Sunday, 7 July 2024

जय जगन्नाथ! के उद्घोष के साथ काशी में रथ छूने की लगी होड़

जय जगन्नाथ! के उद्घोष के साथ काशी में रथ छूने की लगी होड़

मेले में उमड़ा आस्थावानों का सैलाब

तीन दिन तक बाबा भगवान जगन्नाथ के आराधना में लीन रहेगी काशी

श्रद्धालु पूरे श्रद्धाभाव से प्रभु को फल-पुष्प और तुलसी की माला कर रहे अर्पित

काशी नरेश कुंवर अनंत नारायण ने भगवान जगन्नाथ की पूजा अर्चना कर दो पग खींचा रथ

सुरेश गांधी

वाराणसी। जय जगन्नाथ! के उद्घोष के साथ भगवान जगन्नाथ, भाई बलराम और बहन सुभद्रा रविवार के साथ रविवार को भव्य शोभायात्रा निकाली गयी। बारिश बावजूद भक्तों की भीड़ उत्साह चरमोत्कर्ष पर रही। लोग छाता लेकर और भगवान का जयकारा लगाते हुए रथ खींच रहे थे। रथयात्रा मेले का शुभारंभ पूर्व काशीराज परिवार के कुंवर अनंत नारायण सिंह ने भगवान जगन्नाथ की पूजा-अर्चना के बाद रथ को दो पग खींचकर किया।

इस दौरान भक्त उन्हें तुलसी, सफेद माला अर्पित करने के साथ नानखटाई, फल मिठाई का भोग स्वरुप चढ़ा रहे थे। मेले में छोटे बच्चों के लिए हर तरह के खिलौने थे। कछ जगहों पर बच्चे खिलौने लेने की जिद् करते दिखे तो युवा तोता मैना और खरगोश का मोलभाव कर रहे थे। मेले में पर्याप्त लाइटिंग की व्यवस्था के साथ ही सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए थे। मेला तीन दिनों तक चलेगा. इसमें काशी के साथ-साथ दूसरे जनपद से भी लोग प्रभु जगन्नाथ के दर्शन करने के लिए पहुंचते है.

रथयात्रा मेले के पहले दिन बाबा कालभैरव के पंचबदन प्रतिमा की भव्य शोभायात्रा निकाली गई। चौखंबा स्थित काठ की हवेली से स्वर्णकार क्षत्रिय कमेटी के तत्वावधान में शोभायात्रा निकली। सुसज्जित छतरी युक्त घोड़ों पर देव प्रतिमाएं रामलक्ष्मणभरतशत्रुघ्नहनुमानशंकरगणेशनारदब्रह्मा जी के साथ दो दरबान भी विराजमान रहे। सुबह से ही भगवान जगन्नाथ के दर्शन के लिए भक्तों की भारी भीड़ देखी गयीयह सिलसिला देर रात तक जारी रहा रथ को स्पर्श करके लोग अपनी मनोकामनाओं की प्राप्ति के लिए भगवान जगन्नाथ का आशीर्वाद प्राप्त कर रहे हैं

          बता दें, अलसुबह से ही भगवान जगन्नाथ के दर्शन के लिए श्रद्धालु पहुंचने लगे। भोर में ही भगवान जगन्नाथ, भैया बलभद्र और बहन सुभद्रा के खास काष्ठ विग्रह को अष्टकोणीय रथ पर विराजमान कराया गया। फिर विग्रहों को पीतांबर वस्त्र धारण कराया गया। स्वर्ण मुकुट एवं आभूषण पहनाने के साथ बेला, गुलाब, चंपा, चमेली, तुलसी की मालाओं से श्रृंगार किया गया। शोभायात्रा में डमरू दल भी शामिल रहे। शोभायात्रा के अंत में शहनाई की धुन के बीच साज-सज्जा के साथ फूलों से सुसज्जित बाबा का स्वर्णिम रथ निकला। शोभायात्रा काठ की हवेली, चौखंभा से प्रारंभ होकर बीवी हटिया, जतनबर, विशेश्वरगंज, महामृत्युंजय, दारानगर, मैदागिन, बुलानाला, चौक, नारियल बाजार, गोविंदपुरा, ठठेरी बाजार, सोराकुआं, गोलघर, भुतही इमली होते
हुए कालभैरव मंदिर पर जाकर संपन्न होगी।  

1740 में बनकर तैयार हुआ रथ 

यह परंपरा लगभग 284 वर्ष पूर्व से चली रही है. तब से इस स्थान पर मेले का आयोजन किया जाता है. काशी ही नहीं बल्कि दूर से भी लोग भगवान जगन्नाथ का दर्शन करने आते हैं. भगवान शिव की नगरी में उनके आराध्य भगवान जगन्नाथ पालन करता काशी वासियों को दर्शन देते है. यही वजह है, कि काशी को परंपराओं का शहर भी कहा जाता है. काशी सैकड़ो वर्ष पुरानी परंपरा का निर्वहन आज भी करती रही है

पुजारी राधेश्याम पांडेय ने बताया, कि इस रथ का निर्माण 1740 में हुआ था. तब से लेकर अब तक यहां पर मेले का आयोजन किया जाता है. तीन दिनों तक यह मेल चलता है. पहले दिन भगवान को पीला वस्त्र पहनाया जाता हैसनातन धर्म में जगन्नाथ रथ यात्रा का बहुत ही खास महत्व है.भगवान जगन्नाथ रथयात्रा आषाढ़ शुक्ल पक्ष की द्वितीया को प्रारंभ होती है. 7 जुलाई यानी आज से भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा शुरू हो चुकी है. रथयात्रा में भगवान जगन्नाथ साल में एक बार मंदिर से निकल कर जनसामान्य के बीच जाते हैं.  रथयात्रा में सबसे आगे ताल ध्वज होता जिस पर श्री बलराम होते हैं, उसके पीछे पद्म ध्वज होता है जिस पर सुभद्रा और सुदर्शन चक्र होते हैं और सबसे अंत में गरूण ध्वज पर श्री जगन्नाथ जी होते हैं जो सबसे पीछे चलते हैं.

पद्म पुराण के अनुसार, भगवान जगन्नाथ की बहन ने एक बार नगर देखने की इच्छा जताई. तब जगन्नाथ और बलभद्र अपनी लाडली बहन सुभद्रा को रथ पर बैठाकर नगर दिखाने निकल पड़े.तभी से जगन्नाथ यात्रा निकालने की परंपरा चली रही है. नारद पुराण और ब्रह्म पुराण में भी इसका जिक्र है. मान्यताओं के मुताबिक, मौसी के घर पर भाई-बहन के साथ भगवान खूब पकवान खाते हैं और फिर वह बीमार पड़ जाते हैं. उसके बाद उनका इलाज किया जाता है और फिर स्वस्थ होने के बाद ही लोगों को दर्शन देते हैं.राधा और श्रीकृष्ण की युगल मूर्ति के प्रतीक स्वयं श्री जगन्नाथ जी हैं. यानी राधा-कृष्ण को मिलाकर उनका स्वरूप बना है और कृष्ण भी उनके एक अंश हैं.

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