होगा.
हालांकि यूपी में कांग्रेस
और समाजवादी पार्टी में गठबंधन हैं,
इसलिए उनका मुकाबला सीधे-सीधे बसपा और
बीजेपी से है. यह
अलग बात है कि
राहुल की जीत पक्की
करने के लिए बहन
प्रियंका गांधी व बहनोई राबर्ट
वाड्रा ने रायबरेली में
डेरा डाल रखा है।
वह लोगों के बीच कहती
है दादी व मां
ने राहुल को संपति नहीं
शहादत की विरासत सौंपी
है और इस विरासत
को संभालने में रायबरेली की
जनता उनके साथ है।
रायबरेली के थुलवासा में
एक नुक्कड़ सभा में उन्होंने
कहा, ’जब उन्हें इंदिराजी
(इंदिरा गांधी) की कोई नीति
पसंद नहीं आई तो
उन्होंने उन्हें भी हरा दिया।
इंदिरा गुस्सा नहीं हुईं बल्कि
आत्ममंथन किया। आपने उन्हें दोबारा
चुना। यह रायबरेली के
लोगों की खासियत है
कि वे नेताओं को
समझते हैं।’जबकि लालगंज
के बनवारी लाल कहते हे
राहुल को अपनी मां
व दादी की राजनीतिक
विरासत को संभालना आसान
नहीं होगा. क्योंकि राहुल का मुकाबला पुराने
कांग्रेसी दिनेश प्रताप सिंह से है.
या यूं कहे कांग्रेस
की भले ही तूती
बोलती हो, लेकिन यहां
कई सियासी क्षत्रप हैं, जिनका अपना-अपना सियासी असर
और रसूख है. यानी
रायबरेली में भले ही
राहुल गांधी बनाम दिनेश प्रताप
सिंह के बीच मुकाबला
हो, लेकिन नजर जिले के
सियासी मठाधीशों पर भी है.
दिनेश प्रताप सिंह के लिए
सबसे बड़ी चुनौती अपनों
की भितरघात की है, तो
कांग्रेस के लिए सहयोगी
दल सपा के नेताओं
का विश्वास जीतने की है. बाहुबली
अखिलेश सिंह भले ही
अब दुनिया में नहीं रहे,
लेकिन उनकी बेटी अदिति
सिंह से लेकर उनके
भतीजे मनीष सिंह तक
सियासत में सक्रिय हैं.
अदिति सिंह बीजेपी से
विधायक हैं.
पांच विधानसभा में
चार विधानसभा सीटों पर सपा के
विधायक हैं. यह अलग
बात है कि रायबरेली
सीट गांधी परिवार की पारंपरिक सीट
रही है. यहां के
लोगों का गांधी परिवार
से खास लगाव है.
लेकिन ये भी सच
ही गांधी परिवार की ही एक
और पारंपरिक सीट अमेठी लोकसभा
सीट पर पिछले चुनावों
में बीजेपी की स्मृति ईरानी
ने सेंध लगाकर कब्जा
कर लिया था. जिस
प्रकार पूरे देश में
कांग्रेस का गढ़ लगभग
ढहता जा रहा है,
उस हिसाब से रायबरेली की
जनता भी अमेठी की
तरह की उलटफेर कर
दे, से इनकार नहीं
किया जा सकता. इसके
अलावा खुद सोनिया गांधी
इस बार रायबरेली सीट
छोड़कर राजस्थान से राज्यसभा की
सीट पर संसद पहुंच
गई हैं. यह भी
एक प्रकार से रायबरेली की
जनता को सोनिया गांधी
का बीच में छोड़ना
ही हुआ. इसका असर
भी चुनावों में दिखाई दे
सकता है.
कुल मतदाता
रायबरेली लोकसभा सीट पर 5वें
चरण में 20 मई को मतदान
होगा. इस सीट पर
कुल 21 लाख, 45 हजार, 820 मतदाता हैं. इनमें पुरुष
मतदाताओं की संख्या 11.20 लाख
और महिला वोटरों की संख्या 10.25 लाख
है. रायबरेली लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र में पांच विधान
सभा सीट बछरावां, हरचंदपुर,
रायबरेली, सरेनी और ऊंचाहार शामिल
हैं. इनमें से रायबरेली सीट
से बीजेपी की अदिति सिंह
विधायक हैं, बाकि 4 पर
सपा का कब्जा है.
मनोज पांडे ऊंचाहार विधानसभा सीट से विधायक
हैं.
2014 व 2019 में कांग्रेस की जीत
रायबरेली लोकसभा सीट से साल
2019 आम चुनाव में सोनिया गांधी
ने जीत हासिल की
थी. सोनिया गांधी के खिलाफ बीजेपी
ने दिनेश प्रताप सिंह को मैदान
में उतारा था. लेकिन सोनिया
गांधी ने एक लाख
67 हजार वोटों से जीत हासिल
की. 2014 में मोदी लहर
में भी सोनिया गांधी
ने यहां से चुनाव
लड़ा था। तब सोनिया
को 5,26,434 वोट हासिल हुए
थे, जबकि भाजपा के
अक्षय अग्रवाल 1,73,721 वोटों के साथ दूसरे
स्थान पर रहे थे।
इस तरह सोनिया 3,52,713 वोटों
से जीत दर्ज करने
में कामयाब रही थीं। देखा
जाएं तो 2009 में सोनिया गांधी
को 72.23 फीसदी वोट मिले थे.
जबकि बीजेपी को सिर्फ 3.8.2 फीसदी
वोट मिला. बीजेपी और कांग्रेस के
बीच तब वोटों का
अंतर 68.41 फीसदी का था. इसके
बाद 2014 के चुनाव में
सोनिया गांधी को 63.80 फीसदी वोट मिले और
बीजेपी को 21.05 फीसदी वोट मिले. यानी
कांग्रेस को (-8.43 फीसदी) वोट का नुकसान
हुआ और बीजेपी को
($17.23 फीसदी) वोट का फायदा.
दोनों पार्टियों के वोट का
अंतर घटकर 42.75 फीसदी हो गया. 2019 में
सोनिया गांधी को 55.78 फीसदी वोट मिले और
बीजेपी को 38.35 फीसदी वोट मिले, यानी
कांग्रेस को (-8.02 फीसदी) का नुकसान हुआ
और बीजेपी को ($17.3 फीसदी) का फायदा. जीत
हार का अंतर घटकर
17.43 फीसदी रह गया है.
अब चौथी अहम बात
ये है कि रायबरेली
में पिछली बार बीजेपी 17.43 फीसदी
वोट के अंतर से
हारी है और लगातार
दो चुनाव में 7 फीसदी से ज्यादा वोट
बढ़ाती आ रही है.
जातिय समीकरण
रायबरेली में सबसे ज्यादा
एससी वर्ग (दलित), ब्राह्मण और राजपूत मतदाताओं
की आबादी है। यहां पर
ब्राह्मण 11 प्रतिशत, ठाकुर 9 प्रतिशत, यादव 7 प्रतिशत, एससी वर्ग 34 फीसद
हैं। जबकि मुस्लिम वोटरों
की संख्या 6 फीसदी है। वहीं, लोध-6,
कुर्मी-4 और अन्य वर्गों
की कुल 23 प्रतिशत आबादी है।
कब कौन जीता
कांग्रेस के दिग्गजों का
रायबरेली से संबंध आजादी
पूर्व से है. 7 जनवरी
1921 में ही पं. मोतीलाल
नेहरू ने अपने प्रतिनिधि
के रूप में जवाहरलाल
नेहरू को यहां भेजा
था. यहां तक कि
8 अप्रैल 1930 में यूपी में
दांडी यात्रा के लिए भी
रायबरेली को ही चुना
गया था. उस वक्त
पं. मोतीलाल नेहरू खुद रायबरेली गए
थे. इस प्रकार ऐसे
कई वाकये हैं जब गांधी-नेहरू परिवार का रायबरेली से
निकटता बढ़ती गई और
उन्होंने आगे चलकर इसे
अपना चुनाव क्षेत्र बनाया. आजादी के बाद जब
देश में पहली बार
लोकसभा का चुनाव हुआ
तो फिरोज गांधी ने रायबरेली सीट
पर 1952 और 1957 के चुनाव में
यहां से जीत दर्ज
की। 1960 में कांग्रेस के
ही आरपी सिंह और
1962 के उपचुनाव में बैजनाथ कुरील
चुनाव जीते थे. फिरोज
गांधी के बाद पूर्व
प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने रायबरेली में
चुनावी मोर्चा संभाल लिया. उन्होंने 1967 से 1971 तक जीत दर्ज
की. 1975 से 77 तक देश में
आपातकाल का दौर रहा.
1977 के चुनाव में तो राजनारायण
से वो हार गईं
लेकिन 1980 में उन्होंने वापसी
की. तब उन्होंने रायबरेली
के साथ-साथ संयुक्त
आंध्र प्रदेश की मेंडक सीट
से भी चुनाव जीता
था. ऐसे में उन्होंने
रायबरेली को छोड़कर मेंडक
को बनाए रखा. इंदिरा
गांधी के रायबरेली छोड़ने
के बाद लंबे समय
तक परिवार के किसी सदस्य
को यहां के चुनावी
मैदान में नहीं उतारा
गया। हालांकि, इंदिरा के बाद यहां
से उनके रिश्तेदार अरुण
नेहरू को जरूर प्रत्याशी
बनाया गया. अरुण नेहरू
मोतीलाल नेहरू के चचेरे भाई
के पोते थे. अरुण
नेहरू 1981 से 1984 तक यहां से
सांसद रहे. लेकिन इसके
बाद वो जनता दल
में शामिल हो गए. इसके
बाद कांग्रेस ने यहां से
शीला कौल को उम्मीदवार
बनाया. शीला कौल भी
गांधी परिवार की रिश्तेदार थीं.
शीला कौल सन् 1989 से
लेकर 1991 तक रायबरेली सीट
से लोकसभा की सांसद चुनी
गईं. उनके बाद सन्
1996 में शीला कौल के
बेटे विक्रम कौल तो सन्
1998 में शीला कौल की
बेटी दीपा कौल को
रायबरेली से उतारा तो
गया लेकिन दोनों चुनाव नहीं जीत सके.
इसके बाद सन् 1999 में
कांग्रेस ने राजीव गांधी
के दोस्त कैप्टन सतीश शर्मा को
यहां से टिकट दिया,
जो रायबरेली से सांसद बने.
इस साल सोनिया गांधी
पहली बार अमेठी से
चुनावी मैदान में उतरीं और
चुनी गयी। जब राहुल
गांधी ने चुनावी राजनीति
में कदम रखा तो
सोनिया ने राहुल को
अमेठी सीट दे दी
और वह खुद रायबरेली
चली आईं. तब से
सोनिया ने यहां से
लगातार चार बार चुनाव
जीता है लेकिन 2024 के
लोकसभा चुनाव से पहले सोनिया
ने रायबरेलीवासियों के नाम एक
भावुक पत्र लिखकर उन्हें
आभार जताया और चुनावी राजनीति
से दूर हो गईं.
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