जय जगन्नाथ! के उद्घोष के साथ काशी में रथ छूने की लगी होड़
तीन दिन
तक
बाबा
भगवान
जगन्नाथ
के
आराधना
में
लीन
रहेगी
काशी
श्रद्धालु पूरे
श्रद्धाभाव
से
प्रभु
को
फल-पुष्प
और
तुलसी
की
माला
कर
रहे
अर्पित
काशी नरेश
कुंवर
अनंत
नारायण
ने
भगवान
जगन्नाथ
की
पूजा
अर्चना
कर
दो
पग
खींचा
रथ
सुरेश गांधी
वाराणसी। जय जगन्नाथ! के
उद्घोष के साथ भगवान
जगन्नाथ, भाई बलराम और
बहन सुभद्रा रविवार के साथ रविवार
को भव्य शोभायात्रा निकाली
गयी। बारिश बावजूद भक्तों की भीड़ व
उत्साह चरमोत्कर्ष पर रही। लोग
छाता लेकर और भगवान
का जयकारा लगाते हुए रथ खींच
रहे थे। रथयात्रा मेले
का शुभारंभ पूर्व काशीराज परिवार के कुंवर अनंत
नारायण सिंह ने भगवान
जगन्नाथ की पूजा-अर्चना
के बाद रथ को
दो पग खींचकर किया।
रथयात्रा मेले के पहले दिन बाबा कालभैरव के पंचबदन प्रतिमा की भव्य शोभायात्रा निकाली गई। चौखंबा स्थित काठ की हवेली से स्वर्णकार क्षत्रिय कमेटी के तत्वावधान में शोभायात्रा निकली। सुसज्जित छतरी युक्त घोड़ों पर देव प्रतिमाएं राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न, हनुमान, शंकर, गणेश, नारद, ब्रह्मा जी के साथ दो दरबान भी विराजमान रहे। सुबह से ही भगवान जगन्नाथ के दर्शन के लिए भक्तों की भारी भीड़ देखी गयी, यह सिलसिला देर रात तक जारी रहा रथ को स्पर्श करके लोग अपनी मनोकामनाओं की प्राप्ति के लिए भगवान जगन्नाथ का आशीर्वाद प्राप्त कर रहे हैं.
1740 में बनकर तैयार हुआ रथ
पुजारी राधेश्याम पांडेय ने बताया, कि इस रथ का निर्माण 1740 में हुआ था. तब से लेकर अब तक यहां पर मेले का आयोजन किया जाता है. तीन दिनों तक यह मेल चलता है. पहले दिन भगवान को पीला वस्त्र पहनाया जाता है. सनातन धर्म में जगन्नाथ रथ यात्रा का बहुत ही खास महत्व है.भगवान जगन्नाथ रथयात्रा आषाढ़ शुक्ल पक्ष की द्वितीया को प्रारंभ होती है. 7 जुलाई यानी आज से भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा शुरू हो चुकी है. रथयात्रा में भगवान जगन्नाथ साल में एक बार मंदिर से निकल कर जनसामान्य के बीच जाते हैं. रथयात्रा में सबसे आगे ताल ध्वज होता जिस पर श्री बलराम होते हैं, उसके पीछे पद्म ध्वज होता है जिस पर सुभद्रा और सुदर्शन चक्र होते हैं और सबसे अंत में गरूण ध्वज पर श्री जगन्नाथ जी होते हैं जो सबसे पीछे चलते हैं.
पद्म पुराण के अनुसार, भगवान जगन्नाथ की बहन ने एक बार नगर देखने की इच्छा जताई. तब जगन्नाथ और बलभद्र अपनी लाडली बहन सुभद्रा को रथ पर बैठाकर नगर दिखाने निकल पड़े.तभी से जगन्नाथ यात्रा निकालने की परंपरा चली आ रही है. नारद पुराण और ब्रह्म पुराण में भी इसका जिक्र है. मान्यताओं के मुताबिक, मौसी के घर पर भाई-बहन के साथ भगवान खूब पकवान खाते हैं और फिर वह बीमार पड़ जाते हैं. उसके बाद उनका इलाज किया जाता है और फिर स्वस्थ होने के बाद ही लोगों को दर्शन देते हैं.राधा और श्रीकृष्ण की युगल मूर्ति के प्रतीक स्वयं श्री जगन्नाथ जी हैं. यानी राधा-कृष्ण को मिलाकर उनका स्वरूप बना है और कृष्ण भी उनके एक अंश हैं.
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