ज्ञानवापी : 25 को तय हो जायेगा वजूखाने में एएसआई होगी या नहीं
1991 से चल रहे इस
केस
में
मुस्लिम
फरीक
की
तरफ
से
दलीलें
पूरी
हो
गई
हैं
सुरेश गांधी
वाराणसी। ज्ञानवापी के 1991 केस मामले में मुस्लिम फरीक की तरफ से दलीलें पूरी हो गई हैं. यह केस लॉर्ड विशेश्वर बनाम अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी का है, जो 1991 से चल रहा है. 33 साल चल रहे केस में दोनों पक्षों ने अपनी बात रखी थी. हिन्दू फरीक की तरफ से ज्ञानवापी अहाते के भीतर पूजा-पाठ का हक़ देने और मंदिर निर्माण करने की इजाजत मांगी गई थी. इस मामले में मुस्लिम पक्ष की बहस पूरी हो गई है. अब इस मामले में फैसला 25 अक्टूबर को सुनाया जाएगा. सिविल जज (सीनियर डिवीजन फास्ट ट्रैक) युगल शंभू की अदालत में सुनवाई हुई.
बता दें, 33 साल
से लंबित इस केस में
अदालत का फैसला आने
में अब एक सप्ताह
का वक्त बचा है.
ज्ञानवापी में नए मंदिर
के निर्माण और हिंदुओं को
पूजा-पाठ का अधिकार
देने को लेकर 1991 पिटीशन
दाखिल किया गया था.
इस मामले में मुस्लिम पक्ष
के वकील ने जिरह
में हिस्सा लिया. वहीं, इस पूरे मामले
पर हिंदू पक्ष के वकील
विजय शंकर रस्तोगी ने
कहा है ज्ञानवापी के
मामले में कोर्ट के
इस आदेश से पहले
वादमित्र के भारतीय पुरातत्व
सर्वेक्षण (एएसआई)से सर्वे कराने
के आदेश पर हिंदू
पक्ष की तरफ से
वकीलों की जिरह पूरी
हो चुकी है. इस
पर 8 अक्टूबर को ही मुस्लिम
पक्ष अंजुमन इंतजामिया कमेटी ने अपनी दलीलें
पेश की थीं. इस
मामले को वादमित्र देख
रहा है, जबकि इस
केस के मुख्य वादी
का इंतकाल हो चुका है.
वाद मित्र ने इसमें दावा
किया है कि एएसआई
का पिछला सर्वे अधूरा है. वाद मित्र
ने एएसआई से ज्ञानवापी में
खुदाई कराए जाने की
मांग की थी. मुस्लिम
पक्ष ने वादमित्र की
इस मांग का विरोध
किया है.
25 अक्टूबर को आएगा फैसला
इस मामले पर
मुस्लिम पक्ष के वकीलों
ने दलील देते हुए
कहा था कि जब
एएसआई द्वारा यहां सर्वे हो
चुका है तो दोबरा
सर्वे कराए जाने का
कोई न्यायसंगत नहीं है. साथ
मुस्लिम पक्ष ने दलील
दी थी कि मस्जिद
कैंपस में गड्ढा खोदने
से मस्जिद को भारी नुकसान
पहुंच सकता है. अब
सिविल जज (सीनियर डिवीजन
फास्ट ट्रैक) युगल शंभू की
अदालत 25 अक्टूबर को फैसला सुनाएगा.
बता दें, हिंदू पक्ष
ने सेंट्रल डोम के नीचे
शिवलिंग होने का दावा
किया था। इसके साथ
ही हिंदू पक्ष ने परिसर
में बचे शेष स्थल
की खुदाई कराकर एएसआई सर्वे कराने की मांग की
है।
लटकाओ, भटकाओ, अटकाओ की नीति पर लगेगा ब्रेक
लॉर्ड विश्वेश्वरनाथ के केस को
लेकर हिंदू पक्ष के अधिवक्ता
मदन मोहन यादव ने
शनिवार को कहा कि
वर्ष 1991 से चल रहे
जिस वाद को मुस्लिम
पक्ष लटकाओ, भटकाओ, अटकाओ की नीति पर
चल रहा था। आज
वही मुस्लिम पक्ष ज्ञानवापी के
मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट
के आदेश का हवाला
देकर शीघ्र सुनवाई के लिए न्यायालय
से निवेदन किया। अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी के अधिवक्ता और
वक्फ बोर्ड के अधिवक्ता ने
अपनी-अपनी दलील पेश
की। साथ में हिंदू
पक्ष के द्वारा इलाहाबाद
हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट
के निर्णय के कई आख्यानों
का भी विवरण देते
हुए उसकी कॉपी न्यायालय
के समक्ष प्रस्तुत की गई। अब
मामले में 25 अक्टूबर को आदेश आने
की संभावना है। हिंदू पक्ष
इस मामले को लेकर अपना
मत प्रस्तुत कर चुका है
और ज्ञानवापी के शेष बचे
हुए परिसर के एएसआई सर्वे
की मांग कर रहा
है इसके आलावा अन्य
मांगे भी हैं।
30 साल बाद हुई पूजा
वाराणसी कोर्ट ने हिंदू पक्ष
को ज्ञानवापी के तहखाने में
पूजा का अधिकार दे
दिया है. 31 साल से व्यासजी
के तहखाने में पूजा नहीं
हो रही थी. इस
मामले के वादी शैलेंद्र
कुमार पाठक व्यास का
दावा है कि उनकी
कई पीढ़ियों ने तहखाने में
पूजा की है और
1993 तक वो अपने अधिकार
का इस्तेमाल करते हुए तहखाने
में स्थित देव प्रतिमाओं की
पूजा होती थी।
हिंदू पक्ष ने विवादित
स्थल को सील करने
की मांग की थी.
सेशन कोर्ट ने इसे सील
करने का आदेश दिया
था. इसके खिलाफ मुस्लिम
पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट
का रुख किया था.
सुप्रीम कोर्ट ने केस जिला
जज को ट्रांसफर कर
इस वाद की पोषणीयता
पर नियमित सुनवाई कर फैसला सुनाने
का निर्देश दिया था. मुस्लिम
पक्ष की ओर से
यह दलील दी गई
थी कि ये प्रावधान
के अनुसार और उपासना स्थल
कानून 1991 के परिप्रेक्ष्य में
यह वाद पोषणीय नहीं
हो सकती है. हालांकि,
कोर्ट ने इसे सुनवाई
योग्य माना था. मई
2023 में पांच वादी महिलाओं
में से चार ने
एक प्रार्थना पत्र दायर किया
था. इसमें मांग की गई
थी कि ज्ञानवापी मस्जिद
के विवादित हिस्से को छोड़कर पूरे
परिसर का एएसआई से
सर्वे कराया जाए. इसी पर
जिला जज एके विश्वेश
ने अपना फैसला सुनाते
हुए एएसआई सर्वे कराने का आदेश दिया
था.
सर्वे में मिली मूर्तिययां और मंदिर के सूबत
कोर्ट के आदेश के
बाद ज्ञानवापी परिसर का एएसआई सर्वे
कराया गया था. 18 दिसंबर,
2023 को एएसआई ने जिला जज
की अदालत में अपनी रिपोर्ट
सौपी थी. इसके बाद
हिंदू पक्ष ने मांग
की थी कि सर्वे
रिपोर्ट की कॉपी दोनों
पक्षों को सौंपी जाए.
इस पर 24 जनवरी 2024 को जिला कोर्ट
ने सभी पक्षों को
सर्वे .रिपोर्ट सौंपने का आदेश दिया
था. सीनियर एडवोकेट विष्णु शंकर जैन ने
बताया कि जीपीआर सर्वे
पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा है
कि यह कहा जा
सकता है कि यहां
पर एक बड़ा भव्य
हिन्दू मंदिर था, अभी के
ढांचा के पहले एक
बड़ा हिंदू मंदिर मौजूद था. सुप्रीम कोर्ट
के मुताबिक वर्तमान जो ढांचा है
उसकी पश्चिमी दीवार पहले के बड़े
हिंदू मंदिर का हिस्सा है.
यहां पर प्री एक्जिस्टिंग
स्ट्रक्चर है उसी के
ऊपर बनाए गए.हिंदू
पक्ष ने आगे रिपोर्ट
का हवाला देते हुए कहा
कि पिलर्स और प्लास्टर को
थोड़े से ममोडिफिकेशन के
साथ मस्जिद के लिए फिर
से इस्तेमाल किया गया है.
हिंदू मंदिर के खंभों को
थोड़ा बहुत बदलकर नए
ढांचे के लिए इस्तेमाल
किया गया. पिलर के
नक्काशियों को मिटाने की
कोशिश की गई. यहां
पर 32 ऐसे शिलालेख मिले
हैं जो पुराने हिंदू
मंदिर के हैं.
दोनों पक्षों के अपने-अपने दावे
काशी विश्वनाथ मंदिर
और ज्ञानवापी मस्जिद का विवाद काफी
हद तक अयोध्या विवाद
जैसा ही है. हालांकि,
अयोध्या के मामले में
मस्जिद बनी थी। इस
मामले में मंदिर-मस्जिद
दोनों ही बने हुए
हैं. काशी विवाद में
हिंदू पक्ष का कहना
है कि 1669 में मुगल शासक
औरंगजेब ने यहां काशी
विश्वनाथ मंदिर को तोड.कर
ज्ञानवापी मस्जिद बनाई थी लेकिन
मुस्लिम पक्ष का कहना
है कि यहां मंदिर
नहीं था और शुरुआत
से ही मस्जिद बनी
थी. जबकि हकीकत यह
है कि काशी विश्वनाथ
मंदिर को अकबर के
नौ रत्नों में से एक
राजा टोडरमल ने बनवाया था.
इसे 1585 में बनाया गया
था. 1669 में औरंगजेब ने
इस मिंदिर को तुड़वाकर मस्जिद
बनवाई. 1735 में रानी अहिल्याबाई
ने फिर यहां काशी
विश्वनाथ मंदिर बनवाया, जो आज भी
मौजूद है.
473 साल पुराना है व्यास परिवार
का पूजा-पाठ का इतिहास
ज्ञानवापी स्थित व्यासजी के तहखाना प्रकरण
को लेकर शैलेंद्र कुमार
पाठक व्यास ने कोर्ट में
इस बात का दावा
किया कि आदि विश्वेश्वर
की पूजा का इतिहास
473 साल पुराना है. शैलेंद्र कुमार
द्वारा कोर्ट में जो दलील
दी गई है उसके
मुताबिक, ज्ञानवापी में शतानंद व्यास
ने वर्ष 1551 में आदि विश्वेश्वर
की पूजा शुरू की
थी. इसके बाद व्यास
परिवार की कई पीढ़ियों
ने जिम्मेदारी निभाई और साल 1930 में
इस परिवार के बैजनाथ व्यास
ने पूजा-पाठ का
जिम्मा संभाला. फिर उनके बेटी
राजकुमारी उत्तराधिकारी बनीं जिनके चार
बेटे हुए जिनमें से
एक का नाम सोमनाथ
व्यास था. शैलेंदकुमार इन्हीं
सोमनाथ व्यास की बेटी ऊषा
रानी के बेटे के
रूप में तहखाने में
पूजा का अधिकार मांग
रहे थे.
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