Thursday, 22 August 2024

आखिर कब तक दरिंदों की ढाल बनेगी ममता दीदी?

आखिर कब तक दरिंदों की ढाल बनेगी ममता दीदी?

कोलकाता की बेकसूर, होनहार, ट्रेनी डॉक्टर के साथ बलात्कार की पुष्टि हो गई है। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट देख कर रौंगटे खड़े हो गये। कोई इतना बर्बर, इतना क्रूर, इतना पत्थर दिल कैसे हो सकता है? कोई एक मासूम पर इतना ज़ुल्म कैसे कर सकता है? उस महिला चिकित्सक ने कितना दर्द सहा होगा, ये सोच कर दिल दहल जाता है। दिल्ली की निर्भया की तरह वो आखिरी सांस तक लड़ी। लेकिन बड़ा सवाल तो यह है कि आखिर इतनी सख्त कानून होने के बावजूद रह-रह कर निर्भया जैसी दरिंदगी हो कैसे जाती है। सवाल ममता बनर्जी की भूमिका पर भी उठ रहे हैं. हालांकि उनके राज्य में यह पहला मामला नहीं है, इसके पहले भी कई बार ममता की भूमिका पर सवाल उठे हैं. हंसखाली मामले को कैसे भुलाया जा सकता है, जब ममता ने रेप की घटना को अफेयर कहकर खारिज कर दिया था. ऐसे ही कामुदनी में हुई एक घटना का प्रदर्शन कर रहे लोगों को उन्होंने माकपा समर्थक बता दिया था. देखा जाएं तो ममता सरकार मेंरेपसबसे ऊपर हैं. वो हर बलातकार की घटना को झूठा बता देती है। खासकर अगर उनकी पार्टी का कोई व्यक्ति दोषी हो. वह खुद पीड़ित हो जाती हैं जब एक महिला नेता के रूप में उनसे बलात्कार के मामलों पर जवाब मांगा जाता है. अगर विपक्ष द्वारा सवाल पूछे जाते हैं तो वह उल्टा आरोप लगा देती हैं

                                                         सुरेश गांधी

फिरहाल, सुप्रीम कोर्ट की तल्ख टिप्पणी काबिल--तारीफ है। उसने मामना कि देश कोलकाता के अस्पताल में हुई जघन्य रेप-हत्या जैसी एक और वीभत्स घटना का इंतज़ार नहीं किया जा सकता। महिला डॉक्टरों की सुरक्षा राष्ट्रहित का सवाल है। कोर्ट ने पश्चिम बंगाल सरकार की जमकर खिंचाई की, और वही सवाल किये जो तमाम डॉक्टरों और आम जनता के मन में है। लेकिन महिलाओं की सुरक्षा का सवाल जस का तस है। आखिर क्या वजह है इतने सख्त काननों के बजाय हर राज्य के किसी किसी कोने में निर्भया कोलकाता की महिला चिकित्स जैसा जघन्य दरिंदगी हो ही जाती है? आखिर महिलाएं इतने असुरक्षित क्यों रहने लगी हैं? खासकर तब जब महिलाएं सिर्फ जेट विमान उड़ा रही है, बकि सीमा पर भारत के दुश्मनों को चुन-चुन कर नेस्तनाबूद कर रही है। देश के हर क्षेत्र में अपने काम का लोहा मनवा रही है। इसके बावजद अगर दरिंदगी, हैवानियत की घटनाएं नहीं थम रही है, तो बने कानूनों एवं सरकार के कार्यप्रणाली के साथ-साथ पुलिसिया कामकाज के तौर तरीकों की जांच पड़ताल तो बनती ही है। खासकर अस्पतालों में ऐसी घटनाएं होना ज्यादा गंभीर है। अस्पताल जैसे स्थान पर जहां मरीज खुद डॉक्टरों के भरोसे रहते हैं वहां कोई महिला डॉक्टर हैवानियत का शिकार हो जाए तो कानून-व्यवस्था पर सवाल उठना लाजिमी तो है ही, दरिंदगी की किसी भी घटना पर जनआक्रोश सामने आना भी स्वाभाविक है।

अंगर देश के जनमानस का आक्रोश सामने ना आता तो ममता बनर्जी हर बलातकार या यूं कहें कटमनी से लेकर हर भ्रष्टाचार की घटनाओं की तर्ज पर पर्दा डालने में सफल हो जाती। हालांकि इस घटना में भी ममता सरकार ने जांच को प्रभावित करने की पूरी कोशिश की। पहले इस केस को ढंकने छुपाने की कोशिश हुई, फिर मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल को बचाने की कोशिश की गई और फिर सबूत मिटाने की कोशिश की गई। ऐसी एक-एक हरकत ने शक पैदा किया। क्या ये किसी बड़ी साजिश का हिस्सा है? क्या ये किसी बड़े आदमी को बचाने की कोशिश है? सबके मन में सवाल हैं : वो कौन था जिसने डॉक्टर बेटी के मां-बाप से कहा कि उसने आत्महत्या की? वो कौन था जिसने दरिंदगी की शिकार बेटी के मां-बाप को 4 घंटे तक उसका चेहरा देखने नहीं दिया? क्या उन 4 घंटों में सबूत मिटाए गए? डॉक्टर संदीप घोष को बचाने की कोशिश किसकी शह पर हुई? वो भीड़ जो अचानक आधी रात को हॉस्पिटल में बचे हुए सबूत मिटाने आई थी उसे किसने भेजा था

लोगों के मन में जो शक हैं उसमें सही गलत नहीं ढूंढ़ना चाहिए। तो किसी को प्रोटेस्ट करने से रोकना चाहिए, सवाल उठाने से। देश में इतना बड़ा जनाक्रोश फैलता तो जांच प्रक्रिया में ढिलाई कर या तो आरोपियों को बचा ले जाती या फिर उन्हें दण्डित करने में काफी वक्त लग देती, लेकिन अब मामला उनके हाथ से निकल गया है। शायद इसीलिए अब उम्मींद की जा रही है महिला चिकित्सक के परिजनो को हो सकता है देर ही सही न्याय मिल जाएं। केंद्र सरकार और राज्य सरकार को टकराने की बजाय, एक दूसरे पर आरोप लगाने की बजाय लोगों को विश्वास दिलाना चाहिए अब फिर किसी बेटी के साथ ऐसा हो वाकई में इसकी चिंता की जा रही है। आरोपी को भी पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है। आरोपी अस्पताल से ही जुड़ा संविदा आधारित सिविक वालंटियर है। लेकिन कहा यह भी जा रहा है कि इस जघन्य काण्ड में कुछ और लोग भी शामिल हो सकते हैं। इसे अस्पताल परिसर में सुरक्षा व्यवस्था को लेकर बड़ी चूक ही कहा जाएगा। क्योंकि सुरक्षा बंदोबस्त मजबूत होते तो ऐसी वारदात रोकी जा सकती थी।

बता दें, निर्भया की दुष्कर्म और हिंसक मारपीट के बाद सिंगापुर के अस्पताल में मृत्यु हो गई थी। इस डाक्टर के साथ अपराध वहां किए गए हैं, जहां वह काम करती थी। निर्भया कांड के बाद दिल्ली में तेज आंदोलन हुआ था। उस समय सारा विपक्ष निर्भया के समर्थन में उतर आया था। और एक बेहद गरिमामय मुख्यमंत्री शीला दीक्षित चुनाव हार गई थीं। लेकिन कोलकाता के केस में ममता बनर्जी की सरकार और विपक्ष का बड़ा तबका अगर-मगर कर रहा है। देशभर में डाक्टरों के स्वतः स्फूर्त आंदोलनों को केंद्र की सत्ताधारी पार्टी से जोड़ा जा रहा है। यहां तक कि डाक्टरों को बीजेपी का सपोर्टर बताया जा रहा है। कितने अफसोस की बात है कि शीला दीक्षित को तो बार-बार इस छड़ी से पीटा गया था कि एक महिला मुख्यमंत्री के राज्य में ऐसा हुआ। उन्हें निर्भया को श्रद्धांजलि देने तक से रोक दिया गया था। लेकिन बंगाल के मामले में लोगों ने चुप्पी साध रखी है। यही नहीं, निर्भया के बारे में जो तर्क दिए गए थे कि वह इतनी रात बाहर निकली ही क्यों थी। जैसे कि लड़कियां रात में बाहर निकलेंगी तो पुरुषों को यह अधिकार मिल जाएगा कि उनके साथ कुछ भी करो। दुष्कर्म करो, उन्हें मार डालो। कोलकाता में भी ऐसे ही तर्क सत्ताधारी दल के द्वारा दिए जा रहे हैं।

कहा जा रहा है कि वह लड़की सेमिनार रूम में उस वक्त क्या कर रही थी। अपराधी से कोई सवाल नहीं पूछे जा रहे कि वह वहां क्या करने गया था। कई लोग यह भी कह रहे हैं कि यह मामला मानव अंगों की तस्करी से जुड़ा है। इसमें बहुत से लोग शामिल हैं। महिला डाक्टर को इस बारे में पता चल गया था, वह इसकी शिकायत भी करना चाहती थी, इसलिए उसे खत्म कर दिया गया। सच जो भी हो, लेकिन एक स्त्री ने वहां जान गंवाई है, जहां वह काम करती थी। आखिर उसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी अस्पताल प्रशासन की क्यों नहीं थी। उसके माता-पिता को तीन घंटे तक उसके शव को क्यों नहीं देखने दिया गया। अज्ञात लोगों ने बड़ी संख्या में आकर अस्पताल में तोड़-फोड़ क्यों की। बहुत से सवाल हैं जो अनुत्तरित हैं। सबसे ज्यादा तकलीफ कोलकाता के सत्ताधारी दल के नेताओं द्वारा दिए गए बयानों से हो रही है। क्या सचमुच हमारे राजनेता, जिनमें स्त्री हों या पुरुष, अपनी-अपनी सत्ता बचाने के लिए इतने अमानवीय हो गए हैं। औरतें सहज शिकार हैं और उनसे कोई सहानुभूति भी नहीं। निर्भया कांड के बाद नए रेप कानून की मांग की गई थी कि उसे इतना कठोर बनाया जाए कि अपराधियों की रूह कांपे। कानून बना, मगर ऐसा हो नहीं सका है। सोचें कि जब पढ़ी-लिखी स्त्रियों के साथ सरेआम ऐसा हो रहा है, तो उन गरीब स्त्रियों का क्या, जिनकी पहुंच पुलिस तक होती है, कानून तक। 

कुछ तथाकथित बुद्धिजीवियों की पोस्ट पढ़कर तो लगता है कि ये भी इंसान कहलाने के लायक नहीं। एक आम तर्क यह दिया जा रहा है कि कोलकाता पर बोलने वाले उत्तराखंड के दुष्कर्म पर क्यों नहीं बोले, मणिपुर पर क्यों चुप रहे। मान लीजिए कि कोई उस वक्त नहीं बोला, तो क्या इस वक्त उसने अपने बोलने के अधिकार को किसी के पास गिरवी रख दिया कि जब आपकी राजनीति को सूट करे तब आपसे पूछकर कोई बोले। देश में इन दिनों या तो आप पक्ष में हो सकते हैं, या विपक्ष में। बीच की वह रेखा मिटा दी गई है जहां जब कोई दल अच्छा काम करे, तो उसकी तारीफ की जाए और बुरा करे तो निंदा। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार, बीते चार सालों में यौन अपराधों में 20 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है. असली आंकड़ा इससे कहीं अधिक है क्योंकि बहुत से अपराधों को बदले की आशंका, पीड़ित के कथित अपमान तथा पुलिस जांच पर भरोसा नहीं होने के कारण रिपोर्ट नहीं किया जाता है. कोलकाता के उसी अस्पताल में 2001 में हुए बलात्कार के मामले में दिखता है कि कैसे जांच को भटकाया गया और दोषी को दंडित नहीं किया गया. पीड़िता को दोष देने का रवैया तथा स्त्री-विरोधी सोच भी महिलाओं को शिकायत दर्ज कराने से रोकते हैं.

मुंबई के एक प्रतिष्ठित अस्पताल में एक पुरुष सफाईकर्मी ने एक 25 वर्षीया नर्स अरुणा शानबाग के साथ यौन हिंसा की थी. नृशंस बलात्कार के बाद अपराधी ने उसे मरने के लिए छोड़ दिया. वह जीवित रही, पर उसका मस्तिष्क क्षतिग्रस्त हो गया, उसे लकवा मार गया और स्थायी रूप से चलने-फिरने में असमर्थ हो गयी. यह घटना 1973 में हुई थी. अगले 41 साल तक वह लगभग अचेत अवस्था में रही और अस्पताल के लोग उसकी देखभाल करते रहे. नगर निगम के दबाव के बावजूद उन्होंने उसे अस्पताल से नहीं हटाया. वहीं उसकी मौत हो गयी. कई लोगों से चिकित्सकीय सहायता से उसकी मृत्यु की पैरोकारी की, पर अदालत ने इसकी अनुमति नहीं दी. शानबाग के मामले से देश में अप्रतिरोधी इच्छा-मृत्यु को वैधानिक मान्यता मिली. लेकिन जो उसने सहा, वह समाज पर हमेशा एक धब्बे के रूप में शर्मिंदगी का कारण बना रहेगा. कोलकाता के एक अस्पताल में हाल में एक प्रशिक्षु चिकित्सक के साथ नृशंस बलात्कार और उसकी हत्या से यह इंगित होता है कि 51 साल बाद भी कुछ खास नहीं बदला है. महिला डॉक्टर और नर्स अस्पताल के भीतर भी अपनी सुरक्षा को लेकर भय महसूस करती हैं. इससे स्पष्ट होता है कि कार्यस्थलों पर महिला कर्मियों की सुरक्षा की चिंता एक गंभीर मसला है.

ममता की आरोपी को बचाने की हरसंभव कोशिश

हैरानी की बात ये है कि जिस अस्पताल में एक ट्रेनी डॉक्टर का रेप करके बेरहमी से हत्या कर दी गई...उस अस्पताल के प्रिंसिपल का बयान लेना तक बंगाल पुलिस को जरूरी नहीं लग. जानकर हैरानी होगी कि खुद ही नैतिकता के आधार पर इस्तीफा देने वाले संदीप घोष के कनेक्शन इतने पावरफुल हैं कि उनके ऊपर भ्रष्टाचार से लेकर कदाचार तक के तमाम आरोप लगते रहे हैं. लेकिन ना तो कोई उनका इस्तीफा ले पाया और ना उनका ट्रांसफर कर पाया. रडार पर कोलकाता पुलिस भी है. क्योकि कोलकाता पुलिस ने इस केस में पूर्व प्रिंसिपल संदीप घोष का बयान ही दर्ज नहीं किया. कोलकाता पुलिस पर आरोप है कि उसने एक आरोपी संजय रॉय को गिरफ्तार करने के बाद जांच आगे नहीं बढ़ाई। पुलिस ने घटनास्थल के बेहद नजदीक दूसरे कमरे में कंस्ट्रक्शन की इजाजत दे दी और हद तो तब हो गई. जब विरोध प्रदर्शन के नाम पर अस्पताल के अंदर तोड़फोड़ मचा दी गई. वो भी तब जब अस्पताल के बाहर डॉक्टर धरने पर बैठे हुए थे..डॉक्टरों का आरोप है कि बुधवार रात लाठी डंडों से लैस भीड़ के अटैक से पहले तक वहां भारी पुलिसबल तैनात था. लेकिन अटैक के वक्त पुलिस की तैनाती बेहद कम हो गई थी. ये सारी परिस्थितियां इस शक को बढ़ाती हैं कि चाहे अस्पताल प्रशासन हो या कोलकाता पुलिस. डॉक्टर के रेप-मर्डर को दबाने और सबूत मिटाने के खेल में सब मिले हुए हैं. लेकिन आखिर वो कौन है..जिसके इशारे पर ये सब हो रहा है...सवाल ममता सरकार पर भी उठ रहे हैं. क्योंकि ये घटना जितनी वीभत्स थी उसके हिसाब से एक महिला मुख्यमंत्री से ये उम्मीद होती है कि वो ऐसे संवेदनशील मामलों पर ज्यादा संवेदनशीलता दिखाएंगी. पर ऐसा नहीं हुआ...ममता बनर्जी से लोग इंसाफ की उम्मीद कर रहे है..लेकिन ममता बनर्जी खुद इंसाफ रैली निकाल रही हैं...आखिर ममता बनर्जी किससे इंसाफ मांग रही हैं? क्योंकि ये ममता बनर्जी ही हैं जिन्होंने बतौर मुख्यमंत्री..अस्पताल के प्रिंसिपल को तत्काल प्रभाव से नई पोस्टिंग दे दी. सवाल ये भी उठता है कि क्या ममता बनर्जी ने ये केस सीबीआई को ट्रांसफर करने में देरी करके पुलिस को सबूत मिटाने का वक्त दिया ? ममता बनर्जी की मंशा पर सवाल इसलिए भी उठ रहा है क्योंकि कोलकाता पुलिस की तैनाती के बावजूद अस्पताल के अंदर घुसकर हमलावरों ने सेमिनार हॉल में तोड़फोड़ की कोशिश की..ममता बनर्जी को इन सारे सवालों के जवाब देने चाहिए..लेकिन वो जवाब देने के बजाय राजनीति कर रही हैं...इंसाफ रैली निकाल रही हैं...कह रही हैं कि मेरी सरकार गिराने की साजिश हो रही है...ये तो वाकई गजब है.

अस्पतालों की असुरक्षा क्षम्य नहीं

आरजी कर मेडिकल कॉलेज, कोलकाता में युवा महिला रेजीडेंट डॉक्टर के साथ बलात्कार और हत्या की घटना से समूचे देश में चिकित्सक समुदाय के साथ आज जनता भी उद्वेलित है। नीट की कठोर परीक्षा पास कर डॉक्टर बनकर रोगियों की सेवा करने का सपना देखने वाली बेटी अस्पताल में ड्यूटी के दौरान ही सुरक्षित नहीं रह पाई। चिकित्सक समुदाय के खिलाफ होने वाली हिंसा के मामले इससे पहले भी संज्ञान में आए हैं, लेकिन रेजीडेन्ट डॉक्टर की नृशंस हत्या की यह घटना भयावह है। हमारे देश में मेडिकल क्षेत्र में महिला चिकित्सकों का योगदान तेजी से बढ़ रहा है। कुल चिकित्सकों में करीब पचास फीसदी महिलाएं हैं। हाल के कुछ वर्षों में चिकित्सा क्षेत्र में कार्यरत महिलाओं के खिलाफ हिंसा के मामलों में 25 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार के अनुसार हर चार में से एक महिला डॉक्टर को कभी कभी अपने कार्यस्थल पर हिंसा या यौन उत्पीडऩ का सामना करना पड़ता है। यह स्थिति चिंताजनक है। महिलाओं के खिलाफ यौन अपराधों में कमी नहीं रही। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की ओर से हर साल जारी होने वाले आंकड़े इसकी गवाही देते हैं। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आइएमए ) की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले पांच वर्षों में डॉक्टरों के खिलाफ हिंसा के मामलों में 75 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। कोलकाता की इस घटना ने ड्यूटी पर तैनात चिकित्सकों की सुरक्षा से जुड़ी चिंताओं को और बढ़ा दिया है। ऐसी घटनाएं केवल डॉक्टरों की सुरक्षा को खतरे में डालती है बल्कि उनके मनोबल को भी कमजोर करती है। देश के अनेक छोटे-बड़े शहरों महानगरों में कोलकता की इस घटना के बाद आंदोलन कर रहे चिकित्सक मांग कर रहे हैं कि हेल्थकेयर प्रोटेक्शन बिल को अविलम्ब लागू कर देशभर के अस्पतालों में सुरक्षा उपायों को सख्त किया जाए और महिला डॉक्टरों के लिए एक सुरक्षित कार्यस्थल सुनिश्चित किया जाए। इस तरह के आंदोलन से मरीजों को परेशानियां होना स्वाभाविक है, लेकिन जिम्मेदारों तक अपनी बात पहुंचाने के लिए ऐसे कदम उठाना कई बार मजबूरी हो जाती है। आए दिन जिस तरह की घटनाएं सामने रहीं हैं उन्हें देखते हुए अस्पतालों में महिला डॉक्टरों की सुरक्षा के लिए ठोस कदम उठाने होंगे। अस्पतालों और मेडिकल कॉलेजों में सुरक्षा के उपायों को सख्त किया जाना चाहिए। इसके लिए सीसीटीवी कैमरों की संख्या बढ़ाने के साथ सुरक्षा गार्ड की पर्याप्त तैनाती सुनिश्चित की जानी चाहिए और डॉक्टरों के खिलाफ हिंसा के मामलों में त्वरित कार्रवाई और दोषियों को कड़ी सजा सुनिश्चित हो इसके लिए सुनवाई फास्ट ट्रैक अदालतों में हो।

कोलकाता में डरने लगी है महिलाएं

समय के बदलाव के साथ बड़ी संख्या में महिलाएं रात्रिकालीन ड्यूटी करने लगी हैं। ऐसी कई घटनाएं सामने आती रही हैं जब ड्यूटी के दौरान या फिर ड्यूटी पर आते-जाते वक्त महिलाएं समाज कंटकों की कुदृष्टि का शिकार हो जाती हैं। कानून व्यवस्था का खौफ होगा तो कार्यस्थल स्वतः ही सुरक्षित होंगे। महिलाओं की सुरक्षा को लेकर लचर इंतजामों का फायदा उठाकर ही यौन अपराधी सक्रिय होते हैं। ऐसे में कामकाजी महिलाओं को कार्यस्थलों पर ही नहीं, आवागमन के मार्गों पर भी सुरक्षा को लेकर आश्वस्त किया जाना चाहिए। कोलकाता में के आरजी कर मेडिकल कॉलेज के बाहर 10 अगस्त से शुरू हुआ प्रदर्शन जारी है. दिन भर इंसाफ दो की मांग करती आवाजें शाम तक थक जाती हैं. लेकिन अपनी सुरक्षा की शक्ति मांगती बेटियां कहती हैं मन का विश्वास कमजोर हो ना. खुद के लिए नेक रास्ता मांगने के साथ शक्ति मांगती बेटियों के जीवन का रंग अगर अभी सिर्फ भय जैसा काला है. कब कहां से कोई संजय रॉय या ना जाने संजय रॉय जैसे कितने और किसी बेटी को अपनी घिनौनी सोच से नोचने के लिए किसी सेमिनार हॉल में घुस जाएंगे

जब ममता ने बसु की सरकार उखाड़ दी थी

साल 1993 के शुरुआती दिनों की बात है. तब सूबे में ज्योति बसु की सरकार थी और वामपंथ का दबदबा था. उस वक्त नदिया जिले में एक दिव्यांग से बलात्कार की घटना हुई थी. ज्योति बसु सरकार पर हमले हो रहे थे. इसी बीच पीड़िता के साथ ममता बनर्जी राइटर्स बिल्डिंग (पश्चिम बंगाल सरकार का सचिवालय) पहुंच गई थीं. वह तत्कालीन मुख्यमंत्री ज्योति बसु से मुलाकात के लिए उनके चेंबर के दरवाजे के सामने धरने पर बैठ गईं. ममता का आरोप था कि राजनीतिक संबंधों की वजह से ही दोषियों को गिरफ्तार नहीं किया जा रहा है. लेकिन बसु ने उनसे मुलाकात नहीं की.

22 साल में 7 डॉक्टरों की मौत

ट्रेनी डॉक्टर के रेप और मर्डर समेत पिछले 22 साल में 7 डॉक्टरों की असमय मौत हो चुकी है. इनमें किसी का मर्डर हुआ है तो किसी ने सुसाइड कर लिया है. इन रहस्यमयी मौतों में पहली घटना कोलकाता में 9 अगस्त 2024 की है। जहां अस्पताल में ट्रेनी डॉक्टर की रेप के बाद हत्या की गई, कॉलेज के सेमिनार हॉल में शव मिला. अस्पताल का कर्मचारी आरोपी बताया गया. कॉलेज प्रबंधन पर मर्डर की बात छिपाने का आरोप है. मामले की जांच सीबीआई कर रही है. दुसरी घटना 13 जनवरी 2023 की है। डॉ. सायन मंडल की मौत उत्तराखंड में ट्रैकिंग के दौरान मौत हो गई. दावा किया गया कि उसे सांस लेने में दिक्कत थी, हालांकि यह कभी साबित नहीं हो पाया. ऐसा दावा किया गया कि डॉ. सायन को अस्पताल में हो रही गड़बड़ियों की जानकारी थी. 13 अगस्त 2023 को डॉ. शुभ्रज्योति दास 23 वर्ष की इंटर्न डॉक्टर थी, जो दवा के ओवरडोज़ की वजह से मृत पाई गई. पिछले मामलों की तरह यहां सुसाइड नोट नहीं मिला. अस्पताल की ओर से उनके डिप्रेशन में होने का दावा किया गया. मई 2020 को जूनियर डॉक्टर 25 वर्षीय पॉलमी शाहा ने अस्पताल की इमरजेंसी की छठवीं मंजिल से छलांग लगा दी थी. जांच के दौरान यह सामने आया कि वह मानसिक तनाव में थी. हालांकि उसके पास कोई सुसाइड नोट नहीं मिला. ड्रग माफिया-अस्पताल कनेक्शन की जानकारी का दावा किया गया. 23 अक्टूबर 2016 को : डॉ. गौतम पाल, जो मेडिसिन के प्रोफेसर थे. वह दमदम स्थित अपने फ्लैट में क्षत विक्षत अवस्था में मिले थे. उनके घर का दरवाज़ा अंदर से बंद था, लेकिन कुछ सबूतों से पता चला कि उनकी हत्या की गई है. हालांकि यह साबित नहीं हो पाया. बताया गया कि वह तनाव में थे. मौत का कारण आज भी अज्ञात है. 22 अक्टूबर 2003 को डॉ. अरिजीत दत्ता की मौत हुई थी, इसे सुसाइड बताया गया. ऐसा कहा गया है कि अरिजीत ने अधिक मात्रा में दवाएं ली थीं. इसके बाद छत से छलांग लगा दी थी. उनके हाथ पर चोट के निशान भी मिले थे. इस मामले में भी कोई सुसाइड नोट नहीं मिला. दावा किया गया कि अरिजीत अस्पताल के अंदर चल रही कुछ आपराधिक गतिविधियों के बारे में जानता था. 10 अगस्त 2002 को डॉ. सौमित्र विश्वास की अस्पताल के ललित मोहन मेमोरियल हॉस्टल में मारकर शव के कई टुकड़े कर दिए गए थे. एनआरएस मेडिकल कॉलेज के पास एक सूटकेस में उनका शव मिला था. ऐसा दावा किया गया था कि डॉ. सौमित्र को सोनागाछी पोर्नोग्राफी रैकट के बारे में पता चल गया था.

लगातार बढ़ रही महिला उत्पीड़न की घटनाएं

नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो को देखें तो देश में महलि अपराध के हर घंटे 50 से ज्यादा मामले दर्ज किए किए जाते हैं. 2022 के आंकड़े बताते हैं कि राजस्थान में महलिओं के खलिफ अपराध के 45,058 मामले दर्ज किए गए, जबकि पश्चमि बंगाल में 34738 केस रजस्टिर हुए. बिहार में महलिओं के खलिफ कुल 20222 केस दर्ज किए गए. यूपी इस मामले में टॉप पर रहा. लेकिन सबसे चिंता की बात है कि राष्ट्रीय राजधानी दल्लि में महलिओं के खलिफ अपराधों में 144 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है. चिंता की बात ये है कि लोगों का पुलिसवालों पर भरोसा भी कम हो रहा है. सीएसडीएस लोकनीति ने 22 राज्यों में 15,562 लोगों पर एक सर्वे किया. पता चला सबसे ज्यादा भरोसा लोगों का सेना पर है. 54 फीसदी लोगों ने उनपर भरोसा जाताया जबकि 25 फीसदी से भी कम भारतीयों को पुलसि पर भरोसा था. आप जानकर हैरान होंगे कि राज्यों में महिलाओं से जुड़े अपराध खूब होते हैं, लेकिन कोई खास कार्रवाई नहीं होती.

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