Friday, 1 November 2024

अकाल मृत्यु से मुक्ति का पर्व है भाईदूज

अकाल मृत्यु से मुक्ति का पर्व है भाईदूज 

भाईदूज भाई-बहन के पवित्र रिश्ते, अटूट बंधन, प्रेम, विश्वास का प्रतीक है. इस दिन भाई अपनी बहन के घर जाता है. बहन अपने भाई के माथे पर तिलक हाथ में रक्षा सूत्र बांधकर उसकी लंबी उम्र की प्रार्थना करती है. इससे भाई को अकाल मृत्यु से मुक्ति प्राप्त होती है. बहनें अपने भाइयों के सुख-समृद्धि, खुशहाली, सुखद जीवन, स्वास्थ्य की कामना करती हैं. इस दिन भाई अपनी प्यारी बहना के लिए तोहफे भी साथ ले जाते हैं. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भाईदूज मृत्यु के देवता यमराज से है, इसलिए इसे यम द्वितीया कहा जाता है. कहते है भगवान श्री कृष्ण ने नरकासुर का वध करके अपनी बहन सुभद्रा के घर आए. भगवान ने वहां भोजन किया और सुभद्रा ने उन्हें तिलक किया. तभी से यह पर्व मनाया जा रहा है। इस दिन व्यापारी वर्ग चित्रगुप्त पूजा भी करते हैं. अमावस्या तिथि के कारण इस बार 2 नवंबर की रात 821 पर शुरू हो जायेगी और इसका समापन 3 नवंबर को रात 1005 पर होगा. इसलिए ऐसे में उदया तिथि के अनुसार, भाई दूज 3 नवंबर को मनाया जाएगा. भाई दूज पूजा का शुभ मुहूर्त 3 नवंबर सुबह 11 बजकर 45 मिनट से लेकर 1 बजकर 30 मिनट तक रहेगा. तिलक लगाने का समय दोपहर 110 मिनट से दोपहर 322 मिनट तक है

                                        सुरेश गांधी

दीवाली के ठीक दो दिनों बाद पड़ने वाला त्योहार भाई दूज का अपना एक विशेष महत्व है। यह भाईयों के प्रति बहनों की श्रद्धा और विश्वास का पर्व है। इस दिन बहनें अपने भाईयों के माथे पर तिलक लगाकर भगवान से उनकी लंबी उम्र और जीवन में सदैव खुशी का माहौल छाया रहे, की दुआ करती हैं। बदले में भाई अपनी बहन कि रक्षा का वचन देता है। इस दिन भाई का अपनी बहन के घर भोजन करना विशेष रूप से शुभ होता है। इस दिन यम देव की पूजा भी की जाती है। कार्तिक कृष्णपक्ष की त्रयोदशी यानी धनतेरस से ही यम की शक्ति का पृथ्वीमंडल में आविर्भाव होने लगता है और यह शक्ति यम द्वितीया को अपने चरम पर होती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार भी यम द्वितीया के दिन स्वयं यमराज इस पृथ्वी पर अपनी बहन यमी (यमुना) से मिलने आते हैं। यम को काल धर्मराज भी कहा जाता है और वे मृत्यु न्याय के देवता हैं। मृत्यु के बाद मनुष्यों को उनके कर्मों के अनुसार फल देने का दायित्व भी इन्हीं का है, इसलिए पृथ्वीमंडल में इनकी प्रत्यक्ष उपस्थिति के समय साधकों को अपने मानसिक, वाचिक शारीरिक कर्मों के प्रति विशेष सावधान रहना चाहिए। यम ऊर्जाओं के वातावरण में व्याप्त होने के कारण इस समय किये गए अच्छे-बुरे कर्मों का फल कई गुना त्वरित गति से प्राप्त होता है। मान्यता है कि इस दिन जो यम देव की उपासना करता है, उसे असमय मृत्यु का भय नहीं रहता है। 

कार्तिक शुक्ल द्वितीया को यम का पूजन किया जाता है, इससे यहयमद्वितीयाकहलाती है। इस दिन व्यापारी मसिपात्रदि का पूजन करते हैं, इस कारण इसेकलमदानपूजाभी कहते हैं और इस दिन भाई अपनी बहन के घर भोजन करते हैं, इसलिये यहभइया दूजनाम से विख्यात है। इस दिन यमुना में स्नान, दीपदान आदि का महत्व है। इस दिन बहनें, भाइयों के दीर्घजीवन के लिए यम की पूजा करती हैं और व्रत रखती हैं। कहा जाता है कि जो भाई इस दिन अपनी बहन से स्नेह और प्रसन्नता से मिलता है, उसके घर भोजन करता है, उसे यम के भय से मुक्ति मिलती है। इसी दिन सबके पाप-धर्म का लेखा-जोखा रखने वाले भगवान चित्रगुप्त की पूजा की जाती है। विशेषकर कायस्थ समाज स्वयं को चित्रगुप्त के वंशज मानते हुए उनकी पूजा धूमधाम से करता है। मान्यता है कि इसी दिन यम देव अपनी बहन यमुना के बुलावे पर उनके घर भोजन करने आए थे. भगवान सूर्य नारायण की पत्नी का नाम छाया है। 

उन्हीं की सन्तति हैं यमराज तथा यमुना। यमुना, यमराज से बड़ा स्नेह करती थीं। वे उनसे बराबर निवेदन करतीं कि उनके घर आकर भोजन करें, लेकिन अपने कार्य में व्यस्त यमराज बात को टालते रहते थे। कात्तिर्क शुक्ल द्वितीया का दिन आया। यमुना ने उस दिन यमराज को भोजन का निमंत्रण देकर उन्हें अपने घर आने के लिए आग्रह किया। यमराज ने सोचा- मैं तो प्राणों को हरने वाला हूं। मुझे कोई भी अपने घर नहीं बुलाना चाहता। बहन जिस सद्भाव से मुझे बुला रही है, उसका पालन करना मेरा धर्म है। यमराज ने बहन के घर जाने का निर्णय कर लिया। यमराज को अपने घर देखकर यमुना की खुशी का ठिकाना रहा। यमुना ने उन्हें स्नान कराकर पूजन के बाद अनेक व्यंजन परोसकर भोजन कराया। यमुना द्वारा किए गए आतिथ्य से प्रसन्न होकर यमराज ने बहन को वर मांगने को कहा। यमुना ने कहा- ‘भद्र, आप हर वर्ष इसी दिन मेरे घर आकर भोजन करें। मेरी तरह जो बहन इस दिन अपने भाई का आदर-सत्कार करके टीका लगाये, उसे तुम्हारा भय रहे।यमराज नेतथास्तुकहकर यमुना को अमूल्य वस्त्रभूषण देकर यमलोक की राह ली। तभी से इस पर्व की परंपरा बनी।

मान्यता है कि जो भाई आज के दिन यमुना में स्नान करके पूरी श्रद्धा से बहनों के आतिथ्य को स्वीकार करते हैं, उन्हें यम का भय नहीं रहता। इसलिए भैयादूज को यमराज तथा यमुना का पूजन किया जाता है। इस दिन भाई-बहन दोनों के एक साथ यमुना नदी में स्नान करने का बड़ा महत्व है। यमुना भगवान श्रीकृष्ण की आठ प्रमुख रानियों में से एक हैं और श्रीकृष्ण से उनके इस सामीप्य से यमुना को मनुष्यों को कर्म-बंधन से मुक्त करने की शक्ति प्राप्त है। वास्तव में यमुना कृष्ण अलग नहीं हैं, एक ही हैं। भाईदूज के दिन जब साधक पुरुष (भाई) का पूजन एक पूज्या स्त्री (बहन) द्वारा किया जाता है तो दोनों के मन में पवित्रता का संचार होता है। इस पवित्र प्रेम का प्रभाव उनके पूरे समाज के मन पर पड़ता है। इस दिन समाज के दोनों वर्ग पवित्रता की आध्यात्मिक यमुना में सराबोर होकर पवित्र कर्मों में प्रवृत्त होते रहे, यही इस त्योहार का वास्तविक उद्देश्य है। इस दिन चावल को पीसकर एक लेप भाईयों के दोनों हाथों में लगाया जाता है। कुछ स्थानों में भाई के हाथों में सिंदूर लगाने की भी परम्परा देखी जाती है। भाई के हाथों में सिंदूर और चावल का लेप लगाने के बाद उस पर पान के पांच पत्ते, सुपारी और चांदी का सिक्का रखा जाता है, उस पर जल उड़ेलते हुए भाई की दीर्घायु के लिये मंत्र बोला जाता है। इस दिन गणेश जी का, यम का, चित्रगुप्त का, यमदूतों का और यमुना का पूजन करते हैं। चित्रगुप्त की प्रार्थना करके शंख, तांबे के अर्घ्यपात्र में अथवा अंजली में जल, पुष्प और गन्धाक्षत से यमराज कोअर्घ्यदेते हैं।

पूजा विधि

भाई दूज पर्व पर बहनें प्रातः स्नान कर, अपने ईष्ट देव का पूजन करती है। चावल के आटे से चौक तैयार करती हैं। इस चौक पर भाई को बैठाया जाता है। उनके हाथों की पूजा की जाती है। भाई की हथेली पर बहनें चावल का घोल लगाती है। उसके ऊपर सिन्दूर लगाकर कद्दु के फूल, सुपारी, मुद्रा आदि हाथों पर रख कर धीरे धीरे हाथों पर पानी छोड़ा जाता है। कहीं-कहीं इस दिन बहनें अपने भाइयों के माथे पर तिलक लगाकर उनकी आरती उतारती हैं। फिर हथेली में कलावा बांधती हैं। भाई का यमराज के वरदान अनुसार, जो व्यक्ति इस दिन यमुना में स्नान करके, यम की पूजा करेगा, मृत्यु के बाद उसे यमलोक में नहीं जाना पड़ेगा. यमुना को सूर्य देव की पुत्री माना जाता है. ऐसी मान्यता हैं कि यमुना देवी सभी कष्टों को दूर करती हैं, इसलिए यम द्वितीया के दिन यमुना नदी में स्नान करना और यमुना-यमराज की पूजा करना फलदायी माना जाता है.

गोवर्धन पूजा

यह पर्व दीपावली के अगले दिन मनाया जाता है. इसे अन्नकूट पूजा भी कहा जाता है. तिथि के अनुसार, इस साल गोवर्धन पूजा 2 नवंबर को है। गोवर्धन पूजा की प्रतिपदा तिथि की शुरुआत 1 नवबंर यानी आज शाम को 6 बजकर 16 मिनट पर शुरू होगी और तिथि का समापन 2 नवंबर यानी कल रात 8 बजकर 21 मिनट पर होगा..उदयातिथि के अनुसार, इस बार गोवर्धन और अन्नकूट का त्योहार 2 नवंबर को ही मनाया जाएगा. - एक मुहूर्त सुबह 6 बजकर 34 मिनट से लेकर सुबह 8 बजकर 46 मिनट तक रहेगा. दूसरा मुहूर्त दोपहर 3 बजकर 23 मिनट से लेकर शाम 5 बजकर 35 मिनट तक रहेगा. तीसरा मुहूर्त शाम 5 बजकर 35 मिनट से लेकर 6 बजकर 01 मिनट तक रहेगा. मुख्यतः ये प्रकृति की पूजा है, जिसका आरंभ भगवान कृष्ण ने किया था. इस दिन प्रकृति के आधार के रूप में गोवर्धन पर्वत की पूजा की जाती है और समाज के आधार के रूप में गाय की पूजा की जाती है. ये पूजा ब्रज से आरंभ हुई थी और धीरे धीरे भारत में प्रचलित हो गई। कहते है, इंद्र की पूजा ना करके भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत की पूजा करवाई. जब ब्रज जलमग्न हो गया तो भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को उठा कर के ब्रजवासियों की रक्षा की थी.

गोवर्धन पूजन विधि

इस दिन सबसे पहले शरीर पर तेल की मालिश करके स्नान करें. इसके बाद घर के मुख्य द्वार पर गाय के गोबर..से गोवर्धन पर्वत की आकृति बनाएं. साथ ही उस पर्वत को घेरकर आसपास ग्वालपाल, पेड़ और पौधों की आकृति बनाएं. उसके बाद गोवर्धन के पर्वत के बीचोंबीच भगवान कृष्ण की मूर्ति या तस्वीर लगाएं. इसके बाद गोवर्धन पर्वत और भगवान कृष्ण की पूजा करें. पूजन करने के बाद अपनी मनोकामनाओं की प्रार्थना करें. इसके बाद भगवानकृष्ण को पंचामृत और पकवान का भोग लगाएं. ऐसी मान्यता है कि इस दिन जो लोग गोवर्धन पर्वत की प्रार्थना करते हैं, उन लोगों की संतान से संबंधित समस्याएं समा.प्त हो जाती हैंइस दिन श्रद्धालु तरह-तरह की मिठाइयों और पकवानों से भगवान कृष्ण को भोग लगाते हैं. यही नहीं, इस दिन 56 भोग बनाकर भगवान कृष्ण को अर्पित किये जाते हैं और इन्हीं 56 तरह के पकवानों को अन्नकूट बोला जाता है. इस दिन मंदिरों में भी अन्नकूट का आयोजन किया जाता है। कहते है भगवान कृष्ण ने स्वंय कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा के दिन 56 भोग बनाकर गोवर्धन पर्वत की पूजा करने का आदेश दिया दिया था. तभी से गोवर्धन पूजा की प्रथा आज भी कायम है और हर साल गोवर्धन पूजा और अन्नकूट का त्योहार मनाया जाता है.

 

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