अस्ताचलगामी भगवान सूर्य को अर्घ्य : हर किरण से बरसा आशीष
देश भर में
छठ महापर्व की धूम मची
हुई है. बिहार, झारखंड,
यपी, एमपी, राजस्थान, दिल्ली व मुंबई आदि
के घाटों पर गुरुवार को
छठ
पूजा
के
दौरान
डूबते
सूर्य
को
अर्ध्य
देने
के
लिए
व्रतयिं
की
भारी
भीड़
जुटी.
धर्म
एवं
आस्था
की
नगरी
काशी
हो
या
प्रयागराज
से
लेकर
हरिद्वार
तक
हर
जगह
छठ
की
धूम
है।
बारी
जब
ढलते
सूर्य
को
अर्घ
देने
की
आयी
तो
घाटों
पर
चारों
तरफ
आशीर्वाद
रूपी
किरणें
ही
बरसती
दिखी।
घाट
पर
हर
कोई
भगवान
भास्कर
को
नमन
करते
दिखा।
व्रती
महिलाएं
भगवान
सूर्य
की
उपासना
कर
अपने
संतान
की
लंबी
उम्र,
समृद्धि
व
परिवार
की
खुशियों
की
मन्नतें
मांगती
दिखी।
हर
जुबान
पर
छठ
मईया
के
गीत
ने
वातावरण
को
भक्तिमय
बना
दिया।
या
यूं
कहे
पूरा
देश
छठ
के
रंग
में
सराबोर
नजर
आया।
किसी
के
माथे
पर
सूप-दउरा
किसी
के
कांधे
पर
ईख।
हर
तरफ
उत्साह
का
माहौल
रहा।
गंगा
से
लेकर
नदी,
तालाबों,
कुंडो
के
किनारों
पर
आस्था
का
अलौकिक
नजारा
देखा
गया।
बड़ी
संख्या
में
लोग
घाटों
पर
पहुंचे।
8 नवंबर
शुक्रवार
को
उदीयमान
सूर्य
को
अर्घ्य
दिया
जाएगा।
इसके
बाद
व्रत
का
पारण
और
समापन
होगा
सुरेश गांधी
बाट जे पूछेला
बटोहिया, बहंगी केकरा के जाय..., कांच
ही बांस के बंहगिया,
बहंगी लचकत जाए... सूर्योपासना
के पावन पर्व छठ
के मौके पर देश
की फीजा में यह
छठ का पारंपरिक गीत
रच बस गया। गुरुवार
को अस्ताचगामी सूर्य को पहला अर्घ्य
देने के लिए नदी
घाट व सरोवरों की
ओर बढते कदम और
हर जुबान पर छठ मईया
के गीत ने वातावरण
को भक्तिमय बना दिया। शहर
से लेकर देहात तक
छठ के रंग में
सराबोर नजर आया। हर
तरफ उत्साह का माहौल है।
गंगा हो नदी, तालाब
हो या कुंड के
किनारे आस्था का अद्भुत नजारा
देखा गया। बड़ी संख्या
में लोग गंगा व
नदी घाट पहुंचे और
छठ पूजन कर छठ
मैया के गीत गाते
हुए व्रती महिलाओं ने दीप जलाकर
अस्तलाचलगामी सूर्य को अर्घ्य प्रदान
किया।
इस तरह पूरे
असीम श्रद्धा व आस्था के
साथ श्रद्धालुओं ने भागवान भास्कर
को पहला अर्घ्य अर्पित
किया और अपने संतान
की लंबी उम्र, समृद्धि
व परिवार की खुशियों की
मन्नत मांगी। देखा जाएं तो
छठ डूबते सूर्य की आराधना का
पर्व है। डूबता सूर्य
इतिहास होता है, और
कोई भी सभ्यता तभी
दीर्घ जीवी होती है
जब वह अपने इतिहास
को पूजे। अपने इतिहास के
समस्त योद्धाओं को पूजे और
इतिहास में अपने विरुद्ध
हुए सारे आक्रमणों और
षड्यंत्रों को याद रखे।
छठ उगते सूर्य की
आराधना का भी पर्व
है। उगता सूर्य भविष्य
होता है, और किसी
भी सभ्यता के यशस्वी होने
के लिए आवश्यक है
कि वह अपने भविष्य
को पूजा जैसी श्रद्धा
और निष्ठा से सँवारे... हमारी
आज की पीढ़ी यही
करने में चूक रही
है, पर उसे यह
करना ही होगा..क्योकि
यह दिन, भगवान सूर्य
की उपासना करते हुए प्रकृति
के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त
करने का अनुपम उदाहरण
है।
शुक्रवार को महिलाओं द्वारा
उगते सूर्य को अर्घ्य दिया
जाएगा। इसके साथ ही
चार दिवसीय छठ महापर्व का
समापन होगा। घाटों पर सुबह से
ही आज नजारा आम
दिनों से अलग हट
कर था। दोपहर बाद
छठ मइया के भक्त
बड़ी संख्या में डाला उठाए
गंगा समेत जल स्थलों
की ओर कूच कर
गए। सूर्य अस्त होते ही
व्रतियों का सैलाब घाट
पर उमड़ गया। सायंकाल
घाटों पर छठ मइया
के पावन गीत गाते,
गुनगुनाते कमर भर जल
में खड़े होकर भगवान
सूर्य देव के डूबने
का इंतजार किया। आसमान में जैसे ही
डूबते सूर्य की लालिमा छाते
ही सस्वर मंत्रों के बीच श्रद्धालुओं
ने जलांजलि व दुग्धाजंलि समर्पित
कर दिया। व्रतियों ने कमर तक
पानी में पैठ कर
भगवान सूर्य की प्रदक्षिणा भी
की। इस दौरान घाटों
पर अपार भीड़ लगी
रही। ग्रामीण अंचलों में भी व्रतियों
ने जोड़े नारियल, सेव,
केला, घाघरा निंबू, ठेकुंआ से अर्घ्य दिया।
इससे पहले घाटों पर
बच्चों ने जमकर आतिशबाजी
की। फिरहाल, इस धरा पर
ऊर्जा के अक्षय स्रोत
के रूप में भगवान
भास्कर की पूजा की
जाती है। धरती के
समस्त चर-अचर प्राणियों
में सूर्य की ऊर्जा जीवन
का संचार करती है। भारत
के पावन पुण्य वसुंधरा
पर जितने भी देवी-देवताओं
का प्रादुर्भाव हुआ है, उनमें
भगवान दीनानाथ ऐसे अधिष्ठाता हैं,
जो सर्वदृश्य एवं साक्षात हैं।
धरती पर सभी प्राणियों
में जीवन की धारणीयता
के पोषक के रूप
में दुनिया के प्रायः सभी
मुल्कों के लोग किसी
न किसी रूप में
सूर्य देव की पूजा
करते हैं। असीम आस्था
एवं अगाध विश्वास, कठिन
तप एवं कठोर अनुष्ठान
का त्योहार छठ, जिसे कि
‘डाला छठ’ भी कहा
जाता है। यह जीवनदायी
एवं वरदायी भगवान सूर्य की उपासना को
समर्पित होता है।
छठ पर्व लोक
आस्था का प्रमुख सोपान
है- प्रकृति ने अन्न-जल
दिया, दिवाकर का ताप दिया,
सभी को धन्यवाद और
‘तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा’
का भाव. सनातन धर्म
में छठ एक ऐसा
पर्व है, जिसमें किसी
मूर्ति-प्रतिमा या मंदिर की
नहीं, बल्कि प्रकृति यानी सूर्य, धरती
और जल की पूजा
होती है. धरती की
समृद्धि के लिए भक्तगण
सूर्य के प्रति कृतज्ञता
ज्ञापित करते हैं. यह
ऋतु के संक्रमण काल
का पर्व है, ताकि
कफ-वात और पित्त
दोष को नैसर्गिक रूप
से नियंत्रित किया जा सके,
और इसका मूल तत्व
है जल- स्वच्छ जल.
जल यदि स्वच्छ नहीं
है, तो जहर है.
छठ पर्व वास्तव में
बरसात के बाद नदी-तालाब व अन्य जल-निधियों के तटों पर
बह कर आये कूड़े
को साफ करने, प्रयोग
में आने वाले पानी
को स्वच्छ करने, दीपावली पर मनमाफिक खाने
के बाद पेट को
नैसर्गिक उत्पादों से पोषित करने
और विटामिन के स्त्रोत सूर्य
के समक्ष खड़े होने का
वैज्ञानिक पर्व है. बदलते
मौसम में जल्दी सुबह
उठना और सूर्य की
पहली किरण को जलाशय
से टकरा कर अपने
शरीर पर लेना वास्तव
में एक वैज्ञानिक प्रक्रिया
है. व्रतियों के भोजन में
कैल्शियम की प्रचुर मात्रा
होती है, जो हड्डियों
की सुदृढ़ता के लिए अनिवार्य
है. वहीं सूर्य की
किरणों से महिलाओं को
सालभर के लिए जरूरी
विटामिन डी मिल जाता
है. तप-व्रत से
रक्तचाप नियंत्रित होता है और
सतत ध्यान से नकारात्मक विचार
मन-मस्तिष्क से दूर रहते
हैं. छठ पर्व की
वैज्ञानिकता, मूल-मंत्र और
आस्था के पीछे तर्क
को प्रचारित-प्रसारित किया जाना चाहिए.
जल-निधियों की पवित्रता व
स्वच्छता के संदेश को
आस्था के साथ लोक
रंग में पिरोया जाए,
तो यह पर्व अपने
आधुनिक रंग में धरती
का जीवन कुछ और
साल बढ़ाने का कारगर उपाय
हो सकता है.
काशी में डूबते
सूर्य को अर्घ्य देने
के लिए शहर से
लेकर देहात तक में व्रती
अपने घरों से निकल
घाटों पर पहुंचने लगे
थे। व्रतियों के साथ उनके
परिजन सिर में दौरी,
पूजन सामग्री व प्रसाद से
भरा सूप आदि लेकर
छठ मइया के गीत
गाते हुए उत्साह एवं
श्रद्धा के साथ छठ
घाट पर पहुंच रहे
थे। कई व्रती दंड
प्रणाम करते घाट पहुंच
रहे थें। सायंकाल चार
बजे तक मां गंगा
व नदी के घाटों,
तालाबों, कुंडो पर आस्थावानों का
जमावड़ा हो गया। देखते
ही देखते शाम ढलते-ढलते
लाखों संख्या में आस्थावानों की
भीड़ जमा हो गयी।
सभी छठ घाट व्रतियों
से पट गये। अर्घ्य
देने के लिए छठ
घाटों पर भीड़ देखते
ही बन रही थी।
पूरा छठ घाट श्रद्धालुओं
की भीड़ से खचाखच
भरा था। करीब पांच
बजे अर्घ्य अर्पित करने वालों की
संख्या सबसे अधिक रही.
घाटों पर व्रतियों ने
कोशी आदि भरने की
रश्म निभाते हुए छठ माई
की पूजा शुरु कर
दी थीं। जैसे ही
भगवान भास्कर अस्त होने को
दिखे अर्घ्य देने का सिलसिला
शुरु हो गया। परिजनों
व महल्ले वालों ने भी घाट
पर आकर उन्हें अर्घ्य
देने का काम किया.
इसके लिए गंगा घाटों
को भव्य तरीके से
सजाया गया है. कहीं
झिलमिल लाइट्स लगाए गए हैं
तो कहीं घी के
दीए घाट की रौनकता
में चार चांद लगा
रहे हैं. नदी और
तालाबों पर होने वाली
भीड़ से बचने के
लिए कुछ लोगों ने
अब अपने घरों में
ही छठ पूजा करने
लगे हैं. और अपने
घर पर ही अस्ताचलगामी
सूर्य को अर्घ्य दिया.
छठ घाट पर डूबते
सूर्य को अर्घ्य देने
के उपरांत लोग सभी सामग्री
समेट कर लौटने लगे।
इस दौरान सभी लोग कुछ
न कुछ हाथ में
लेकर जाते दिखे.
मान्यता है कि छठ
की सामग्री उठाने से साल पर
स्वास्थ्य की कोई परेशानी
नहीं होती है। बता
दें, छठ व्रति खरना
के बाद से ही
36 घंटे का निर्जला उपवास
करते हैं. शाम चार
बजे के बाद से
ही घाटों पर छठ व्रतियों
ने डूबते हुए सूर्य को
अर्घ्य देना शुरू कर
दिया था. केलवा के
पात पर उगेलन सुरुज
मल झांके ऊंके, हे छठी मइया,
हो दीनानाथ, कांच ही बांस
के बहंगिया, दुखवा मिटाईं छठी मईया, नाथ,
ऊ जे केरवा जे
फरेला खबद से, ओह
पर सुगा मेड़राए, कबहुँ
ना छूटी छठि मइया,
हमहु अरगिया देब, हे छठी
मइया आदि मधुर छठ
गीतों के बीच भगवान
सूर्य की आराधना की
गयी।
गीतों के जरिए शारदा सिन्हा
को दी गयी श्रद्धाजंलि
पहिले पहिल हम कईनी,
छठी मईया व्रत तोहार...छठ का त्योहार
हो और भोजपुरी लोक
गायिका शारदा सिन्हा का ये छठ
गीत न सुना जाए
ये भला कैसे हो
सकता है। यह अलग
बात है कि वो
आज हमारे बीच नहीं है,
लेकिन लोगों ने उनके गीतों
के माध्यम से उन्हें श्रद्धांजलि
अर्पित करते दिखें। वैसे
भी छठी मैया का
ये गाना हर किसी
के भी अंदर छठ
मनाने का एक अलग
ही उत्साह भर देता है।
अनुराधा पौडवाल की आवाज में
गाया गया ’कांच ही
बांस के बहंगिया’ छठ
गीत भी श्रद्धालु छठ
पूजा के दौरान खूब
सुनते हैं। छठ
पूजा समिति शास्त्री घाट कचहरी पर
भाजपा नेता अरविन्द सिंह,
वीएचपी नेता मनीश गप्ता
आदि ने उन्हें इस
मौके पर श्रद्धांजलि अर्पित
की।
मिलती है समृद्धि
सूर्य की पूजा मुख्य
रूप से तीन समय
विशेष लाभकारी होती है। प्रातः,
मध्यान्ह और सायंकाल। प्रातःकाल
सूर्य की आराधना स्वास्थ्य
को बेहतर करती है. मध्यान्ह
की आराधना नाम-यश देती
है. सायंकाल की आराधना सम्पन्नता
प्रदान करती है. अस्ताचलगामी
सूर्य अपनी दूसरी पत्नी
प्रत्यूषा के साथ रहते
हैं, जिनको अर्घ्य देना तुरंत प्रभावशाली
होता है, जो लोग
अस्ताचलगामी सूर्य की उपासना करते
हैं, उन्हें प्रातःकाल की उपासना भी
जरूर करनी चाहिए.
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