Thursday, 17 October 2024

थाली से सब्जियां नदारद, जो खाएं, समझों वहीं ‘साब’ जी

गर्मी से भले ही थोड़ी राहत मिली हो, लेकिन तपने लगा है सब्जियों का बाजार 

थाली से सब्जियां नदारद, जो खाएं, समझों वहींसाबजी 

हाल यह है कि सब्जी की जगह दाल, कढ़ी, राजमा चने अब मुख्य मेन्य हो गयी है

अदरक की कीमतें बढ़ने से अब चाय में अदरक की जगह इलायची का स्वाद छाया हआ है

सब्जियां महंगी होने के पीछे उत्पादन में कमी एक कारण तो है ही, लेकिन बड़ा कारण अकुशल सप्लाई चेन है

सुरेश गांधी

वाराणसी। पूर्वांचल ही नहीं देश के कई शहरों में इन दिनों गर्मी से भले ही लोगों को थोड़ी राहत मिली हो, लेकिन सब्जियों का बाजार अब तपने लगा है. हाल यह है कि सब्जियां लोगों की थाली से गायब होने लगी हैं। वजह : सब्जियों की बढ़ती हुई कीमतें। कीमतों को लेकर टमाटर और लाल हैं... तो सब्जियों का राजा आलू भी आसमान छूते दामों के साथ आम लोगों को आंखें दिखा रहा है. भिंडी और लौकी के दामों में भी जबरदस्त उछाल है. मतलब साफ है जो सब्जियां पिछले महीने तक तीस चालीस रुपए किलो थीं...उनकी कीमतें अब सौ के पार हैं। या यूं कहे टमाटर, प्याज और हरी सब्जियों के दाम आम आदमियों की पकड़ से बाहर होते जा रहे हैं

तीखी हरी मिर्च जो कभी सब्जी के साथ मुफ्त में मिलती थी, वह 100 रुपए प्रति किलो से भी पार हो गई है. कुल मिलाकर ग्रहणियों का बजट पूरी तरह से बिगड़ गया है. हद तो तब हो गयी जब बाजार में सब्जी खरीद कर लौट रही महिलाओं से बात की तो वे इस कदर तमतमाई, जैसे मैंने ही दाम बढाएं है। लेकिन बड़ा सवाल तो यही है क्या कीमतें बढ़ने के पीछे उत्पादन में कमी है या परिवहन की समुचित व्यवस्था का अभाव है या फिर जमाखोरी इसका कारण है? हो जो भी लेकिन हकीकत तो यही है। 

बता दें, पूर्वांचल में सब्जियों के बढ़े हुए रेट ने रसोई का जायका बिगाड़ दिया है. टमाटर के दाम तो जैसे चांद पर पहुंच गए है और प्याज ने तो सबकी आंखों में आसू ला दिए है।। मिर्च भी अपना तीखापन बढ़ा रही है। सब्जियों के राजा आलू का तो हाल यह है कि 50 रुपये से कम में तो मिल ही नहीं रही हैं। ऐसे में थाली से सलाद भी गायब हो गया है। दरअसल सब्जियों की मंडी में थोक विक्रेताओं से लेकर फुटकर व्यापारियों तक मुनाफाखोरी का खेल चल रहा है, जिससे सब्जियों की कीमतें मनमाने तरीके से बढ़ायी जा रही है।

गृहणी नम्रता का कहना हैं कि एक समय था जब 200 रुपये में कई सब्जियां जाती थी, लेकिन अब 500 रुपये कहां जाते हैं, वो भी पता नहीं चलता. सब्जियों के दामों में इतनी तेजी को लेकर एक बुजुर्ग महिला ने बताया बताया कि इतनी महंगाई उन्होंने कभी नहीं देखी. बातचीत के दौरान दुकानदारोंका कहना है कि वो 20-22 साल से सब्जी बेच रहे हैं, लेकिन ऐसी महंगाई पहली बार देखने को मिली है.पूरी मंडी में आग लग गई है. जो लहसुन मैं लेता था 100-150 रुपये, आज ढाई-तीन सौ रुपये ले रहा हूं. अदरक दो-ढाई सौ रुपये किलो है.’’ अब 60-80 रुपये तक पहुंचा करेला मुंह को और कड़वा कर रहा है.

देखा जाएं तो दो हफ्ते पहले के मुकाबले सब्जियां दोगुनी महंगी हो गई हैं. अब टमाटर 80 रुपये किलो तक, आलू 40 रुपये किलो, प्याज 50 रुपये किलो तक, लौकी 50 रुपये किलो तक, भिंडी 60 रुपये किलो तक बिक रही है. आलू- प्याज विक्रेता ने कहा कि, ’’आलू के दाम में आधे का फर्क है. पहले 10-15 रुपये था, आज 35-40 रुपये है.’’ टमाटर विक्रेता ने कहा कि, ’’टमाटर 70 रुपये किलो चल रहा है. टमाटर गर्मी पड़ने से सड़ गया. अब जो टमाटर रहा है, उसका भाड़ा, टैक्स लग रहा है. माल भी कम रहा है. पहले 10 गाड़ियां आती थीं, अब दो गाड़ियां रही हैं. इससे फर्क तो पड़ेगा ही. यही कारण है कि महंगाई है. जब माल ज्यादा आएगा तो अपने आप सस्ता हो जाएगा.’’

 उन्होंने कहा कि, ’’अत्यधिक गर्मी और अत्यधिक बारिश की वजह से प्रभाव पड़ता है. हालांकि जो पूरी सप्लाई चेन है उसमें कहीं कहीं इनएफिसिएंशी ज्यादा है. जो दाम बढ़ रहे हैं, इसका पूरा लाभ किसानों को नहीं मिल रहा है. इसका मतलब है कि अभी भी जो बीच में लोग काम रह हैं, वे भी रोल प्ले कर रहे हैं. क्षमता की कमी को दूर करना चाहिए.’’ ’’जैसे सरकार ने नेशनल एग्रीकल्चर मार्केट शुरू किया था. उसका भी पूरा प्रभाव अभी सामने नहीं आया है. तो सब्जी के क्षेत्र में सप्लाई चेन इनएफिशिएंसी को कम करने की जरूरत है.’’ ’’सब्जियों के दाम बढ़ने के पीछे 30 प्रतिशत कारण उत्पादन में कमी है. इसके बाद 70 प्रतिशत कारण सप्लाई चेन में इनएफिशिएंशी है.’’ ’’ट्रांसपोर्ट की दिक्कतें तो हैं ही, इसके अलावा दामों में मुख्य रोल विक्रेता अदा कर रहे हैं. वह दामों को ज्यादा बढ़ा रहा है. डिमांड और सप्लाई से जितनी महंगाई नहीं बढ़ रही है, उससे ज्यादा वह महंगाई खुद बढ़ा रहे है।

दो हफ्ते पहले के मुकाबले मौजूदा दाम

   पहले                 अब       

टमाटर   30-35                    70-80

आलू      15-20                     40-45   

प्याज      25-30                    50-55

लौकी     30                            60

भिंडी      20-25                    60                              

करेला     35                           60

शिमला मिर्च 50-60             200

बैंगन - 15-20                        60-80

अदरक - 90-100                 200

अरबी- 30-32                       100 

लहसुन 100                          280-300

ऑपरेशन ग्रीन योजना प्रभावी नहीं

हर साल इस मौसम में सब्जियां महंगी हो जाती हैं, क्या इसके लिए पहले से कोई तैयारी नहीं की जा सकती? कृषि अर्थशास्त्री जवाहर ने कहा कि, ’’सब्जियों में खास तौर पर टमाटर, आलू और प्याज के लिए सरकार ने ऑपरेशन ग्रीन योजना शुरू की. उसका मकसद यही था कि दाम में उतार-चढ़ाव कम हो, लेकिन अभी उसका पूरा असर दिख नहीं रहा है. निश्चित रूप से हमारा जो ट्रांसपोर्टेशन है और बाकी जो स्टोरेज इन्फ्रास्ट्रक्चर है उसको और सुदृढ़ करने की जरूरत है.  अब हम क्लाइमेट चेंज इन्फ्लुएंस इनफ्लेशन भी कहने लगे हैं. सब्जियों के उत्पादन और दाम पर जलवायु परिवर्तन का भी बहुत असर पड़ रहा है.’’

मध्यमवर्गीय परिवारों पर बढ़ रहा महंगाई का बोझ

गरीब-निम्न वर्गीय की थाली से सब्जियां गायब हो गई है और मध्यमवर्गीय परिवार सब्जी खाने से पहले सोचने लगा है। आलू-प्याज और टमाटर के बाद हरी सब्जियों की महंगाई लोगों को हैरान और परेशान कर रही है। थोक बाजार के मुकाबले दुकान-ठेलों पर सब्जियां दो से ढाई गुना महंगी बेची जा रही है। थोक कारोबारियों के अनुसार, उपभोक्ताओं के लिए सब्जियां महंगी होने का कारण बीच में होने वाली जबरदस्त मुनाफाखोरी है। थोक मंडी से जो सब्जी 40 रुपये किलो के दाम पर बाहर जा रही है वो उपभोक्ता को सीधे 100 रुपये किलो बेची जा रही है। सस्ती सब्जियों के नाम पर बैंगन, लौकी, गिलकी, टिंडा और ककड़ी जैसी सब्जियां है। इनमें भी बैंगन-लौकी को छोड़ बाकी सब्जियां 50 रुपये किलो से ज्यादा दाम पर ही है।

 

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