काशी में किसानों के जरिए विपक्ष की गर्मी शांत करेंगे मोदी
जीत के बाद शपथ, फिर विदेश दौरा और अब 18 जून को अपने संसदीय क्षेत्र के मतदाताओं के प्रति अभार। दरअसल, आभार तो बहाना है। मकसद है विपक्ष के उस उत्साह में पलीता लगाना, जो यह कहकर इतरा रहा है, हमनें ’400’ पार को न सिर्फ रोका है, बल्कि मोदी की लोकप्रियता में बट्टा लगाते हुए जनता उन्हें मेंडेट दी है। इन्हीं सवालों का जवाब देने के लिए मोदी ने काशी को चुना है, जहां वे एक साथ 50 हजार किसानों से संवाद कर देश के सवा 9 करोड़ किसानों को बतायेंगे, किस तरह विपक्ष झूठ, प्रोपोगेंडा व गारंटी कार्ड के जरिए आम जनमानस को बरगलाने का कुत्सित प्रयास किया है। जहां तक भाजपा का हालिया लोकसभा चुनाव में हुए प्रदर्शन को लेकर चिंतन, मंथन और विचार विमर्श का सवाल है तो लखनऊ में प्रदेश अध्यक्ष भूपेन्द्र चौधरी और संगठन महामंत्री धर्मपाल सिंह सहित मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी प्रदेशभर के पार्टी के प्रमुख पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं के साथ संपंर्क कर जिन सीटों पर पार्टी को हार मिली है, वहां किन कारणों से ऐसा हुआ इसकी पड़ताल की है। समझा जा रहा है 18 जून को ही सीएम योगी पीएम मोदी के सामने हार के वजहों व खराब प्रदर्शन की रिपोर्ट भी सौंपेंगे। भला क्यों नहीं, यूपी की राजनीति ने जो देश की सियासत बदलकर रख दी है। मतलब साफ है 2027 में दबदबा बनाएं रखने के लिए योगी के एक्शन के साथ ही पार्टी के भीतर कील-कांटों को निकालना ही पड़ेगा। क्योंकि अगर योगी का घूर विरोधी रहे मुख्तार अंसारी के भाई अफजाल अंसारी वाराणसी में पीएम मोदी के जीत की मार्जिन घटने के कारणों को बताते हुए कह रहे है अगर योगी ने अपनी प्रतिष्ठा नहीं लगायी होती मोदी हार जाते, के बहुत बड़े मायने हैफिरहाल, बीजेपी में ऊपर से
नीचे तक, बीजेपी हेडक्वार्टर
से मंडल ऑफिस तक,
एक रिपोर्ट बनाई है. रिपोर्ट
का आधार लखनऊ, मुंबई
व कोलकाता है, जहां बीजेपी
विपक्ष से पिछड़ गयी।
यां यू कहें चुनाव
में भाजपा के खराब प्रदर्शन
के कारणों के तह तक
जाने के बाद पीएम
मोदी अबकी पार 400 पार
के लक्ष्य तक न पहुंचने
का वजह भी खोज
लिया है। इन्हीं कारणों
को आम जनमानस में
रखने के साथ विपक्ष
की बखियां भी उधेड़ने वाले
है। गारंटी कार्ड से लेकर झूठ,
फरेब व बैशाखी सरकार
कभी भी ढह जायेगी,
मोदी की लोकप्रियता घट
गयी है, अब उन्हें
नैतिक हार मानते हुए
सत्ता का मोह त्याग
देने जैसे विपक्ष के
सवालों की धुर्री उड़ाने
वाले है। इसके लिए
मोदी ने अपने संसदीय
क्षेत्र को चुना है,
जहां वे 18 जून को मेहंदीपुर
गांव में पूर्वांचल के
21 मंडलों के 50 हजार से अधिक
किसानों से संवाद करेंगे।
संवाद के दौरान कृषि
मंत्री शिवराज सिंह चौहान की
मौजूदगी में देश के
9 करोड़ 3 लाख से भी
अधिक किसानों की 17वीं किश्त
उनके खातों में डालेंगे। सालाना
मिलने किसान निधि की यह
राशि 20,000 करोड़ से भी
अधिक हैं। बता दें,
2019 में प्रधानमंत्री किसान निधि सम्मान योजना
कि शुरुआत की गई थी।
अब तक लगभग 11 करोड़
किसानों को 3.04 लाख करोड़ से
ज्यादा की राशि दी
जा चुकी है। दरअसल,
आभार तो बहाना है।
मकसद है विपक्ष के
उस उत्साह में पलीता लगाना,
जो यह कहकर इतरा
रहा है, हमनें ’400’ पार
को न सिर्फ रोका
है, बल्कि मोदी की लोकप्रियता
में बट्टा लगाते हुए जनता उन्हें
मेंडेट दी है। इन्हीं
सवालों का जवाब देने
के लिए मोदी ने
काशी को चुना है,
जहां वे एक साथ
50 हजार किसानों से संवाद कर
देश के सवा 9 करोड़
किसानों को बतायेंगे, किस
तरह विपक्ष झूठ, प्रोपोगेंडा व
गारंटी कार्ड के जरिए आम
जनमानस को बरगलाने का
कुत्सित प्रयास किया है।
अफजाल
ने इशारों इशारों में साफ कर
दिया कि किस तरह
सत्ता के शीर्ष व्यक्ति
के साथ मिलकर एक
पत्रकार ने योगी से
खुन्दस निकालने के लिए वाराणसी
ही नहीं पूरे पूर्वांचल
की बाजी पलट दी।
भूमिहार व पटेल सहित
अन्य छोटी विरादरियों का
मोदी के पक्ष में
मतदान न करना एक
बड़े साजिश का हिस्सा है।
शीर्ष नेतृत्व के कंफ्यूजन का
ही फायदा अखिलेश ने उठाया और
उन्हीं के सोशल इंजिनियरिंग
अपनाकर पूर्वांचल व यूपी तो
छोडिए अयोध्या जैसी सीट भी
सपा ने जीत ली।
बीजेपी के आकलन के
मुताबिक कुछ उम्मीदवारों का
चयन भी ठीक नहीं
रहा, जिसके कारण हार का
सामना करना पड़ा. प्रदेश
बीजेपी में गुटबाजी पर
लगाम नहीं कस सकी
है. कई क्षेत्रों में
बीजेपी का संगठन मजबूत
नहीं है और मतदान
के समय मतदाताओं को
पोलिंग सेंटर तक नहीं लाया
जा सका.
किसानों के खातों मे जायेंगी 20,000 करोड़
इस बार योजना
की शुरुआत से लाभार्थियों को
हस्तांतरित कुल राशि 3.24 लाख
करोड़ रुपये से अधिक हो
जाएगी। इसमें किसानों को 6000 रुपये की सालाना आर्थिक
मदद मिलती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र
मोदी लगातार तीसरी बार पदभार संभालने
के बाद पहली बार
18 जून को अपने संसदीय
क्षेत्र वाराणसी में देश भर
के लाभार्थी किसानों के लिए पीएम-किसान योजना की 17वीं किस्त
जारी करेंगे। साथ ही पीएम
मोदी स्वयं सहायता समूहों के 30,000 से अधिक सदस्यों
को प्रमाण पत्र भी देंगे,
जिन्हें कृषि सखियों के
रूप में प्रशिक्षित किया
गया है। इससे वे
पैरा-एक्सटेंशन वर्कर के रूप में
काम कर सकेंगी और
साथी किसानों की खेती के
कामकाज में मदद भी
कर सकेंगी। पीएम-किसान एक
डायरेक्ट बेनेफिट ट्रांसफर (डीबीटी) पहल है। इसके
तहत लाभार्थी किसानों को उनकी वित्तीय
जरूरतों को पूरा करने
के लिए 2-2 हजार रुपये तीन
समान किस्तों में सालाना 6,000 रुपये
मिलते हैं। प्रधानमंत्री फसल
बीमा योजना के तहत 4 करोड़
से ज्यादा किसानों को आर्थिक सुरक्षा
की गारंटी दी गयी है।
वैश्विक कीमतों में उछाल के
बावजूद भी किसानों को
11 लाख करोड़ की सब्सिडी
उपलब्ध कराकर सस्ती दरों पर खाद
उपलब्ध कराने का काम निरंतर
जारी हैं। यहां जिक्र
करना जरुरी है कि कृषि
सखी योजना का उद्देश्य 90,000 महिलाओं
को पैरा-एक्सटेंशन कृषि
श्रमिकों के रूप में
प्रशिक्षित करना है, ताकि
कृषक समुदाय की सहायता की
जा सके और उनकी
अतिरिक्त कमाई हो सके।
अब तक लक्षित 70,000 में
से 34,000 से अधिक कृषि
सखियों को गुजरात, तमिलनाडु,
उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़,
कर्नाटक, महाराष्ट्र, राजस्थान, ओडिशा, झारखंड, आंध्र प्रदेश और मेघालय जैसे
12 राज्यों में पैरा-विस्तार
कार्यकर्ताओं के रूप में
प्रमाणित किया गया है।
सरकार कृषि क्षेत्र के
लिए 100-दिवसीय योजना तैयार कर रही है,
जिसमें किसानों के कल्याण और
देश में कृषि परिदृश्य
के समग्र विकास के लिए अपनी
प्रतिबद्धता पर जोर दिया
गया है।
यूपी में खराब प्रदर्शन के पीछे की वजह
जहां तक भाजपा
का हालिया लोकसभा चुनाव में हुए प्रदर्शन
को लेकर चिंतन, मंथन
और विचार विमर्श का सवाल है
तो लखनऊ में प्रदेश
अध्यक्ष भूपेन्द्र चौधरी और संगठन महामंत्री
धर्मपाल सिंह सहित मुख्यमंत्री
योगी आदित्यनाथ ने भी प्रदेशभर
के पार्टी के प्रमुख पदाधिकारियों
और कार्यकर्ताओं के साथ संपंर्क
कर जिन सीटों पर
पार्टी को हार मिली
है, वहां किन कारणों
से ऐसा हुआ इसकी
पड़ताल की है। समझा
जा रहा है 18 जून
को ही सीएम योगी
पीएम मोदी के सामने
हार के वजहों व
खराब प्रदर्शन की रिपोर्ट भी
सौंपेंगे। इसके बाद रिपोर्ट
के आधार पर पार्टी
एवं मोदी अपनी रणनीति
तय करेंगे। देखा जाएं तो
पिछले दो लोकसभा चुनावों
में बीजेपी को अपने दम
पर बहुमत मिला था, लेकिन
इस बार उसके बहुमत
से 32 कम सांसद जीते
हैं. भाजपा ने ’अबकी बार
400 पार’ का नारा दिया
था, लेकिन वह 240 सीटें ही जीत सकी.
उसके नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक
गठबंधन को 292 सीटों के साथ बहुमत
जरूर प्राप्त हुआ है. लेकिन
इस बहुमत में चंद्रबाबू नायडू
की टीडीपी और नीतीश कुमार
की जदयू का बड़ा
योगदान है. दोनों दलों
ने क्रमशः 16 और 12 सीटें जीती हैं. बीजेपी
नेताओं का आकलन है
कि उम्मीद से खराब प्रदर्शन
के पीछे जातीय समीकरणों
को ठीक से न
साध पाना रहा है.
उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में
बीजेपी को इसकी बड़ी
कीमत चुकानी पड़ी, जहां पिछले
चार चुनावों में बहुत सावधानी
से बनाया गया। इंद्रधनुषी जातीय
समीकरण इस लोकसभा चुनाव
में बिखर गया. बीजेपी
का अनुमान है कि इस
बार न केवल गैर-यादव ओबीसी वोट
बैंक का कुछ हिस्सा
बीजेपी से छिटका, बल्कि
गैर-जाटव दलित वोटर
भी खिसकर विपक्षी गठबंधन के पाले में
गए. गैर-यादव, ओबीसी
में खटीक और कुर्मी
वोटों का पलायन खासतौर
से रेखांकित किया जा रहा
है. मायावती
की बीएसपी के दौड़ से
पूरी तरह बाहर हो
जाने के कारण दलित
भी इस बार कांग्रेस-सपा के साथ
चले गए. संविधान बदलने
का विपक्ष का दुष्प्रचार बीजेपी
पर भारी पड़ा और
पार्टी ने इसका सही
से प्रतिवाद नहीं किया. कानपुर-बुंदेलखंड रीजन की 10 सीटों
में बीजेपी सिर्फ 4 सीट ही जीत
पाई है, जबकि अवध
क्षेत्र की 16 सीटों में बीजेपी को
सिर्फ 7 सीटों पर ही जीत
मिली है। बांदा से
चुनाव हारे बीजेपी उम्मीदवार
आरके सिंह पटेल ने
कहा कि विपक्ष ने
संविधान, आरक्षण वाला जो नैरेटिव
खड़ा किया, जनता ने उस
पर भरोसा कर लिया। पटेल
ने इसकी वजह भी
बताई। उन्होंने कहा कि केवल
विपक्ष अगर ये बातें
कहता तो जनता शायद
इस पर विश्वास न
भी करती लेकिन बीजेपी
के कई स्थानीय नेताओं
ने विपक्ष के लिए खुलकर
कैंपेन किया,उनके एजेंडे
पर मुहर लगाई, पार्टी
के साथ विश्वासघात किया।
अपनों से ही धोखे
का आरोप मोहन लालगंज
के बीजेपी उम्मीदवार कौशल किशोर भी
लगा रहे हैं। कौशल
किशोर 2014 और 2019 में मोहनलालगंज से
चुनाव जीतते रहे। केंद्र सरकार
में मंत्री भी रहे लेकिन
इस बार वह भी
अपनी सीट नहीं बचा
पाए। कौशल किशोर ने
कहा कि विपक्ष के
संविधान और आरक्षण खत्म
करने वाला नैरेटिव जनता
पर चिपक गया। बीजेपी
लीडरशिप अपनी बात समझाने
में कामयाब नहीं हो पाई।
उस पर पार्टी के
अंदर के ही लोगों
ने उन्हें चुनाव हरवाने का काम किया।
यूपी बीजेपी के उपाध्यक्ष विजय
पाठक ने कहा कि
पार्टी इस हार से
हताश नहीं है। इसी
संगठन ने बीजेपी को
यूपी में 10 से 73 तक पहुंचाया था।
हार की वजह जानकर,
उन्हें दूर करके पार्टी
फिर से उत्तर प्रदेश
में मजबूत होगी। बीजेपी ने 80 नेताओं की टास्क फोर्स
बनाई गई है। दो
सदस्यों वाली एक टीम
2 लोकसभा सीटों पर जाकर रिपोर्ट
तैयार करेगी। हार की वजह
तलाशने के लिए यूपी
बीजेपी का संगठन तीन
तरह की रिपोर्ट तैयार
कर रहा है। पहली
रिपोर्ट उम्मीदवार के फीडबैक के
आधार पर, दूसरी लोकसभा
सीटों पर गई टीम
की रिपोर्ट और तीसरी मंडल
स्तर पर तैयार करवाई
गई रिपोर्ट। इन तीनों रिपोर्ट
के आधार पर एक
फाइनल रिपोर्ट तैयार होगी जिसे केंद्रीय
नेतृत्व को
भेजा जाएगा। पार्टी ने साफ संकेत
दिया है कि चुनाव
में भितरघात करने वालों पर
सख्त एक्शन लिया जाएगा। मीटिंग
के बाद यूपी बीजेपी
के अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी ने कहा कि
यूपी की जनता ने
जो फैसला दिया है उसे
पार्टी स्वीकार करती है, गलतियों
को सुधारा जाएगा। बीजेपी की सहयोगी पार्टी
के नेताओं को भी इस
बात की शिकायत है
कि बीजेपी की लोकल यूनिट्स
ने ठीक से काम
नहीं किया, गठबंधन धर्म का पालन
नहीं किया।
बलिया में दो दिन
पहले ओमप्रकाश राजभर ने कहा कि
बीजेपी के नेता-कार्यकर्ताओं
उनके उम्मीदवार को हराने का
काम किया। बीजेपी के नेता दिखावा
करते रहे। उन्होंने मोदी-योगी के निर्देश
को भी नकार दिया।
वे सामने से तो समर्थन
का दावा करते रहे
लेकिन पीछे से विपक्ष
के उम्मीदवार का सपोर्ट किया।
हालांकि आज ओम प्रकाश
राजभर अपने बयान से
पलट गए। उन्होंने कहा
कि जो भी खबर
चलाई जा रही है
वो फेक न्यूज़ है।
उन्होंने ऐसा कुछ नहीं
कहा, वो एनडीए के
साथ हैं। उन्हें मोदी-योगी पर पूरा
भरोसा है। ये सारी
अफवाह विपक्ष ने फैलाई है।
उत्तर प्रदेश मे बीजेपी की
सीटें कम क्यों हुईं,
इसका विश्लेषण चुनाव विशेषज्ञ कई बार कर
चुके हैं। ज्यादातर लोग
मानते हैं कि बीजेपी
ने टिकट बांटते समय
जातिगत समीकरणों का ध्यान नहीं
रखा। अखिलेश यादव ने सिर्फ
परिवार के 5 यादव लड़ाए,
सिर्फ 4 मुसलमानों को टिकट दिया,
और बाकी सीटों पर
जाति के आधार पर
वोट लेने वाले उम्मीदवारों
को टिकट दिए। ये
रणनीति काम कर गई।
लेकिन आज जो विश्लेषण
सामने आया, वह बीजेपी
के अपने हारने वाले
उम्मीदवारों का विश्लेषण है,
इसीलिए महत्वपूर्ण है। मोटे तौर
पर तीन बातें सामने
आईं। एक तो यूपी
में बीजेपी ने बीजेपी को
हराया। पार्टी के अपने नेताओं
ने अपने उम्मीदवारों को
हरवाया। सबने सोचा 400 पार
तो जाने वाले हैं,
मोदी के नाम पर
जीतने ही वाले हैं,
एक दो सीटों पर
हार गए तो क्या
फर्क पड़ेगा। सबने अपने-अपने
प्रतिद्वंदियों का हिसाब चुकता
किया। नतीजा ये हुआ कि
पार्टी की सीटें घटकर
33 पर आ गईं। 400 पार
के नारे का एक
और नुकसान ये हुआ कि
इसे राहुल और अखिलेश ने
आरक्षण हटाने की मंशा से
जोड़ दिया। बीजेपी के खिलाफ ये
नैरेटिव चलाया। ये फेक था,
गलत था, लेकिन बीजेपी
इसे काउंटर करने में नाकाम
रही। बीजेपी के अंदर के
विश्लेषण का एक और
पहलू ये है कि
योगी आदित्यनाथ ने कम से
कम 35 उम्मीदवारों के टिकट बदलने
की सिफारिश की थी, लेकिन
उसे किसी ने नहीं
माना। बीजेपी ने 34 से ज्यादा ऐसे
उम्मीदवारों को टिकट दिया
जो लगातार तीसरी बार या उससे
भी ज्यादा बार चुनाव मैदान
में उतरे थे। इनमे
से 20 चुनाव हार गए। बीजेपी
को सबसे बड़ा सेटबैक
लगा अयोध्या की सीट हारने
का, और पार्टी के
इंटरनल डिस्कशन में ये बात
बार-बार आई कि
जहां भव्य राम मंदिर
बना, वह सीट बीजेपी
कैसे हार गई? इसका
विश्लेषण कोई सीक्रेट नहीं
है। ये इन तीनों
बातों पर आधारित है
जो मैंने अभी-अभी आपको
बताई। लल्लू सिंह को बदलने
की बात की गई
थी। अयोध्या के सारे नेता
लल्लू सिंह के खिलाफ
थे, आपसी झगड़े थे।
जातिगत समीकरण बीजेपी के कैंडिडेट के,
पूरी तरह खिलाफ थे।
और इन सबके ऊपर,
आरक्षण को हटाने का
नैरेटिव। सबने मिलकर अयोध्या
की सीट भी हरवा
दी। तो ये कह
सकते हैं कि बीजेपी
का जो ओवरऑल एनालिसिस
है। अयोध्या की सीट उसका
एक बड़ा उदाहरण है।
अब बीजेपी के लिए बड़ा
चैलेंज तीन साल बाद
होने वाले विधानसभा चुनाव
हैं। अखिलेश यादव और उनकी
पार्टी उत्साहित है। समाजवादी पार्टी
के कार्यकर्ताओं में जोश है,
बीजेपी इसे कैसे काउंटर
करेगी?
303 से 240 पर अटकी
पिछले दो चुनाव में
पार्टी के अपने सांसदों
की संख्या 282 और 303 तक पहुंची थी
जो अब घटकर 240 आ
पहुंची है. अलग-अलग
सिरे निकाल चुनाव का विश्लेषण चलता
रहेगा लेकिन सीधी और साफ
समझ आने वाली बात
ये है कि उत्तर
प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल;
इन 4 राज्यों ने नरेंद्र मोदी
के नेतृत्व में अजेय मानी
जा रही बीजेपी को
गठबंधन की सरकार बनाने
पर मजबूर कर दिया है.
दरअसल, इन 4 राज्यों में
लोकसभा सीटों की कुल संख्या
195 है. 2014 में इन चारों
राज्यों में भाजपा अपने
दम पर 121 जीती जो पिछले
आम चुनाव (2019) में 127 तक पहुंच गई
लेकिन 2024 का चुनाव कुछ
और रहा. भाजपा इस
दफा इन राज्यों में
पिछले प्रदर्शन से एकदम आधे
पर आ गिरी. पार्टी
इन राज्यों में केवल 68 सीट
जीतने में कामयाब रही
है, जो कुल सीटों
का महज 35 फीसदी है. यही बीजेपी
पिछले दो चुनावों में
इन 4 राज्यों की कुल सीटों
का तकरीबन 60 से 65 फीसदी हिस्सा जीती थी. पिछले
चुनाव में जब उत्तर
प्रदेश में बीजेपी की
सीटें घटी तो वह
पश्चिम बंगाल में अच्छा कर
300 के पार चली गई
लेकिन इस बार ऐसा
नहीं हो सका.
महाराष्ट्र
यूपी के अलावा
इन तीनों राज्यों में भी बीजेपी
को झटका लगा है.
जबकि चारों राज्यों में बीजेपी की
सरकार है. लेकिन सरकार
और संगठन में तालमेल की
कमी इन चारों राज्यों
में बीजेपी के खराब प्रदर्शन
की बड़ी वजह बतायी
जा रही है. पार्टी
के कार्यकर्ता सरकार में अपनी उपेक्षा
से नाराज हैं और कई
मौजूदा सांसदों को दोबारा टिकट
देना भी एक गलत
फैसला साबित हुआ. 2019 में महाराष्ट्र में
23 सीटें जीतने वाली बीजेपी को
इस बार चुनाव में
सिर्फ 9 सीटें मिली हैं। इसलिए
बीजेपी वहां पर भी
हार की वजह तलाशने
में जुट गई है।
हालांकि इस बार महाराष्ट्र
में सबसे ज्यादा वोट
शेयर बीजेपी को मिला है।
कई जगह जीत-हार
का अंतर बहुत कम
वोटों का था लेकिन
ये सच है कि
महाराष्ट्र में बीजेपी को
काफी कम सीटें मिली
हैं और उसकी वजह
सिर्फ एक ही है,
कांग्रेस और महाविकास अघाड़ी
के दूसरे दलों ने लोगों
में झूठ फैलाया। बीजेपी
संविधान बदल देगी, दलितों-आदिवासियों का हक छीन
लेगी, ये झूठ लोगों
के दिमाग में बैठ गया
और बीजेपी को इसी का
नुकसान हुआ। महाराष्ट्र के
विधानसभा चुनाव में तो बस
4 महीने का समय बचा
है। बीजेपी के सामने सबसे
बड़ा सवाल है कि
क्या विधानसभा चुनाव शिंदे गुट और एनसीपी
के साथ मिलकर लड़े
या अलग लड़े? सवाल
ये भी है कि
अगर बीजेपी महायुति बनाकर चुनाव लड़ेगी तो सीटों का
बंटवारा क्या होगा? क्योंकि
खबर है कि बीजेपी
ने उन 106 सीटों पर सर्वे कराना
शुरु कर दिया है
जहां उसे पिछले चुनावों
में जीत मिली थी।
अलायंस पार्टनर एकनाथ शिंदे बीजेपी के 400 पार वाले नारे
पर सवाल उठा चुके
हैं। एनसीपी भी केन्द्र की
सरकार में शामिल नहीं
हुई है। ये सब
इस बात की तरफ
इशारा कर रहे हैं
कि आने वाले दो-तीन महीने महाराष्ट्र
की सियासत में काफी एक्शन
पैक्ड होंगे और कई नए
चुनावी समीकरण देखने को मिल सकते
हैं।
हरियाणा
महाराष्ट्र के साथ-साथ
इस साल हरियाणा में
भी विधानसभा चुनाव होना है। हरियाणा
में भी बीजेपी को
2019 के मुकाबले इस बार आधी
सीटें मिलीं। हरियाणा की 10 लोकसभा सीटों में से 5 कांग्रेस
ने जीतीं। इनमें अंबाला और सिरसा की
सीटें भी शामिल हैं,
जो दलितों के लिए आरक्षित
हैं। सिरसा की सीट 2019 में
बीजेपी की सुनीता दुग्गल
ने जीती थीं। सुनीता
ऑफ़िसर थीं। 2014 में वो नौकरी
छोड़कर बीजेपी में शामिल हुईं
और 2019 में चुनाव लड़कर
संसद पहुंच गई थीं। हालांकि,
इस बार बीजेपी ने
उनको टिकट नहीं दिया।
सिरसा में इस बार
बीजेपी ने सुनीता दुग्गल
की जगह कांग्रेस छोड़कर
आए अशोक तंवर को
टिकट दिया था। अशोक
तंवर, कांग्रेस की कुमारी शैलजा
से चुनाव हार गए। आज
बीजेपी के नेताओं ने
रोहतक में चुनाव के
नतीजों का एनालिसिस किया।
सबसे बड़ा सवाल यही
था कि आखिर अंबाला
और सिरसा की रिज़र्व सीटें
बीजेपी के हाथ से
कैसे निकल गईं। रिव्यू
मीटिंग में शामिल हरियाणा
सरकार के मंत्री विश्वम्भर
वाल्मीकि ने माना कि
उम्मीदवारों के चयन में
गड़बड़ी हुई थी। इस लोकसभा चुनाव
में हरियाणा की दस सीटों
पर बीजेपी का वोट परसेंट
करीब 10 परसेंट तक घट गया
है। ये बीजेपी के
लिए अच्छे संकेत नहीं है, क्योंकि
चुनाव में सिर्फ चार-पांच महीने का
वक्त रह गया है।
9 साल तक मुख्यमंत्री का
पद संभालने वाले मनोहर लाल
खट्टर केंद्र में मंत्री बन
चुके हैं। हरियाणा के
मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी
को कुर्सी संभाले 4 ही महीने हुए
हैं। बीजेपी का गठबंधन भी
जेजेपी से टूट चुका
है। हरियाणा के जाट वोटर
का झुकाव भी कांग्रेस की
तरफ दिख रहा है।
एक साथ इतने मोर्चं
पर लड़ना बीजेपी के
लिए कड़ी चुनौती है।
बंगाल
भाजपा को शायद इस चुनाव
में जिस एक राज्य
से सबसे अधिक उम्मीद
थी, वह पश्चिम बंगाल
ही था. पिछले चुनावों
में उत्तर और पश्चिम भारत
में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाली भाजपा
इस बार उसको दोहराने
की स्थिति में नहीं थी.
वह पूरब और दक्षिण
भारत के राज्यों में
कुछ कमाल करना चाहती
थी. दक्षिण में उसकी लाज
कर्नाटक और तेलंगाना ने
जरुर रख ली जबकि
पूरब में उड़ीसा, झारखंड
में एक बड़ी ताकत
के तौर पर बीजेपी
का उभरना काबिल-ए-तारीफ था
लेकिन पश्चिम बंगाल में पार्टी का
प्रदर्शन उन्हीं के नेताओं की
नजर से अगर देखें
तो बेहद निराशाजनक रहा.
निराशाजनक इसलिए क्योंकि नरेंद मोदी ने इस
चुनावी साल में जिन
राज्यों में सबसे ज्यादा
जोर लगाया, वह पश्चिम बंगाल
था. उन्होंने यहां हर दूसरी
सीट पर एक रैली
की. उत्तर प्रदेश की तुलना में
सीटों की संख्या आधी
होते हुए भी बराबर
की संख्या में रैली कर
मोदी ने दावा किया
कि भाजपा सबसे अच्छा प्रदर्शन
इस बार पश्चिम बंगाल
ही में करेगी। पर
ऐसा नहीं हुआ. कम
से कम 30 सीट जीतने की
जुगत भिड़ाने वाली भाजपा 12 पर
सिमट आई है. यह
उसके पिछले प्रदर्शन से 6 कम है.
संदेशखाली को एक बड़ा
मुद्दा बनाने के बावजूद बीजेपी
राज्य में महिलाओं का
वोट लेने में सफल
नहीं हो सकी. ग्रामीण
इलाकों में खासतौर से
महिलाओं ने टीएमसी के
पक्ष में वोट दिया.
टीएमसी को महिलाओं के
वोट के पीछे लक्ष्मी
भंडार स्कीम का बड़ा हाथ
है. इस स्कीम का
ग्रामीण क्षेत्रों में गरीब वर्ग
पर बड़ा प्रभाव है
और शहरी क्षेत्रों में
झुग्गी-झोपड़ियों में इसका बड़ा
प्रभाव है.
राजस्थान
अभी दिसंबर ही
में हुए विधानसभा चुनाव
में बहुमत की सरकार बनाने
वाली पार्टी इस बात से
आश्वस्त थी कि वह
फिर एक बार सूबे
में क्लीन स्वीप कर देगी, लेकिन
राजस्थान ने तो जैसे
चौंका दिया. 2014 में 25 की 25, 2019 में 1 कम 24 सीट जीतने वाली
नरेंद्र मोदी की बीजेपी
को इस बार केवल
14 सीट से संतोष करना
पड़ा है. कांग्रेस की
अगुवाई वाली इंडिया गठबंधन
ने 11 सीट पर जीत
के साथ इस मिथक
को तोड़ दिया है
कि बीजेपी -कांग्रेस में सीधा मुकाबला
अगर हो तो कांग्रेस
बीजेपी को हरा नहीं
सकती.
किसान सम्मान निधि
केंद्र
सरकार की ओर से
पीएम किसान सम्मान निधि योजना के
तहत किसानों को हर साल
6 हजार रुपये की आर्थिक मदद
दी जाती है. किसानों
के खाते में प्रत्येक
4 महीने पर 2-2 हजार रुपये की
राशि 3 किस्तों में भेजी जाती
है. इस स्कीम के
तहत एडवांस डिजिटल टेक्नोलॉजी के माध्यम से
प्रत्यक्ष लाभ अंतरण यानी
डीबीटी के द्वारा लाभ
सीधे पात्र लाभार्थियों के बैंक खातों
में ट्रांसफर कर दिया जाता
है. सरकार का कहना है
कि योजना को अधिक कुशल,
प्रभावी और पारदर्शी बनाने
के लिए किसान-केंद्रित
डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर में लगातार सुधार
किये गए हैं, ताकि
यह सुनिश्चित हो कि योजना
का लाभ बिचौलियों के
बिना, देशभर के सभी किसानों
तक पहुंचे. मालूम हो कि प्रधानमंत्री
किसान सम्मान निधि पोर्टल को
यूआईडीएआई, पीएफएमएस (सार्वजनिक वित्तीय प्रबंधन प्रणाली), भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम (एनपीसीआई) और आयकर विभाग
के पोर्टल के साथ इंटीग्रेट
किया गया है.
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