Saturday, 21 December 2024

निजीकरण के विरोध में बिजलीकर्मियो का प्रदर्शन

ऊर्जा मंत्री के चोरी वाले भ्रामक आकड़े भड़के बिजली कर्मचारी

निजीकरण के विरोध में बिजलीकर्मियो का प्रदर्शन  

कर्मचारियों की डिमांड : विफलता मान ली है तो संघर्ष समिति को हैंडओवर करे पावर कारपोरेशन 

सुरेश गांधी

वाराणसी। विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति वाराणसी के तत्वाधान में गुरुवार को बनारस के समस्त बिजली अधिकारियों एवं कर्मचारियों ने भिखारीपुर स्थित हनुमानजी मंदिर के प्रांगण में जबरदस्त धरना-प्रदर्शन किया। इस दौरान एक स्वर में बिजली के निजीकरण के फैसले की निंदा करते हुए ऊर्जा प्रबंधन की विफलता का आरोप लगाएं जाने पर ऊर्जा मंत्री के खिलाफ आक्रोश व्यक्त किया। वक्ताओं ने कहा कि पावर कारपोरेशन की दुर्दशा को दूर करने हेतु संघर्ष समिति को हैंडओवर कर देना चाहिए। इस बाबत बिजली कर्मचारियों ने ऊर्जा मंत्री को पत्र भेजकर जनहित में अपील भी की है। 

वक्ताओं ने बताया कि आज उप्र एवं चंडीगढ़ में बिजली के निजीकरण के निर्णय के विरोध में पूरे देश में 27 लाख बिजली कर्मचारी सड़कों पर उतरे। बिजली कर्मचारियों मांग है उप्र में बिजली के निजीकरण का जनविरोधी निर्णय वापस लिया जाय। देशभर के बिजली कर्मचारियों ने चेतावनी दी है कि यदि उप्र में बिजली के निजीकरण की कोई भी एकतरफा कार्यवाही प्रारम्भ की गयी तो उसी समय बिना किसी नोटिस के देश भर के बिजली कर्मचारी आन्दोलन शुरू करने हेतु बाध्य होंगे, जिसकी पूरी जिम्मेदारी उप्र सरकार और उप्र पावर कारपोरेशन प्रबन्धन की होगी।

मीडिया प्रभारी अंकुर पांडेय ने बताया कि देश के बिजली कर्मचारियों के साथ आज उप्र के बिजली कर्मचारियों ने काकोरी क्रांति के अमर शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित कर ‘‘शहीदों के सपनों का भारत बनाओ - बिजली का निजीकरण हटाओ’’ नारे के साथ समस्त जनपदों एवं परियोजना मुख्यालयों पर सभाएं की और निजीकरण का प्रस्ताव निरस्त करने की मांग की। इसके अलावा संघर्ष समिति के पदाधिकारियों  ने ऊर्जा मंत्री द्वारा बिजली कर्मचारियों पर बिजली चोरी कराने के लगाये गये झूठे आरोप की कड़े शब्दों में निन्दा की।

उन्होंने कहा कि एक ओर ऊर्जा मंत्री यह बताते हुए नहीं थकते कि उनके कार्यकाल में प्रदेश में बिजली के क्षेत्र में युगान्तकारी कायाकल्प हुआ है दूसरी ओर वे यह कह रहे हैं कि बिजली व्यवस्था पटरी से उतर गयी है और बिजली कर्मचारी चोरी करा रहे हैं इसीलिए बिजली का निजीकरण करना जरूरी हो गया है। संघर्ष समिति ने कहा कि सीमित संसाधनों के बावजूद ऊर्जा क्षेत्र में उत्तरोत्तर गुणात्मक सुधार बिजली कर्मचारियों ने ही किया है जिसका श्रेय ऊर्जा मंत्री खुद ले रहे हैं और बिजली कर्मियों पर गैर जिम्मेदाराना आरोप लगा रहे हैं।

संघर्ष समिति ने ऊर्जा मंत्री द्वारा स्वीकार की गयी कथित विफलता के लिए पावर कारपोरेशन प्रबन्धन और ऊर्जा मंत्री को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि यदि वे बिजली व्यवस्था नहीं संभाल पा रहे हैं तो उन्हें पद छोड़ देना चाहिए। बिजलीकर्मी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कुशल नेतृत्व में प्रदेश को बेहतर बिजली देने के लिए सक्षम हैं। उप्र के ऊर्जा क्षेत्र में जब कोई बाहरी दखल नहीं था और प्रबन्धन अभियन्ताओं के हाथ था तब मात्र 77 करोड़ का घाटा था। खुद ऊर्जा मंत्री द्वारा बयान किये गये घाटे की सबसे अधिक जिम्मेदारी आईएएस प्रबन्धन की है, जिसे बर्खास्त किया जाना चाहिए। विगत 22 वर्षों में प्रबन्धन के शीर्ष पद पर रहे आईएएस अधिकारियों के कार्यकाल के घाटे का श्वेतपत्र जारी किया जाये।

संघर्ष समिति ने ऊर्जा मंत्री के इस वक्तव्य कि सभी श्रम संघों ने पीपीपी मॉडल के निजीकरण का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया है, को सरासर झूठ बताते हुए कहा कि ऊर्जा निगमों के एक भी श्रम संघ ने निजीकरण का पीपीपी मॉडल स्वीकार नहीं किया है। इसके विपरीत सभी श्रम संघ निजीकरण के विरोध में लगातार आवाज उठा रहे हैं। संघर्ष समिति ने कहा कि भ्रामक आकड़ों और भय का वातावरण बनाकर श्रम संघों और कर्मचारियों की आवाज को दबाया नहीं जा सकता। संघर्ष समिति ने कहा कि वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये बिजली कर्मचारियों और अभियन्ताओं को धमकाने का काम पावर कारपोरेशन के चेयरमैन बन्द करें अन्यथा संघर्ष समिति को इस मामले में विधिक कार्यवाही करने को मजबूर होना पड़ेगा।

कर्मचारियों ने जारी किए ऊर्जा मंत्री की झूठी रिपोर्ट

संघर्ष समिति ने कहा कि ऊर्जा मंत्री ने मुक्त कण्ठ से आगरा में काम कर रही निजी क्षेत्र की टोरेंट कम्पनी की तारीफ की है। हकीकत यह है कि यह प्रयोग पूरी तरह से विफल है और इससे हजारों करोड़ रूपये की चपत आम जनता पर पड़ रही है। ध्यान रहे पावर कारपोरेशन मंहगी दर पर बिजली खरीद कर टोरेंट कम्पनी को सस्ते दाम में देती है जिससे पिछले 14 साल में पावर कारपोरेशन को 2434 करोड़ रूपये की चपत लग चुकी है। वर्ष 2023-24 में पावर कारपोरेशन ने 5.55 रूपये प्रति यूनिट की दर से बिजली खरीद कर टोरेंट कम्पनी को 4.36 रूपये प्रति यूनिट पर बेचा जिससे 1 साल में ही 275 करोड़ रूपये का घाटा हुआ। सवाल यह है कि यदि ऐसा ही निजीकरण प्रदेश की जनता पर थोपा जा रहा है तो एक साल में ही ऊर्जा क्षेत्र बदहाल हो जायेगा।

ऊर्जा मंत्री ने 24 घण्टे निर्बाध विद्युत आपूर्ति का गुजरात की बिजली कम्पनियों का उदाहरण देते हुए कहा कि उप्र में यदि गुजरात की तरह 24 घण्टे बिजली देना है तो निजीकरण जरूरी है। संघर्ष समिति ने कहा कि ऊर्जा मंत्री इस मामले में प्रदेश को गुमराह कर रहे हैं। गुजरात में चारों विद्युत वितरण निगम सरकारी क्षेत्र में है। गुजरात में लाइन हानियाँ सबसे कम हैं और अबाध विद्युत आपूर्ति मिलती है। संघर्ष समिति ने ऊर्जा मंत्री के सामने कई बार यह प्रस्ताव रखा है कि यदि गुजरात की तरह उप्र के ऊर्जा मंत्री द्वारा दृढ़ इच्छा शक्ति का परिचय दिया जाये और बिना किसी हस्तक्षेप के बिजली कर्मियों को काम करने दिया जाये तो प्रदेश की बिजली व्यवस्था देश में अव्वल होगी। अत्यन्त दुर्भाग्य की बात है कि संघर्ष समिति के बार-बार कहने पर सरकारी क्षेत्र के गुजरात मॉडल की जगह ऊर्जा मंत्री चंद कारपोरेट घरानों के हाथ अरबों-खरबों रूपये की परिसम्पत्तियां बिना मूल्यांकन किये कौड़ियों के मोल सौंपना चाहते हैं।

संघर्ष समिति ने एक बार फिर कहा कि पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम के सबसे खराब एक डिवीजन या एक जनपद की जिम्मेदारी संघर्ष समिति को दी जाये और प्रयोग के तौर पर 1 साल के लिए ऐसे ही एक डिवीजन या एक जनपद की जिम्मेदारी किसी निजी कम्पनी को दी जाये। एक वर्ष के बाद संघर्ष समिति निजी क्षेत्र से बेहतर परफॉरमेंस देकर दिखा देगी। संघर्ष समिति ने कहा कि निजीकरण के विरोध में लोकतांत्रिक ढंग से उनका अभियान जारी रहेगा। सभा की अध्यक्षता मायाशंकर तिवारी और संचालन अंकुर पाण्डेय ने किया। सभा को सर्वश्री मायाशंकर तिवारी, नरेंद्र वर्मा, केके ओझा, एसके सिंह, मदन श्रीवास्तव, राजेन्द्र सिंह, संतोष वर्मा, विजय सिंह, आरबी यादव, रामकुमार झा, उदयभान दुबे, रामजी भारद्वाज, रंजीत कुमार आदि ने संबोधित किया।

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