टारगेट किलिंग के खिलाफ 56 इंच की कब होगी “सर्जिकल स्ट्राइक“?
मामला धरती का स्वर्ग कहे जाने वाले कश्मीर के टारगेट किलिंग का हो या दिल्ली का धमाका हो या यूपी के बहराइच दंगे की। आतंक एवं उससे जुड़े कट्टरपंथियों के हरकतों की गूंज सुनाई देने लगी है। खासकर यह सब तब हो रहा है जब घाटी में नेशनल कांफ्रेंस सरकार बनी और यूपी में आतंक के लिए साफ्ट कार्नर रखने वाले दलों की चुनाव में सीटों की संख्या बढ़ी। हालांकि छूटफुट घटनाएं तो होती रहती थी, लेकिन हाशिएं पर पहुंच चुके इन दलों को जैसे ही ऊर्जा मिली, आतंक या दंगे सिर चढ़कर बोलने लगे। ऐसे में सवाल तो पूछे ही जायेंगे, आखिर इन दोनों मामलों में भूमिका निभाने वाले इतने जल्दी सक्रियकैसे हो गए? हो जो भी लेकिन लोगों के जेहन में सवाल तो है ही आखिर क्या वजह है घाटी में नयी सरकार के शपथ लेने के चार दिन बाद ही आतंकियों ने एक बार फिर कायराना हरकत को अंजाम दिया है। लश्कर के मुखौटा संगठन टीआरएफ के आतंकियों ने जम्मू कश्मीर के गांदरबल में जेडमेड टनल में हमला कर एक डॉक्टर व तीन गैर कश्मीरी मजदूरों सहित सात कर्मचारियों की अंधाधुध फारिंग कर हत्या कर दी. जबकि पांच अन्य घायल हो गए. ये हमला तब हुआ जब गांदरबल के गुंड में सुरंग परियोजना पर काम कर रहे मजदूर और अन्य कर्मचारी देर शाम अपने शिविर में लौट आए थे. फिरहाल, बड़ा सवाल तो यही है कश्मीर में “लश्कर“ दिल्ली में “खालिस्तान! व यूपी मनबढ़ लाल टोपी के गुर्गे देश को क्या संदेश देना चाहते है? दुसरा बड़ा सवाल घाटी में एक के बाद एक टारगेट किलिंग के खिलाफ 56 इंच सीने की दुहाई देने वाले की कब होगी “सर्जिकल स्ट्राइक“? घाटी में टारगेट किलिंग का इंतकाम कब लिया जायेगा? क्या 7 बदले 70 आतंकी ढेर होंगे? और कब तक जम्मू-कश्मीर में बेकसूरों की हत्या होती रहेगी? कश्मीर में नयी सरकार बनते ही क्यों शुरू हुई टारगेट किलिंग? क्या टनल पर अटैक कुछ कश्मीरी गद्दारों की साजिश है?
सुरेश गांधी
धरती का स्वर्ग कहे जाने वाले कश्मीर
में आतंकियों के पंख फिर से फड़फड़ाने लगे हैं. एकबार फिर
से कश्मीर में टारगेट किलिंग
का दौर शुरू हो
गया है. बीते दिनों
दो ऐसी घटनाएं हुई
हैं जिसने प्रवासी मजदूरों की चिंता और
बढ़ा दी है. आतंकवादियों
ने पहले बिहार के
एक मजदूर को बुलाकर उसे
गोली मार दी और
फिर इस घटना के
कुछ ही दिनों बाद
ताबड़तोड़ फायरिंग करके 6 मजदूरों को मौत के
घाट उतार दिया, जिसमें
तीन मजदूर बिहार के रहने वाले
थे. बता दें, जम्मू-कश्मीर में आतंकवादी इन
दिनों गैर स्थानीय मजदूरों
को टारगेट करके उन्हें मौत
के घाट उतार रहे
हैं. पहले कश्मीर के
शोपियां जिले में बिहार
के बांका निवासी एक युवक अशोक
चौहान की हत्या आतंकियों
ने गोली मारकर कर
दी और अब शोपियां
में 6 मजदूरों और एक डॉक्टर
को गोलियों से छलनी करके
मार दिया. कई अन्य मजदूरों
की हालत गंभीर है.
ये मजदूर दूसरे राज्यों के थे जो
केंद्र सरकार की एक योजना
के तहत बनाए जा
रहे सुरंग के लिए काम
कर रहे थे. 2021 में
भी आतंकियों ने 11 दिन के भीतर
4 बिहारी मजदूरों की हत्या की
थी। दरअसल पीएम मोदी और
बीजेपी के दिग्गज नेता
अपनी अधिकांश चुनावी रैलियों में कश्मीर से
अनुच्छेद 370 हटने के बाद
बहाल हुई शांति का
जिक्र कर लोगों की
वाहवाही बटोर रहे हैं,
लेकिन इस बीच पुंछ
में हुए आतंकी हमले
से विपक्षी दलों को बैठे-बैठे बीजेपी को
घेरने का बड़ा मौका
मिल गया है। हालांकि
पीएम नरेंद्र मोदी राजौरी-पुंछ
सेक्टर में हो रही
आतंकी हत्याओं और हमलों को
लेकर चिंतित हैं और उन्होंने
सेना के शीर्ष अधिकारियों
के समक्ष अपनी चिंता भी
व्यक्त की है। लेकिन
विपक्षी दल इसे राजनीतिक
मुद्दा बनाने में जुट गए
हैं। यह मुद्दा पीएम
मोदी और बीजेपी के
अन्य बड़े नेताओं के
लिए भारी चुनौती बन
सकता है।
टीआरएफ पहले भी माइग्रेंट
को निशाना बनाते रहा है. कश्मीर
में इस समय टीआरएफ
ही सबसे ज्यादा एक्टिव
आतंकी संगठन माना जाता है.
लश्कर से जुड़े साजिद
जट, सज्जाद गुल और सलीम
रहमानी इसको लीड कर
र.हे हैं. टीआरएफ
से जुड़े आतंकी सूबे
में होने वाली हर
सरकारी और सियासी गहमागहमी
पर नजर रखते हैं.
वो सोशल मीडिया पर
भी काफी एक्टिव हैं
और इसके जरिए युवाओ
को भटकाते हैं. द रेजिस्टेंस
फ्रंट जम्मू-कश्मीर में एक्टिव है.
ये लश्कर-ए-तैयबा की
एक तरह से ब्रांच
है. जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद-370 को
हटाए जाने के बाद
टीआरएफ एक ऑनलाइन यूनिट
के रूप में शुरू
हुआ था. माना जाता
है कि टीआरएफ को
बनाने का मकसद लश्कर
जैसे आतंकी संगठनों को कवर देना
है. इसके बैकडोर से
पाकिस्तानी सेना और एएसआई
खुलकर सहयोग करती है.टीआरएफ ज़्यादातर
लश्कर के फंडिंग चैनलों
का इस्तेमाल करता है. गृह
मंत्रालय ने मार्च में
राज्यसभा को बताया था
कि “द रेजिस्टेंस(टीआरएफ)
आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा का
एक मुखौटा संगठन है और 2019 में
अस्तित्व में आया.“ इस
संगठन को बनाने की
साजिश सरहद पार से
रची गई थी. टीआरएफ
को बनाने में लश्कर-ए-तैयबा और हिजबुल मुजाहिदीन
के साथ-साथ पाकिस्तान
की खुफिया एजेंसी आईएसआई का भी हाथ
रहा है. ये इसलिए
बनाया गया ताकि भारत
में होने वाले आतंकी
हमलों में सीधे तौर
पर पाकिस्तान का नाम न
आए और वो फाइनेंशियल
एक्शन टास्क फोर्स की ब्लैक लिस्ट
में आने से बच
जाए.
2022 की अपनी वार्षिक
रिपोर्ट में, जम्मू-कश्मीर
पुलिस ने कहा कि
कश्मीर में सुरक्षा बलों
द्वारा 90 से ज़्यादा ऑपरेशनों
में 42 विदेशी नागरिकों सहित 172 आतंकवादी मारे गए. घाटी
में मारे गए आतंकवादियों
में से ज़्यादातर (108) द
रेजिस्टेंस फ्रंट या लश्कर-ए-तयबा के थे.
साथ ही, आतंकवादी समूहों
में शामिल होने वाले 100 लोगों
में से 74 एएसआई द्वारा भर्ती किए गए थे,
जो पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी समूह से बढ़ते
ख़तरे को दर्शाता है.
टीआरएफ का नाम तब
चर्चा में आया जब
उसने 2020 में बीजेपी कार्यकर्ता
फिदा हुसैन, उमर राशिद बेग
और उमर हाजम की
कुलगाम में बेरहमी से
हत्या कर दी थी.
टीआरएफ कश्मीर में फिर से
वही दौर लाना चाहता
है, जो कभी 90 के
दशक में था. टीआरएफ
के आतंकी टारगेट किलिंग पर फोकस करते
हैं. वो ज्यादातर गैर-कश्मीरियों को निशाना बनाते
हैं ताकि बाहरी राज्यों
के लोग जम्मू-कश्मीर
आने से बचें. आने
वाले समय में, आंतरिक
सुरक्षा के खतरों, खासतौर
पर साइबर खतरों से निपटने की
क्षमता सहित अधिक मजबूत
खुफिया नेटवर्क की आवश्यकता है।
जहां तक साइबर स्पेस
और आईटी का संबंध
है, भारतीय कंपनियां दुनिया को सर्वोत्तम समाधान
प्रदान करती हैं लेकिन
साइबर खतरों से निपटने के
लिए आंतरिक विशेषज्ञता की ओर और
प्रयास करने की जरूरत
है। प्रमुख सरकारी और निजी वेबसाइट
को अतीत में हैक
किया गया है। सिस्टम
को और सख्त करने
की जरूरत है और डार्क
वेब का फायदा उठाने
वालों को ट्रैक करने
और पहचानने की हमारी क्षमता
को तेजी से मजबूत
करना होगा। चीनी हैकर्स को
माकूल जवाब देना होगा।
जहां तक हवाई अड्डों
पर सुरक्षा का संबंध है,
अधिकांश हवाई अड्डे केन्द्रीय
औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ) की
कड़ी निगरानी में हैं। सीआईएसएफ
यात्रियों और हवाईअड्डा परिसरों
से संबंधित सुरक्षा को सक्षम बनाना
होगा।
पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी
आईएसआई और आतंकी समूह
जम्मू कश्मीर में आतंकवाद को
बढ़ाने के लिए डिजिटल
प्लेटफॉर्म के जरिए भर्तियां
करने की कोशिश कर
रहे हैं. सोशल मीडिया
प्लेटफॉर्म जैसे एक्स, फेसबुक,
इंस्टाग्राम और वॉट्सऐप का
इस्तेमाल कर युवाओं को
आतंकी समूहों में शामिल करने
में लगे हैं. आईएसआई
और आतंकी समूह अपनी पहचान
छिपाने के लिए फेक
प्रोफाइल और वर्चुअल प्राइवेट
नेटवर्क का इस्तेमाल करते
हैं ताकि इन्हें पहचाना
नहीं जा सके. ऐसा
इसलिए हो रहा है
क्योंकि सुरक्षाबलों की कड़ी नाकेबंदी
के कारण उनके लिए
युवाओं से सीधे संपर्क
करना मुश्किल होता जा रहा
है. युवाओं की पहचान होते
ही उन्हें सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म
पर अपने निजी ग्रुपों
में शामिल कर लेते हैं.
इन ग्रुपों में युवाओं को
बरगलाने के लिए उन्हें
सुरक्षाबलों के अत्याचारों को
दर्शानेले मनगढ़ंत वीडियो सहित फर्जी तरीके
से बनाए गए इसी
तरह के कंटेंट भेजा
जाता है. आतंकी समूहों
में भर्तियां करने के बाद
इन युवाओं को मैनिपुलेटिव कंटेंट
औरफैब्रिकेटेड वीडियो तैयार करने के काम
में लगाया जाता है. इनका
मकसद नफरत और भेदभाव
बढ़ाना होता है. बता
दें कि विशेष रूप
से दक्षिण कश्मीर में सोशल मीडिया
के माध्यम से भर्ती और
लोगों को कट्टर बनाने
की गतिविधियों में इजाफा हुआ
है. आतंकी समूह टेलीग्राम जैसे
एन्क्रिप्टेड मैसेजिंग प्लेटफॉर्म और ऐप का
तेजी से लाभ उठा
रहे हैं. इन खतरों
का मुकाबला करने के लिए
सुरक्षा एजेंसियों ने सोशल मीडिया
निगरानी इकाइयां स्थापित की हैं जो
संभावित भर्तियों को ट्रैक करती
हैं और इन्हें समय
रहते बेअसर करती हैं.
घुसपैठ की कोशिश
एक अधिकारी ने
बताया कि पाकिस्तान के
कब्जे वाले कश्मीर (पीओके)
में स्थित आतंकवादी केंद्र शासित प्रदेश में पिछले कुछ
समय से शांति भंग
करने के लिए घुसपैठ
की कोशिश कर रहे हैं।
हाल के महीनों में
आतंकवादियों, खास तौर पर
कट्टर विदेशी भाड़े के आतंकवादियों,
ने जम्मू संभाग के पहाड़ी जिलों
पुंछ, राजौरी, डोडा, कठुआ, उधमपुर और रियासी में
सेना, अन्य सुरक्षा बलों
और आम लोगों पर
कई गुरिल्ला हमले किए हैं।
इन जिलों के घने जंगलों
में आतंकवादियों को घात लगाकर
हमला करने और फिर
दुर्गम जंगलों में छिपने से
रोकने के लिए पैरा
कमांडो बल और पर्वतीय
युद्ध में प्रशिक्षित चार
हजार से अधिक प्रशिक्षित
कमांडो तैनात किए गए हैं।
इन पहाड़ी जिलों में सेना और
सीआरपीएफ की तैनाती के
अलावा पुलिस ने ग्राम रक्षा
समितियों (वीडीसी) को ऑटोमेटिक हथियार
भी जारी किए हैं।
जम्मू कश्मीर के लोगों का
अगर सबसे बड़ा दुश्मन
अगर कोई है तो
ये आतंकवादी. अगर जम्मू कश्मीर
के लोगों की जिंदगी को
सबसे ज्यादा किसी ने तबाह
किया है तो वो
इन आतंकवादियों ने. जब भी
जम्मू कश्मीर के लोगों की
भलाई का काम होता
तो सबसे ज्यादा तकलीफ
इन आतंकवादियों को होती है.
ये खुद तो दावा
करते हैं कि वे
कश्मीर के लिए लड़
रहे हैं, लेकिन असलियत
में ये कश्मीर को
बर्बाद और खुद को
जिंदा रखने के लिए
लड़ रहे हैं. अमरनाथ
यात्रा से कश्मीर के
लोगों को रोजगार मिलता
है. साल भर कश्मीरी
इस यात्रा के शुरू होने
का इंतजार करते हैं, लेकिन
ये आतंकवादी इसमें भी खलल डालने
की कोशिश करते रहते हैं.
इसी तरह कोई सड़क
बननी हो, कोई सुरंग
बनना हो इन आतंकवादियों
को तकलीफ होती है. इन्हें
लगता है कि अगर
कश्मीर की जनता खुशहाल
हो गई तो इनको
कौन पूछेगा? इनका तो रोजगार
ही चला जाएगा? विदेश
से आने वाला फंड
बंद हो जाएगा.
मारे गए लोगों के परिजनों की जुबानी
इस हमले में
मारे गए आर्किटेक्ट शशि
भूषण अबरोल के परिजनों ने
बताया कि उनकी पत्नी
ने करवाचौथ का व्रत रखा
था और चंद्रमां दिखाई
देने के बाद वो
लगातार वीडियो कॉल करती रहीं,
लेकिन उन्होंने कॉल नहीं लिया.
वहीं 5-6 साल की बेटी
ने रोते हुए कहा
कि आतंकवादी बहुत गंदे हैं,
उन्होंने मेरे पापा को
मार दिया. टनल में आर्किटेक्ट
डिजाइनर के रूप में
काम कर रहे शशि
की बेटी ने कहा,
जब मम्मी पूजा के लिए
तैयार हुई थीं, तब
मेरी थोड़ी देर के
लिए पापा से बात
हुई थी. वो कह
रहे थे कि क्या
कर रही हो. मैंने
कहा कुछ नहीं तो
फिर मैंने फोन मम्मी को
पकड़ा दिया. इस दौरान वो
लगातार अपनी मम्मी से
कहती रही है कि
प्लीज मम्मा मत रो. उसके
बाद उसने रोते हुए
कहा, “आतंकवादी बहुत गंदे हैं,
उन्होंने मेरे पापा को
मार दिया.“ उनकी पत्नी ने
कहा कि कल छह
बजे उनसे बात हुई
थी. वीडियो कॉल किया था.
ऐसे ही बात हुई
थी. उसके बाद कहा
कि जब चंद्रमां दिखाई
देगा, तब वीडियो कॉल
करूंगी. फिर मैं पूरी
रात कॉल करती रही,
लेकिन उन्होंने कॉल ही नहीं
उठाया. आतंकवादियों ने सबके घर
उजाड़ दिए.
टारगेट किलिंग में मारे जा
चुके है 100 से अधिक लोग
आंकड़ों के मुताबिक जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटने
के बाद से 100 से
अधिक बेकसूरों की हत्या कर
चुके है। 2024 में अब तक
टारगेटेड हमलों के लगभग छह
मामले सामने आ चुके हैं.
जबकि 2022 में 29 हमले किए थे.
इन हमलों में 12 सुरक्षाबलों पर हुए थे.
18 अक्टूबर 2024 को बिहार के
बांका जिले के अशोक
चौहान नाम के 30 साल
के प्रवासी मजदूर का गोलियों से
छलनी शव दक्षिण कश्मीर
के शोपियां जिले में रामबियारा
नदी के पास एक
मक्के के खेत में
मिला था.
22 अप्रैल
2024 को राजौरी के कुंडा टॉप
में एक मस्जिद के
बाहर 40 साल के मोहम्मद
रजाक अज्ञात आतंकवादियों के हमले का
शिकार हुए.
17 अप्रैल 2024 को बिहार के
35 साल के माइग्रेंट वर्कर
राजू शाह की दक्षिण
कश्मीर के अनंतनाग में
गोली मारकर हत्या कर दी गई.
8 अप्रैल 204 को शोपियां में
एक गैर-स्थानीय कैब
ड्राइवर परमजीत सिंह को निशाना
बनाय गया.
फरवरी 2023 में पंजाब के
दो लोगों की श्रीनगर में
गोली मारकर हत्या कर दी गई.
30 अक्टूबर 2023 को पुलवामा के
तुमची नौपोरा इलाके में यूपी के
मुकेश नाम के एक
मजदूर पर गोली मार
कर हत्या की गयी।
26 फरवरी 2023 को एक कश्मीरी
पंडित की पुलवामा में
गोली मारकर हत्या कर दी. वो
पेशे से बैंक गार्ड
था.
29 मई 2023 को अनंतनाग में
उधमपुर निवासी दीपू की हत्या
कर दी गई. वो
जंगलात मंडी के पास
एक मनोरंजन पार्क में काम करता
था.
18 जुलाई को अनंतनाग में
ही दो प्रवासी श्रमिकों
को गोली मारकर घायल
कर दिया गया.
13 जुलाई 2023 को शोपियां तीन
प्रवासी श्रमिकों को गोली मारी
गयी।
2 जून 2022 को कुलगाम में
राजस्थान के एक बैंक
मैनेजर विजय कुमार की
गोली मारकर हत्या कर दी गयी.
31 मई 2022 को कुलगाम में
ही रजनी बाला नाम
की 36 साल कश्मीरी पंडित
टीचर की गोली मारकर
हत्या कर दी गयी.
25 मई 2022 को कश्मीरी टीवी
कलाकार अमरीना भट की कई
गोलियां लगने से मौत
हो गई. बडगाम के
चदूरा इलाके में उनके घर
के बाहर 10 साल के भतीजे
फरहान को गोली मारी
गयी।
24 मई 2022 को एक पुलिसकर्मी
की गोली मारकर हत्या
कर दी गयी. हमले
में कर्मी की सात साल
की बेटी घायल हो
गई थी.
17 मई 2022 को बारामूला के
दीवान बाग इलाके में
ग्रेनेड अटैक में राजौरी
के रणजीत सिंह की मौत
हो गई. तीन अन्य
लोग घायल हुए थे.
12 मई 2022 को कश्मीरी पंडित
समुदाय से संबंधित एक
सरकारी कर्मचारी राहुल भट्ट की बडगाम
में उनके ऑफिस में
गोली मारकर हत्या कर दी गयी.
उसी दिन पुलिस कॉन्सटेबल
रेयाज अहमद थोकर को
पुलवामा के गुडोरा गांव
में उनके घर के
पास ने गोली मार
दी.
9 मई 2022 को शोपियां के
पंडोशन इलाके में गोलीबारी के
दौरान एक नागरिक की
मौत हो गई और
दो अन्य घायल हो
गए.
7 मई 2022 को पुलिस कांस्टेबल
गुलाम हसन डार मारे
गए.
18 अप्रैल 2022 को पुलवामा में
रेलवे सुरक्षा बल के अधिकारी
देव राज की हत्या
की गयी।
15 अप्रैल 2022 को बारामूला के
पट्टन इलाके में गांव के
सरपंच मंजूर अहमद बांगरू की
गोली मारकर हत्या कर दी गयी। वो
वहां एक निर्दलीय के
रूप में चुने गए
थे.
13 अप्रैल 2022 को कुलगाम के
काकरान इलाके में सतेश सिंह
नाम के एक नागरिक
की गोली मारकर हत्या
कर दी गयी.
4 अप्रैल 2022 को श्रीनगर के
मैसुमा इलाके में गोलीबारी में
एक जवान शहीद हो
गया. एक अन्य जवान
घायल हो गया.
26 मार्च 2022 को बडगाम में
विशेष पुलिस अधिकारी इश्फिक अहमद डार की
गोली मारकर हत्या कर दी गयी.
हमले में उनका भाई
गंभीर रूप से घायल
हुआ.
12 मार्च 2022 को शोपियां में
पुलिस जवान मुख्तार अहमद
की उनके घर में
ही गोली मारकर हत्या
कर दी गयी.
11 मार्च 2022 को कुलगाम के
अडुरा इलाके में एक सरपंच
की गोली मारकर हत्या
कर दी गयी. 9 मार्च
2022 को पीडीपी के सरपंच समीर
भट को श्रीनगर के
खोनमोह इलाके में गोली मारकर
हत्या कर दी गई।
2 मार्च को कुलगाम के
कोलपोरा इलाके में पंचायत सदस्य
मोहम्मद याकूब डार की गोली
मारकर हत्या कर दी गयी.
29 जनवरी 2022 को अनंतनाग के
हसनपोरा इलाके में एक पुलिसकर्मी
पर गोलीबारी कर हत्या की
गयी। आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, 2021 में
कुल 28 नागरिकों को आतंकियों ने
मार डाला. उनमें से पांच लोग
स्थानीय हिंदू या सिख समुदाय
के थे और दो
गैर-स्थानीय हिंदू मजदूर थे.
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