सवार्थ सिद्धि योग में मां दुर्गा स्वरुप कन्याओं का पूजन, कटेंगे हर कष्ट
मां
दुर्गा
की
आराधना
सही
मायने
में
प्रकृति
या
नारी
के
सभी
गुणों
की
ही
आराधना
है।
कन्या
पूजन
इसका
एक
उत्तम
माध्यम
है।
देवी
भागवत्
और
भविष्य
पुराण
के
अनुसार
मां
दुर्गा
का
पूजन
कन्या
पूजन
के
बिना
अधूरा
माना
जाता
है।
नवरात्र
व्रत
का
समापन
कन्या
पूजन
से
ही
पूर्ण
माना
जाता
है।
देखा
जाएं
तो
प्रत्येक
पूजा
पद्धति
में
एक
शब्द
‘प्रतिगृह्यताम’
आता
है,
जिसका
संबंध
मनुष्य
की
अपेक्षा
से
है।
मनुष्य
ईश्वर
से
निवेदन
करता
है
कि
प्रभु
मैं
आपको
एक
निश्चित
वस्तु
अर्पित
कर
रहा
हूं,
उसके
बदले
आप
मुझे
मेरा
मनचाहा
प्रदान
करें।
इसी
तरह
नवरात्र
में
एक
विशेष
दिन
शास्त्रों
में
कन्या
के
विभिन्न
रूपों
को
भोग
अर्पित
करने
का
है।
इस
कर्म
से
साधक
की
सभी
इच्छाएं
पूरी
होती
है।
यही
वजह
है
कि
नवरात्र
में
जितना
दुर्गा
पूजन
का
महत्व
है,
उतना
ही
कन्या
पूजन
का
भी
महत्व
है।
ज्योतिषाचार्यो
के
अनुसार,
इस
बार
अष्टमी
युक्त
नवमी
और
नवमी
युक्त
दशमी
का
विशेष
संयोग
है.
पंचांग
के
अनुसार,
अष्टमी
का
व्रत
11 अक्टूबर
रखना
अधिक
शुभ
होगा.
इसी
दिन
सुबह
06ः52
बजे
के
बाद
हवन
आदि
भी
कर
सकते
हैं.
खास
यह
है
कि
इस
बार
कन्या
पूजन
के
अवसर
पर
3 शुभ
योग
का
निर्माण
हो
रहा
है.
इस
समय
सुकर्मा
योग,
रवि
योग
और
सर्वार्थ
सिद्धि
योग
का
संयोग
है.
हालांकि,
कन्या
पूजा
के
समय
केवल
सुकर्मा
योग
ही
प्रकट
होगा,
जिसे
पूजा-पाठ
और
अन्य
मांगलिक
कार्यों
के
लिए
अत्यंत
शुभ
माना
जाता
है.
11 अक्टूबर
को
कन्या
पूजन
करना
उत्तम
रहेगा।
प्रातःकाल
ब्रम्ह
मुहूर्त
: 04ः39
से
05 बजकर
30 मिनट
तक
है।
अभिजीत
: महूर्त
11ः44
से
12ः31
तक
है।
जबकि
विजय
मुहूर्त
: 02ः0
से
02ः47
तक
है
और
गोधूली
मुहूर्त
: 05ः54
से
07ः08
तक
है
सुरेश गांधी
भारत ही नहीं
पूरी दुनिया जहान में शारदीय
नवरात्र की धूम है।
हर कोई मां की
आराधना में लीन है।
कोई पूरे नौ दिन
का व्रत है, तो
कोई चढ़ती-उतरती। कहते
हैं इन नौ दिनों
तक मां दैवीय शक्ति
के रुप में मनुष्य
लोक में भ्रमण के
लिए आती है। इन
दिनों की गई उपासना-आराधना से देवी भक्तों
पर प्रसन्न होती है। मान्यताओं
के अनुसार, कन्याओं को मां दुर्गा
का प्रतीक माना जाता है.
शास्त्रों में भी नवरात्र
में कन्या पूजन को सबसे
ज्यादा महत्वपूर्ण और शुभ माना
गया है। कन्या पूजन
करने से मां दुर्गा
अत्यंत प्रसन्न होती हैं और
भक्तों को सुख-समृद्धि
का आशीर्वाद प्रदान करती हैं. मान्यता
है कि दो वर्ष
से दस वर्ष की
आयु की विधि-विधान
से पूजन कर नौ
कन्याओं को भोजन कराने
से समस्त दोषों का नाश होता
है। अर्थात जो साधक अष्ठमी
या नवमी को कन्या
भोज कराता है उसकी न
केवल पुण्य फल बल्कि माता
का भी आशीर्वाद प्राप्त
होती है। सभी मनोकामनाएं
पूरी होती हैं।
नवरात्र के नौ दिनों
तक मां दुर्गा के
पूजन-वंदन व्रत की
समाप्ति कन्या पूजन के साथ
की जाती है। मान्यता
है कि होम, जप
और दान से देवी
इतनी प्रसन्न नहीं होतीं, जितनी
कन्या पूजन से। ऐसा
कहा जाता है कि
विधिवत, सम्मानपूर्वक कन्या पूजन से व्यक्ति
के हृदय से भय
दूर हो जाता है।
साथ ही उसके मार्ग
में आने वाली सभी
बाधाएं दूर हो जाती
हैं। उस पर मां
की कृपा से कोई
संकट नहीं आता। मां
दुर्गा उस पर अपनी
कृपा बरसाती हैं। कई भक्त
नवरात्रि के पहले दिन
से प्रतिदिन एक कन्या को
भोजन कराते हैं, जबकि कुछ
लोग अष्टमी और नवमी के
दिन कन्या पूजन करते हैं.
लेकिन पंचांग के मुताबिक इस
साल अष्टमी और नवमी तिथि
एक ही दिन पड़
रही है. इसलिए कन्या
पूजन भी दो दिन
नहीं बल्कि एक ही दिन
किया जाएगा.
दरअसल अष्टमी तिथि की शुरुआत
10 अक्टूबर को 12 बजकर 31 मिनट से होगी
और अगले दिन यानी
11 अक्टूबर को दोपहर 12 बजकर
6 मिनट तक रहेगी. दोपहर
में ही अष्टमी तिथि
खत्म होने के बाद
नवमी तिथि लग जाएगी.
ऐसे में अष्टमी-नवमी
दोनों 11 अक्टूबर को ही होगा.
उदयातिथि मान्य होने के कारण
कन्या पूजन भी शुक्रवार
11 अक्टूबर को ही किया
जाएगा, क्योंकि इस दिन अष्टमी
नवमी दोनों रहेगी. ज्योतियियों के मुताबिक महाष्टमी
के दिन कन्या पूजन
11 अक्टूबर को सुबह 07ः47
बजे से 10ः41 बजे
तक किया जा सकता
है. इसके पश्चात, दोपहर
12ः08 बजे से 1ः35
बजे तक भी पूजन
किया जा सकता है.
राहुकाल का समय दोपहर
10ः41 बजे से 12ः08
बजे तक रहेगा. नवमी
तिथि 11 अक्टूबर को दोपहर से
शुरू होगी और 12 अक्टूबर
की सुबह 10ः57 बजे समाप्त
होगी. सनातन में उदिया तिथि
में ही पर्व मनाने
से उसका संपूर्ण फल
प्राप्त होता है. ऐसे
में नवमी पर कन्या
पूजन के लिए 12 अक्टूबर
की सुबह 10ः57 बजे से
पहले कन्याओं का पूजन करना
श्रेष्ठ रहेगा. 10ः58 बजे से
दशमी तिथि प्रारंभ हो
जाएगी
कन्या पूजन का महत्व
कन्या पूजन के अवसर
पर घर में विशेष
व्यंजन जैसे पूरी, छोले,
चना और हलवा तैयार
किए जाते हैं. 2 से
8 वर्ष की 7 या 11 कन्याओं
और एक लड़के को
आमंत्रित किया जाता है.
सभी कन्याओं की विधिपूर्वक पूजा
की जाती है. उन्हें
सम्मानपूर्वक भोजन कराया जाता
है. इसके साथ ही
एक बटुक भी कन्याओं
के साथ होना चाहिए
जो भैरव का रूप
माना जाता है। अंत
में, प्रत्येक कन्या को धन और
उपहार देकर विदाई दी
जाती है. कन्या पूजन
के दौरान कन्याओं को पूरी, चना,
हलवा और नारियल का
भोग खिलाएं. फिर सामर्थ्यनुसार भेंट
दें. कन्याओं को विदा करने
से उनके पैर जरूर
छूएं और उनके हाथों
से अक्षत के कुछ दाने
अपने घर पर छिड़काएं.
धार्मिक मान्यता है कि नवरात्रि
में छोटी-छोटी कन्याओं
का कन्या पूजन करने से
मां दुर्गा प्रसन्न होती हैं और
उनकी विशेष कृपा प्राप्त होती
है. कन्या पूजन करने से
घर पर सुख-समृद्धि
का सदा वास होता
है.
कन्याओं के विभिन्न रुप
सनातन में 2 वर्ष की कन्या
को कुमारी, तीन वर्ष की
कन्या-त्रिभूर्ति, चार वर्ष की
कन्या-कल्याणी, पांच वर्ष की
कन्या-रोहिणी, छह वर्ष की
कन्या-काली, 7 वर्ष की कन्या-चण्डिका, 8 वर्ष की कन्या
शाम्भवी एवं 9 वर्ष की कन्या-दुर्गा, 10 वर्ष की कन्या-सुभद्रा के नाम से
उल्लेखित है. इनकी पूजा
अर्चना करने से मनोवांक्षित
फल मिलता है.कन्या भोजन
में दो से लेकर
दस वर्ष की कन्याओं
को भोजन कराना सर्वश्रेष्ठ
माना गया है। दो
वर्ष की कन्या को
कौमारी कहा जाता है।
ऐसी मान्यता है कि इनके
पूजन से दुख और
दरिद्रता समाप्त हो जाती है।
तीन वर्ष की कन्या
त्रिमूर्ति मानी जाती है।
त्रिमूर्ति के पूजन से
धन-धान्य का आगमन और
संपूर्ण परिवार का कल्याण होता
है। चार वर्ष की
कन्या कल्याणी नाम से संबोधित
की जाती है। कल्याणी
की पूजा से सुख-समृद्धि मिलती है। पांच वर्ष
की कन्या ‘रोहिणी‘ कही जाती है।
रोहिणी के पूजन से
व्यक्ति रोग-मुक्त होता
है। छह वर्ष की
कन्या को ‘कालिका‘ कहा
जाता है। कालिका की
अर्चना से विद्या और
राजयोग की प्राप्ति होती
है। सात वर्ष की
कन्या को ‘चण्डिका‘ कहा
जाता है। चण्डिका की
पूजा-अर्चना और भोजन कराने
से ऐश्वर्य मिलता है। आठ वर्ष
की कन्या को ‘शाम्भवी‘ कहा
जाता है। शाम्भवी की
पूजा-अर्चना से लोकप्रियता प्राप्त
होती है। नौ वर्ष
की कन्या ‘दुर्गा‘ की अर्चना से
शत्रु पर विजय मिलती
है। तथा असाध्य कार्य
सिद्ध होते हैं। दस
वर्ष की कन्या ‘सुभद्रा‘
कही जाती है। जिनके
पूजन से मनोरथ पूर्ण
होते हैं और सुख
मिलता है। इन नौ
कन्याओं के अलावा इनके
साथ एक बालक को
भी बैठाने का प्राविधान है।
यदि आप सामर्थ्यवान हैं,
तो नौ से ज्यादा
या नौ के गुणात्मक
क्रम में भी जैसे
18, 27 या 36 कन्याओं को भी आमंत्रित
कर सकते हैं। यदि
कन्या के भाई की
उम्र 10 साल से कम
है तो उसे भी
आप कन्या के साथ आमंत्रित
कर सकते हैं। यदि
गरीब परिवार की कन्याओं को
आमंत्रित कर उनका सम्मान
करेंगे, तो इस शक्ति
पूजा का महत्व और
भी बढ़ जाएगा। यदि
सामर्थ्यवान हैं, तो किसी
भी निर्धन कन्या की शिक्षा और
स्वास्थ्य की यथायोग्य जिम्मेदारी
वहन करने का संकल्प
लें। कन्या पूजन के समय
पूरे परिवार को एकत्र रहना
चाहिए।
सही अर्थो में हो सम्मान
कन्याओं को देवी का
रूप माना गया है।
पर मां आदिशक्ति की
सच्ची आराधना सिर्फ नवरात्र में कन्या पूजन
मात्र से संभव नहीं
है। हमें असल जिंदगी
में भी कन्याओं को
उतना ही सम्मान देना
सीखना होगा। तभी सही अर्थो
में मां आदिशक्ति की
पूजा-अर्चना का फल हमें
मिल पाएगा और मां सही
मायने में प्रसन्न होंगी।
अर्थात कन्याओं और महिलाओं के
प्रति हमें अपनी सोच
बदलनी पड़ेगी। देवी तुल्य कन्याओं
का सम्मान करें। इनका आदर करना
ईश्वर की पूजा करने
जितना पुण्य देता है। शास्त्रों
में भी लिखा है
कि जिस घर में
औरत का सम्मान किया
जाता है वहां भगवान
खुद वास करते हैं।
जब कन्या ही नहीं होगी तो कन्या पूजन कैसा!
भारतीय आध्यात्म में शिव को
सत्य और उनकी पत्नी
मां पार्वती को शक्ति का
रूप माना गया है।
एक ओर जहां शिव,
जीवन और मृत्यु के
प्रतीक हैं, वहीं मां
आदिशक्ति इस जीवन और
मृत्यु के मध्य होने
वाली प्रत्येक घटना जैसे बल,
वृद्धि, विकास, रोग मुक्ति, विद्या
प्राप्ति, विवाह, संतान, ऐश्वर्य प्राप्ति आदि की कारक
हैं। भारतीय आध्यात्मिक चिंतन में प्रत्येक नारी
को उसी मां पार्वती
का अंश मात्र माना
गया है, जिससे न
केवल मानव जीवन, बल्कि
प्रकृति भी संचालित होती
है। वैसे भी किसी
भी परिवार में मां, बहन,
पत्नी या बेटी का
नियंत्रण ही होता है,
भले ही वह अप्रत्यक्ष
ही क्यों न हो। ममता,
वात्सल्य, प्रेम और करुणा हर
नारी की शक्ति के
स्त्रोत होते हैं। आज
जब हमारा समाज हर क्षेत्र
में प्रगति कर रहा है
और अंधविश्वास को छोड़ आधुनिकता
की ओर बढ़ने का
हम दावा कर रहे
हैं, ऐसे समय में
भी लगभग प्रतिदिन भ्रूण
हत्या व बलातकार जैसी
खबरें सामने आती हैं। दहेज
प्रथा के कारण लड़कियों
की हत्या हो रही है।
देवी के नौ रूपों
की पूजा-अर्चना के
बाद भी वास्तविकता कुछ
और ही नजर आती
है।
प्रकृति का रुप है नारी
नारी को प्रकृति
भी माना गया है,
क्योंकि नारी का स्वरूप
ठीक प्रकृति जैसा ही है।
प्रकृति अपने वात्सल्य से
कभी किसी को वंचित
नहीं करती। प्रकृति जननी है, प्रकृति
में अपार धैर्य है,
किसी भी कष्ट को
बिना किसी विरोध के
सह लेने की अदम्य
क्षमता है उसमें। अब
यदि प्रकृति के इन गुणों
का महिलाओं की खासियत से
तुलना की जाए, तो
आप पाएंगी कि प्रकृति के
सारे गुण नारी के
भीतर भी समाहित हैं।
ये गुण ही नारी
की असली शक्ति हैं।
इन्हीं गुणों को पहचानकर और
उसका सही क्षेत्र में
इस्तेमाल करने से ही
महिलाएं घर हो या
बाहर, हर जगह अपनी
उपस्थिति और सफलता दर्ज
करवा रही हैं।
कन्याओं के प्रति बढ़ता अपराध अफसोसजनक
कहा जा सकता
है जब समाज कन्या
को इस संसार में
आने ही नहीं देगा
तो फिर पूजन करने
के लिये वे कहां
से मिलेंगी। यह आश्चर्य नही
ंतो और क्या है
कि जहां कन्या को
देवी के रूप में
पूजा जाता है, वहां
आज सर्वाधिक अपराध कन्याओं के प्रति ही
हो रहे हैं। यूं
तो जिस समाज में
कन्याओं को संरक्षण, समुचित
सम्मान और पुत्रों के
बराबर स्थान नहीं हो उसे
कन्या पूजन का कोई
नैतिक अधिकार नहीं है। लेकिन
यह हमारी पुरानी परंपरा है जिसे हम
निभा रहे हैं और
कुछ लोग शायद ढो
रहे हैं। जब तक
हम कन्याओं को यथार्थ में
महाशक्ति, यानि देवी का
प्रसाद नहीं मानेंगे, तब
तक कन्या-पूजन नितान्त ढोंग
ही रहेगा। सच तो यह
है कि शास्त्रों में
कन्या-पूजन का विधान
समाज में उसकी महत्ता
को स्थापित करने के लिये
ही बनाया गया है। उम्मीद
है आस्था और हमारी परंपरा
का नवरात्र पर्व समाज में
कन्याओं की गिरती संख्या
की तरफ भी लोगों
का ध्यानाकर्षित करेगा। आने वाले समय
में देश के अंदर
कन्या भ्रूण हत्या, बलातकार जैसे मामलों में
कमी आएगी। महिलाओं की सुरक्षा में
इजाफा होगा।
संकल्प लेने का है नवरात्र
नवरात्रि के नौ दिन
इस ब्रह्मांड में आनंदित रहने
का एक अवसर है।
ब्रह्मांड तीन मौलिक गुणों
सत, रज और तम
से बना है। हमारा
जीवन भी इन्हीं गुणों
से संचालित है। कहीं न
कहीं हमारे जीवन में इनका
समावेश है। अगर देखें
तो नवरात्रि के पहले तीन
दिन तमोगुण के लिए हैं।
दूसरे तीन दिन रजो
गुण के और आखिरी
तीन दिन सत्व गुण
के लिए हैं। हमारी
चेतना इन तमोगुण और
रजोगुण के बीच बहती
हुई सतोगुण के आखिरी तीन
दिन में खिल उठती
है। नवरात्र की यह यात्रा
हमारे बुरे कर्मों को
खत्म करने के लिए
है। यही वह उत्सव
है, जिसके द्वारा महिषासुर(जड़ता) शुंभ-निशुंभ ( गर्व
और शर्म) और मधु कैटभ
(अत्यधिक राग द्वेष) को
नष्ट किया जा सकता
है। वे एक दूसरे
के पूर्णतः विपरीत है। फिर भी
एक एक दूसरे के
पूरक हैं। जड़ता, नकारात्मकता
और मनोविकृतियां रक्तबीजासुर की तरह है।
कुतर्क वितर्क और धुंधली दृष्टि
को केवल प्राण और
जीवन शक्ति ऊर्जा के स्तर को
ऊपर उठाकर ही दूर किया
जा सकता है। नवरात्रि
इसके लिए अवसर देता
है। आपके अंदर ऊर्जा
का संचार करता है। इस
स्थूल संसार के भीतर ही
सूक्ष्म संसार समाया हुआ है। लेकिन
उनके बीच अलगाव की
भावना महसूस होना ही द्वंद
का कारण है। एक
ज्ञानी के लिए पूरी
सृष्टि जीवंत है। देवी मां
या शुद्ध चेतना ही सब नाम
और रूप में व्याप्त
है। हर नाम और
हर रूप में एक
ही देवत्व को जानना ही
नवरात्रि है।
कन्या पूजन की विधि
पूजन से एक
दिन पूर्व ही कन्याओं को
उनके घर जाकर निमंत्रण
दें। गृह प्रवेश पर
कन्याओं का पूरे परिवार
के साथ पुष्प वर्षा
से स्वागत करें। नव दुर्गा के
सभी नौ नामों के
जयकारे लगाएं। इसके बाद इन
कन्याओं को आरामदायक और
स्वच्छ जगह बैठाएं। सभी
के पैरों को दूध या
स्वच्छ पानी से भरे
थाल या थाली में
रखकर अपने हाथों से
धोएं। कन्याओं के माथे पर
अक्षत, फूल या कुंकुम
का टीका लगाएं। उनका
श्रृंगार करें। फिर मां भगवती
का ध्यान करके इन देवी
रूपी कन्याओं को इच्छा अनुसार
भोजन कराएं। भोजन में मिष्ठान
और फल शामिल करना
न भूलें। भोजन के बाद
कन्याओं को अपने सामर्थ्य
के अनुसार दक्षिणा, उपहार दें और उनके
पुनः पैर छूकर आशीष
लें।
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