योगी के ‘बटेंगे तो कटेंगे’ के नारे का सबूत है
संभल?
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ यूं ही नहीं कहते, ’बटेंगे तो
कटेंगे’, इसका जीता जागता सबूत संभल में दिखाई दे रहा है। शाही मस्जिद विवाद के बीच 46 साल पहले जो राजनीतिक दंगे करवाएं गए, उसमें मुस्लिम परस्त दलों ने न सिर्फ हिन्दू पलायन होने दिया, बल्कि लगातार हिन्दू आबादी भी घटने दिया। वहां हुए तबके 19 दंगों में 25 हिन्दुओं को जिंदा जलाने के साथ सैकड़ों हिन्दुओं का सर तन से जुदा कर दिया गया। परिणाम यह रहा कि तब 65 फीसदी मुस्लिम आबादी के मुकाबले हिंदू आबादी 35 फीसदी थी और अब 80 फीसदी मुस्लिम आबादी के बीच हिन्दू आबादी घटकर 20 फीसदी हो गयी है। खास यह है कि तब से लेकर अब तक मुस्लिम परस्त पार्टियां उसी फार्मूले पर अपने सांसद-विधायक बनाते रहे, लेकिन उनकी इस साजिश का भांडा योगीराज में उस वक्त फूटा, जब जब न्यायालय के आदेश पर एएसआई सर्वे करायी जा रही थी, तो संभल के दंगाईयों द्वारा प्रशासन पर पत्थर बरसाएं जा रहे थे। योगी सरकार अब जब पत्थरबाज दंगाईयों पर अपना चाबुक चला रही है, जांच के दौरान ताबड़तोड हो रही खुदाई में न सिर्फ बंद पड़े मंदिर मिल रहे है, बल्कि मूर्तियों का खजाना भी निकल रहा है। कार्तिकेय महादेव मंदिर के बाद राधा-कृष्ण मंदिर का मिलना इस बात का गवाह है कि संभल में न सिर्फ मंदिरों को तोड़ा गया, बल्कि साक्ष्य छिपाने के लिए उन्हें कुंओं में दबा दिया गया और हिन्दुओ को खदेड़कर मंदिरों में ताला लगा दिया। तो दंगों के आंका उनके बचाव में सड़क से लेकर संसद तक हंगामा खड़ा कर रहे है। ऐसे में बड़ा सवाल तो यही है क्या खंडित हुआ वोट बैंक अब संभल से होगा संगठित? क्या संभलकांड 2027 का भविष्य तय करेगा? क्या योगी के ’बटेंगे तो कटेंगे’ क नारे का संभल में अब सबूत मिल गया है?सुरेश गांधी
फिरहाल, उत्तर प्रदेश के संभल से लेकर प्र्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी सहित अन्य शहरों में मंदिरों के मिलने का सिलसिला जारी है। ताजा मामला संभल के सरायतरीन इलाके में मिले राधा-कृष्ण मंदिर का है। प्रशासन की ओर से चल रहे सर्च अभियान में सालों से बंद एक और मंदिर का पता चला है। मामले की सूचना मिलने पर पुलिस की टीम मौके पर पहुंची और मंदिर का ताला खुलवाया गया। प्राचीन मंदिर को राधा-कृष्ण मंदिर के नाम से जाना जाता है। एक समय में यह मंदिर हिंदू परिवारों से घिरा हुआ था। अब इस मंदिर के चारों तरफ की हिंदू आबादी गायब है। दावा किया जा रहा है कि यहां रहने वाले लोग पलायन कर चुके हैं। इस मंदिर के भी चार से पांच दशक से बंद होने की बात कही जा रही है। स्थानीय लोगों का कहना है कि यह मंदिर सैकड़ों साल पुराना हो सकता है. 29 मार्च 1978 में संभल में हुए दंगों की दर्दनाक दास्तान आज भी लोगों के जेहन में ताजा है. जिसमें 184 लोगों की मौत हुई थी. आरोप है कि मुरारीलाल की फड़ पर 25 हिंदुओं को जिंदा जला दिया गया था. पुलिस और प्रशासन मूकदर्शक बना रहा. परिणाम यह रहा कि हिंदुओं को अपना घर और कारोबार छोड़कर पलायन करना पड़ा। आरोप है कि हिंदू समाज के लोगों के मन में डर का माहौल बनाया गया। प्रशासनिक मदद न मिलने से लोगों ने घर को छोड़ना ही बेहतर समझा।
खास यह है कि संभल में हिंदू-मुस्लिम हिंसा के बाद इन इलाकों से पलायन शुरू हुआ। जान का डर देखकर लोग पलायन कर गए। इस कारण मंदिर के आसपास की डेमाग्राफी बदलती गई। लेकिन प्रशासनिक स्तर पर पिछले दिनों संभल में बिजली चोरी को लेकर जांच का अभियान चल रहा है। इसको लेकर प्रशासन की टीम अभियान चला रही है। खुदाई में पहले सांसद जियाउर्रहमान बर्क के मुहल्ले में हनुमान मंदिर मिला, उसके बाद राधा-कृष्ण मंदिर। मंदिर के मिलने की जैसे ही खबर मिली, प्रशासन फौरन पहुंच गया और ताला खुलवाया.
मतलब साफ है एक तरफ जहां संभल में शाही मस्जिद को लेकर अलग-अलग दावे किए जा रहे हैं. वहीं दूसरी तरफ एक घर के भीतर शिव मंदिर मिलने के बाद सियासी दलों में हड़कंप मचा हुआ है. दंगे के आरोपियों को बचाने के लिए सपाई गुंडे तांडव की धमकी देते फिर रहे हैं। जबकि सच यह है कि संभल में हालात बिगड़ने की वजह न्यायालय के आदेश पर हो रहे सर्वे नहीं था, बल्कि प्रशासन पर हमला था.’ हालांकि दंगाईयों के आकाओं को सदन में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जमकर लताड़ा है। योगी ने कहा कि उन दरिंदों को आज तक सजा क्यों नहीं मिली, जिन्होंने 46 वर्ष पहले संभल में नरसंहार किया था, इस पर चर्चा क्यों नहीं होती है? ’क्या वहां बजरंग बली की इतनी प्राचीन मूर्ति रातों-रात आ गई. वहां पर जो ज्योतिर्लिंग निकला है वो आस्था नहीं थी क्या? उन निर्दोष लोगों का क्या कसूर था. जिनकी निर्मम हत्या आज से 46 साल पहले संभल में हुई थी.’
आज 46 सालों से बंद पड़ा
ये मंदिर सपा सांसद जियाउररहमान
बर्क के घर से
200 मीटर की दूरी पर
मिला है. कहा जा
रहा है सांप्रदायिक दंगों
और हिंदू आबादी के विस्थापन के
कारण ये मंदिर 1978 से
बंद पड़ा था. आरोप
है कि आज की
तरह बर्क जैसे दंबंग
मुस्लिम नेताओं की धमकी से
डरकरके हिन्दू परिवार यहां से चला
गया. जिसके बाद पूजा-पाठ
बंद हो गई. आखिरी
हिंदू परिवार साल 2012 में गया था.
संभल के डीएम का
कहना है कि यह
मंदिर 400 साल पुराना बताया
जा रहा है. मंदिर
पर कब्जा करने की तैयारी
थी. अगर यहां बिजली
चोरी की चेकिंग नहीं
होती तो मंदिर भी
नहीं मिलता और इसे पूरी
तरह कब्जे में ले लिया
जाता. पुलिस की भारी मौजूदगी
में इस मंदिर को
खुलवाया गया और अतिक्रमण
हटाने के लिए बुलडोजर
एक्शन हुआ. संभल के
शिव मंदिर को अतिक्रमण मुक्त
कराया गया है। इस
मंदिर पर दूसरे समुदाय
के लोगों ने कब्जा किया
था। एक व्यक्ति ने
कमरा बना लिया था।
दूसरे ने दरवाजा लगा
लिया था। कई मकानों
के छज्जे भी मंदिर परिसर
में थे। अब सवाल
यह उठता है कि
साल 1978 में ऐसा क्या
हुआ था, जिसके बाद
संभल में भगवान शंकर
के मंदिर पर ताला लगा
दिया गया. इसकी गवाही
1976 और 1978 में हुए संभल
के दंगे दे रहे
है। संभल में करीब
80 प्रतिशत आबादी मुस्लिम है.
संभल के जिस
खग्गूसराय क्षेत्र में भगवान शंकर
का मंदिर मिला है, वहां
पहले बड़ी संख्या में
हिन्दू परिवार की मौजूदगी का
दावा किया जाता है.
साल 1976 और 1978 में यहां दो
बड़े दंगे हुए, जिसके
बाद हिन्दू समाज ने बड़ी
संख्या में पलायन करना
शुरू कर दिया. दावा
किया जाता है कि
संभल में ही भगवान
विष्णु के कल्कि अवतार
का भी मंदिर था.
साल 1978 में भड़की हिंसा
बेहद भीषण थी, जिसके
बाद संसद ने संभल
में एक फैक्ट फाइंडिंग
कमेटी भेजने पर भी विचार
किया था. इतिहासकारों की
मानें तो संभल जामा
मस्जिद के इमाम मुहम्मद
हुसैन की साल 1976 में
हत्या कर दी गई
थी. द प्रिंट वेबसाइट
की रिपोर्ट में 55 वर्षीय हिन्दू निवासी सुशील गुप्ता से बातचीत का
जिक्र है. वो मस्जिद
के सामने वाली गली में
ही रहते हैं. उन्होंने
दावा किया कि 1976 में
संभल जामा मस्जिद के
मौलाना की हत्या कर
दी गई थी. संसदीय
रिकॉर्ड और एसएलएम प्रेमचंद
की 1979 की प्रकाशित ‘मॉब
वायलेंस इन इंडिया’ किताबों
में कहा गया है
कि मौलाना की हत्या एक
हिंदू ने की थी.
मौलाना का परिवार कुछ
ही समय बाद यूपी
के आजमगढ़ के अहिरौला में
चला गया. इसके बाद
यहां दंगे भड़क गए
थे. बाद में मंदिर
को ताला लगा दिया
गया. जहां आज मस्जिद
है वहां हरिहर मंदिर
हुआ करता था.
बता दें, संभल
में आजादी के बाद एक
या दो बार नहीं
बल्कि कुल 14 बार दंगे हुए.
पहले साल 1956, फिर 1959, और 1966 में यहां हिन्दू
मुस्लिम विवाद देखने को मिला. हालांकि
तब चीजें इतनी ज्यादा खराब
नहीं हुई. इसके बाद
1976 और 1978 में दो बड़े
दंगे हुए. इस दौरान
बड़ी संख्या में लोगों की
मौत हुई. फिर दो
साल बाद 1980 में यहां फिर
हिंसा भड़क गई थी,
जिसमें 14 लोगों को अपनी जान
गंवानी पड़ी। 1992 बाबरी मस्जिद विधवंस के दौरान भी
संभल में हिंसक घटनाएं
देखने को मिली. लोगों
का कहना है कि
मौत के डर से
यहां पूजा बंद थी,
अगर भजन-कीर्तन करते
तो वो लोग जान
से मार डालते. उनका
कहना है कि पहले
यहां भजन और कीर्तन
होता था. तीस सालों
से बंद मंदिर में
हनुमान मंदिर और शिवलिंग मिली
है. पुलिस ने इस मंदिर
को अपने सामने खुलवाया
तो लोग हैरान रह
गए. साफ-सफाई के
दौरान हनुमान और भगवान शिव
की शिवलिंग मिली है.
आखिर क्या हुआ था 46 साल पहले?
मस्जिद तोड़ी जा रही है और फिर दंगा फैल गया. दंगे के कारण इस मुस्लिम बाहुल्य इलाके से हिंदू परिवार पलायन करने लगे. औने-पौने दामों में मकान बेचने लगे. अभी संभल के डीएम डॉ. राजेंद्र पेन्सिया ने बताया कि इस इलाके में बिजली चोरी की घटनाएं बहुत सारी हो रही थीं. इस इलाके में लोग घुसते नहीं थे. जब हम यहां पर आए तो हमें यहां एक मंदिर मिला. इसे हम साफ करवा रहे हैं. यहां पर एक कुआं भी मिला है, जिसके ऊपर रैंप बनाया गया था. किसी ने हमें बताया कि रैंप के नीचे कुआं है, तो हमने उसे हटाया. इसके बाद हमें नीचे कुआं मिला. पूरे संभल में मिस्क्ड आबादी है, लेकिन यहां पर केवल मुस्लिम आबादी है. हम मंदिर की सफाई करवा रहे हैं. यह जिस समाज का मंदिर है, उसे हम सौंपेंगे. वह जैसा इसका इस्तेमाल करना चाहते हैं, वैसा कर सकते हैं. कब्जा करने वाले लोगों को भूमाफिया के रूप में चिह्नित किया जाएगा. सपा के सांसद और विधायक की वर्चस्व की जंग में 4 लोग भेंट चढ़े हैं. कांग्रेस और सपा में इस समय तुष्टिकरण की राजनीति की होड़ लगी हुई है. लेकिन उन्हें कौन बताएं कि वहां 22 कुएं पाट दिए गए, खुदाई में मूर्तियों का मिलने से पता चलता है कि वहां क्या अत्याचार हुआ होगा? वहां का दर्दनाक दृष्य रहा होगा। संभल के खग्गू सराय स्थित प्राचीन शिव मंदिर भले सुरक्षित रहा, लेकिन दूसरे समुदाय के कई लोगों ने मंदिर के परिसर में कब्जा कर लिया था।
एक व्यक्ति ने मंदिर परिसर
में बैठक बना ली
थी। दूसरे व्यक्ति ने दरवाजा खोल
दिया था। इसी तरह
कई मकानों के छज्जे भी
मंदिर परिसर में निकाल लिए
गए थे। तालाबंद मंदिर
पूरी तरह अतिक्रमण से
घिरा था। लेकिन पुलिस-प्रशासन के अधिकारियों की
निगरानी में पालिका की
टीम ने अतिक्रमण हटाया
है। जो बैठक बना
ली थी उसको तोड़
दिया है और दरवाजा
बंद कर दिया है।
इसी तरह जो छज्जे
निकाले गए थे उन्हें
भी तोड़ा गया है।
मंदिर के आसपास हुए
अतिक्रमण को भी हटाया
गया है। पुरानी बाउंड्री
जो जर्जर हो गई थी
उसको भी तोड़ा गया
है। कहा जा रहा
है कि प्राचीन शिव
मंदिर पर ताला लगा
तो कब्जा करने वालों के
हौसले बुलंद होते चले गए,
इसलिए किसी ने छज्जा
निकाल लिया तो किसी
ने दरवाजा बना दिया। समय
के साथ यह कब्जा
और ज्यादा बढ़ सकता था।
यह कब्जा शहर में अशांति
का भी कारण बन
सकता था। समय रहते
पुलिस प्रशासन की ओर से
यह पहल कर सभी
विवादों को विराम दिया
गया है। जामा मस्जिद
पुरातत्व विभाग के संरक्षण में
है। इस ऐतिहासिक इमारत
में कुएं भी बने
हैं। इसमें एक कुएं को
खोलने की तैयारी है।
इसके लिए पालिका पहल
करेगी। जिसके बाद मुक्त किया
जा सकेगा। बताया जाता है कि
इस कुएं को वर्षों
पहले पाट दिया गया
था। अब इसको खोलने
की प्रक्रिया प्रशासन द्वारा शुरू की जाएगी।
इसी तरह जामा मस्जिद
के नजदीक स्थित कब्रिस्तान में भी कुआं
होने की चर्चा है,
जहां की सफाई कराई
जाएगी। उसमें भी यदि कुआं
होगा तो उसको भी
संवारने के लिए पहल
की जाएगी। पालिका के ईओ का
कहना है कि पालिका
क्षेत्र में जितने भी
कुएं हैं सभी को
खोला जाएगा।
भगवान हरिहर मंदिर
संभल में शाही जामा मस्जिद को लेकर विवाद है. दावा किया जा रहा है कि मस्जिद का निर्माण श्री हरिहर के प्राचीन मंदिर को ध्वस्त कर बनाया गया था. हिंदू पक्ष का दावा है कि प्राचीन हरिहर मंदिर को मुगलकाल के बाबर (डनहींस म्उचमतवत ठंइनत) ने नष्ट कराया था और यहां मस्जिद बनवाया था. बता दें कि वर्तमान में संभल का शाही जामा मस्जिद एक संरक्षित स्मारक है. बता दें, हरिहर भगवान विष्णु और भगवान शिव का एकीकरण है. दरअसल सनातन में हरि का अर्थ भगवान विष्णु से होता है और हर का अर्थ है शिव. यानि हरिहर भगवान विष्णु और भगवान शिव का ही स्वरूप है. इस स्वरूप में एक ही शरीर में भगवान शिव और विष्णु आधे-आधे रूप में दिखाई देते हैं. हरिहर रूप शिव और विष्णु का एकीकरण होने के बाद भी अलग-अलग गुणों के लिए पूजे जाते हैं. क्योंकि शिव जहां विनाश के देवता कहलाते हैं वहीं विष्णु सृष्टि के पालनहार हैं. इसका अर्थ यह सृष्टि का संहार औऱ संरक्षण दोनों की आवश्यक है. भगवान शिव और भगवान विष्णु ने हरिहर
अवतार लिया. पौराणिक कथा के अनुसार शैव और वैष्णव के बीच के विवाद को सुलझाने के लिए शिव-विष्णु को यह अवतार लेना पड़ा. दरअसल शिव की उपासना करने वाले शैव और विष्णु की उपासना करने वाले वैष्णव कहलाते हैं. ज्योतिषाचार्य अनीष व्यास बताते हैं कि, पौराणिक कथा के अनुसार एक बार शैव और वैष्णव के बीच इस बात को लेकर विवाद छिड़ गया कि भगवान शिव और भगवान विष्णु में श्रेष्ठ कौन हैं. दोनों ही अपने-अपने ईष्ट को श्रेष्ठ बताने लगे. तब विवाद को सुलझाने के लिए सभी शिव के पास पहुंचे. भगवान ने कहा कि इस प्रकार का विवाद नहीं होना चाहिए और शैव-वैष्णव के बीच के इस विवाद को सुलझाने उन्होंने हरिहर अवतार लिया. इस अवतार में आधे शरीर में भगवान शिव और आधे में विष्णुजी थे. इसके बाद भक्तों ने भी यह स्वीकार किया कि हरि और हर को लेकर विवाद नहीं करना चाहिए, क्योंकि दोनों ही महाशक्ति है.जामा मस्जिद और हरिहर मंदिर विवाद
संभल में जामा
मस्जिद और हरिहर मंदिर
का विवाद सदियों पुराना है। इतिहास में
उल्लेख है कि मुगल
काल में बाबर के
सेनापति ने श्री हरिहर
मंदिर को आंशिक रूप
से ध्वस्त कराया था और फिर
उस पर कब्जा करके
मस्जिद के रूप में
इस्तेमाल करना शुरू कर
दिया था। वर्तमान में
यह मस्जिद भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) के अधीन है।
इसी वर्ष प्रकाशित मंडलीय
गजेटियर में बताया गया
कि अबुल फजल द्वारा
रचित ’आइन-ए-अकबरी’
में संभल में भगवान
विष्णु के प्रसिद्ध मंदिर
का उल्लेख है। संभल में
पुराने शहर के मध्य
में स्थित विशाल टीले (कोट अर्थात किला)
पर भगवान विष्णु का प्रसिद्ध मंदिर
होने का प्रमाण है।
यहीं हरिहर मंदिर था। एचआर नेविल
ने मुरादाबाद गजेटियर (1911) में लिखा है
कि मंदिर अब अस्तित्व में
नहीं है। इसका स्थान
एक मस्जिद ने ले लिया
है। इसमें महत्वपूर्ण अभिलेख हैं, जिसके अनुसार
मस्जिद का निर्माण हदू
बेग ने बाबर के
आदेश पर कराया था।
हालांकि, मस्जिद बाबर के समय
से पूर्व की प्रतीत होती
है। मस्जिद के पश्चिमी छोर
पर स्थित ढलानदार विशाल बुर्ज जौनपुर की इमारतों का
स्मरण कराते हैं। गजेटियर के
मुताबिक, मस्जिद के दक्षिणी प्रखंड
में मौजूद अभिलेख के अनुसार, रुस्तम
खान दखिनी ने 1657 ई. में मस्जिद
की मरम्मत करवाई। ऐसा ही अन्य
अभिलेख उत्तरी प्रखंड में सैयद कुतुब
(1626) के बारे में है।
दो अभिलेख 1845 ई. के लगभग
मस्जिद की मरम्मत का
जिक्र करते हैं।
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