Tuesday, 24 December 2024

‘राष्ट्र’ के लिए समर्पित रहे भारत रत्न पं. मदन मोहन मालवीय

राष्ट्रके लिए समर्पित रहे भारत रत्न पं. मदन मोहन मालवीय 

पंडित मदन मोहन मालवीय जब तक रहे, ’राष्ट्र प्रथमके संकल्प को सर्वोपरि रखा। इसके लिए बड़ी से बड़ी ताकत से टकराएं। मुश्किल से मुश्किल माहौल में भी देश के लिए संभावनाओं के नए बीज बोए. लेकिन बाबा साहब भीम राव अंबेडकर की तर्ज पर कांग्रेसी सरकारों ने मालवीय जी को भीभारत रत्नसे वंचित रखा। यह अलग बात है कि देश के संविधान निर्माता डॉ भीमराव आंबेडकर को अटल बिहारी बाजपेयी जी की मांग पर वीपी सिंह सरकार में 31 मार्च 1990 को मरणोपरांत सर्वोच्च नागरिक सम्मानभारत रत्नसे सम्मानित किया गया और पीएम नरेन्द्र मोदी सरकार में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने दिसंबर 2014 में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और मदन मोहन मालवीय को भारत रत्न से सम्मानित किया। पंडित मदन मोहन मालवीय काशी हिंदू विश्वविद्यालय के संस्थापक थे। उनका जन्म 25 दिसंबर 1861 को प्रयाग में हुआ था। 85 वर्ष की उम्र में साल 1946 में उनका निधन हो गया। उन्होंने 1916 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना की थी। खास बात यह है कि महामना 3 बार कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे। उनके जैसे व्यक्तित्व सदियों में एक बार जन्म लेते हैं तथा आने वाली कई सदियां उनसे प्रभावित होती हैं. “भारत की कितनी ही पीढ़ियों पर महामना का ऋण है. वो शिक्षा और योग्यता में उस समय के बड़े से बड़े विद्वानों की बराबरी करते थे. वो आधुनिक सोच और सनातन संस्कारों का संगम थे 

सुरेश गांधी

महान स्वतंत्रता सेनानी, पत्रकार, वकील और समाज सुधारक, आधुनिक भारत के निर्माताओं में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के संस्थापक पंडित मदन मोहन मालवीय का अग्रणी स्थान है. पंडित मदन मोहन मालवीय को एक उत्कृष्ट विद्वान और स्वतंत्रता सेनानी के रूप में याद किया जाता है जिन्होंने लोगों के बीच राष्ट्रीय चेतना जगाने के लिए अथक मेहनत की थी. मदन मोहन मालवीय की आज जयंती है. 25 दिसंबर, 1861 को एक संस्कृत ज्ञाता के घर में जन्मे महामना ने 5 की उम्र से ही संस्कृत की पढ़ाई शुरू कर दी थी. उनके पूर्वज मध्यप्रदेश के मालवा से थे. इसलिए उन्हेंमालवीयकहा जाता है. उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय से पढ़ाई की. पहले उन्होंने शिक्षक की नौकरी की. इसके बाद वकालत की. वो एक न्यूज पेपर के एडिटर भी रहे. 1915 में उन्होंने बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी की स्थापना की. वो हिंदू महासभा के संस्थापक रहे

महात्मा गांधी ने मदन मोहन मालवीय को महामना की उपाधि दी थी. बापू उन्हें अपना बड़ा भाई मानते थे. मदन मोहन मोहन मालवीय ने ही सत्यमेव जयते को लोकप्रिय बनाया. जो बाद में चलकर राष्ट्रीय आदर्श वाक्य बना और इसे राष्ट्रीय प्रतीक के नीच अंकित किया गया. हालांकि इस वाक्य को हजारों साल पहले उपनिषद में लिखा गया था. लेकिन इसे लोकप्रिय बनाने के पीछे मदन मोहन मालवीय का हाथ है. साल 1918 के कांग्रेस अधिवेशन में उन्होंने इस वाक्य का प्रयोग किया था. उस वक्त वो कांग्रेस के अध्यक्ष थे. मदन मोहन मालवीय ने कांग्रेस के कई अधिवेशनों की अध्यक्षता की. उन्होंने 1909, 1913, 1919 और 1932 के कांग्रेस अधिवेशनों की अध्यक्षता की. मदन मोहन मालवीय ने सविनय अवज्ञा और असहयोग आंदोलन में प्रमुख भूमिका निभाई. इन आंदोलनों का नेतृत्व महात्मा गांधी ने किया था. भारत की आजादी के लिए मदन मोहन मालवीय बहुत आशान्वित रहते थे. एक बार उन्होंने कहा था, ‘मैं 50 वर्षों से कांग्रेस के साथ हूं, हो सकता है कि मैं ज्यादा दिन तक जियूं और ये कसक रहे कि भारत अब भी स्वतंत्र नहीं है लेकिन फिर भी मैं आशा रखूंगा कि मैं स्वतंत्र भारत को देख सकूं.’ आजादी मिलने के एक साल पहले मदन मोहन मालवीय का निधन हो गया.

जब हैदराबाद के निजाम को सिखाया सबक

बीएचयू निर्माण के दौरान मदन मोहन मालवीय का एक किस्सा बड़ा मशहूर है. बीएचयू निर्माण के लिए मदन मोहन मालवीय देशभर से चंदा इकट्ठा करने निकले थे. इसी सिलसिले में मालवीय हैदराबाद के निजाम के पास आर्थिक मदद की आस में पहुंचे. मदन मोहन मालवीय ने निजाम से कहा कि वो बनारस में यूनिवर्सिटी बनाने के लिए आर्थिक सहयोग दें. हैदराबाद के निजाम ने आर्थिक मदद देने से साफ इनकार कर दिया. निजाम ने बदतमीजी करते हुए कहा कि दान में देने के लिए उनके पास सिर्फ जूती है. मदन मोहन मालवीय वैसे तो बहुत विनम्र थे लेकिन निजाम की इस बदतमीजी के लिए उन्होंने उसे सबक सिखाने की ठान ली. वो निजाम की जूती ही उठाकर ले गए. मदन मोहन मालवीय बाजार में निजाम की जूती को नीलाम करने की कोशिश करने में लग गए. जब इस बात की जानकारी हैदाराबाद के निजाम को हुई तो उसे लगा कि उसकी इज्जत नीलाम हो रही है. इसके बाद निजाम ने मदन मोहन मालवीय को बुलाकर उन्हें भारीभरकम दान देकर विदा किया.

मालवीय बीएचयू के तीसरे कुलपति थे  

बीएचयू के संस्थापक महामना पंडित मदन मोहन मालवीय विश्वविद्यालय के तीसरे कुलपति थे। उन्होंने करीब 20 साल तक कुलपति के रूप में अपनी सेवा दी। इसके बाद उन्होंने सर्वपल्ली डॉ. राधाकृष्णन को कुलपति का पद संभालने की सिफारिश की। शुरुआत में तो वह नहीं माने लेकिन बाद में उन्होंने अपनी सहमति दी। इसके तुरंत बाद महामना ने अपना त्याग पत्र तत्कालीन विश्वविद्यालय के परिषद को भेज दिया। महामना वर्ष 1939 में जब कोलकाता गए थे तो उन्होंने प्रो. राधाकृष्णन को उन्हीं शर्तों के आधार पर काशी हिंदू विश्वविद्यालय का कुलपति पद ग्रहण करने को कहा, उस समय वह कलकत्ता विश्वविद्यालय में कार्यरत थे। शुरुआत में राधाकृष्णन ने वेतन के आधार पर कुलपति का पद ग्रहण करने से इनकार कर दिया। इसके बाद उन्होंने महामना से बातचीत में ऑक्सफोर्ड एवं कोलकाता में व्यस्तता का हवाला देते हुए कुलपति का पद ग्रहण करने में असमर्थता जाहिर की। इसके बाद भी महामना ने कहा कि विश्वविद्यालय का अधिकांश काम तो सम कुलपति और विभागाध्यक्ष ही निपटा देते हैं। ऐसे में यदि वे कार्यकाल के दौरान विश्वविद्यालय में हर महीने सप्ताह के आखिर में केवल एक दिन भी रहे तो काम चल जाएगा। राधाकृष्णन को महामना की यह बात पसंद आई और उन्होंने कुलपति का पद अवैतनिक रूप से काशी हिंदू विश्वविद्यालय में ग्रहण कर लिया। इसके बाद मालवीय जी के खुशी का कोई ठिकाना नहीं था।

मालवीय को 1360 एकड़ जमीन दान में मिली

ब्रतानियां हुकूमत के दौर में देश में एक स्वदेशी विश्वविद्यालय का निर्माण मदन मोहन मालवीय की बड़ी उपलब्धि थी. मालवीय ने विश्वविद्यालय निर्माण में चंदे के लिए पेशावर से लेकर कन्याकुमारी तक की यात्रा की थी. उन्होंने 1 करोड़ 64 लाख की रकम जमा कर ली थी. बता दें, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय बनाने के लिए मदन मोहन मालवीय को 1360 एकड़ जमीन दान में मिली थी. इसमें 11 गांव, 70 हजार पेड़, 100 पक्के कुएं, 20 कच्चे कुएं, 40 पक्के मकान, 860 कच्चे मकान, एक मंदिर और एक धर्मशाला शामिल था. कहते है काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की पहली कल्पना दरभंगा नरेश कामेश्वर सिंह ने की थी. 1896 में एनी बेसेंट ने सेंट्रल हिन्दू स्कूल खोला. बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी का सपना महामना के साथ इन दोनों लोगों का भी था. 1905 में कुंभ मेले के दौरान विश्वविद्यालय का प्रस्ताव लोगों के सामने लाया गया. उस समय निर्माण के लिए एक करोड़ रुपए जमा करने थे. 1915 में पूरा पैसा जमा कर लिया गया. पांच लाख गायत्री मंत्रों के जाप के साथ भूमि पूजन हुआ. इसके साथ ही यूनिवर्सिटी निर्माण का काम प्रारंभ हुआ. मदन मोहन मालवीय का सपना था कि बनारस की तरह शिमला में एक यूनिवर्सिटी खोली जाए. हालांकि उनका ये सपना पूरा नहीं हो सका.

मदन मोहन मालवीय की प्रमुख विचार

·         धार्मिकता और धर्म की जीत होने दें, और सभी समुदायों और समाजों की प्रगति हो, हमारी प्यारी मातृभूमि को अपना खोया गौरव वापस मिले, और भारत के पुत्र विजयी हों.

·         यदि आप मानव आत्मा की आंतरिक शुद्धता को स्वीकार करते हैं, तो आप या आपका धर्म किसी भी व्यक्ति के स्पर्श या संबंध से किसी भी तरह से अशुद्ध या अपवित्र नहीं हो सकता है.

·         मैं सभी हिंदुओं और मुसलमानों, सिखों, ईसाइयों और पारसियों और अन्य सभी देशवासियों से सभी सांप्रदायिक मतभेदों को दूर करने और लोगों के सभी वर्गों के बीच राजनीतिक एकता स्थापित करने के लिए विनती करता हूं.

·         हम धर्म को चरित्र का पक्का आधार और मानव सुख का सच्चा स्रोत मानते हैं. हम मानते हैं कि देशभक्ति एक शक्तिशाली उत्थान प्रभाव है जो पुरुषों को उच्च विचार वाले निःस्वार्थ कार्रवाई के लिए प्रेरित करती है.

·         निर्भयता ही स्वतंत्रता का एकमात्र मार्ग है. निडर बनो और न्याय के लिए लड़ो.

·         विनम्रता के बिना ज्ञान बेकार है.

·         देश तभी ताकत हासिल कर सकता है और खुद को विकसित कर सकता है जब भारत के विभिन्न समुदायों के लोग आपसी सद्भावना और सद्भाव में रहते हैं.

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