आज तय होगा योगी के ‘‘बंटेंगे तो कटेंगे’’ का नारा आगे भी गूंजेगा या नहीं
यूपी के 9 विधानसभाओं के उपचुनाव सहित महाराष्ट्र व झारखंड में 20 नवंबर को वोटिंग होगी। परिणाम अपने पाले में लाने के लिए पक्ष-विपक्ष के नेताओं की जुबानी जंग में खूब शब्दभेदी बाण चलाएं गए। इसमें सर्वाधिक चर्चा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के ‘‘बंटेंगे तो कटेंगे’’ के नारे की रही। जिसकी शुरुआत यूपी से हुई और जिसका प्रयोग हरियाणा के बाद झारखंड और महाराष्ट्र में भी किया जा रहा है। वैसे भी यूपी की 9 सीटों के उपचुनाव को 2027 का सेमीफाइनल कहा जा रहा है. माना जा रहा है कि ये उपचुनाव यूपी की सत्ता के सिंहासन का रास्ता तय करेगा. ये प्री परीक्षा है यूपी के अगले सीएम को लेकर, जहां योगी आदित्यनाथ और अखिलेश के बीच आर-पार की जंग है. लेकिन यह सवाल ना ही चुनाव का नहीं, और ना ही प्रत्याशियों की जीत हार का बल्कि सीधी चुनौती है योगी आदित्यनाथ के ‘‘बंटेंगे तो कटेंगे’’ के नारे की, जो न सिर्फ यूपी में 2027 की दिशा व दशा तय करेगी, बल्कि यह भी तय हो जायेगा कि यह नारा भाजपा के लिए रामबाण बनेगा या फिर यहीं ब्रेक लग जायेगा। क्योंकि इस नारे का परिणाम यह है कि विपक्ष के लिए एक खास वोट बैंक तेजी एकजुट हुआ है। वो भी तब जब वोटिंग से पहले ’बुर्के वाली वोटर्स’ पर भी जुबानी जंग तेज हो गयी है। बता दें, इस नारे की शुरुआत यूपी से हुई और जिसका प्रयोग हरियाणा के बाद झारखंड और महाराष्ट्र में भी किया जा रहा है. झारखंड च महाराष्ट्र को छोड़ दे तो केवल यूपी में ही उपचुनाव की घोषणा के बाद पांच दिन में सीएम योगी ने की 13 रैली, दो रोड शो किया है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे उनके निशाने पर रहे तो अखिलेश यादव की नीति व नीयत पर भी सीएम योगी ने निशाना साधते हुए उन्हें आईना दिखाया.
सुरेश गांधी
फिरहाल, यूपी की 9 विधानसभा सीटों के उपचुनाव के लिए 20 नवंबर को वोटिंग है. खास ये है कि 9 सीटों की लड़ाई योगी बनाम अखिलेश की हो चुकी है, जिसे अगले विधानसभा चुनाव का सेमीफाइनल माना जा रहा है. ऐसे में दोनों ही नेताओं ने उपचुनाव में पूरा जोर लगा दिया है. मतलब साफ है यूपी का यह उपचुनाव किसी के लिए नाक की लड़ाई है, तो किसी के लिए साख की लड़ाई बन चुकी है. कहा जा रहा है कि ये 2027 का सेमीफाइनल है, जो यूपी की सत्ता के सिंहासन का रास्ता तय करेगा. ये प्री परीक्षा है यूपी के अगले सीएम को लेकर, जहां योगी आदित्यनाथ और अखिलेश के बीच आर-पार की जंग है. ये लड़ाई अखिलेश यादव के पीडीए फॉर्मूले की भी है, जिसके दम पर अखिलेश यादव ने लोकसभा चुनाव में बीजेपी से ज्यादा सीटे यूपी में जीती. उप चुनाव में यह प्रयोग सफल रहा तो 2027 तक इसी लाइन पर राजनीति आगे बढ़ेगी. विधानसभा उपचुनाव की नौ सीटों पर 90 प्रत्याशियों के बीच मुकाबला है. सभी नौ सीटों पर बीजेपी-एसपी और बीएसपी के बीच त्रिकोणीय मुकाबला है, लेकिन सीधी टक्कर बीजेपी और एसपी के बीच ही है. अगर 9 सीटों पर 2022 के चुनाव की बात करें 9 सीटों पर 4 सीटें समाजवादी पार्टी के पास हैं. जबकि एनडीए के पास 5 सीटें हैं, जिसमें बीजेपी के पास तीन और सहयोगी दलों के पास दो सीटें हैं.
खास यह है कि बटेंगे कटेंगे के बीच यूपी में उपचुनाव की वोटिंग से पहले बुर्के को लेकर माहौल गर्म है. उत्तर प्रदेश उपचुनाव की रैलियों में सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव व अन्य रैलियों में कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के साथ ही माफिया भी सीएम योगी आदित्यनाथ के निशाने पर रहे. चुनाव की घोषणा के बाद ’अपने यूपी’ में पांच दिन में 13 रैली, दो रोड शो कर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उपचुनाव की जमीन सींची. ’पहले विकास, फिर संवाद’ के फॉर्मूले को तय कर सीएम योगी आदित्यनाथ ने इस उपचुनाव में भी जी-तोड़ मेहनत की. ’मिशन-9’ के तहत गाजियाबाद, खैर, मीरापुर, मझवां, फूलपुर की जीत बरकरार रखने के साथ अन्य सीटों पर कमल खिलाने के लिए उन्होंने कार्तिक व मार्गशीर्ष (अगहन मास) में भी खूब पसीना बहाया.
उन्होंने मतदाताओं से साफ-साफ
कहा कि ’माफिया मुक्त
उत्तर प्रदेश’ की भांति अन्य
राज्यों में भी माफिया
हटाने में सरकार का
साथ दें. माफिया हटाना
है और विकास के
लिए फिर कमल खिलाना
है. सीएम योगी की
यह अपील काफी कारगर
साबित हो रही है.
यूपी में माफिया की
दुर्गति देख मतदाता उनके
आह्वान के साथ उपचुनाव
और आम चुनाव में
फिर कमल खिलाने के
लिए जुट गए हैं.
गाजियाबाद, खैर, मीरापुर, मझवा
और फूलपुर से भाजपा-सहयोगी
दलों के विधायकों के
सांसद बनने के बाद
यह सीटें रिक्त हो गईं. उपचुनाव
में भाजपा ने गाजियाबाद से
संजीव शर्मा, खैर से सुरेंद्र
दिलेर, मझवा से सुचिस्मिता
मौर्य व फूलपुर से
दीपक पटेल को टिकट
दिया है. मीरापुर सीट
से रालोद के मिथिलेश पाल
मैदान में हैं. योगी
आदित्यनाथ ने इन सीटों
पर फिर से कमल
खिलाने के लिए मतदाताओं
का आह्वान किया तो वहीं
यूपी की अन्य सीटों
कटेहरी, करहल, कुंदरकी व सीसामऊ में
भी कमल खिलाने के
लिए काफी पसीना बहाया.
लोकसभा चुनाव के पहले पत्नी डिंपल यादव के उपचुनाव को छोड़ दें तो अमूमन उपचुनावों में अखिलेश यादव अपने ही प्रत्याशियों को मझधार में छोड़ देते थे. प्रत्याशी उनकी राह देखते थे, लेकिन अखिलेश प्रचार में नहीं जाते थे. विधानसभा उपचुनाव की भी बात करें तो कई ऐसे मौके आए, जब सपा प्रत्याशी सहारे की तलाश में रहे. जब उन्हें अपनों की जरूरत पड़ी तो अखिलेश नदारद रहे, लेकिन सीएम योगी ने हर चुनाव में अपनों का हाथ थामे रखा. सीएम योगी की मेहनत देख इस उपचुनाव में अखिलेश को भी आखिरकार अपनों की याद आ ही गई. टिकटों के बंटवारे में जहां अखिलेश ने मुस्लिम कार्ड खेला है तो वहीं बीजेपी ने ओबीसी पर दांव लगाया है. बीजेपी ने सबसे दा 5 उम्मीदवार ओबीसी उतारे हैं. जबकि एक दलित और 3 अगड़ी जाति के हैं. मुस्लिम को बीजेपी ने कोई टिकट नहीं दिया है. वहीं समाजवादी पार्टी ने सबसे ज्यादा 4उम्मीदवार मुस्लिम उतारे हैं. इसके अलावा ओबीसी 3, दलित 2 उम्मीदवार हैं जबकि अगड़ी जाति को एक भी टिकट नहीं दिया है.
मतलब साफ है जिस
ओबीसी जाति जनगणना को
लेकर विपक्ष बीजेपी को घेर रहा
है, वहां बीजेपी ने
दांव लगाया है तो वहीं
अखिलेश पीडीए को बैलेंस करने
की कोशिश में दिखे हैं।
जंग कितनी कांटे की है, इसका
अंदाजा इस बात से
लगा सकते हैं कि
योगी ने पिछले 5 दिन
में 15 रैली की हैं.
जबकि अखिलेश की 14 सभाएं हुई हैं. योगी
सरकार ने नौ सीटों
पर सरकार के 30 मंत्रियों की टीम-30 को
मैदान में उतारा. डिप्टी
सीएम केशव प्रसाद मौर्य
ने भी सभी नौ
सीटों पर एक..-एक
चुनावी सभा को संबोधित
किया. उनका पूरा जोर
फूलपुर और मझवां सीट
पर रहा है. उप
मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ने भी
उपचुनाव में नौ सीटों
पर एक-एक रैली
की. मैनपुरी की करहल सीट
पर अखिलेश की पत्नी डिंपल
यादव ने कमान संभाल
रखी थी. चाचा शिवपाल
यादव कटेहरी में डटे रहे.
अब मतदाताओं को तय करना
है कि वो किस
पर भरोसा करते हैं. वैसे
यूपी में एक और
सीधी जंग योगी और
अखिलेश यादव की है,
तो वहीं दोनों ही
पार्टियों को खतरा अपनों
से भी है. इसके
अलावा कई दल ऐसे
भी हैं जो किसी
का भी खेल बिगाड़
सकते हैं.
यूपी में भले
ही सीधी जंग अखिलेश
यादव और योगी आदित्यनाथ
के बीच हो. लेकिन
यहां कई फैक्टर हैं
जो किसी का भी
खेल बिगाड़ सकते हैं. यूपी
लोकसभा चुनाव में सबसे ज्यादा
चर्चा बीजेपी के अंदरूनी कलह
की थी. जिसके बाद
दिल्ली दरबार में बैठकों को
दौर चला. अब ये
चुनाव तय करेगे कि
क्या बीजेपी में अब सब
कुछ ठीक हो चुका
है. क्योंकि अखिलेश लगातार डिप्टी सीएम केशव प्रसाद
मौर्य को लेकर योगी
को घेरने की कोशिश करते
रहते हैं. जबकि केशव
प्रसाद मौर्य खुलकर अखिलेश का विरोध करते
नजर आते हैं. लोकसभा
चुनाव में बीजेपी और
संघ के बीच खींचतान
की अटकलें भी सामनें आईं.
लेकिन मथुरा में योगी आदित्यनाथ
और संघ प्रमुख मोहन
भागवत के बीच बैठक
हुई थी. सूत्रों की
मानें तो उस बैठक
में भी यूपी उपचुनाव
को लेकर मंथन हुआ
था. जिसके बाद संघ ने
भी उपचुनाव को लेकर अपनी
रणनीति तय की. ऐसे
में संघ के लिए
भी ये चुनव किसी
परीक्षा से कम नहीं
हैं. वैसे अंदरूनी चुनौती
अखिलेश के सामने भी
कम नहीं हैं. सीटों
को लेकर समाजवादी पार्टी
औऱ कांग्रेस के बीच जमकर
खींचतान हुई.है. लेकिन
आखिर में अखिलेश यादव
9 की 9 सीट पर अपने
प्रत्याशी उतारने में कामयाब रहे.
पहले कांग्रेस ने इसका खुलकर
विरोध किया, लेकिन फिर सियासी खेल
को समझते हुए वो शांत
हो गए. लेकिन उसके
सामने भी लड़ाई यूपी
की खोई जमीन को
वापस पाने की है.
अब सवाल ये कि
क्या कांग्रेस के नेता समाजवादी
पार्टी के प्रत्याशी का
समर्थन करेंगे या फिर अंदरखाने
कुछ सीटों पर खेल बिगाड़ेंगे.
उधर चुनाव में
दलित वोटबैंक को लेकर भी
तस्वीसाफ होनी है. वो
वोटबैंक को इस वक्त
यूपी की सियासत में
सबसे ज्यादा स्विंग कर रहा है.
यही वजह है कि
उपचुनाव से दूरी बनाए
रखने वाली मायावती ने
इस बार नौ सीटों
पर अपने प्रत्याशी उतारे
हैं. जिनके सामने अपनी खोई हुई
जमीन को बचाने की
चुनौती है. लेकिन ना
ही मायावती ने कोई रैली
की है और ना
ही भतीजे आकाश आनंद..ने
कोई मोर्चा संभाला है. दलित नेता
चंद्रशेखर आजाद की साख
भी दांव पर लगी
है. मीरापुर, कुंदरकी, खैर सहित कई
सीटों पर अपने प्रत्याशी
उतार रखे हैं. नगीना
में मुस्लिम वोटों के दम पर
जीत दर्ज कर सांसद
बने चंद्रशेखर के लिए दलित
वोट को साधने का
चैलेंज है. उधर अखिलेश
की नजर जहां मुस्लिम
वोटबैंक को पूरी तरह
खींचने की है तो
यहां पर सेंधमारी के
लिए औवैसी भी तैयार है.
असदुद्दीन ओवैसी ने मीरापुर, कुंदरकी
और गाजियाबाद विधानसभा सीट पर अपने
उम्मीदवार उतारे हैं. तीनों ही
विधानसभा सीटें मुस्लिम बहुल मानी जाती
है. इसीलिए ओबैसी ने पूरी ताकत
लगी है. चुनाव प्रचार
के अंतिम दिन ओवैसी खुद
मीरापुर सीट पर जनसभा
कर मुस्लम वोटों को अपने पक्ष
में करने की हरसंभव
कोशिश की. इतना ही
नहीं मुजफ्फरनगर दंगे और फिलिस्तीन
तक का जिक्र कर
डाला. जयंत चौधरी की
परीक्षा भले ही मीरापुर
विधानसभा सीट पर है,
लेकिन जाट वोटों को
बीजेपी के पक्ष में
ट्रांसफर कराने की चुनौती है.
2022 में मीरापुर सीट सपा के
समर्थन से आरएलडी जीतने
में कामयाब रही थी, लेकिन
इस बार आरएलडी का
बीजेपी के साथ गठबंधन
है. मीरापुर में जयंत ने
ज.जिस तरह से
जाट और गुर्जर के
बजाय पाल समुदाय के
प्रत्याशी को उतारकर सियासी
प्रयोग किया है, उसके
चलते आरएलडी के लिए यह
मुकाबला आसान नहीं है.
बहरहाल यूपी उपचुनाव कई
लोगों के लिए अस्तित्व
की लड़ाई है. जहां
सामने खड़े दुश्मन से
ज्यादा खतरा अपनों से
है.
बहुजन समाज पार्टी का
गढ़ रहे अंबेडकरनगर के
पांचों विधानसभा क्षेत्रों में भले ही
इसके मजबूत पिलर उखड़ चुके
हैं, लेकिन इसका जनाधार आज
भी चुनावी परिणाम को बदलने की
ताकत रखता है। ऐसे
में भाजपा और सपा की
नजर बसपाई जनाधार पर लगी है।
वहीं, बसपा अपने जनाधार
को समेटने की जुगत में
जुटी है। वर्ष 2017 के
चुनाव में 84,358 वोट और वर्ष
2022 में 93,524 वोट पाकर उम्मीदवार
विजेता घोषित हुए थे। ऐसे
में अनुसूचित जाति के यहां
लगभग 95 हजार मतदाता अकेले
ही विजय दिला सकते
हैं। उत्तर प्रदेश में बसपा दिन
ब दिन कमजोर होती
जा रही है और
चुनाव दर चुनाव पार्टी
का ग्राफ गिरता जा रहा. 2022 के
विधानसभा चुनाव में एक सीट
पर बसपा सिमट गई
थी और 2024 के लोकसभा चुनाव
में खाता नहीं खोल
सकी थी. बसपा का
वोट शेयर 9.39 फीसदी पर पहुंच गया
है. अब उसका कोर
जाटव वोट बैंक भी
दूर हो रहा है.
यही वजह है कि
बसपा काफी अरसे के
बाद उपचुनाव में उतरी है
और पार्टी ने दो मुस्लिम,
तीन ब्राह्मण, एक दलित, एक
ठाकुर और दो ओबीसी
प्रत्याशी उतारे हैं, लेकिन मायावती
किसी भी सीट पर
प्रचार के लिए नहीं
पहुंची. हालांकि, मीरापुर, गाजियाबाद, मझवां, खैर, कटेहरी और
फूलपुर सीट पर बसपा
का अपना सियासी आधार
रहा है और वो
जीत दर्ज करती रही
है. ऐसे में बसपा
का अपने सियासी प्रभाव
वाले क्षेत्रों में चुनाव है,
जिससे बसपा का बहुत
कुछ उपचुनाव में दाव पर
लगा है.
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