अनंत चतुर्दशी : बदलेगी किस्मत! माता लक्ष्मी होंगी प्रसन्न, बरसेगा धन!
सनातन
धर्म
में
‘अनंत
चतुर्दशी’
का
विशेष
महत्व
है।
अनंत
चतुर्दशी
व्रत
की
शुरुआत
महाभारत
काल
से
हुई
थी.
यह
भगवान
विष्णु
का
दिन
माना
जाता
है.
ये
व्रत
भगवान
विष्णु
को
प्रसन्न
करने
और
अनंत
फल
देने
वाला
माना
गया
है.
इस
दिन
गणपति
का
विसर्जन
भी
किया
जाता
है.
भाद्रपद
के
शुक्ल
पक्ष
की
चतुर्दशी
को
अनंत
चतुर्दशी
मनाई
जाती
है.
अनंत
चतुर्दशी
को
अनंत
चौदस
के
नाम
से
भी
जाना
जाता
है.
इस
व्रत
में
भगवान
विष्णु
के
अनंत
रूप
की
पूजा
होती
है.
कहते
है
अनंत
चतुर्दशी
के
दिन
व्रत
और
पूजा
करने
से
सुख,
समृद्धि
और
वैभव
के
साथ
अनंत
पण्य
की
प्राप्ति
होती
है.
इस
दिन
भक्त
भगवान
विष्णु,
देवी
यमुना
और
शेषनाग
की
पूजा
करते
हैं
और
पवित्र
अनंत
सूत्र
बांधते
हैं.
भाद्रपद
माह
के
शुक्ल
पक्ष
की
चतुर्दशी
तिथि
का
शुभारंभ
16 सितंबर,
2024 को
दोपहर
03 बजकर
10 मिनट
पर
हो
रहा
है।
वहीं
इस
तिथि
का
समापन
17 सितंबर
को
सुबह
11 बजकर
44 मिनट
पर
होगा।
ऐसे
में
उदया
तिथि
के
अनुसार,
अनंत
चतुर्दशी
मंगलवार,
17 सितंबर
को
मनाई
जाएगी।
इस
दिन
देव
शिल्पी
भगवान
विश्वकर्मा
की
जयंती
भी
है.
खास
यह
है
कि
इस
दिन
धृति,
शूल
योग
एवं
रवि
योग
का
संयोग
है।
सुबह
07ः48
बजे
तक
शुभ
योग
है।
जबकि
मंगलवार
सुबह
06ः07
बजे
से
दोपहर
01ः53
बजे
तक
है।
इस
योग
का
निर्माण
तब
होता
है
जब
सूर्य
दसवें
भाव
में
और
दसवें
भाव
का
स्वामी
शनि
के
साथ
तीसरे
भाव
में
हो,
यह
अत्यंत
शुभ
योग
है
सुरेश गांधी
अनंत चतुर्दशी का
व्रत प्राचीन काल से रखा
जा रहा है। महाभारत
के दौरान पांडवों ने भी अपना
राज्य वापस पाने के
लिए यह व्रत रखा
था। पौराणिक कथा के अनुसार,
सुमंत नामक ऋषि की
पत्नी दीक्षा ने एक पुत्री
को जन्म दिया। उस
पुत्री का का सुशीला
रखा गया। लेकिन कुछ
समय बात ही सुशीला
की मां दीक्षा का
देहांत हो गया और
बच्ची के पालन पोषण
के लिए ऋषि ने
तय किया कि वे
दूसरी शादी करेंगे। ऋषि
ने दूसरा विवाह कर लिया। लेकिन
वह महिला स्वभाव से कर्कश थी।
सुशीला बड़ी हो गई
और उसके पिता ने
कौण्डनिय नामक ऋषि के
साथ उसका विवाह कर
दिया। ससुराल में भी सुशीला
को सुख नहीं था।
कौण्डन्यि के घर में
बहुत गरीबी थी। एक दिन
सुशीला और उसके पति
ने देखा कि लोग
अनंत भगवान की पूजा कर
रहे हैं। पूजन के
बाद वे अपने हाथ
पर अनंत रक्षासूत्र बांध
रहे हैं। सुशीला ने
यह देखकर व्रत के महत्व,
पूजन के बारे में
पूछा। इसके बाद सुशीला
ने भी व्रत करना
शुरू कर दिया।
सुशीला के दिन फिरने
लगे और उनकी आर्थकि
स्थिति में सुधार होने
लगा। लेकिन सुशीला के पति कौण्डन्यि
को लगा कि सब
कुछ उनकी मेहनत से
हो रहा है। एक
बार अनंत चतुर्दशी के
दिन, जब सुशीला अनंत
पूजा कर घर लौटी
तक उसके हाथ में
रक्षा सूत्र बंधा देखकर उसके
पति ने इस बारे
में पूछा। सुशीला ने विस्तारपूर्वक व्रत
के बारे में बताया
और कहा कि हमारे
जीवन में जो कुछ
भी सुधार हो रहा है,
वह अनंत चतुर्दशी व्रत
का ही नतीजा है।
कौण्डन्यि ऋषि ने कहा
कि यह सब मेरी
मेहनत से हुआ है
और तुम इसका पूरा
श्रेय भगवान विष्णु को देना चाहती
हो। ऐसा कहकर उसने
सुशीला के हाथ से
धागा उतरवा दिया। भगवान इससे नाराज हो
गए और कौण्डन्यि पुनः
दरिद्र हो गया। फिर
एक दिन एक ऋषि
ने कौण्डन्यि को बताया कि
उसने कितनी बड़ी गलती की
है। कौण्डन्यि से उसने उपाय
पूछा। ऋषि ने बताया
कि लगातार 14 वर्षों तक यह व्रत
करने के बाद ही
भगवान विष्णु तुम पर प्रसन्न
होंगे।
पूजा विधि
अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु के अनंत रूप की पूजा की जाती है। इस दिन सुबह उठकर स्नान करने के बाद व्रत संकल्प लें और पूजा घर की सफाई करने के साथ गंगाजल का छिड़काव करें। उसके बाद कलश स्थापित करें। फिर कलश में बर्तन रखें। इसमें कुश से निर्मित अनंत की स्थापना करें। अगर अनंत बनाना मुश्किल है, तो भगवान विष्णु की तस्वीर भी रख सकते हैं। इसके बाद अनंत सूत्र तैयार करने के लिए एक धागे में कुमकुम, केसर और हल्दी से रंगकर इसमें 14 गांठ बांध लें। उसके बाद भगवान विष्णु की तस्वीर के सामने चढ़ा दें। इस दिन सुबह उठकर स्नान करने के बाद व्रत का संकल्प लेना चाहिए. व्रत के संकल्प के दौरान क्षीर सागर में विराजे भगवान विष्णु के रूप को ध्यान करना चाहिए.इस दिन व्रत के दौरान नमक रहित फलहार का सेवन करने का विधान है. सभी व्रत रखने वाले श्रद्धालु को इस बात का जरूर ख्याल रखना चाहिए. अनंत चतुर्दशी आध्यात्मिक साधना के लिए एक महत्वपूर्ण दिन है. शास्त्रों के अनुसार, इस दिन अपनी पढ़ाई शुरू करने वाले छात्रों को अपने विषयों का गहन ज्ञान प्राप्त होता है. धन की चाह रखने वालों को समृद्धि प्राप्त होगी और ईश्वरीय निकटता की इच्छा रखने वाले भक्तों को अनंत ईश्वरीय उपस्थिति का आशीर्वाद मिलेगा।
माना जाता है कि इस व्रत का पालन करने से व्यक्ति की इच्छाओं के अनुसार स्थायी फल मिलता है. अनंत चतुर्दशी पर, भक्त अनंत सूत्र बांधते हैं, जिसे भगवान विष्णु की उपस्थिति का प्रतीक माना जाता है. अनंत सूत्र में 14 गांठें होनी चाहिए, जो 14 लोकों का प्रतीक हैं. यह व्रत भौतिक सफलता और आध्यात्मिक मुक्ति दोनों प्राप्त करने का एक उत्कृष्ट साधन माना जाता है. विशेष लाभों के लिए, चौदह वर्षों तक लगातार व्रत रखने का सुझाव दिया जाता है. मान्यता है कि यह व्रत रखने से गुरु ग्रह के अशुभ प्रभाव से राहत मिलती है और अविवाहित लोगों के विवाह की बाधा दूर होती है। अनंत चतुर्दशी पर अनंत सूत्र को भगवान विष्णु की पूजा करने के बाद बांह में बांधने से भक्तों का हर दुख भगवान दूर कर देते हैं, उनकी रक्षा करते हैं, सुख समृद्धि देते हैं। इस अनंत सूत्र में 14 गांठें होनी चाहिए, ये 14 गांठ सृष्टि के 14 लोकों के प्रतीक हैं। इस दिन ही भगवान विष्णु ने 14 लोकों यानी तल, अतल, वितल, सुतल, तलातल, रसातल, पाताल, भू, भुवः, स्वः, जन, तप, सत्य, मह की रचना की थी। इस दिन ही गणेश जी को विसर्जित करते हैं। जिन लोगों के रोग ठीक नहीं हो रहे हैं। उन लोगों को ये व्रत जरूर रखना चाहिए। परिवार में कोई भी इस व्रत को रख सकता है। चाहे पति के लिए पत्नी, पत्नी के लिए पति, पिता के लिए पुत्र यह व्रत कर सकता है।गणपति विसर्जन
सनातन धर्म में गणेश
उत्सव का खास महत्व
है। इसकी महत्ता का
अंदाजा इसी से लगाया
जा सकता है महाराष्ट्र
में मनाए जाने वाला
यह पर्व अब पूरे
देश में मनाया जाने
लगा है। गणेश चतुर्थी,
जिसे विनायक चतुर्थी के नाम से
भी जाना जाता है,
बुद्धि, समृद्धि और सौभाग्य के
देवता भगवान गणेश के जन्म
के प्रतीक के रूप में
मनाई जाती है। भगवान
गणेश को सभी देवी-देवताओं में उच्च स्थान
प्राप्त है, इसीलिए किसी
भी भगवान अथवा देवी-देवता
की पूजा से पहले
गणेश जी की उपासना
की जाती है। कहते
है कोई साधक नियमित
रूप से गणेश जी
की आराधना करता है तो
उसके घर-परिवार में
सदा सकारात्मकता बनी रहती है
और धन की देवी
माता लक्ष्मी की भी विशेष
कृपा प्राप्त होती है। गणेश
चतुर्थी के दिन लोग
भगवान गणेश की मूर्ति
को अपने घर मे
लेकर आते हैं और
10 दिनों तक पूरी श्रद्धा
से विधिवत गणपति की पूजा करने
के बाद अनंत चतुर्दशी
के दिन उनका विसर्जन
करके बप्पा को विदा करते
हैं। गणेश उत्सव हिंदू
चंद्र माह भाद्रपद शुक्ल
पक्ष की चतुर्थी यानी
गणेश चतुर्थी के दिन से
शुरू होकर शुक्ल पक्ष
के 14वें दिन यानी
अनंत चतुर्दशी तक मनाया जाता
है अर्थात् गणेशोत्सव 10 दिनों तक चलता है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार मान्यता
है कि वेदव्यास जी
ने भगवान गणेश से महाभारत
ग्रंथ लिखने की प्रार्थना की
थी। वेदव्यास जी के आग्रह
पर भगवान गणेश ने बिना
रुके लगातार 10 दिनों तक महाभारत ग्रंथ
लिखा। 10वें दिन अनंत
चतुर्दशी तिथि पर गणेश
जी ने महाभारत को
लिकर पूरा किया। इन
10 दिनों में एक ही
स्थान पर बैठकर निरंतर
लेखन करने के दौरान
गणेश जी ने न
तो कुछ खाया-पिया
और न ही उस
जगह से हिले। ऐसे
में उनके शरीर पर
धूल-मिट्टी जमा हो गई,
उनके कपड़े गंदे हो
गए। 10वें दिन जब
वेदव्यास जी ने देखा
तो उन्होंने पाया कि गगणेश
जी के शरीर का
तापमान भी बहुत बढ़ा
हुआ था। उसके बाद
उन्होंने गणेश जी को
सरस्वती नदी में स्नान
करवाया और इस तरह
पूरी महाभारत लिखने के बाद भगवान
गणेश ने 10वें दिन
नदी में स्नान किया
था। उसी के बाद
से गणेश उत्सव का
पर्व गणेश चतुर्थी से
शुरू होने के बाद
लगातार 10 दिनों तक मनाया जाता
है और 10वें दिन
अनंत चतुर्दशी के अवसर पर
गणपति बप्पा की मूर्ति के
विसर्जन के साथ ही
गणेशोत्सव का समापन होता
है। माना जाता है
कि गणेश उत्सव के
10 दिनों के दौरान भगवान
गणेश हर साल स्वयं
पृथ्वी पर भ्रमण करने
के लिए आते...हैं।
इसी कारण गणेश उत्सव
के दौरान अपने घर में
भगवान गणेश की मूर्ति
को लाना और उसकी
विधिपूर्वक पूजा करना बेहद
शुभ माना जाता है।
वैसे तो गणेशोत्सव को
लगातार 10 दिनों तक मनाए जाने
की परंपरा है और अनंत
चतुर्थी के दिन भगवान
गणेश की मूर्ति का
विसर्जन किया जाता है
लेकिन ज्योतिषाचार्यों के अनुसार श्रद्धालु
केवल एक-डेढ़ दिन
से लेकर 3, 5, 7 अथवा 10 दिनों तक के लिए
भी बप्पा को घर ला
सकते हैं और इसका
भी उतना ही शुभ
फल प्राप्त होता है, जितना
कि अनंत चतुर्थी के
दिन बप्पा का विसर्जन करने
से मिलता है। एक ओर
जहा...गणेश चतुर्थी लोगों
को एक साथ लाती
है, उनमें एकता और भक्ति
की भावना को बढ़ावा देती
है, वहीं 10 दिनों तक चलने वाला
गणेश उत्सव विभिन्न क्षेत्रों के लोगों को
उत्सव में भाग लेने,
भगवान गणेश की कहानियों
को साझा करने और
एकजुटता का जश्न मनाने
का अवसर देता है।
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