विहंगम योग के प्रणेता सद्गुरु सदाफल देव जी महाराज के 135 फिट ऊंची प्रतिमा के निर्माण का संकल्प
धर्म, आस्था और अध्यात्म का स्वर्वेद ज्ञान महायज्ञ का समापन
25 हजार कुण्डीय महायज्ञ
के
मंत्रोचार
से
गूंजा
उमरहां
जड़भक्ति से
ऊपर
उठकर
भक्ति
के
चेतन
पथ
पर
अग्रसर
होने
की
आवश्यकता
: सद्गुरु
आचार्य
श्री
स्वतंत्र
देव
जी
महाराज
सुरेश गांधी
वाराणसी। स्वर्वेद महामंदिर धाम उमरहां के
पवित्र प्रांगण में विहंगम योग
संत समाज के शताब्दी
समारोह का रविवार को
समापन हो गया। 25000 कुण्डीय
स्वर्वेद ज्ञान महायज्ञ के दौरान वेद
मंत्रों से पूरा इलाका
गुंजायमान रहा। वार्षिकोत्सव में
आये लाखों भक्त-शिष्यो ने
महाराज जी के समक्ष
अपने दोनों हाथ उठाकर विधिवत
सेवा, सत्संग, साधना करने का संकल्प
लिया, साथ ही विहंगम
योग के प्रमुख सद्ग्रन्थ
स्वर्वेद को जन-जन
तक पंहुचाने तथा स्वर्वेद महामंदिर
के ही समीप विहंगम
योग के प्रणेता सद्गुरु
सदाफल देव जी महाराज
के 135 फिट से भी
अधिक ऊंची प्रतिमा के
निर्माण का भी संकल्प
लिया। तीन दिनों के
इस महा आयोजन में
लाखों की संख्या में
पहुँच कर श्रद्धालुओं ने
स्वर्वेद महामंदिर का दर्शन किया।
महायज्ञ के समापन अवसर
पर देश-विदेश से
आए लाखों भक्तों को संबोधित करते
हुए सद्गुरु आचार्य श्री स्वतंत्र देव
जी महाराज ने कहा कि
आत्मोद्धार का सर्वश्रेष्ठ साधन
है भक्ति। लेकिन आज की भक्ति
अज्ञान एवं आडम्बरयुक्त जड़भक्ति
है। जड़भक्ति से ऊपर उठकर
भक्ति के चेतन पथ
पर अग्रसर होने की आवश्यकता
है। अधिकांश व्यक्तियों का जीवन अविद्या
एवं अंधकार में व्यतीत हो
रहा है। विहंगम योग
ही विशुद्ध चेतन भक्ति है,
जिसमें साधक संपूर्ण विकारों
को त्यागकर आतंरिक शुद्ध स्वरूप की प्राप्ति कर
लेता है।
उन्होंने कहा कि जैसे
कमल का पत्ता जल
से ही उत्पन्न होता
है और जल में
ही रहता है पर
वह जल से लिप्त
नहीं होता। ऐसे ही एक
विहंगम योगी संसार में
रहते हुए संसार के
कार्यों को करते हुए
भी इससे निर्लिप्त रहता
है। समारोह के समापन पर
भक्तों को संदेश देते
हुए संत प्रवर श्री
विज्ञान देव जी महाराज
ने कहा कि हमारा
अज्ञान ही हमारे दुखों
का कारण है। कोई
व्यक्ति अयोग्य नहीं। अच्छाइयां - बुराइयां सबके भीतर हैं।
हमे दुर्बलताओं, कठिनाइयों से घबराना नहीं
है। उन कठिनाइयों को
दूर करने की जो
प्रेरणा, जो शक्ति, जो
सामर्थ्य है वह अध्यात्म
के आलोक से, स्वर्वेद
के स्वर से एक
साधक को अवश्य ही
प्राप्त होता है। क्योंकि
हमारे भीतर अंतरात्मा रूप
से परमात्मा ही तो स्थित
है।
सन्त प्रवर श्री
ने बताया कि विहंगम योग
का ध्यान आंतरिक शांति का मार्ग प्रशस्त
करता है। एक साधक
जब सिद्धासन में बैठकर अपनी
चेतना को गुरु उपदिष्ट
भूमि पर केंद्रित करता
है तो वह मानसिक
व आत्मिक शांति का अनुभव करता
है। मन पर नियंत्रण
न होने से ही
समाज में तमाम विसंगतियां
फैली हैं। ध्यान में
मानव मानवीय गुणों से मंडित होकर
दिव्यगुण स्वाभाव वाला बन जाता
है।
हम सबका संकल्प महान! स्वर्वेद महामंदिर निमार्ण!!
विहंगम योगी करे पुकार! अध्यात्म मूर्ति हो तैयार!!
संकल्प दिव्य निभाएंगे! हम मूर्ति भव्य बनायेंगे!!
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