Friday, 15 November 2024

स्वर्णिम रोशनी से नहाई काशी, घाटों पर दिखा देवलोक

स्वर्णिम रोशनी से नहाई काशी, घाटों पर दिखा देवलोक 

अर्द्धचंद्राकार में गंगा के किनारे चमकते-दमकते घाटों की कतारबद्ध श्रृंखलाएं। घाटों पर विद्युत झालरों की झिलमिलाहट असंख्य दीयों में टिमटिमाती रोशनी की मालाएं। आकर्षक आतिशबाजी की चकाचौंध। बजते घंट-घडियालों शंखों की गूंज। आस्था एवं विश्वास से लबरेज देश-विदेश के लाखों श्रद्धालु। हर हाथ में दीपकों से थाली और मन में उमंगों की उठान। स्वर्णिम किरणों में नहाएं घाटों पर अविरल मंत्रोंचार। कल-कल बहती पतित पावनि मां गंगा। ऐसा विहगंम मनोरम दृष्य मानों देवता वास्तव में काशी में पधारे हो। मानों गंगा के रास्ते देवताओं की टोली काशी के 100 से अधिक घाटों पर विराजमान हैं। शुक्रवार को कुछ ऐसा ही नजारा दिखा काशी के घाटों पर 

सुरेश गांधी

देवों के देव महादेव की नगरी काशी में शुक्रवार को सुबह से दोपहर तक कार्तिक स्नान के लिए लाखों आस्थावानों ने गंगा में डूबकी लगाई। जबकि गोधूली बेला में 100 से अधिक घाटों पर जब 17 लाख से अधिक दीपों की लड़ी जली तो लगा सचमुच देवताओं की टोली पृथ्वी पर गयी है। इस अलौकिक अद्भुत मनोहारी छटा देखने लाखों देशी-विदेशी सैलानियों का हुजूम उमड़ पड़ा। चारों तरफ मुंड ही मुंड दिखाई दी। 

काफी संख्या में लोगों ने मां गंगा में दीपदान भी किए। घाट किनारे गूजते संख के बीच घंट-घड़ियालों की ध्वनि भजन से पूरा वातावरण भक्तिरस से सराबोर हो गया। एक साथ जलते दीपों से तो ऐसा लगा जैसे दीपों की गंगा बह रही है। इसके अलावा मंदिर आसपास के भवनों को विद्युत झालरों से भी सजाया गया। हर घाट पर करीब 50 से 60 हजार दीप जलाएं गए। शहर के कुंड तालाबों पर भी करीब 5 लाख से भी अधिक दीप जगमग हुए। देश के अनूठे शहीद स्मारक इंडिया गेट की प्रतिकृति भी दीपों की रोशनी से नहा उठी। अमर जवान ज्योति में सिर्फ दीपों की लौ दिख रही थी। 

झिलमिलाते दीयों एवं गंगा की लहरों के बीच विभिन्न विधाओं के विख्यात कलाकार अपनी संगीतयमी प्रस्तुति से पूरे माहौल को भक्ति रस में सराबोर कर दिए। कहीं अमेरिकनसप्त तांडव ग्रुपके कलाकारों की रंगारंग कार्यक्रमों की प्रस्तुति, तो कहीं शिव महिमा पर आधारितकॉस्मिक शिवाथीम पर नृत्य, तो कहीं भारतवंशी अमेरिकन नागरिक सुजाता विन्जामुरि द्वारा शिव तांडव नृत्य तो कहीं अकेडमी के माध्यम से कुचिपुड़ी नृत्य, तो कहीं भोजपुरी अभिनेता सांसद मनोज तिवारी, गोरखपुर सांसद रवि किशन का गयान, तो कहीं पं. राजन-साजन मिश्र, सोमा घोष तो कहीं देश के नामी गिरामी चर्चित कलाकारों ने ऐसी समा बांधी की पूरा वातावरण शिवमय हो गया। 

गंगा के अर्धचंद्राकार घाटों से लेकर घरों की चौखट गंगा-वरुणा, गंगा-असि और गंगा-गोमती के संगम पर दीपदान किया गया। श्रद्धालु पर्यटक गंगा पार रेत पर शिव के भजनों के साथ ग्रीन क्रैकर्स लेजर शो का भी आनंद ले ते रहे। इसके अलावा पितरकुंडा पर पितरों के नाम, रामकुंड पर रामेश्वर महादेव भगवान राम, कंदवा में कर्दमेश्वर महादेव, ईश्वरगंगी पर देवताओं के नाम से दीप जलाए गए।

देव दीपावली के लिए दशाश्वमेध घाट पर मां गंगा की आरती को भव्य स्वरूप दिखा। धर्म के साथ राष्ट्रीयता और सामाजिकता का संदेश देने वाली ये महाआरती कारगिल युद्ध के शहीदों को समर्पित रहती है। 21 अर्चक 42 देव कन्याएं ऋद्धि-सिद्धि के रूप में घाट पर महाआरती की। राजा घाट से लेकर मीर घाट तक रोशनी से जगमग रहा।  

देव दीपावली पर काशी में लोगों ने गंगा घाट पर दीयों से बटोगे तो कटोगे लिखा। इस दौरान यह चर्चा का विषय बना रहा। देव दीपावली के अवसर पर काशी के 84 गंगा घाटों पर 21 लाख दीये जलाए गए। यहां धूमधाम से देव दीपावली का पर्व मनाया जा रहा है। देश भर के पर्यटक काशी की देव दीपावली का साक्षी बनने पहुंचे हैं। इसी क्रम में वाराणसी के बबुआ पांडेय घाट पर दीयों सेबटोगे तो कटोगेनारा भी लिखा गया था। बता दें कि पिछले कुछ दिनों से सीएम योगी आदित्यनाथ का यह नारा काफी चर्चित हुआ है। 

विदेशी कलाकारों ने नमो घाट के किनारे शिव नृत्य की प्रस्तुती दी। जिसे देख वहां मौजूद हर कोई शिवमय हो गया। नमो घाट का किनारा पहली बार कॉस्मिक शिवा थीम नृत्य पर झूम उठा। देव दीपावली पर पहली बार किसी अमेरिकी ग्रुप ने भगवान शिव पर आधारित नृत्य की मनमोहक प्रस्तुति दी। इससे नमो घाट का मुक्ताकाशी प्रांगण गायन और नृत्य की प्रस्तुतियों से गुलजार हो उठा। 

बोल थे रंग डाले गुलाबी चुनरिया, मोहे मारे नजरिया संवरिया रे। इसके बाद प्रिंस ग्रुप ने नमो विश्वकर्ता नमो विघ्नहर्ता, नमो शांताकरम नमो निर्विकारम ये धरती ये अंबर ये दरिया ये समंदर ये दिलकश नजारे सभी हैं तुम्हारे नमो नमो नमो नमो नमो नमो... पर ग्रुप डांस किया। अभिलिप्सा पंडा ने हर-हर शंभू शिव महादेवा वाराणसीनाथमनाथनाथं श्री विश्वनाथं शरणं प्रपद्ये से श्रोताओं को थिरकने पर विवश कर दिया। इसके बाद भोजपुरी गायक कल्पना पटवारी ने गणपति वंदना की प्रस्तुति की। वहीं, दशाश्वमेध घाट पर डॉ. रेवती साकलकर ने भजनों के साथ ही देशभक्ति गीतों की प्रस्तुतियां दीं। रामजन्म योगी ने शंखनाद से पूरे घाट को गुंजायमान कर दिया।

गोधूलि बेला में जब इस छोर से उस ओर तक एक साथ दीपों ने रोशनी बिखेरी तो देखने वालों की आंखे इस अद्भूत नजारे को एकटक निहारती ही रही। दशाश्वमेध घाट गंगा आरती के बीच शंखनाद की गूंज लोगों को झूमने पर विवश कर दी। गंगा को नमन करती युवतियां अपनी हर मुराद को पूरा करने की प्रार्थना करतीं नजर आईं। 

महिलाएं जितनी ज्यादा से ज्यादा दिए मां गंगा में प्रवाहित कर सकें इसके लिए दिए तैयार करने में व्यस्त दिखीं। पंचगंगा घाट स्थित श्रीमठ में आयोजित दिव्य कार्तिक मास महोत्सव में स्वामी रामनरेशाचार्य श्रीमठ स्थित महारानी अहिल्याबाई द्वारा स्थापित ऐतिहासिक हजारा दीपस्तंभ का विधिवत पूजन कर दीप प्रज्ज्वलित किया गया। इसके पश्चात पंचगंगाघाट समेत अन्य घाटों पर जलते लाखों दीप मानों अपनी आभा से भगवान शंकर का अभिनंदन कर रहे हों। पांच ब्राह्मणों द्वारा मां गंगा की महाआरती की गयी।

कहा जाता है कि भगवान शंकर ने देवताओं कि प्रार्थना पर सभी का उत्पीड़न करने वाले राक्षस त्रिपुरा सुर का वध किया था। इसके बाद देवताओं ने खुशी मनाने के लिए स्वर्ग को दीपक से जगमगा दिया था। यह भी माना जाता है कि बनारस में भगवान भोले नाथ साक्षात विराजते हैं और हर साल देव दीपावली के दिन सभी देवता बनारस आकर दीप जलाते हैं। 

इसी लिए इस त्योहार को देव दीपावली कहा जाता है। जीवंत प्रमाण है घाट पर दीपोत्सव को भव्यता देने के लिए इंदौर की तत्कालीन महारानी अहिल्याबाई द्वारा सन् 1720 के आसपास बनवाया गया लाल पत्थर का वह अनूठा दीप स्तंभ जो पूरे एक हजार पथरीली दीप शिखाओं से सुसज्जित है। ठेठ बनारसी संबोधन में इसेहजाराके नाम से पुकारा जाता है। आज भी देव दीपावली के अवसर पर हजारा की दीप शिखाएं प्रज्जवलित होने के बाद ही काशी के चौरासी घाटों पर दीप जलाने का क्रम शुरू होता है। 

दीपस्तंभ की सहस्त्र दीप शिखाओं के एक साथ प्रकाशित होने के बाद यह विशाल स्तंभ एक धधकते धूमकेतु सा आभामंडित हो जाता है। काशी में चौदहवीं सदी से हीदेव विजयके उपलक्ष्य में घाट किनारे राजाओं-महाराजाओं की ओर से राजकीय स्तर पर भव्य दीपोत्सव के दृष्टांत मिलते हैं। त्रिपुर नाम के दुर्दात असुर पर भगवान शिव की विजय गाथा की पौराणिक कथा को जानने वाली कुछ श्रद्धालु महिलाएं पूर्णिमा पर गंगा घाटों तक आती और कुछ दीप जलाकर लौट जाती थीं। 

उत्साही कुछ युवाओं ने पौराणिक पृष्ठों को पलटा और नारायण गुरु के नेतृत्व में धीरे-धीरे रंगत निखारने की कसम खाई। वर्ष 1986 में पंचगंगा सहित कुल छह घाट जब दीप मालाओं से जगमगाए तो नगर तक उल्लास की लहरें ले आए। श्रीमठ पीठाधीश्वर स्वामी रामनरेशाचार्य का इसे प्रोत्साहन-संरक्षण मिला।

                इस अलौकिक अद्भुत मनोहारी छटा देखने लाखों देशी-विदेशी सैलानियों का हुजूम उमड़ पड़ा। चारों तरफ मुंड ही मुंड दिखाई दी। घाट किनारे गूजते वेद मंत्रों, स्तुतियों के बीच गंगा आरती संख-घंट-घड़ियालों की ध्वनि के बीच भजन से पूरा वातावरण भक्तिरस से सराबोर हो गया। एक साथ जलते असंख्य दीपों की छटा से तो ऐसा लगा जैसे दीपों की गंगा बह रही है, लहरों रूपी आंचल पर सितारे टंके हों। 

त्रिपुरासुर वध की खुशी में झूम रहे देवताओं के स्वागत में सभी अंजुरियों में श्रद्धा और प्रकाश का नैवेद्य लिए घाटों पर हुजूम दिखा। इस अलौकिक प्रकाशोत्सव के बीच समझना मुश्किल था कि दीपमाला लिए मां गंगा देवगणों का स्वागत अभिनंदन कर रहीं थीं या दीपमालाओं के साथ त्रिपुरारि शंकर और गंगा का आभार व्यक्त करने के लिए देवगण ही लालायित हो उठे थे। मंदिर आसपास के भवनों को विद्युत झालरों से भी सजाया गया था। हर घाट पर करीब 50 से 60 हजार दीप जलाएं गए।

शरद पूर्णिमा को सोलह कलाओं के साथ चमकता है तो कार्तिक पूर्णिमा को देवकुल का सदस्य होने के नाते उसकी आभा निखरी मानी जाती है मगर काशी के गंगा घाटों पर सजे दीपों के प्रकाश के आगे उसकी आभा फीकी लगी। भगवान शिव के भाल पर विराजमान चंद्रमा की ओट से निकलती गंगा की धार, देवाधिदेव के कुछ ऐसे ही स्वरूप की व्याख्या ग्रंथों में मिलती है। 

काशी के घाट भी कुछ ऐसा ही भान कराते हैं। अधचंद्राकार घाटों की श्रृंखला को स्पर्श कर सतत् प्रवाहमान गंगा। कभी शांत, निविकार तो कभी नवयौवना की तरह बलखाती, अल्हड़पन लिये गंगा की लहरें बरबस ही आकर्षित करती हैं। घाटों के इस रूप-सौन्दय को निहारने ही तो जाने कितने लोग, जाने कितनी दूर से खिंचे चले आते हैं।

क्या राजघाट और पंचगंगा, ललिता और डॉ.आरपी घाट, अहिल्याबाई घाट से अस्सी घाट-किसी घाट की सीढ़ियों पर जगह नहीं बची थी। रेला का आने का क्रम बंद नहीं हुआ तो शाम 6 बजे के बाद प्रशासन ने गोदौलिया चौराहा से दशाश्वमेध की ओर जाने पर प्रतिबंध लगा दिया। फिर भी लोगों के आने का क्रम जारी रहा। कहा जाता है कि वामन अवतार लेने के बाद जब नारायण स्वर्गलोक पहुंचे तो वहां उनका भव्य स्वागत किया गया। देवताओं ने हरि का वैसा ही अभिनंदन किया जैसा कि अयोध्या लौटने पर श्रीराम का हुआ था। जिस दिन भगवान विष्णु स्वर्गलोक पहुंचे वो कार्तिक पूर्णिमा का ही दिन था। वो दिन आज भी देवदीपावली के रूप में मनाया जाता है। घाट पर कंदील उड़ाने के लिए लोगों में होड़ मची हुई थी। 

जिनकी कंदील नहीं उड़ पा रही थी, वे निराश हो रहे थे। कंदील उड़ते ही महादेव का उदघोष गूंज रहा था। कंदील उड़ाने में युवाओं से लेकर महिलाएं शामिल रहीं। घाटों पर दोपहर बाद से ही लोग पहुंचने लगे थे। धीरे-धीरे घाटों की ओर जाने वाला हर रास्ता पद यात्रियों के हुजूम से जाम होता गया। कमोबेश यही स्थिति घाटों पर भी थी। पैदल चलने में भी मशक्कत करनी पड़ रही थी। अस्सी घाट से आदिकेशव तक साढ़े 7 किमी लंबी घाटों की श्रृंखला पर लाखों दीपों ने सितारों के गंगा तीरे उतरने का अहसास कराया।

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