प्रो. वशिष्ठ अनूप की आलोचना कृति ’हिंदी ग़ज़ल का परिप्रेक्ष्य’ का लोकार्पण
पुस्तक में
हिंदी
ग़ज़ल
के
परिप्रेक्ष्य
में
ग़ज़लों
का
बेहतरीन
मूल्यांकन
है
: प्रो
कृष्ण
मोहन
दुष्यंत कुमार
से
लेकर
विगत
पचास
वर्षों
में
हिंदी
ग़ज़ल
ने
अपनी
महत्त्वपूर्ण
उपस्थिति
दर्ज़
कराने
की
कोशिश
की
गई
है
: प्रो
अनूप
सुरेश गांधी
वाराणसी।
बीएचयू हिंदी विभाग के आचार्य रामचंद्र
शुक्ल सभागार में मंगलवार को
प्रसिद्ध ग़ज़लकार और समालोचक प्रो.
वशिष्ठ अनूप की आलोचना
कृति ’हिंदी ग़ज़ल का परिप्रेक्ष्य’
का लोकार्पण किया गया। इस
दौरान समारोह अध्यक्षता करते हुए अंग्रेजी
विभाग के प्रोफेसर कृष्ण
मोहन पाण्डेय ने पुस्तक के
विविध पक्षों और लेखों की
चर्चा की। उन्होंने कहा
कि इसमें हिंदी ग़ज़लों और ग़ज़लकारों का
बेहतरीन मूल्यांकन किया गया है।
उन्होंने अंग्रेजी के ग़ज़लकार आगा
शाहिद अली की चर्चा
करते हुए बताया कि
इस पुस्तक में स्वातंत्र्योत्तर युग
के ग़ज़लकारों पर ज़रूरी समीक्षात्मक
लेख हैं। अपने लेखकीय
वक्तव्य में प्रो. वशिष्ठ
अनूप ने कहा कि
दुष्यंत कुमार से लेकर विगत
पचास वर्षों में हिंदी ग़ज़ल
ने अपनी महत्त्वपूर्ण उपस्थिति
दर्ज़ कराई है। जीवन
और समाज के सभी
विषय इसके दायरे में
आ रहे हैं। ग़ज़लें
पढ़ी भी जा रही
हैं और सम्प्रेषित भी
की जा रही हैं।
इसके बावजूद ग़ज़लों का मूल्यांकन बहुत
कम हुआ है, यह
पुस्तक इस कमी को
पूरा करती है। उन्होंने
बताया कि इसमें पैंतीस
ग़ज़लकारों का मूल्यांकन है।
इस पुस्तक के माध्यम से
यह कोशिश की गई है
कि नए मानदंडों के
आधार पर ग़ज़ल की
समालोचना हो।
प्रो. प्रभाकर सिंह ने इस
पुस्तक के परिप्रेक्ष्य पर
चर्चा करते हुए कहा
कि इसमें हिंदुस्तानी भाषा का प्रयोग
मिलता है। यह पुस्तक
दुष्यंत कुमार और अदम गोंडवी
तक सीमित ग़ज़ल-समीक्षा को
और अधिक विस्तार देती
है। समकालीन ग़ज़लकारों में दिखाई देनेवाली
विषय-वैविध्य पर यह पुस्तक
दृष्टि डालती है। डॉ. प्रभात
कुमार मिश्र ने रामचंद्र शुक्ल
के कथन “काव्य वहाँ
महत्त्वपूर्ण होता है, जहाँ
यूटोपिया और यथार्थ का
संघर्ष होता है“ से
अपनी बात की पुष्टि
की। और कहा कि
यह पुस्तक इस सभी आयामों
पर बात करती है।
उन्होंने कहा कि यह
बहुत महत्त्वपूर्ण है; लेकिन अभी
और भी ग़ज़ल पर
आलोचना पुस्तकों की आवश्यकता है।
प्रो. राकेश कुमार द्विवेदी ने इस पुस्तक
पर समीक्षात्मक व्याख्यान प्रस्तुत करते हुए उर्दू
और हिंदी ग़ज़ल की परम्परा
की चर्चा की। उन्होंने कहा
कि अकविता और गद्य कविता
के दौर में हमें
ग़ज़ल ज़्यादा आकृष्ट करती हैं। इस
पुस्तक में सभी महत्त्वपूर्ण
समकालीन ग़ज़लकारों की ग़ज़लगोई पर
गहराई से लेख लिखे
गये हैं।
प्रो. नीरज खरे ने
कहा कि प्रो. वशिष्ठ
अनूप ने इस पुस्तक
में समकालीन ग़ज़ल के ऐसे
प्रमुख नामों पर बात की
है, जो इतने अधिक
लोकप्रिय तो नहीं हैं,
पर उनकी ग़ज़लें बहुत
महत्वपूर्ण हैं। उन्होंने हिंदी
ग़ज़ल के बदलते हुये
प्रतिमानों का व्यापकता से
मूल्यांकन किया है। यह
किताब नये अध्येता और
शोधार्थियों के लिये अत्यंत
उपयोगी सिद्ध होगी। अपने स्वागत वक्तव्य
में वाणी प्रकाशन समूह
की निदेशक अदिति माहेश्वरी ने कहा कि
लगभग अस्सी के दशक में
वाणी प्रकाशन में ग़ज़लों का
आगाज़ हुआ उस दौर
में दुष्यंत और कुछ अन्य
के अलावा हिंदी ग़ज़ल में ज़्यादा
कुछ उपलब्ध नहीं था पर
आज लगभग चार सौ
से अधिक हिन्दी ग़ज़ल
पुस्तकों का प्रकाशन हो
चुका है। ’हिंदी ग़ज़ल
का परिप्रेक्ष्य’ विद्यार्थियों के लिये महत्वपूर्ण
किताब है। कुलगीत की
प्रस्तुति दिव्या शुक्ला, स्मिता पाण्डेय और आकांक्षा मिश्रा
ने किया। कार्यक्रम का संचालन डॉ.
अशोक कुमार ज्योति ने तथा धन्यवाद
ज्ञापन डॉ. राज कुमार
मीणा ने दिया।
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